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Mohan Jaipuri Sep 2024
हर अक्षर शिक्षक की छाप
पहले शिक्षक से हुआ ज्ञात
अक्षर हैं दुनिया का ज्ञान
किताबों से हुआ ज्ञात।

व्यवहार और गरिमा
परिवार की है सौगात
बाहर निकले तब देखा
दोस्त बदल देते बात।

राजनीति को देखा
यह अलग पढ़ाई है
मौसमी मुर्गों का खेल
जीते वही कन्हाई है।

घर में समझें
जो बीवी की बात
कलह वहां नहीं कभी आत
उस घर का दाल भात
हर रेसिपी को देता मात।।
Mohan Jaipuri Dec 2018
श्यामला देवी के नाम से
वायस-रीगल -लौज के वैभव से
पर्वत चोटियों की चिकनी ढलान से
स्कीयरों के उत्साह से
जो आमंत्रित करता है उल्लास से
उस शहर से हमारी शान है।
जाखू मंदिर के इतिहास से
ब्रिटिश- गोरखाओं के संग्राम से
जो भरा है अद्भुत अतीत गाथाओं से
जो निहारता है ढाई हजार मीटर की हिमशिखा से
उस शहर से हमारी शान है।।
जो जुड़ा है मीटर गेज से
वह लाइन करती अठखेलियां सुरंगों से
जो अछूता है वैश्वीकरण और वाणिज्यकरण से
जिसमें आकर्षण बरकरार है पुरानी दुनिया का
उसी शहर से हमारी शान है।
जहां की हिमाचली टोपी पहचान है
खच्चर यात्रा जहां मशहूर है
लोगों के चेहरे जहां गुलाबी हैं
व्यवहार में सरलता और निश्छलता है
निराश्रित को आश्रय देना जिस की शान है
हिम के फाहे जिसे सजाते हैं
इस शहर को स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित बनाना हमारा काम है
क्योंकि इस शहर से हमारी शान है।।
Mohan Jaipuri Dec 2021
चूरू तो ठंडा भया
चाले ठण्डी बाय
खाओ बाजर की रोटियां
लहसुन चटनी लगाय।

जल्दी सिमटो बिस्तरां
दिन में ही सब निपटाय
जाना‌ अगर खुले में
हाथ-पैर बार-२ तपाय।

उगत में कोई दम नहीं
छिपते डगमगाय
चले है ' डांफर' निर्दयी
कलेजे चुभ- चुभ जाय
राखो दिन दस संभाल के
ये हाड़ फिर सरसाय।।
Danfer is local name of coldwave
Mohan Jaipuri Feb 2021
गांव से कल भाई आया
लाया बिलोने का घी
कुदरत ने पलटी मारी
मुझको लग गई सी
हालात-ए- मौसम देख
मेरा ललचाया जी
बस उठाया कड़छी पलटा
हलवे की मुराद पूरी कर ली।।
Mohan Jaipuri Aug 2020
अब तारीफों का वक्त नहीं
एहसासों को पढ़ना अच्छा है
मिले कहीं पुराने दोस्त
चेहरे की रंगत पढ़ना अच्छा है
बिन पूछे ही सब जान लें
इतना तजुर्बा रखना अच्छा है
लफ्जों का कोई बोझ नहीं
पर हल्के लफ्जों से भारी कुछ नहीं
ना आए कभी हल्के लफ्जों का भार
यह दुआ सौ दुआओं से अच्छी है।
The Cheap words are the heaviest thing in this world.
Mohan Jaipuri Oct 2020
सफेद एप्रन पहनते शेफ
सिर पर सफेद 'टोक'
किचन का गर्म माहौल सहकर भी
पूरा करते हमारे खाने के शौक
काट - छांट की अद्भुत कला
सही पकाने की विधि
परोसने की अद्वितीय कला
पैदा करती खाने में प्रीति
ज्यादा कुछ ना सीख पाएं तो भी आज
सीख लो इनसे 'स्वस्थ खाने' की प्रकृति।

स्वस्थ खाने की‌ प्रकृति- Nature of healthy food.
Congratulations to all chefs on international chefs day for their services to the society.
Mohan Jaipuri Sep 2020
अगर होती ह्रदय की पीड़ा
मैं करती शब्दों से क्रीड़ा
लिख लेती एक कविता
पठन करती बन एक सरिता
पर आज है श्रृंगार की पीड़ा
चमक रही हूं जैसे अग्न जखीरा
कहीं‌ से आये मेरा पतंगा
समा मुझमें भये‌ अंतरंगा।।
Mohan Jaipuri Sep 2021
जिंदगी एक सफर है
जिसमें राहें हैं अनेक
कुछ जाती मंजिल को
तो कुछ छीनें‌ विवेक
सच्चा शिक्षक जो मिले
तो बदले भाग्य‌ रेख।
# Happy Teachers day in India
Mohan Jaipuri Dec 2024
मनमोहन सिंह जी मौन हुए
जगत गिना रही उनके काम
कम शब्दों को लेते थे काम
काम ही बन गया था पैगाम
सफल और सच्चे सेवक‌ थे
एक सुर में गा रही अवाम।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
जिंदगी एक किताब है
पढ़ाने जिसको शिक्षक आते अनेक
मां,बहन, बीवी और बेटी जैसा
उनमें से होता ना एक
ममता,स्नेह,प्यार और आदर
देने में करती हैं ये अतिरेक
पर स्वाध्याय ही अंतिम विकल्प है
अगर करवाना है अभिषेक।।
It is teachers day in India today.
Feeling blessed having teacher like Sh. jamanadharji kala at upper primary level . I owe a lot to him. Sadar naman.
Mohan Jaipuri Jan 2023
सर्दी में अंगुलियां लाल हो
खुजली फिर आने लगे
सरसों तेल की मालिश
बार बार मांगने लगे
समझो जवानी है जाने लगी।।

लोग कभी कभी पूछते हैं
स्वास्थ्य ठीक है ना
बच्चे ध्यान रखते हैं
गर्म पानी से नहाये हो ना
समझो जवानी है जाने लगी।।

बच्चे पेंशन कितनी बनेगी
ये जब पूछने लगें
तुम्हारे स्वास्थ्य के प्रति
तुमसे ज्यादा सचेत होना दिखाने लगें
समझो अब नम्बर हैं घिसने लगे।।

कोई बुढ़िया दु:खड़ा
तुम्हें अपना समझ के सुनाने लगे
उसकी बातों की गहराई को
जब समझने तुम हो लगे
समझो संजीदा तुम होने लगे।।

मन‌ तुम्हारा यह सोचने लगे
मेरे पास आनंद का समय कम है
मस्ती करने की इच्छायें
हिलोरें जब मारने लगें
समझो ये इच्छा कम, कुंठाओं का प्रलाप ज्यादा
कदम सोच- समझ कर उठाना
असल में तुम हो सठियाने लगे।।
Mohan Jaipuri Aug 2020
चूरु कभी चूरु ही नहीं था
यह मेरे लिए एक तीर्थ स्थल था
जहां "सत्कार" एक आवास था
वहां सद्गुणों का वास था
भूख के समय भोजन-पानी
रात्रि को प्रवास  था
ज्ञान की बातें, हास्य व्यंग्य
और माखन मिश्री खास था
चिंताओं का पिटारा लेकर
जाता मैं उदास - उदास था
गुरु, गार्जियन व अनुज भ्राताओं का
स्नेह पाकर मिलता नया उजास था
सारी मुश्किलें भेद कर
पहन लेता नया लिबास था
छोटी- छोटी सी खुशियों के
बड़े-बड़े पंख लगते थे
स्कूटर की खरीद पर भी
कार के सपने होते थे
जब सारे सपने साकार हुए
गुरुजी भी शहर से पार हुए
वक्त ने ऐसा खेल दिखाया
सपने भी नौ दो ग्यारह हुए।
Dedicated to my teacher, my mentor and my guardian on his birthday today , 4th Aug.
Mohan Jaipuri Jun 2021
दर्द की फिक्र
जब तक वास्ता ना पड़े
हकीम के हाथ से
जब वास्ता पड़े
ज्ञान‌ का पुलिन्दा फिर
काम ना‌ करे
अपने पराये सब
दूर ही खड़े
सब कुछ भूल
राम नाम ही उचारे
सत्य का दर्शन
बस यही है प्यारे ।।
# On facing the molar extraction this afternoon.
Mohan Jaipuri Aug 2024
अपना तो सिर्फ सपना है
बाकी सब तो ढकना है।।
Mohan Jaipuri Jan 2019
साहित्य के बाजारीकरण से दूर
व्यर्थ भीड़-भाड़ रहित
विशुद्ध साहित्य चर्चा सहित
कल जयपुर में एक साहित्य मेला देखा
नाम समानांतर साहित्य उत्सव
पूरा भारतीय साहित्य का पोषक
भीष्म साहनी, रांगेय राघव,रजिया,
कन्हैया लाल सेठिया का उपासक
खाना खजाना और किताबखाना देख
अंतर्मन हर्षित हुआ ये साहित्य संगम देख।
एक बजे भीष्म साहनी मंच पर
एक ऐसा संवाद सुना
जिसका इस दौर में
कभी भी अनुमान न था
राजनीति भी ठग विद्या है
ऐसा कभी भान न था
परतें दर परतें खोलीं
राजनीति के कारनामों की
किसानों, वंचितों, दलितों पर
राजनीति के आघातों की
शिक्षण और खेल संस्थानों के
राजनीतिक अपहरणों की
धन्य अन्तर्मन हुआ
ऐसा पर्दाफाश सुना ।
मूर्धन्य पत्रकार नारायण बारेठ ने
चर्चा का ऐसा संयोजन किया
नेहरू से नरेंद्र युग तक
पूरा खाका खींच दिया
कार्टूनिस्ट शंकर से लेकर
गौरी लंकेश तक का
निराला सफर बता दिया
इशारों ही इशारों में
प्रजातंत्र के चौथे पिलर को
चौथा किलर बता दिया
हम भी संयोजक से
इतना कुछ प्रभावित हुए
एक चित्र हमने भी
उनके संग उतरा लिया
खुशी की सीमाएं न थी
ऐसी अद्भुत शैली थी।
Mohan Jaipuri May 2024
देखने को नज़ारे दुनिया में
होंगे बहुत हसीं
रहने को सबसे अच्छी
पूर्वजों की सरजमीं।
जीती लंका राम छोड़कर
वापस लौट आये अयोध्या
तो पूजे जाते हर‌ घर
जो‌ जीतकर बसे परायी जमीं
चर्चित उनके महल, मकबरे
पर‌ झुकता नहीं शीश उस दर।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
एक मोर पंख, एक बांसुरी
एक दही की हांडी
तीनों जहां एक जगह हों
वहीं दिखता है कन्हाई
एक लाठी , एक लंगोटी
एक गोल फ्रेम का चश्मा
तीनों जहां एक जगह हों
वहीं दिखता है गांधी
दोनों ‌का ही एक संदेश
प्रेम, आस्था,त्याग का फल
सुधारेगा आने वाला कल।।
Mohan Jaipuri Jan 2022
आ जाओ अब तो धूप सजने लगी
मेरे जज़्बातों को हवा लगने लगी।

कुछ रोज तेरे
इंतजार में कट गये
कुछ सर्दी की
भेंट चढ गये
बीता सर्दी का पहरा ख्वाब फिर सुलगने लगे।

याद‌ तुम्हारी भीनी-भीनी
बसी हृदय ज्यों कस्तूरी
मुस्कान तुम्हारी झिनी- झिनी
करती रोमांचित ‌ज्यों बिजूरी
फ़रवरी की आवक देख मेरे नैना तरसने लगे।

तेरे संग बीता समय
है मेरी सोने की‌ गिन्नी
तेरी बातें रस-रसीली
मेरे जीवन चाय की चिन्नी
फागुन के किस्से सुन, अरमानों से चिलमन हटने लगे।

तेरे आंचल की
महक गुलाब सी
आभा आकर्षक
सरसों खेत सी
देख खेतों के रूप मेले मेरे मन में सजने‌ लगे।।
Mohan Jaipuri Oct 2020
धरती पर रह कर जिसने भेजा
चांद तारों को मिसाइलों का सलाम
ऊंचे से ऊंचे पद, प्रतिष्ठा को पाकर भी
जिसने हर आम और खास के हृदय में
समान रूप से बनाया मुकाम
जाति, धर्म और वर्ण व्यवस्था
इनसे हमेशा ऊपर रखा भारत का मान
ऐसे कलाम को जन्मदिन का सहस्र सलाम
एक बार फिर से भारत भू पर जन्म लेकर
इसको गौरवान्वित करने का आह्वान।।
Rich tributes to Dr APJ Abdul Kalam  on his birthday
Mohan Jaipuri Nov 2024
दिल मिले,जज़्बात निकले
चेहरे खिलते ही साथ चले।।
Mohan Jaipuri Apr 2021
यूं ही नहीं हैं हम उसकी
यादों के साये में कैद
याद है हमें उसकी हर
मसला‌-ए- जद्दोजहद।।
Mohan Jaipuri Jul 2020
यह कैसी दो हजार बीस की साल आई
अपने संग दुश्वारियां ही दुश्वारियां लाई
ड्रैगन देश से फैली एक बीमारी
अकस्मात बन गई यह महामारी
वायुयानों के पंख थम गए
भूतल परिवहन है मारी मारी
बच्चों की पढ़ाई छिन गई
दुश्वार हो गई दिन गुजारी
यह कैसी दो‌ हजार बीस...

उद्योग पतियों के उद्योग रुक गये
मजदूरों की दिहाड़ी
नेताओं की चौधर रुक गई
घूम रहे हैं जैसे कबाड़ी
किसान हो गए घर तक सीमित
कैसे बचेगी अब फुलवारी
यह कैसी दो हजार बीस...

ममता, स्नेह और साथ निभाना
बात लगती है कोई दीवानी
दादा, पापा ,मां और बेटी
में एक साथ जब कोविड पहचानी
पूरा घर जब अस्पताल पहुंचे
कैसे बचे खुशियों की क्यारी
यह कैसी दो हजार ‌बीस...

डर को ऐसे पंख लगे
महिलाएं दुर्गा बन गई
कहीं स्कूटी पर माता
बेटे को ला रही
तो कहीं बेटी पिता को
अपने गांव ले जा रही
कोई किसी की सुने नहीं बात
दुनिया आपे से बाहर हो रही
डॉक्टरों को देखकर ही
थोड़ी लौटे जीने की खुमारी
यह कैसी दो हजार बीस की साल आई
अपने संग दुश्वारियां ही दुश्वारियां लाई

कोढ में खाज का काम
कर रहे कहीं टिड्डी और भूकंप
ड्रैगन फिर भी सीमा पर
लगा रहा है कैंप पर कैंप
शायद उसकी अब खुली आंखें
देख नहीं रही आसन्न विनाश प्रलयकारी
यह कैसी दो हजार बीस की साल आई
अपने संग दुश्वारियां ही दुश्वारियां लाई
Feeling disturbed hearing the news of  megastar Amitabh bachchan, Abhishek bachchan, Aishwarya bachchan and Aradhya bachchan tested covid positive  and expressed my feelings for the year 2020 in above poem. My they all recover soon.
Mohan Jaipuri Jul 2019
सावन महीना ऐसे आए
जैसे किशोरावस्था
कहने में महीना है
पर है अलग व्यवस्था
कल तक जो सूखा था
आज हो गया सरस
कल तक सब निराशा थी
आज चारों और है हर्ष।

सावन की घटायें
जैसे किसी तरूणी के बिखरे केशु
सावन की फुहारें
जैसे प्रबल भावनाओं की‌‌ हिलोरें
सावन की बयार
जैसे प्रेयसी का इकरार
सावन में शिव आराधना
जैसे कोई प्रेम गीत लिखना
सावन के मेले
जैसे मन के उजाले
सावन की शीतलता
जैसे पहले प्यार की पवित्रता
सावन‌ में गर्जन
जैसे मन की फिसलन
सावन का सौंदर्य
जैसे किसी तरुणी का कौमार्य।

सावन में सब ओर सृजन है
सावन उत्थान का नाम है
सावन साधना का महिना है
सावन शिव को प्रिय है
शिव सदा अटल है
अत: सावन‌ प्रकृति की
अखंडता का प्रतीक है।
Mohan Jaipuri Jul 2024
सावन आया रे सखी
पैरों  चिपकी गार
बेलें लिपटी हैं वृक्षों
साजन लिपटी नार।
सावन की झड़ी लगे
चुभे ठंडी बयार
सखी लिख संदेश कोई
अब घर आये भरतार।
जब मोर देखूं नाचते
मन में माचे शौर
झूले पड़े हैं पेड़ों पर
अब तो आ चितचोर।
तीज त्यौंहार आ रहा
सही न जाये दूरी
मेरे हिरदेश तू यों बसे
जैसे मृग कुंडली कस्तूरी।।

गार- गिली मिट्टी
भरतार -पति
Mohan Jaipuri Jul 2022
सावन तीज सबसे न्यारी
हरियाली से भरी सब क्यारी
झूले पेड़ों पर जब डलते
मन के सपनों को पंख लगते
रिमझिम बारिश की आवाज
पुकारे  वर्षा नहाने को ।

धरती अंबर का देख प्यार
सूर्य किरणें बनाती इन्द्रधनुष
नीचे भीगी धरती की महक
बाहर मोर- पपीहों की चहक
लिपटी देख बेल पेड़ों से
ललचाये मन आलिंगन को ।

करें गोरियां सोलह श्रृंगार
लगती हर‌ एक गोकुल की नार
सहेलियों की हंसी ठिठोली
देती प्यार के गहन संदेश
नदियों का उफान‌‌ देख
भूले मन हर लाज को ।
Mohan Jaipuri Mar 2020
रहता क्यों रोज उदास
कभी हंसने की कोशिश भी कर
        सिर पर जो बोझ है
        उसे तो पैरों पर आना ही है
        जीवन की इस कश्ती को
        भंवरों से भी लड़ना है
               अपनों को दुख सुना न पाए
चल गैरों को बताने की
एक बार कोशिश तो कर।
        उठ रही है गम की लहरें
        खुशी का है नहीं पता
        फंसा हुआ है लहरों में
        तैरना तुझे नहीं आता
               कोई नहीं है यहां जो तुझे बचाने आए
डूबने से पहले फिर भी
एक साहसिक कोशिश तो कर
        ऐसी कोई समस्या नहीं
        जिसे इंसान सुलझा न सकता
        ऐसी कोई डगर नहीं
        जिस पर राही  चल नहीं सकता
               कर साहस ऐसा जो अब तक कर ना पाए
अब तक लीक पीटते रहे
एक जुनून जीने की कोशिश तो कर
Mohan Jaipuri Nov 2024
वक्त ऐसे भी कुछ आते हैं
लगता है फिर से खुल गई
कोई बार - बार पढ़ी हुई किताब
सितारों से खिल रहा आसमां
चहल-पहल युक्त है चंचल रैना
और खलल डाल रहा महताब।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
दिन तीस सितंबर के
शांति से निपटाय
शीत ज्यों ही आयसी
खाकर शरीर सुस्ताय।

अभी नीले का दौर है
आगे पतझड़ आय
जब तक बिस्तर छोड़िये
तब तक सूरज ढल जाय।

नीर आज लगे मनमोहन
लूं शरीर से लिपटाय
जैसे ही सितंबर जायसी
निकालूं इससे नजर चुराय।

शीत में जिनकी शादी होयसी
वह घोड़ी चढ़ जाय
मार्च आये आंख खुले  
असली मंजर दिख जाय।

# व्यंग
Mohan Jaipuri Feb 16
अपने डांटकर बार- बार लूटते हैं
पराये मीठे बन मौके की नजाकत से
एक तरफ है तमाशा, दूसरी और ड्रामा
सभी वाबस्ता हैं इस सियासत से।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
कहने को गया था
देखकर आ गया
जमाना देखो मुझे
सब सिखा गया।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
जैसी आए
उसी में मौज मनाएं
यह जिंदगी है
इससे ना कतराएं
लालसाओं को
सीमा में बांधे
नेकी से
कर्तव्य साधें
Mohan Jaipuri Jul 2024
फूलों सा नाजुक दिल‌ तेरा
मोती से साफ जज़्बात
दिन के मिजाज की फ़िक्र क्या
जब तू कराये सुबह का आभास।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
जो सबसे सस्ता लगता है
वही था सेहत का खजाना

सुबह सर्दियों में अलाव जगाकर
बैठ अपनों संग बतियाना
सर्दी के बहाने वो खुले में
कुश्ती,माला देना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

गाय, भैंस , बकरी वाला
वह घर का भरा दालान
बरबस ही मन मोह लेता था
वो बछड़ों का रंभाना
शब्द नहीं होते थे ,पर हेत हृदय पहचाना
हाथ फेर स्नेह जताना
वही था सेहत का खजाना।

मोरों की आवाज सुनकर
वह वर्षा का अनुमान लगाना
खाने से पहले नहा धोकर
पाव चुग्गा बरसाना
पूरे दिन पक्षियों का कलरव सुन
वह हृदय का हरसाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

मिट्टी के बर्तन से घी-दूध
मिट्टी के बर्तन में लेकर
बैठ रेत में सुबह-सुबह ही गटकना
ना खांसी, ना एलर्जी,ना शरीर का लाल होना
इतने मस्त मलंग थे
बैठ जमीन पर ही नहाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

सूरज की धूप सेंक कर
दोपहर सर्दियों में ओढ़ कम्बल सो जाना
सोचता हूं यही था
पूरे साल‌‌ की इम्यूनिटी का खजाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

मकान चाहे कच्चे थे
उसूल बड़े पक्के थे
बिन रोटी लायक काम के
कोई पड़े -पड़े नहीं खाते थे
सरकारों की योजनाओं का
कभी मुंह नहीं ताकते थे
खुद ही बुनकर‌, खुद सील कर
मोटा कपड़ा पहनते थे
पगड़ी पहन ठसक से रहना
वाह रे वाह क्या कहना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।
Mohan Jaipuri Jul 2021
अब मैं उन हवाओं का सौदागर हूं
जो बीते मौसम साथ लाती हैं

घर ,खेत, बाग-बगीचे तो क्या अब
बाजारों की रौनकें भी रास नहीं आती हैं

तुझसे बिछड़ कर ही यह जाना
नजदीकियां कितना दुख पहुंचाती हैं

दिन की रोशनी अब तेरा अक्स नहीं
रातें भी डायन बन‌ कर बहुत डराती‌ हैं

भूल गए दुनिया वाले तेरी जो बातें
मुझे वो ही बातें हर पल याद आती हैं।।
Mohan Jaipuri Mar 2021
कविता वक्त का रोचक बखान है
यह हर भाषा की जान है
ऊंची कल्पना की उड़ान है
कवि हृदय का आख्यान है।

          कविता कभी हरित क्रांति
          तो कभी श्वेत क्रांति है
          कभी बूटों की दुखान्तिका
          कभी कोरोना से आतंकिता है।

समय चाहे कैसा भी हो
यह उससे आगे रहती है
दुनिया की हकीकत
कल्पना से ही प्रेरित होती है।

          कविता में बड़ी भाषाएं सागर हैं
          बड़े कवि ज्ञान का पारावार हैं
          छोटी भाषाएं नदियां हैं
          और छोटे कवि उनकी लहरें हैं
          जिन के संगीत सुनहरे हैं।।
# world poetry day. Dedicated to all poets and poetesses of this forum.
Mohan Jaipuri Dec 2024
इश्क हमारा नादान उम्र में भी संजीदा था
पीपल के पेड़ के नीचे कनखियों से देख
मुस्कुराकर कर बस अंगड़ाइयां ले लेते थे
ना उसने कभी कुछ कहा ना हमने
बस बातें आंखें ही आंखों से  कर लेती थी।
अब झुर्रियों में इश्क फरमाना पेचीदा है
बस स्याह काकुलें देख कर
वाह! को आह के अंदाज में कहकर
बंद आंखों से बीता समय महसूस कर लेते हैं ‌।।
Mohan Jaipuri Jan 2020
दोस्त जिंदगी की किताब
के खूबसूरत पन्ने हैं
जो बेमिसाल रंगों से रंगे हैं
कई फूलों से प्रत्यक्ष चमकीले हैं
कई अंदर से रंगीले हैं
कई तो ऐसे भेजते हैं संदेश
जैसे उन्होंने धर लिया हो मधुकर का भेष
कुछ ऐसे होते हैं बिंदास शायद
उनके आंचल नहीं होते कभी उदास
ऐसे प्यारे दोस्तों ने अपनी बधाइयों से
आज भी यह दिन बनाया है खास
जिससे इस सर्द मौसम में भी
गर्माहट का हुआ पूरे दिन एहसास
अब 55 का हृदय हुआ
बालों में सोना उगा
फिजां भी है बदली- बदली
बस एक दोस्त ही हैं जो अब भी
बातें करते हैं संदली-संदली
Yaum-e-wiladat ehsas
Mohan Jaipuri Sep 2020
कुछ तारीखें नहीं बदलती हैं
वो जिंदगी भर ठहर जाती हैं
       क्योंकि
       मंजिल के बिना
       रास्ते नहीं होते
       हमदम के बिना
       कैलेंडर नहीं बदलते
कुछ लोग स्मृति से नहीं जाते हैं
वो अदृश्य होकर ज्यादा सिखाते हैं
       क्योंकि
       अब वे एहसास
       नहीं दिलाते
       बल्कि घट में
       ही वास करते
अब बारह सितंबर कभी नहीं बदलता है
यह हर पल सामने ही रहता है
       क्योंकि
       अब फूलों में ना
       सुगंध महसूस होती
       रंगों में ना
       उमंग दिखाई देती
ऐसे जीवन में भी तुम्हारी यादें मुस्काना नहीं भूलने देती हैं
और तुम्हारे आदर्शों की ज्योति जीने की राह दिखाती हैं।
Mohan Jaipuri May 2024
आंख मिल जाने से
कोई मिल नहीं जाता
हां शायर जरूर बना देता
शायरी लिखते-लिखते
जब कभी दीदार हो जाता
लफ्ज़ इतने जहन में बैठ जाते
कि हकीकत हजम‌ नही होता।।
Mohan Jaipuri Feb 2020
गुलाब से हम गुलकंद बनाएं
गर्मी की इससे तपिश मिटाएं
प्रस्ताव हमारे परिजन ही करें
हम तो उनका वचन निभाएं
चॉकलेट निसंदेह स्वाद में अच्छा
इस जैसा स्वभाव रखने की इच्छा
टेडी -वेडी की छोड़ो बात
यह है गुड्डे- गुडियों की औकात
प्रॉमिस तो कुल की मर्यादा का अच्छा
इसके बिना सब कुछ कच्चा
हग व‌ किस्स की यदि शादी से पहले हो बात
शादी के बाद प्रीत की कहां सौगात
वैलेंटाइन है विदेशी संस्कृति
इसकी हमारे यहां नहीं बनती बात।

हमारे वैलेंटाइन की अनोखी रीत
शादी पर ही बजे संगीत
चाचा ,ताऊ ,भाई- बंधु दें बंदोरे
हल्दी उबटन से बना-बनी हो जायें गौरे
बान, बनोरी, गाजे-बाजे बारात में गाजें
दूल्हे राजा घोड़ी पर विराजें
लाखों के जेवर से लकदक
दुल्हन परियों की आभा से सजें
हजारों लोगों के भोज के बाद
फिर कोई फेरों की आये रात
इतनी मुश्किल से वैलेंटाइन पायें
इसलिए कहता हूं वैलेंटाइन है विदेशी संस्कृति
इसको हम कैसे निभायें।
Mohan Jaipuri Jun 2022
अट्ठाइस साल ,एक विभाग
फिर भी एक कागज पर
किये हस्ताक्षर दूसरी बार
वह चार्ज लेन- देन था कालू का
इस बार सामने अरूपता का ढेर
देखकर लगता है टिला बालू का
जीवन‌ है खाण्डे की धार
ढाल हैं हमारे ताल्लुकात।।
Signed on same paper after 28 years with LK Daga
Mohan Jaipuri Oct 2024
इश्क‌ इतना ना किया करो मुझसे
कि सुबह भी तुमसे,शाम भी तुमसे
बन गई हो तुम मेरी हरियाणवी जलेबी
जुड़ गई सता भी तुमसे, खता भी तुमसे
सपने भी तेरे और चहुं चर्चा बहुतेरे।।
Mohan Jaipuri Jun 2022
जो तितली जैसी चंचल है
वह मेरे दिल की हरियाली है
रंग-बिरंगे रंगों से सजती
लगती मधु की प्याली है।।
Mohan Jaipuri Aug 2021
यह तीज ना‌ होती तो
तीजणियां‌ ना सजती
तीजणियां ना‌ सजती तो
सावन‌ में बहार तो होती
परन्तु रंग व‌ उमंग ना‌‌ होती
तीज में‌ रंग तीजणियां हैं भरती
दोनों मिलकर श्रृंगार उत्सव‌ रचती।।
Mohan Jaipuri Apr 2022
‌        हवा महल
गुलाबी नगर की शान है
बड़ी चौपड़ की जान है
हवाओं को जिस पर नाज है
वो निरख रहा किसी के अंदाज है।
# Negi at Hawa Mahal today
Mohan Jaipuri Feb 19
हे स्वर्ण केशी
लम्बे सफ़र पर
शुरू है पेशी।

भजले राम
सरकारी दफ्तर से
निपटा काम।

सेवा पेंशन
सम्मान से मिलता
अच्छा राशन।

आये धुंधल
उससे पहले ही
देख काबिल।

जीवन तेरा
जो औरों ने सराहा
घर में हारा।
Mohan Jaipuri Dec 2024
ये चहकती चिड़ियां
ये खिलखिलाते फूल
यह मासूम सी बच्ची
चुन रही प्यारे-प्यारे फूल
आड़ में इनकी तेरा
हाल-ए- दिल कबूल
मिल ना पाये तो क्या हुआ
सब देख रहा रसूल ।।
Mohan Jaipuri Sep 2019
'ह' से है रंग हरा
'ह' से हैं सब हर्षित
'ह' का ही होता चिंतन
'ह' से ही है ये जीवन
आधे' न' से चार ज्ञानेंद्रियां
नाक, कान, आंख और रसना
ऐसी ही है हमारी रचना
'द' में भाव है देने का
'द' ही प्रतीक है दया का
'द' में समाया हर एक दिवस
'द' ही है दिवस का दीपक
जिसकी मात्राएं चांद और सूरज
ऐसी प्यारी हिंदी शब्द की सूरत
जिसकी सीमाएं हैं सीधी रेखाएं
ऐसी हैं हिंदी की उपमाएं।।
14 sept :India Hindi day.
Mohan Jaipuri Sep 2024
मातृभूमि और मातृभाषा
असली जीवन की परिभाषा
अ अनार से श शंख तक
इसमें छिपी है हमारी गाथा।
अमर, अकबर, एंथनी
बोलने में भेद न करते
घर सबके एक जैसे होते
रहते गले लगते-लगाते ।
राजशाही और प्रजातंत्र में
हुकुम और श्रीमान बोलते
मिशाइलमैन को कलाम,
चांद खटोले को चंद्रयान बोलते
उसमें ही हम पहचान टटोलते।
कहीं राजनीतिवस
कुछ लोग एहतियात बरतते
फिर भी सूकून दिल्ली को
दिल्ली बोलकर ही पाते।
साड़ी, धोती और अंगोछा
पहन कर जीये सारे पुरोधा
हिंदी में आशीर्वाद लेकर
कुछ बने‌‌ हैं 'नोबल' विजेता।
Mohan Jaipuri Sep 2020
तीस मिनट हंसी
तीस मिनट कसरत
ऐसी बना लो
अपनी फितरत
पालिये कोई शौक
ना रहेगा खौफ
थिरकिये बिंदास
हंसिये बेपरवाह
खाइए धूप
रहिये लापरवाह
होगा खून का
पूरा प्रवाह है
हृदय दिवस की
अमूल्य सलाह है
World heart day special
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