नज़र बूरी
खुशियों ही खुशियों से भरा था हमारा दामन ।
घर में और बाहर, चारों ओर फैला था अमन।
अचानक एक बलाका हुआ, ऐसा आगमन;
कि लग गई नज़र बूरी, अब जल रहा है, हमारा चमन।
आलीशान सा घर था, और प्रेम-पुष्पो से, चमन था भरपुर ।
सदस्य रहते थे देश- परदेश; कोई पास कोई दुर।
पर जुड़े हुए थे सब दिल से, जानता है तु यह सच, मेरे हुज़ूर ।
हर कोई जीता था एक दूजे के लिए, जिंदगी थी खुष्नूर ।
उस बला ने डाली फूट चमनमे; डाली ऐसी चिंगारी, कि लग गई
आग ।
बचानेके, मां ने, मौसी ने, बुआने, सब ने प्रयत्न किए अथाग;
पर फिर भी हो गए मजबूर, बुझा न सका कोई यह आग ।
नज़र बूरी ऐसी डाली; मुरझाई कली कली, राख होने को है मेरा बाग ।
ऐ भगवान, तु तो है वाकिफ, जानता है तु पूरी दास्तान ।
मिला दे बिछड़े भाई बहनों को, बक्ष दे उन्हें; दे दे आज वरदान।
लौटा दे उन्हें, उनका झूठ से उजाड़ा हुआ सनमान।
बता दें तू आज करिष्मा अपना; वोह भी समझे और जाने, तेरी पहचान ।
Armin Dutia Motashaw