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Mohan Jaipuri Aug 2020
रोज तरोताजा महसूस करते हैं
'हेलो पोयट्री' को पढ़कर

सब कुछ यहां इतना तरोताजा
इसको देखे बिन दिन लगे अधूरा
खूबसूरत अंग्रेजी की 'राईम' से लेकर
हिन्दी कविताओं तक का इंतजाम पूरा

निकल जाते हैं बाहर सब उलझनों से
दो-चार नई कविताओं के भाव देखकर

एक तो सिर पर 'कवि' का ताज
दूसरा दोस्त कवियों के अल्फाज
भर देते हैं जीवन में
नित नए जीने के अंदाज

कभी खिल जाते हैं चेहरे किसी
कविता को 'ट्रेंड(ज्यादा उल्लेख)' होते देखकर

बाहर से हम बदल रहे हैं
लेकिन मन ने यह बात नहीं मानी है
छिपे हुए अरमानों ने
अभी तो भृकुटी तानी है

पीते रहते हैं इस उबाऊ जिंदगी के हर घूंट
दोस्त कवियों की प्यार पर लिखी नई-नई
कविताओं को पढने की आस पर
Mohan Jaipuri Mar 2021
होली पर चारों ओर चंग हैं
गीतों में जवानी की तरंग है
बुढा या जवान हर कोई नवरंग है
मौसम में भरी अद्भुत उमंग है
      यह तो जाम है जो आज भी अपने ही आयाम है

चांद भी पूरा है
तारों की चमक में तारिकायें
लग रही स्वर्ण घट की सुरा‌ हैं
ऐसे में होली तो बस बहाना है
यह योवन की कुश्ती नूरा है
       यह तो जाम है जो आज भी देता सही पयाम है
कई हृदय तंग हैं

बाहर उमंग, भीतर एक जंग है
जीवन बदरंग है
सिर्फ सपनों में ही रंग है
       यह तो होली का जाम है जहां आशा कायम है
Mohan Jaipuri Feb 11
आ रहे नव पल्लव
जा रही है खिजां
युवाओं के मिलन में
बिक रहे हैं पिज्जा ।।
रोज डे पर गर्व से
तोड़ा एक ग़ुलाब
अदब से थमा दिया
करीब से देख शबाब।
प्रपोज डे के दिन
घंटों किया रियाज
बोलना था मेरी होज्या
पर आड़े आया रिवाज।
चोकलेट डे बटोरा
थोड़ा सा होंसला
थोड़ा हाथ फिसला
मौका हाथ से निकला।
टेडी डे आते-आते
बदली उसकी चाल
एक भालू साथ दिखा
मेरे लिए बचा मलाल।
प्रोमिस डे पर बस
खुद से किया वादा
भारत में काम का नहीं
हरगिज़ यह सौदा।
आ रहे नव पल्लव
जा रही खिजां
युवाओं के साथ मिल
बजावां होली का बाजा।‌।
Mohan Jaipuri Mar 2022
होली तेरे स्वांग और लक्षण बड़े ग़ज़ब निराले हैं
बच्चे से बूड्ढे तक आज तमाशबीन बनने वाले हैं।

मर्द पहन  लिबास जनाना
बांधे पग में घुंघरू ‌हैं
मेहरी बन कर गली-गली में
शोर मचाते गबरू हैं
घर-घर फिर फाग सुनाते,डफ पर नाचने वाले हैं।

भर पिचकारी जब कोई छैला
आंगन की तरह झांके है
नई नवेली‌ नार कई हवेली
के किवाड़ ढांके है
देख नजारा ये निराला, बूड्ढे आग में घी डालने वाले हैं।

घर का आंगन बने रंग बावड़ी
इसमें कई तैरने वाले हैं
इस नजारे का‌ लुत्फ उठाने
कई बूड्ढे नज़रें बचा के ताड़ने वाले हैं
घर का मालिक- मालकिन ही, आज छूट देने वा‌ले हैं।

भांग घोट कर पीने वाले
आकाश में उड़ने वाले हैं
मद का प्याला पीने वाले
गली में लोटने वाले हैं
सूचना पाकर घरवाले उठाकर लाने वाले हैं।

पुराने कपड़े ढूंढकर पहनने वाले
नये कपड़े पहनने वालों को ढूंढने वाले हैं
साफ सुथरी सूरत वालों को
लंगूर बनाने वाले हैं
खाने की किसी को फ़िक्र नहीं, सब रंग लगाने वाले हैं।
बच्चे से बूड्ढे तक आज तमाशबीन बनने वाले हैं ।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
गोरा मुखड़ा काली जुल्फें
आंखें तीर-कमान हैं
गुलाबी होंठों की रंगत से
डिग रहा मेरा ईमान है।

— The End —