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Mohan Jaipuri Jan 2020
जब आंख किसी से लगती है
तब आंख में छवि उसी की बसती है
बातें सारी उसकी कानों में गूंजती है
खिलखिलाहट हरदम सुनाई देती है
अनुराग की आग दिल में ऐसी दहकती है
सारे दरिया उसे मिटाने में असमर्थ होते हैं
किसी को कही नहीं जाती मनोदशा
क्योंकि पशोपेश में ऐसे फंसा
मन नहीं रहता खुद के पास
तन नहीं जा पाता उसके पास
नींद अब आती नहीं पल भर
बस प्यास बन जाती है नींद हर।
Mohan Jaipuri Feb 2023
होगा सितारों का खूबसूरत जहां
एक जूगनू चमक रहा है यहां
तोड़ दो‌ सोच का सिलसिला
सबसे न्यारा होगा अपना जहां।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
अभियंताओं का यह स्वर्णिम काल
धरती पर रहकर आकाश में धमाल।
यात्रा तो बस एक हवाई छलांग
समुद्र हो गये मानो चोड़े एक फर्लांग।
सूरज की रोशनी के ऊर्जा प्लांट
कम्प्यूटर ही करते अंग ट्रांसप्लांट।
धरती से आकाश ,आकाश से धरती
सिग्नल के द्वारा रोज बातें करती।
युद्ध के सामान इतने हल्के फिर भी
पलक‌ झपकते शहरों को मिटाते।
मोटर, कारें, रेलें अपने आप चलते
हम सौ मंजिल ऊंचे घरों में रहते ।
मोबाइल से हम सारे काम करते
कुछ तो इससे विदेशी दुल्हन लाते।।
Mohan Jaipuri Sep 2022
अभियांत्रिकी में नवाचार
यही है वक्त की पुकार
जितना ज्यादा ‌नवाचार
उतना बेहतर होगा संसार।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
हमारे शब्द
हमारी छाया हैं
हमारे आचरण
हमारी काया हैं
बस इतनी सी
अभिव्यक्ति की
माया है।।
Mohan Jaipuri Feb 2023
किस्मत किस्मत करने वाले
किस्मत फिजाओं में घुली है
बाहर निकल महसूस तो कर
मिट जायेगा मन का अंधेरा
कभी अरूणोदय से बात तो कर।।
Mohan Jaipuri Mar 2020
कभी जंगल काटता
कभी ग्लेशियर काटता
अब जानवरों तक
पहुंच गया
आदमी

खतरे में पड़ गया पर्यावरण
ऋतुओं का बिगड़ गया आचरण
क्यों नहीं सोचा
जो होगा पर्यावरण के साथ
वही तो पाएगा
यह पर्यावरण की उपज
आदमी

सताया जब चिंपांजी
पाया एड्स
सूअर से ले लिया
स्वाइन फ्लू
चमगादड़ तक पहुंचते-पहुंचते
खुद ही उल्टा लटक गया
आदमी

संक्रमित होने लगा
सारा जग
बचने की कोशिश में अलग-थलग
अब पड़ने लगा
आदमी
Mohan Jaipuri May 2024
आंखों से जाम लिया
होठों पर थाम लिया
उसने फोन काट‌ दिया
ये कैसा‌ सितम किया ?
सपने नहीं पूरे हुए
अधूरे भी कैसे कहें?
उसने तो मुझे पढ़ लिया
मैं  ही असफल रहा।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
जाना‌ तो कवियों को भी पड़ता है
यह राह वरना बनी रहेगी कैसे?
माना चले जायेंगे कवि भी एक रोज
अंदाज-ए-बयां उनके मिटने से रहे ।।
Mohan Jaipuri Jul 2020
लोग कहते हैं
जिंदगी आइसक्रीम की तरह है
टेस्ट करो तो पिघलती है
वेस्ट करो तो भी पिघलती है
कौन यहां मनमाफिक जिंदगी
जी पाता है
यह तो किसी और की
पहले से लिखी हुई पटकथा है
परंतु आज इस उमसभरी दुपहरी में
आइसक्रीम को थोड़ा चखा है
इस कोरोना के काल में‌ फिर से
मन बचपन में जरूर लौटा है।
Mohan Jaipuri Jun 2024
आज उन्नतीस जून है
जीने का वही जूनून है
तुझ बिन बेनूर जिंदगी
ईश्वर तेरा कैसा कानून है।

कभी घबराता था
आत्मविश्वास देख तेरा
आज बन‌ गया‌‌ है देखो
तुम बिन सवेरा यहां अंधेरा।।

आय कम थी
जरूरतें ज्यादा थी
फिर भी विश्वास था क्योंकि
तू हरदम जीत को आमादा थी।

ढलती उम्र के साथ
यादें ज्यादा ताजा हो रही हैं
जीवन का तजूर्बा है
सत्य गांधी,तो आईना कस्तूरबा है।।
Mohan Jaipuri May 2024
म्हारी आखातीज
घी‌-खीचड़े रो भोग
जे सागै खाटो मिलज्या
रैवां बारों मिनहां निरोग।
खेत में सोनचिड़ी दिखज्या
फोगड़ां गां सीटा
रामजी छांट करदे
सुगन मानां मोटा।
के तो घरै बीनणी आसी
के भरसी कोठ्या मोटा
बारों मिनहां धीणो रैसी
पीसां रो नीं होसी टोटा।।
Mohan Jaipuri Dec 2024
पढ़ाई करो और शादी करो
बच्चों से फिर वही कराओ
पत्थरों की मूर्ति बनाओ
उनको पूजो और मन्नत मांगो
सच में बड़ा मुश्किल है
नहीं तो फिर जंगल में जाओ
पत्थर भिड़ाओ , आग जलाओ
पत्तों का लंगोट बनाओ
झिंगा ला ला हू हू गाओ
सस्ती मस्ती में घास खाओ
खुद से खूंखार जीव मिले तो
उसका निवाला बन जाओ
ज्ञान पढ़ लिया  हो तो
अपने काम लग जाओ।।
😀😀😀😀😀
Mohan Jaipuri Apr 2020
सच कहते हैं
छोटों के सपने छोटे
और बड़ों के मोटे
देखना था शहर लखनऊ
पर हम आपके
पुराने 'नोट्स' देखकर लौटे
ना सपने को धार मिली
ना लखनवी व्यंजन चटपटे
बस तुम्हारा दीदार हुआ
और  तुरन्त सरपटे ।
Mohan Jaipuri Oct 2021
आज की कमाई
मूली के पत्तों की सब्जी खाई
और दूसरी मेरी बातों से
दो चेहरों पर मुस्कान आई।।
Mohan Jaipuri Oct 2020
मशीनी रिश्ते, संस्कार छूटते
शिक्षा दिखती बेरोजगारी बांटते
सोशल मीडिया समय खाते
और नफरत उगलते
प्रेस लगती बिक कर छपते
खेती दिखती लुप्त होते
डांस खाते 'थैक' पर गोते
खेलों को अब सट्टे लीलते
खाने को रसायन मिलते
खबरों में पढ़ने को
'रेप ' के समाचार मिलते
कपड़े आजकल छोटे ही सिलते
फूल अब ज्यादा कृत्रिम ही मिलते
जिम्मेदार दिखते झांसा ही देते
इस कोलाहल में यदि राम होते
ना धनुष ना बाण उठा पाते
देख देख सिर्फ माथा पीटते।
Today is Dussehra,"the festival of the win of truth over evil " in India.
Mohan Jaipuri Aug 2024
आज राखी है
बहन - भाई के अटूट
स्नेह की साक्षी है।

भाई रक्षा सूत्र बंधवाकर
बहन को रक्षा का संकल्प देता है
यह रस्म पीढ़ियों से
चलती आ रही है ।

घर से बाहर निकाल कर
शायद भाई यह संकल्प भूल जाते हैं
तभी कार्यालय हो, सफर हो ,
या हो अस्पताल बहनें लूटी जाती हैं ।

उसने भी बांधी होगी
किसी को राखी, दिया होगा संकल्प
फिर भी खत्म कर दिया गया
उसके जीने का हर विकल्प ।

कोलकाता, मेरठ या हो जोधपुर
हर जगह राखी तोड़ी गई
एक बहन की गर्दन
नृशंस रूप से मरोड़ी गई ।

आज हर एक राखी
रो कर कह रही होगी
बंद करो यह उपहास
नहीं होता रक्षा संकल्प पर विश्वास ।

राखी में भी आज स्वार्थ की बू आती है
सरकारें मुफ्त यात्राएं करवा कर
बहनों के वोट लेती हैं
जब बारी आती इंसाफ की
वही सरकारें एक दूसरे को दोष देती हैं
पर इंसाफ करने से कतराती हैं ।

क्यों राखी के धागों को
अब बदनाम करते हो
मन के धागों को
क्यों नहीं मजबूत करते हो?
Mohan Jaipuri Aug 2024
गैरों से आजादी
तब तक ही‌ सुरक्षित है
जब तक अपने इसका
मतलब समझते रहें।।
Mohan Jaipuri Aug 2024
आधी चोकलेट तूने खायी
आधी मुझको भेज दी
देख तेरा यह लगाव मुझसे
मैंने चूस -चूस कर खत्म की।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
बचपन में जब स्कूल जाने का
मन नहीं हुआ करता था
कहते थे आज दांत में
दर्द है
खाना नहीं खाऊंगा
पिताजी समझ जाते थे
और घुमाने ले जाते थे।

अब आधी सदी बाद
जब सच में दांत में
दर्द होता है
खाना नहीं खाता हूं
ऑफिस भी नहीं जाता हूं
आज फिर कमी है पिताजी की तरह
घुमाने वाले की
और दर्द को
छूमंतर करने
वाले की।
Some pain are small but need attention of relations.
Mohan Jaipuri Sep 2020
आधुनिकता ने हमको
कहां से कहां पहुंचाया
       अब उषा दस्तक देती नहीं
       अलार्म से उठते हैं
       संध्या में ईश्वर स्तुति
       के बजाय कई सवाल
       लेकर सोते हैं
       जो नींद की मधुरता में
       विष घोलते हैं
इस बेबस जीवन में
कोई रस नहीं पाया
       कभी मौसम देखा नहीं
       मात्र समाचारों में सुना
       ख्वाबों को जिया नहीं
       बस नित एक नया बुना
       आराम के नाम पर कभी
       बस बीमारी को भुनाया
इतना होने पर भी इस जीवन क्रम
का कभी मंथन नहीं कर पाया
       कितनी ही बार अपनों की
       यादों में लिपटा
       हर बार किसी मजबूरी ने
       मारा मुझ पर झपटा
होटों तक आते-आते
दर्द फिर से हार गया।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
मौसम है आमों का
कभी घूमते थे इनकी तलाश में
अब कुदरत का फरमान है
स्वास्थ्य ढूंढ रहा हूं घर के कड़वे नीम में
पिछले एक महीने में
बन गया हूं आधा हकीम मैं
भीड़ से दूर रहकर
करता हूं खुद पे यकीन मैं।
Mango and Neem season is same but we always ignored neem. One is sweet but another is bitter. This year it is bitter's turn.
Mohan Jaipuri Jul 2024
तेरी नाइट लैम्प की लाली
और ये लाल सूर्ख तेरे फूल
मिलकर सपने में ही कभी
होगा आंखों से सलाम कूबूल।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
पहले पड़ती धूप
फिर चलती आंधियां
आंधियों का शोर मिटाने
बारिश आती रे! आंधिया।।
Mohan Jaipuri Nov 2024
जिनका हो इकबाल
पीछे चलता ऐतबार
जिंदगी में परखा यह
एक नहीं सौ बार।।
Mohan Jaipuri Jul 2020
इत्तेफाक महज इत्तेफाक से तो नहीं होते
कुछ तो इस जहां में इनके मसाइल होते
जिन्होंने मोड़े थे बड़ी नजाकत से रास्ते
आज एक अजनबी उसी चांद संग लौटे।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
एक दीप जो आज ही के‌
दिन बुझ गया  था
बुझने से पहले गौरवशाली गाथाओं
के दीप कई जला गया था।।
      नमन 🙏🙏
Mohan Jaipuri Dec 2024
जमाना बेमिसाल , मैसेज हैं कमाल
मोबाइल पर ही समय बीत जाता है
विडियो काल तो सब अनचाही
लालसाओं को पंख लगा जाती है।
तेरे इन्बोक्स में आकर मेरा
फ्लर्ट निकल जाता है
दो घड़ी के लिए ही सही
मेरी दुनिया बदल‌ जाती है ।
यहां कौन किसका है
यह तो वक्त ही बताता है
पर दो पल तेरे इन्बोक्स में
आकर मेरी रूह ताजा हो जाती है ।
गर्म तेरा  मिजाज जो हो
दिल मेरा काम में लग जाता है
गर मिजाज तेरा शायराना हो
अंदाज-ए-बयां मेरा गजल बन जाती है।‌
नजर अंदाज कर दो मुझे तो
मेरा वजूद समझ में आता है
गर दे दो थोड़ा हौंसला
मेरी बांछे खिल जाती है।
Mohan Jaipuri Nov 2024
शायरी मेरी मेहबूबा
इश्क इसका ले डूबा
चढ़ा के चाय भूल जाऊं
चाय और पतीला दोनों जलाऊं
खुद को ठन ठन पाल पाऊं।।
     😀😀😀😀
Happy Diwali Helloians
Mohan Jaipuri Jan 2022
आज एक और रसीद आई
सुबह-सुबह उमंग ले आई
सौदागर के सपने भरने
देखो यह सुनहरे रंग में आई।

मकर सक्रांति पर्व पर यह
विचारों को पंख लगाने आई
बिन चरखी और डोर के ही
मुझको आकाश घुमाने आई।

मेरे कोमल मन को देखो
जहां की सैर कराने आई
मावठ के इस शीत मौसम में
शब्दों से इश्क की खुमारी लाई।।
# Publication of Saudagar
Mohan Jaipuri Dec 2020
भारत में यदि उमड़ पड़े
जड़ों के प्रति चाव औ
किसानों का पड़ाव
फिर कोई ना रोक सके
चाहे राम हो या राव।।
Mohan Jaipuri Mar 2022
उधर उम्र के साथ अदायें
और उन्नत हो जाती हैं
यहां चश्मे की आड़ में आंखें भी
ताड़ने में हुनरबाज हो जाती हैं।।
Mohan Jaipuri Oct 2022
तेरी  मुस्कुराहटों पर
जाने कितने लोग फिदा होंगे
घुंघराले इन बालों में कितनों के
ख्वाब‌ उलझे होंगे
मैं तो एक शायर हूं
मन की बात लिख देता हूं
जो लिख नहीं पाते उनके दिल
ना जाने कितने भारी होंगे।।
Mohan Jaipuri Nov 2020
मेरी खुशी
यारों की अमानत है
मेरी जिंदगी उनकी
दुआओं से सलामत है।

मैंने जिंदगी के फर्ज
निभाए हैं फिल्मी तर्ज
अब इस ऊंघते से समय में
नहीं है कोई मर्ज
ठहाके लगाने में अब
नहीं है कोई हर्ज।

मेरी बातों में अब
नहीं है कोई रंज
मेरी चालों में
नहीं है शतरंज
मैं तो टिमटिमाता
दीपक हूं ख्यालों का
जिसको इंतजार रहता
यार मतवालों का।

मैंने अपनी जिंदगी पर
समझा नहीं अपना हक
इसलिए जो करना है
करता हूं बे-शक
जीता हूं आज को
ना करता चिंता नाहक।।
Mohan Jaipuri Feb 2023
शिव सादगी
शिव सहनशीलता
जटाएं इशारा हैं
जीवन की उलझनों का
नन्दी  प्रतीक‌ है
जीवन‌ उपयोगिता का
मृगछाला प्रतीक
दमन तृष्णाओं का
गले का नाग कहे
जहर गले तक ही रहे
सिर की गंगा कहे
ठंडा मस्तिष्क रहे
निर्वस्त्र शरीर कहे
बिन दिखावे का
अपना जीवन हो
हर एक मनुष्य का
शिव संकल्प हो
फिर जीवन में
ना कभी कठिनाई
का बोध हो।।

ऊं नमः शिवाय
आज एक अटेची खोली
अटेची छोटी , बात बड़ी
एक ड्राइवर की समझ की
यह बन गई सुनहरी कड़ी।।
Mohan Jaipuri Feb 13
मैंने चूम ली वह तस्वीर
जो थी कप एक कॉफी
मुझे ' चुम्बन दिवस ' पर
वह तस्वीर लगी एक ट्रॉफी
सामने वह नहीं ना कभी होगी
नज़रों में बसी उसकी तस्वीर
मेरे वाक्यों को बना रही उसका
जैसे बना लेती है एक 'अपोस्ट्रोफी'।
Mohan Jaipuri Sep 2019
अभियंता का चिंतन
ड्राइंग पर आता
ड्राइंग से डिजाइन बनाता
डिजाइन जब फील्ड पर आती
इसमें मानवता की कड़ी जुड़ती
यहीं से अभियंता की
प्राथमिकताएं शुरू होती।

अभियंता एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष
उसका उद्देश्य मानवता सापेक्ष
चाहे हो अमेरिका , चाहे ईरान
मापन उसका सब जगह समान
यही है उसका धर्म - ईमान।

अभियंता का जुनून
धरती, आकाश और सागर
देखते ही देखते उसने
सब जगह बना ली डगर
वास्तविकताएं उससे
छुप नहीं सकती पल भर
यहीं से वह बन जाता
एक मशीन भर
चेतना में शामिल
हो जाती है दक्षता हर

खाना ,पीना ,रहना
इनसे ना कोई परहेज
पहाड़- मैदान, समुद्र
बन जाता है उसका घर
शाकाहारी , मांसाहारी जो
मिल जाए उस पर निर्भर
अभियंता है पूरा वैश्विक
जहां मिले रुचिकर काम
वहीं बन जाता नागरिक
आज अभियंता दिवस है
Mohan Jaipuri Sep 2024
आज मैंने जिंदगी से पूछा
मैंने अब तक क्या पाया ?
जिंदगी ने उत्तर दिया
कितना खुश किस्मत है तू
कि खोने का डर  ना रहा।
Mohan Jaipuri Sep 2020
एक कड़ी
खुशियों की लड़ी
शिशु ने पकड़ी
किशोर ने छोड़ी
तब से है सबकी
यादों में पड़ी
सतरंगी सी वह
बाल्यावस्था की घड़ी
Mohan Jaipuri May 2019
जज्बात तो जज्बात होते हैं
इन पर हमारा नियंत्रण नहीं
गर हो जाए कोई हमसे चूक
तो तुम देना गुस्सा थूक
आज एक चीते की शादी की सालगिरह है
उस को" विश "करने की चुनौती है
है चिता यह बड़ा अलबेला
जिसकी नहीं है अन्य मिसाल
कद में यह है पांच फुटिया
पर बोली से मचाता है धमाल
दुनिया की कोई ऐसी चीज नहीं
जो इसने कभी चखी नहीं
सूरज की तरह घूम घूम कर
दुनिया की सैर करता है
शिव बाबा की तरह
अपनी मस्ती में तांडव करता है
नहीं किसी की भाषा सुनता
नहीं किसी नियम से बंधता
हर एक के साथ बस
अपने ही तरीके से पेश आता है
इस की धर्मपत्नी को ढेरों सलाम
जो सचमुच में होंगी कमाल
आओ मिलकर चीते को ढूंढे
फिर पेश करें बधाइयों की मिसाल।
Mohan Jaipuri Feb 2021
लफड़े जिंदगी में अपने आप आ गये
जैसे पेड़ पर बर्र के छात्ते छा गये

ढूंढने की कोशिश की किसी दर्द का तोड़
नए दर्द आने की लग गई होड़
आशाओं के आगोश में झूलते रहे
नए-नए दर्द फलते -फूलते रहे
     ज्यों ज्यों हृदय पर पत्थर रखते गए
     पत्थरों में भी नये शूल उगते गये

अपनों के अपनत्व पर हम फूलते रहे
वो पीछे - पीछे चलते पैर उखाड़ते रहे
उम्र के साथ हम किसी‌‌ तरह पैर साधते रहे
अपना मन किसी तरह बहलाते रहे
     लोग हर तरह की नैतिकता को लांघते गये
     आदर्शों के बोझ से खुद में ही दफन होते गये

वक्त को भी हम कुछ नागवार गुजरते रहे
काठी छिन गई , कहकहे खामोशी में बदलने लगे
पिंजड़े उजड़ने लगे ,खामोशी बोलने लगी
प्यास अभी बाकी है पर घुटन सी होने लगी
     खामोशी के मंजर में जब डूबते गये
     जख्मों के दर्द में‌ लब सीलना‌ सीखते गये।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
प्रेम एक धुन है
रम गये तो थम गये
जो पिछड़ गये वो
दुनियां से बिछुड़ गये।
Mohan Jaipuri Dec 2022
आंसूओं को एक उम्र के
पड़ाव के बाद ‌ना‌ करें बर्बाद
देखने वाला‌ कोई नहीं
उल्टे आंखें होंगी खराब
यदि हृदय उमड़े तो
करो पुराने दोस्त याद
सोचो‌ जो‌ साथ रहते थे
उनकी‌ भी तो थी एक मियाद
नयी पीढ़ी में अब नहीं
वह पुराने जज़्बात
सोशल मीडिया की स्रोता
ना समझे आपकी बात।।
Mohan Jaipuri Jun 2020
दीर्घ वृत्ताकार तेरा मुखड़ा
जिस पर सूर्य जैसी बिंदी
आंखें मय के प्याले जैसी
उड़ा दे सबकी निंदी
झूमर तेरे शंकवाकार
जो कर दें दिल बेकरार

गर्दन तेरी सुराही दार
जिसमें मैचिंग वाली माला
साड़ी पहने लाल पर
दुर्गा लगती है ये बाला
होंठ तेरे पंखुड़ी जैसे
नाक है सुआदार

चूड़ियों से भरे हाथ तेरे
बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
घुंघराले बाल तेरे
अद्भुत लहराने का ढंग
चश्मे में से जब तू देखें
चेहरा लगे ईमानदार

पूजा वाली थाली संग
लगती नारी हिंदुस्तानी
जिधर से भी तू गुजरे
उधर मौसम हो जाए तूफानी
देख तुझको जी‌ ललचाये
जैसे तू हो रसगुल्ला शानदार

इतना सब सोच समझ कर
लिखने का चल दिया अपना दांव
मैं दूर देश का सीधा सादा
बड़ा दूर ही मेरा गांव
गलती हो तो माफ करना
यही जहन मे आया सरकार।
Mohan Jaipuri Dec 2018
दूर तक चलने वाली एक रवायत है तुझ में,
टूटी हुई बेसहारा लोगों की आशाएं हैं तुझ में।
वादियों में गुंजायमान बुलंद आवाज है तुझ में,
सर्दी-गर्मी-वर्षा में न रुकने का संदेश है तुझ में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार हैं तुझ में।।
नए फन और कर्तब के जज्बे हैं तुझ में,
लुप्त होती परोपकारिता का अक्ष है तुझ में।
गरीब-अमीर सबके लिए समानता है तुझ में,
कई बस्ती ,कई कस्बे ,कई बाजार हैं तुझ में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार हैं तुझ में।।
प्रकृति से अद्भुत जुड़ाव है तुझ में,
कई काफिले कई संसार है तुझ में।
एक ख्वाहिश अभी भी ज्वलंत है तुझ में,
वरना तन्हाई का भाव ना आता मन में।
कई चाहे और अनचाहे किरदार है तुझ में।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
जन्म मिलता है किस्मत से
किसी को झोंपड़ी,
किसी को महल
तो किसी को खुला आसमां
जाने का ठिकाना एक है जिसमें
लुप्त हो जाता है सारा जहां
जीओ इसी सत्य की‌ नींव पर
अन्त अलग- अलग‌ है कहां।।
RIP Pranav Mukherjee, Former President of Of India. Who died on 31st Aug 2020
Mohan Jaipuri Jul 2020
जब जब मैं इन्हें बनाता हूं
पसीना रीढ की हड्डी के ऊपर
चल कर पैरों तक आ जाता है
तो कभी नाक से उतर कर
मुंह में घुस जाता है।
मेरे शरीर की नमक की
पूर्ती सहसा ही कर जाता है
बिन पानी के ही मैं पवित्र
स्नान कर बाहर आता हूं
पर इसका मतलब यह भी नहीं कि
मैं अपने पसीने से तकदीर सींचता हूं
मैं तो बस गर्मी में अपने लिए
अपनी चार‌ रोटी बनाता हूं
पाठ यह सीखना बाकी है कि
महिलायें कैसे इतनी तपने के
बाद भी मुस्कुराहट के साथ
सबको खाना परोसती हैं
ना कभी एहसान जताती हैं?
Mohan Jaipuri Nov 2024
बन आईना उनको देखता रहा
स्केच भी बनाता रहा
शीर्षक क्या दूं
मसला यह अनसुलझा रहा।।
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