वो बात
प्रीतम से ही छुपा के रखे थे मैंने, मेरे जो जज़्बात, मेरी वो बात ;
जो छुपा के रखी थी, होटों तक आते आते, रह गई आज मेरे दिल की बात ;
हाथकड़ी पहना दी मैंने उन बातों को, रौंध दिए मैंने, मेरे ही जज़्बात ।
फिर गीत में मैंने ढाल दिए उन्हें; और लोग कहने लगे, "वाह वाह क्या बात" !!!
अश्कों को पीने की आदत हो गई है अब; छुपा लेती हूं मै मनकी बात
सीने में सुलग रही है बीरह की आग; पर होटों पर हसी बिछा के, दुःख को दे देती हूं मात
बस खुली आंखों से देख लेती हूं प्रीतम के साथ, एक बड़ी ही हसीन मुलाकात ।
सपने कहां कभी होते हैं अपने, वो तो मेहमान है; आते हैं जब छा जाती है रात
सुबह होते ही, गायब हो जाते है ; छोड़ देते है वो मेरा साथ !
पर ऐ दिल, पूछ जरा आंखोसे अपनी; सपने उसे आए कहां से, जब जागती है यह आंखे सारी रात ।
बोला दिल, "मालिक मेरे, सपनों में भी, रखना उन्हें खुशहाल हर पल, दिन हो या रात "।
काश एक दिन ऐसा आए, जब पी कह दे मुझे, मेरे ही दिलकी बात, जिसे सुन ने के लिए बेताब हूं मैं, दिन रात।
Armin Dutia Motashaw