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Mohan Jaipuri Jul 2020
मौत तो सच्चाई है
भले बुरे पर पर्दा डालना
इसकी सबसे बड़ी अच्छाई है
चलते फिरते आ जाए मौत
यही जिंदगी की सर्वोत्तम विदाई है।

बिना गमों के गुजरे जिंदगी
समझो कच्ची न्हाई (भट्टी) है
संघर्षों में गुजरे जिंदगी
उसको उठा ले जाने में
मौत भी बरतती चतुराई है।
Mohan Jaipuri Jul 2021
जी करता है आंसूओं का सैलाब छुपाने को
मगर बारिशों को कद्र कहां मेरे जज़्बातों की
गर नहला‌ देती मुझको ये अपनी मुसलाधार में
मेरे‌‌ अश्कों को‌ भी‌ मिल जाती मंजिल मुरादों की।।
Mohan Jaipuri Aug 2019
थां नै घणी घणी बधाइयां
देवै परदेश रा लोग नै लुगाइयां
म्हे था नै निरबिरोध जीतायां हां मान सूं
म्हे जाणां म्हानै बडभागी
जदै थे आया अठै बडे चाव सूं
अबै थे बिराजोला बडी पंचाट मा
जठै बसै देश री आतमा
एकै काम थे म्हारो करणै रो जतन करया
म्हे बोहोत बरसां सूं जिके रै लैर पड़्या
जे थे करस्यो म्हारी पैरवियां
म्हे नाचांला पेहर पैंजणियां
थां नै घणी घणी बधाइयां
देवै परदेश रा लोग नै लुगाइयां।

म्हे छां दस किरोड़ राजस्थानी
म्हे बोलां दूजां री बाणी
म्हारा टाबर भूल्या म्हारी पिछाणी
म्हे जाणां‌ म्हे हां पढ्योड़ा‌ सूवा
जिका री भाषा है अणजाणी
म्हे चौंतीस सांसद राज रा
एकै पाछलै महाराज नै
चुणै भेज्या है परदेस रै काज नै
थां सगला मिल नै दिलाज्यो
म्हारी राजस्थानी नै माणता
जे थे करस्यो म्हारी पैरवियां
म्हे नाचांला पेहर पैंजणियां
थां नै घणी घणी बधाइयां
देवै परदेश रा लोग नै लुगाइयां।

राजस्थान छै मोटो परदेस
फेरूं भी म्हे माणस बेजुबान रा
सूण्यो है नेपाल देश है फूटरा
दे राखीहै राजस्थानी नै बीं माणता
अबकै मत चूक जा‌ज्यो थे
म्हानै थास्यूं‌ है बडी उम्मीदड़्यां
जे थे करस्यो म्हारी पैरवियां
म्हे नाचांला पेहर पैंजणियां
थां नै घणी घणी बधाइयां
देवै परदेश रा लोग नै लुगाइयां।।
It is a humble request to all MPs from rajasthan  for seeking the recognition of Rajasthani language from the govt of india on the occassion of the un-opposed election of former prime minister sh. MannMohan Singhji for Rajya Sabha from Rajasthan
Mohan Jaipuri May 2021
आयी घणी अडीकतां
आ ' होटल' अबकी बार
चोखो नांव कमाईजे
इण 'अमेजण' रै बैजार।।
# publication of my 4th anthology "HOTEL"
एकजुटता तीस मार्च की
अनौपचारिकता इकतीस  की
बेटे की शादी की यादें हैं चोबीस की।
'तरार' पर बातें करना दिल छू गई युद्धवीर की
सास मेरी ठहरी‌ जो 'तरार' साधासर की।
जूठे हाथ भूलकर हाथ मिलाना झुकककर
संगीता की आत्मीयता यादें है चौबीस की।
पच्चीस पूरी ना कर‌ सकेगा वादा यह के पी का
भाभीजी से मुलाकात कराना बात रही दूर की।।
Mohan Jaipuri Sep 2022
आशाओं ‌के अम्बर में
ख्वाबों की‌ उड़ान है
जो‌ मिला वो यादों का
इन्द्रधनुष बन गया
जो‌ नहीं मिला
वही जीवन है।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
तेरे बिना यह जिंदगी मिल भी जाए तो क्या है?
सिर्फ एक खामोशी का मंजर
और दिल में तेरी याद का खंजर है।
एक तो धुंधलाती यादों का साया
दूसरा यह जीवन का सुनसान सा दोपहर ।

क्यों ये दिन रात होते हैं?
जबकि दोनों का मेरे लिए एक ही मतलब है
धन दौलत खैर ख्वाहिश
तब तक लगते अच्छे थे
जब तक तुम हमसफर थे।

जीवन जुगनूओं का रंगमंच है
एक शम्मा की लौ के बिना 'शो' होता नहीं
जलने का जज्बा आता नहीं
पिघलते हैं दिल के अरमान
जब दिल में ही तो
निकलते हैं आंखों के रास्ते
यही है जिंदगी का बेबस मंजर
और दिल में तेरी याद का खंजर।
Mohan Jaipuri May 2020
जाने वाले चले जाते हैं,
ना लौट कर कभी आते हैं
हमारा जीवन यादों का
जलता दीपक बना जाते हैं।

हर रैना तारों से उनकी
उपस्थिति का आभास कराती है
सुबह-शाम लगता जैसे
लालिमा सूर्य की उनसे सी होती है
भरी दोपहरी में बादल आने से
छाया कहीं से आती है
उनके शीतल आंचल की
यादें ताजा कर जाती है
लेकिन गुजरना बादल का
फिर वही एहसास दिला जाते हैं
जाने वाले चले जाते हैं
ना लौट कर कभी आते हैं
हमारा जीवन यादों का
जलता दीपक बना जाते हैं।

फूल कहीं जब खिला हुआ देखते हैं
सहसा उनका मुखड़ा सामने पाते हैं
भौंरे जब कहीं मंडराते हैं
उनके दृग की मादकता ताजा कर जाते हैं
भौंरे पल भर में जब अदृश्य हो जाते हैं
फिर वही एहसास दे जाते हैं
जाने वाले चले जाते हैं
लौट कर कभी ना आते हैं
हमारा जीवन यादों का
जलता दीपक बना जाते हैं।

समुद्र की लहरें जब तट पर आती हैं
जीवन मर्यादा का भान करा जाती हैं
भाव मन में गतिशीलता का
फिर पैदा कर जाती हैं
लेकिन लौटती लहरें
फिर वही एहसास दे जाती हैं
जाने वाले चले जाते हैं
ना लौट कर कभी आते हैं
हमारा जीवन यादों का
जलता दीपक बना जाते हैं।।
Mohan Jaipuri Nov 2024
वह इतना ऊंचा देखते हैं
मैंने कोशिश की और ठिठक गया
उन जैसा कुछ कर ना सका
यादों के भंवर में ही उलझ गया।।
- मोहन सरदारशहरी
Mohan Jaipuri Apr 2020
छूट गए वे गोरे - गोरे धोरे
जिन पर बनी टापियों में बीते दिन सुनहरे
          जहां-तहां
          ठहरी नग्न पदचापें
          पानी के छिड़काव वाली
          ठंडाई फिर से ताकें
यादों के झरोखे से ताकते
आज भी वो चील झपटे के घेरे
          भूले...
          वह प्राकृतिक खेती
          होती थी जो
          गोबर खाद सेती
रोहीड़े के पेड़ों पर वो रंगीले फूल
और ऊपर ताकते वो बकरियों के चेहरे
          रेत पर बनी
          वो हसीन लकीरें
          जो लिखती थी
          सबकी उम्दा तकदीरें
ऊंटों के टोले, देते थे हिचकोले
जेहन में आज भी जिंदा हैं वो निराले फेरे
Mohan Jaipuri May 2024
यारी वह आरी‌ है
जो‌ बड़ी से बड़ी दु:ख
की रात काट सकती है
जुल्फ वो घटाएं हैं
जो बिन बरसे ही
लताओं का आभास
करा सकती हैं।।
Mohan Jaipuri Jun 2020
ये अंगुलियां भी कमाल हैं
जब कोई अपना इन्हें होठों पर रख दे
तो बन जाती मुश्किल में ये ढाल हैं।

जब कोई इनसे भोजन बनाकर खिला दे
तो तृप्ति होती बेमिसाल है।

जब दो प्रेमी बिछड़ जाएं
तो अंगुलियों पर गिनती करते
दिलों का बुरा हाल है।

जब कोई कम ज्यादा बोल दे
भेद दिल का खोल दे
ये अंगुलियां उठकर कर देती बेहाल हैं।

जब मूंगा पहनी उंगली की
कोई चेहरे से ज्यादा तारीफ कर दे
तो मच सकता बवाल है
कहलाता यह फ्लर्ट है
इसलिए रहना हमेशा अलर्ट है।
Mohan Jaipuri Jun 2021
ना पेट हिलाना योग है
ना व्यायाम करना योग है
ना उपदेश देना योग है
ना गायन वादन योग है
स्वंय को केंद्र में ना रख कर
दूसरों के हित के लिए कार्य योग है।

आज इस योग दिवस पर
कुछ योगियों को सलाम करता हूं
मेरे लिए तो बस यही योग है
इतिहास में कृष्ण कर्म योगी थे
जिन्होंने दुराचार मिटाया
स्वयं का कोई हित नहीं था
दूसरों के हित के लिए युद्ध को भी
दुनिया के उद्धार का मार्ग बनाया।

इस आर्थिक युग में रामदेव योगी है
जिसने योग में स्थित होकर भी
व्यापार का बेड़ा पार लगाया
और मानवता को निराशा से
उबारने का योग को जरिया बनाया व
विश्व में योग नाम फिर से बुलंद कराया।

व्यक्तिगत जीवन में दो योगी‌‌ हैं
जिनसे बार-बार मुखातिब हुआ
एक हैं भीमनाथ जिन्होंने वकालत
को भी समता में जीने का जरिया बनाया
दूसरा भुवनेश कुमार
जिसने नौकरशाह के टैग से हटकर
दोस्ती के धर्म को जीवन का आधार बनाया।

#योग दिवस पर योगियों को सलाम
Mohan Jaipuri Mar 2020
दिल के जज्बात बताने के लिए
आंखें काफी हैं
सामाजिक व्यक्तित्व दर्शाने के लिए
' नमस्कार' काफी है
विचार अभिव्यक्ति के लिए
लेखनी मन मुवाफिक है
हाथ से रगड़ कर हाथ दिन में कई बार धोना
‌‌ ‌‌ है समय के लिए प्रभावी कारगुजारी
रूबरू बात करनी हो तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग
‌ सहज सुलभ उपलब्ध है
दिखाना हो यदि सच्चा प्यार
घर में लाएं मास्क और सैनिटाइजर
रहना है सुरक्षित तो बनाएं भीड़ से दूरी
है यही समझदारी और कल्याणकारी
Mohan Jaipuri Aug 2022
यंग बोयज के चार साल
बेमिसाल बेमिसाल।

कभी क्रिकेट का उबाल
कभी ग्लेमर का धमाल
कभी संगीत की सुर लहरी
कभी यादों की टीस गहरी
     हर अंदाज रहा कमाल
     चार साल बेमिसाल

कभी बातें पैग पटियालवी
फिर अंदाजे बयां लखनवी
गजलों का फिर सिलसिला
सुनकर जब दिल खिला
       दिल की बातें चली रेक की चाल
       चार साल बेमिसाल

कभी सैर - सपाटों की बातें
उस पर खाने की सोगातें
मिलकर जहां भी बैठें हों
रेक की बातों के खिले गुलदस्ते
       रंगो ओ सुंगध छूटा रेक के नाल
        फिर भी चार साल बेमिसाल

जब जब राजनीति ने दस्तक दी
यंग बोयज दुविधा में दिखी
राजनीति द्विधारी तलवार
इससे यंग बोयज को लेना उबार
     खाना हो तो गुड़ खाओ बाकी सब बेकार माल
     यंग बोयज है एक चोपाल
     जिसके चार साल बेमिसाल।।
Mohan Jaipuri Mar 2024
चलो चुनावों की आज
बज गयी रणभेरी है
ना तेरी ना मेरी चलेगी
अब जनता की बारी है
पापड़ जैसे हल्की-हल्की
सिकती जनता हर दिन है
चुनावों में वह बनके लावा
हर पत्थर पिघला सकती है
भावनाओं के दोहन के
नीचे हर बार दब जाती हैं
देखो आजादी‌ के पिचहतरे
अब क्या गुल खिलाती है।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
टाटा को कैसे टा-टा कहें ?
कई शहर, रोजगार, परोपकार
जिस नाम से रोज चल रहे।
Mohan Jaipuri Feb 2020
राजनीति एक पौधा है
यह धर्म, संप्रदाय और जातिवाद
के अंधेरे में फलता- फूलता है
घृणा, विभाजन और गुंडागर्दी
से पोषण पाता है
इसमें जो शामिल हो जाता है
उसको हर जुल्म-ओ- सितम के पार
यही दिखाई पड़ता है।
Mohan Jaipuri May 2024
तारे हैं पूरे, चांद है आधा
उल्लू की आवाजें नींद में बाधा
छत पर ना सोना अकेले
यदि साथ ना हो अपनी राधा।।
Mohan Jaipuri Mar 2022
जब तक साथ रानी
तब तक है कहानी
छूटी जब रानी
दुनिया हुई बेगानी
Mohan Jaipuri Jul 2019
उड़ गए सबके टीन टप्पर
इस मोदी की आंधी में
सही समय पर दे इस्तीफा
दिल जीत लिया राहुल गांधी ने

मोदी - शाह की चतुराई में
अमेठी जीत ली स्मृति ईरानी ने
खोने को अब बचा ही क्या है
यह बात समझ ली भाई ने
सही समय पर दे इस्तीफा
दिल जीत लिया राहुल गांधी ने

कांग्रेस मुक्त भारत ना बना
यह बात जाती है भारत की भलाई में
मोदी जी को यह सम्मान मिल ही गया
2019 को बदल दिया राहुल की विदाई में
स्वच्छ हृदय ,विनम्र स्वभाव,
समय के साथ परिपक्वता ग्रहण कर ली राहुल गांधी ने
सही समय पर दे इस्तीफा
दिल जीत लिया राहुल गांधी ने

नए घोड़े, नए सरदार
अब आएंगे मैदान-ए-जंग में
वक्त का तकाजा है
यहां किसको रहना है एक रंग में
राजनीति हो या समाज
यहां कौन टिका है एक ही ढंग में
सही समय पर दे इस्तीफा
दिल जीत लिया राहुल गांधी ने।
Mohan Jaipuri Jul 2020
ऐसा लग रहा है
जैसे दरिया से लौट रही हो
दरिया की सारी नीलिमा
लिपटाकर साथ ला रही हो
पीछे सुनहरी रेत का
सिर्फ जखीरा छोड़़ आई हो
मेहरबानी बजरों पर हुई
जो आप के सवार होने से
नीले बच गये हों
हीरे मोती दरिया के
पर्स में भरके लाई हो
हुस्न और वैभव सारा
लूट समुद्र का किसका
भाग्य लिखने जा रही हो
Mohan Jaipuri Feb 2023
आज 'रोज डे' है
टूटेंगे फूल गुलाब
अर्पण होंगे इस आशा में
कोई प्रेम भरा मिले जवाब
कांटों बीच पनपकर देखो
खुद कहलाओगे गुलाब।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
अमरा तो म्हे मरता देख्या , भाजत देख्या शूरा
आगे से‌ पिछा भला , नांव भला लहटूरा।।

Meaning : The person with name Amra( immortal) was seen dead, the person with name Shura ( brave) was seen running away in fear so it is clear that past was better than future and the name Lahtura was ok.
Mohan Jaipuri Aug 2020
हम
स्वयं को भूल रहे हैं।
     रोजगार के लिए
     दर-दर भटक रहे हैं
     रोजगार हैं कि खुद ही
     बेरोजगार हो रहे हैं
हम अनजानी सी अंधी
दौड़ लगा रहे हैं।

     हमारी आवश्यकताएं
     हमारे बुते से बाहर
     हो रही हैं
     चींटी की तरह
     पंख लगाकर विनाश
     की ओर उड़ रही हैं
आशाओं के मार्ग पर
अंधेरे सो रहे हैं।

     गांव में ना जोत बची
     ना ढोरों के लिए ठौर है
     शहरों की भीड़ भाड़ में
     निराशाओं का शौर है
इस छोर से उस छोर
बस लाचारी सिरमौर है
Mohan Jaipuri Oct 2020
वर्षा के बाद
इंद्रधनुष की प्यास
उसके रंगों की तलाश
उनको छूने की आस
यह है अजीब मोह पाश

खूब हैं दोस्त फिर भी
महिला मित्रों की तलाश
उसमें भी कशिश की आस
चेहरे में हो चंद्र कला का आभास
वास भी हो बहुत सुवास
फिर सहवास की तलाश
यह है पतन का पाश

पीने को नीर
और पवित्र क्षीर
फिर भी मय की तलाश
उसमें रंग और फ्लेवर
की नई-नई आस
पीने के बाद डिस्को
पर झूमने की प्यास
यह है कभी ना मिटने
वाली लालसा के पाश
Mohan Jaipuri Sep 2020
दुनिया में रहते हैं
दुनिया वाले फिर भी
यह कहते हैं
लालसाओं के पीछे
भागने से
कमर झुक जाती है
जिस्म बूढ़ा हो जाता है
बाल पक जाते हैं
झुरिया इनाम में
मिलती हैं
तो फिर पशु
जिनकी कोई लालसा
नहीं होती है वो
क्यों नहीं समय के
प्रहार से बच पाते हैं
सच तो यह है
कि इस प्रकृति में
हम तब तक ही
सामयिक है जब तक
हम इसमें
रोज कुछ नया
करने की लालसा
मन में रखते हैं
यह जीवन पर्यंत
बनी रहनी चाहिए
यही सकारात्मकता
भी कहलाती है।
Mohan Jaipuri May 2024
तुलना ना करना कभी
मेरे लिबास के शौक की
मेरे कफ़न से
लिबास मैं  खुद तय करता हूं
कफ़न मेरा दूसरे तय करेंगे।।
Mohan Jaipuri Oct 2020
लुइस ग्लुक ! लुइस ग्लुक !
कवियों के दिलों में तुने
आज जगा दी नई कुहुक
आशा है कविता में
आपके नोबल से कवियों की
सोच को अब मिलेगा नया रुख
दुनिया होगी काव्य में
और ज्यादा मशरूफ
कवि होंगे कविताओं के भावों
में नवीनता से जागरूक
Congratulations to Nobel laureate poetess of 2020 Louise Gluck of USA
Mohan Jaipuri Dec 2020
लोमड़ी ! ए लोमड़ी!
चतुर चालाक तू पशु बड़ी
तू खेतों का रूप है
तेरी 'डो' 'डो' आवाज
मुझको लगती प्यारी बड़ी
फसलों को चूहों से बचाती
तेरी चप्पल चालाक
नजरें उन पर गड़ी-गड़ी
तेरी खोदी हुई मांदों में
हम छुपते थे घड़ी-घड़ी
देखते थे तेरी पूंछ
फूल झाड़ू जैसी बड़ी-बड़ी
लोमड़ी! ए लोमड़ी!..

मतीरों के खेतों में
तेरा फेरा लगता ऐसे
जैसे हो मंदिर की फेरी
चौकस नजरें और स्फूर्ति
तेरे शिकार पर पड़ती भारी
तेरी चपलता और चेष्टा
की है महिमा बहुत न्यारी
इसलिए ही जग में तू
मशहूर है चालाकी धारी
लोमड़ी! ए लोमड़ी!
चतुर चालाक तू पशु बड़ी।।
Mohan Jaipuri Aug 2020
इस जींस पर काले कोट की क्या जरूरत थी
तुम्हारे तो नैनों में ही वकालत का है हुनर
अगर कोई चला गया तेरे दिल की गलियों में
बह जाएगा धाराओं और दफाओं के समर।।
Mohan Jaipuri Mar 2020
गलियां हैं सुनसान
मन में है मायूसी
                 दिन लगते हैं महीने
                  रातें लगती साल
गलियों की चौकीदारी
है वक्त की मिसाल
                पूजा घर हैं सुने
                अस्पतालें हैं बेजार
झुलस रही है मानवता
एक वायरस के खौफ में
              सब कुछ है समर्पित
              इस मानवता की जिहाद में
रातों का मोल ही क्या
जब दिन ही हैं दुश्वार
Fight against covid-19
Mohan Jaipuri Nov 2022
खाना हमेशा ही अच्छा होता है
बस विकल्प का खेल है
बीवी बनाये कई सब्जियां
फिर भी नाक सिकुड़ती है
अकेला रह कर वही व्यक्ति
मिर्च खाकर कहता मस्ती है
समझाये कोई समझ ना पाये
वक्त के हाथ नकेल है।।
Mohan Jaipuri Oct 2024
वजूद कितना भी हसीन हो
किरदार बाजी ले जाता है
बरसता मेघ करता मदहोश
इन्द्र धनुष से हार जाता है।
Mohan Jaipuri Jun 2020
वर्गाकार चेहरा
जिस पर बॉय कट का पहरा
आंखों में मासूमियत
बने चंचलता का सेहरा
जब तुम हंसती हो तो
राज कोई दबाती गहरा।

छोटे-छोटे कीमती पत्थरों वाले बूंदे
कीमती पत्थरों वाली मैचिंग वाली माला।
वस्त्र तेरे 'कोटन' वाले
बनाए तुझे कुलीन सी बाला
जब तुम चलती हो
तो फिजा में रंग भरती हरा।

तुम अंग्रेजी की सी चंचलता
दुनिया संस्कृत सी धीर
थोड़ा थोड़ा संयम रखा करो
दुनिया कहीं‌ हर‌ ना ले चीर
हृदय में बसे कोमलता
और स्वभाव बड़ा है खरा।

आपको पढ़ना भी है एक सलीका
कहां हमारे पास है ऐसा वह तरीका
तुम मधुमास उत्सव हो
हम पतझड़ सा फीका
कच्चे मन के धागों से
हमने भेद जाना जरा सा।।
Mohan Jaipuri Oct 2020
चला जाता है अतीत
यादों में फिर भी बना है रहता
भविष्य का नहीं है पता
फिर भी यह जीने नहीं देता
वर्तमान है जीवन का भाग्य विधाता
इसका उपयोग करना नहीं आता
बिना दृढ़ निश्चय के
संबल इसको बना नहीं पाता
जीवन की इस भूलभुलैया में
इतनी सी बात मैं समझ नहीं पाता।
Mohan Jaipuri Oct 2020
जीवन जटिल से जटिल हुआ
उम्र के हर मुकाम पर
जीवन की साध बढ़ती गई
इसके हर नये आयाम पर
चाहा था संगीत,मिल रहा है क्रंदन
यही है वर्तमान का असली चरित्र चित्रण

संबंधों की पकड़ ज्यों ज्यों ढीली पड़ती
अंदर की छटपटाहट बढ़ती
भावों का उभार आता
त्यों त्यों सहने की ताकत बढ़ती
सत्य स्वीकार नहीं,झूठ का है अभिनंदन
यही है वर्तमान का असली चरित्र चित्रण

प्रश्नों पर मनन नहीं ,उनका करते हैं दमन
उत्तर कहां से पाओगे,जब मन में नहीं चैन
आरोपों की नाव पर कब तक होगी सवारी
एक दिन तो खत्म होगी ये सब‌ खवारी
ये खुराफाते तब तक लील जाएगी जीवन
यही है वर्तमान का असली चरित्र चित्रण
Mohan Jaipuri Feb 2022
वादे वो नहीं होते
जो शब्दों में बयां होते हैं
वादे तो‌ सिर्फ कसौटी पर
पर ही परखे जाते हैं
मेरी जाना‌ लफ्जों के फेर में
कहीं मुझे ठुकरा ना देना।।
Mohan Jaipuri Oct 2022
दोनों गौ वंश
गायें खेत में हरा चरे
बछड़े सड़क पर दिख जायें
तो भी पीठ लाठी परै
विधि का विधान‌ ये देख
मेरे नयन नित अश्रु ढरै।।
Mohan Jaipuri Apr 2022
आज ना लिखूं तो
मैं कैसा लेखक ?
ना पढूं तो
कैसा पाठक ?
पुस्तककोष नहीं मेरे पास
समय का है ये कैसा पाश?
लिख दूं फिर
कोई ऐसा नगमा
सबको आ जाए जो रास
सिद्ध हो जाए
पुस्तक दिवस पर
वो एक सार्थक प्रयास।
Mohan Jaipuri Jun 2022
कभी-कभी मंजिल की
परवाह किए बगैर भी
चलते रहना
अनायास ही कुछ मिल जाए
भाग्य समझ लेना
वरना व्यस्त रहने
को कम ना समझना।।
Mohan Jaipuri Oct 2022
फिल्म , टीवी और
विज्ञापन की दुनियां
अजूबा ‌है हर रोल
शब्द बने अनमोल
जो बच्चन दे बोल
जिसकी ‌दीवानी
चार-चार पीढ़ियां
अस्सी में भी देख उसे
बजे हर ओर सीटियां
देख कर लगन उसकी
शर्मा जाए मधु-मक्खियां
अभी तो आये आठ दशक
दुआ है आप बनायें 
शतक पर सुर्खियां।।
Birthday wishes to amitabh bacchan on his 80th birthday on 11.10.2022
Mohan Jaipuri Sep 2020
सजी है चौपड़ आस लगाए
कई धुरंधर अभी ना आए
चीयर्स का समय निकला जाई
शनिवार की संध्या गदरायी

प्याले छलकें छल- छल छल- छल
जिसमें लहरें निर्मल- निर्मल
देख- देख आंखें हरसाई
शनिवार की संध्या गदरायी

एसी की ठंड भी अगन लगाए
क्रिकेट ,सीरियल रास ना आए
आ जाओ अब जूम हताई
शनिवार की संध्या गदरायी

ये नहीं आए ,वो नहीं आए
काश कयामत ही आ जाए
ओ मेरे भाई तेरी दुहाई
शनिवार की संध्या गदरायी
Mohan Jaipuri Dec 2021
गुलाब कांटों में मुस्काए
शबाब कांटो को ललचाए
आंखों से जो तीर चलाए
होठों से शोले बरसाए
जुल्फें जैसे सावन घटाएं
कांटे कैसे दामन बचाएं?
पतझड़ में देखो बहारों का
ये बखूबी एहसास कराएं।।
Mohan Jaipuri Mar 2024
कुछ शादियां शक्ल देख
कुछ होती देखकर दौलत
इश्क होता आंखें पढ़कर
शब्दों की ना मोहलत।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
शादी
जल और अग्नि
का मिलन
लगता बुझ जायेगी अगन
असल में बनती पर भाप
उसकी गुप्त ऊष्मा से
रोज होती जलन
बस जिंदगी होती नहीं खाक।
Mohan Jaipuri Aug 2020
एक हाथ पंजाबी कड़ा
दूजे हाथ रिस्ट वॉच
गुलाबी होंठ, नशीले नैन
लगती हो तुम बटर स्कोच
क्रीमी गाउन , हाई हील
लगती हो शायर की सोच
कहते हैं परियां आसमान में होती हैं
क्या तुम धरती पर हो सचमुच ?
Mohan Jaipuri Sep 2020
यह इश्कबाजी ही है
शायरी की हवा ताजी
यह दर्द तो यूं ही बदनाम है
और मय को शामिल
करना एक लफ्फाजी
Mohan Jaipuri Jul 2021
कभी शायरों की महफिल में खो कर देखो
रंजो गम के दरिया में खुद को डुबोकर देखो
भावनाओं की नाव को बहते हुए देखो
दरिया के उस पार बैठी आशा‌रूपी दुल्हन
उस दुल्हन के घूंघट को कवियों के
शायरीरूपी कर से उठते हुए देखो
तब स्वयं  ही समझ जाओगे
कवि की कल्पना को लेखो-जोखो।
# open mic eve
Mohan Jaipuri Feb 23
अब वो लोग कहां हैं जो समझे
कि कोई शिकायत तो नहीं
अब शिकायत वाली बात बोलते हैं
तोलते हैं कि शिकायत आये नहीं।।
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