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Mohan Jaipuri Jul 2020
रखो दोस्ती का मिजाज
नीम की निंबौरी सा
जो अधीर,लोभी
और लालची परखें
दिखे उन्हे हरी भरी
लगे उन्हें कड़वी-कड़वी।

रखो दोस्ती का मिजाज
नीम की निंबौरी सा
जो धैर्यवान, सज्जन
और गुणवान‌ परखें
दिखे उन्हें पीली-पीली
लगे उन्हे रसभरी
और मीठी-मीठी ।।
Mohan Jaipuri Feb 2020
नींद ...
बचपन में खुलती नहीं
जवानी में मिलती नहीं
बुढ़ापे में आती ही नहीं।
Mohan Jaipuri May 2020
प्रिय अब मास्क खोल न देना
     हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
कोरोना से लड़ने का यह चक्र सुदर्शन
फूलों से भी प्यारा है इसका दर्शन
इसकी चौकस सुरक्षा में
कोई निज लापरवाही बरत न लेना
प्रिय यह मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
     मास्क की गांठों को व्यवस्थित करना सरल है
     पर एंटीबॉडी प्राप्त करना बड़ा कठिन है
     बीच भीड़ में कहीं जाकर
     लापरवाही से इसे हटा न देना
     प्रिय अब मास्क खोल न देना
     हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
मिल सकते हैं चेहरे अनेक
कुछ चिकने, कुछ काफी नेक
कुछ खांसेंगे, कुछ देंगे छींक
नए-नए दृश्य पाकर भी
वीर तू मास्क को भूल न जाना
प्रिय अब मास्क खोल न देना
हाथ सैनिटाइज करना भी भूल न जाना
Mohan Jaipuri Oct 2020
जीवन में संयम
कमाई में परिश्रम
आचरण में सच्चाई
संगठन की अच्छाई
जिसको समझ आई
वक्त को उसने
मजबूती दिखाई

दुनिया की चर्चा
फालतू का खर्चा
आचरण में ढिलाई
हिस्सों की बात आई
अब शुरू हुई
प्यार की रुसवाई
वक्त ने उसको
औकात बताई
Mohan Jaipuri Nov 2024
नोकरी, छोकरी और शायरी
दो समय तो ये हर बार निखार पाते।
इसमें कभी भी पारंगत नहीं हो सकते
हमेशा ये सुधार की गुंजाइश ही रखते।
लफ्ज़ यहां बहुत महत्व रखते
बिगड़े लफ्ज़ तो ये नहीं बख्शते।
रात दिन का फेर नहीं समझते
जब लगे तलब  तभी जगा लेते।
व्यक्ति जब तक कुछ सोचता
तब तक तो ये मुंह बना लेते।
तीनों ही रत्न ये अद्भुत
एक दूसरे को पुष्ट करते।
Mohan Jaipuri Jul 2024
आपराधिक मामलों
के अलावा
न्याय दलीलों में फंसी
अनवरत प्रक्रिया है
सामान्यतया अपनों
या दोस्तों से संवाद
समाप्त होने पर
पैसा देकर वकीलों
के माध्यम से गिले
सिकवे उगलवाने
का तरीका है।
जांच एजेंसियां
इसकी गति और नियती
निर्धारित करती हैं।।
जीत हमारी इतनी चर्चित नहीं होती
अगर हार के किस्से यों आम ना होते।
गर बदजुबानी तुम्हारी सामने ना आती
मिलने पर शायद हम यों ना मुस्कुराते ।
पतझड़ यदि‌ कभी नहीं आती
भूल जाते हम भी किसी शाखा पर हैं रहते।।
Mohan Jaipuri Jan 2021
एक अनूठा त्योहार
पतंगों की बहार
छतें हो गई आज संसार
तिल और गुड़ का उपहार
बंद दरवाजों में घुटते
मन के लिए धूप
और ताजगी भरी हवा
की नई हुंकार
पतंगों की उड़ान से
सबके जीवन में
नई उमंगों का है संचार
फिर भी हैं किसान बेजार
और खेत हैं बिन कामगार
अरे !पतंग तुझसे है एक गुहार
धरती पर कोई सुने ना सुने
तू आकाश पर पहुंचा दे
इन की पुकार
जहां पर गांधी शायद
इनका दर्द ले ले उधार।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
जीवन शतरंज का खेल है
पत्नी इसमें रानी है
जिस दिन इससे पत्नी गायब
फिर बचती नहीं कहानी है।।
Mohan Jaipuri Aug 2020
जमीन पर दो परियां मिली
मिलकर दोनों खूब खिली
सौंदर्य की दुनिया को
एक नई मिसाल मिली।

जब दोनों की आत्मा मिली
सौंदर्य को एक महक मिली
दोनों का देख‌ अपार स्नेह
बाकी दुनिया लागे जाली।।
कमल छोड़ प्रहलाद के आए
     टू स्टार से थ्री स्टार
सरदारशहर के सरोकार
जयपुर चौपड़ आ टकराए।।
Mohan Jaipuri Jun 2020
आज एनिवर्सरी पर्ल है
जीवन कहां अब सरल है।

आदर्श आपके हमारी शक्ति हैं
जीवन जीने की युक्ति हैं
यादें आपकी हर पल आती हैं
जीवन का राग सुनाती हैं
          जीवन धारा अविरल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

ना जीवन में वो उमंग है
ना कपड़ों में वो रंग है
दिल की गली अब तंग है
ना संगीत में रंगत है
ना भोजन में वह रस है
          बस कालचक्र अटल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

ना लाभ - हानि की फिक्र है
ना सुख- दुख: का कोई जिक्र है
ना मौसम का कोई फेर है
ना दिन में कोई दिलचस्पी है
ना अंधेरे का डर है।
          बस प्रकृति नियमों पर अमल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

जो जवां चले जाते हैं
वो हमेशा जवां यादों में दिखते हैं
शायद उनकी शक्ति हमारे साथ रह जाती है
और हमारी थाती बन जाती है
          यही अब जीवन संबल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।
Mohan Jaipuri Jul 2024
अमीर इसी जीवन को जीता है
उसके पाप कोर्ट कचहरी में धुलते हैं
गरीब को यह जीवन तो जीवन लगता नहीं
पिछले पाप धोने गंगा काशी नहाता है।।
Mohan Jaipuri Jun 2022
आप ही नाम
आप ही धाम
आप ही सुबह
आप ही शाम
          आप पिता हैं।

आप ही मर्यादा
आप ही धर्म
आप ही समाज
आप ही आवाज
          आप पिता हैं।

आप ही अंदर
आप ही बाहर
आप ही हुनर
आप ही समुंदर
        आप पिता हैं।

आप ही ध्यान
आप ही ज्ञान
आप ही प्रमाण
आप ही महान
       आप पिता हैं।।
Mohan Jaipuri Jun 2019
स्कूल के लिए पाटी-भरता दिलाना
मास्टर जी के लिए दूध भिजवाना
रूठने पर गाल पर थप्पड़ लगाना
रात को फिर साथ लाड़ से सुलाना
स्कूल‌ के‌ लिए नये जूत्ते दिलाना
कहां है अब वैसा जमाना
पिता का रोज सानिध्य पाना
वर्षा ऋतु में हल चलाना
नाश्ते में गुड़वानी के लड्डू खिलाना
धूप में पगड़ी की छांव में चलाना
रात्रि में घी-खीच का भोज खिलाना
कहां है अब वैसा जमाना
पिता से‌ शाबाशी पाना
कॉलेज के दिनों के वो विवाद
देते थे अनगिनत जवाब
वो उनका "जितनी चादर,
उतने पैर फैलाना"की नसीहत देना
अंततः है किशोर जिद के आगे
विवाद में हथियार डालना
देता था हजारों प्रेरणा और
साबित हुआ सशक्त बनने में साधना
कहां है अब वह जमाना
पिता से स्वस्थ विवाद करना
गृहस्थ जीवन में पिता बिना समान नहीं
उनकी आशीष के बिना उत्थान नहीं
पिता है ज्यों नीम का पेड़
जीभ से कड़वा पर लाभ अनेक
जो चले पिता की सीख
उनके घर की अलग है रेख
कहां है अब वह जमाना
और पिता के शब्दों की ईख।
Mohan Jaipuri Jul 2021
पीले वस्त्रों में तुम गेंदे का फूल लगती हो
दिलो -दिमाग पर छाने वाला नूर लगती हो
आती होंगी जो हवायें वहां से वो सेंसर होती होंगी
तभी तो हम तुम्हारी तस्वीर देख रहें हैं
वरना शायद हम सुगंध से मदहोश हो गये होते
और तुम्हारे नूर के नगमे गाकर बदनाम हो गये होते।।
Mohan Jaipuri Jun 2020
पीला है खुशियों का रंग
उस पर तितली जैसे लब
कहीं हो रही बूंदाबांदी
कहीं गर्जन के करतब
किस पर आज बिजली गिरेगी
किसका उर होगा
खुशियों से लबालब
Mohan Jaipuri Nov 2024
ये मिंगसर की रात
पीली - पीली रोशनी
वर्कशॉप की चाशनी
और प्रोटेक्शन के साथ
चखते ही रह गये
बनी नहीं कोई बात
डाइवर्टर ने पकड़ा दिया
बस सलेक्टर का हाथ ।।
Mohan Jaipuri Aug 2022
मेरा‌ देश ,मेरी जान
पहाड़, नदियां और मैदान
जिसकी मिट्टी निपजे अन्न
कई तरह के दलहन
नकद‌ फसल में तिलहन
जिसमें बसता मेरा मन ।

पहाड़ों में‌ जिसके है‌ बागान
सूखे मेवों पर मैं कुर्बान
शीशम , साल‌ और सांगवान
इमारती लकड़ी की हैं खान
केशर की खूशबू वाला देश
जिससे ‌बना है मेरा तन।

कल कल नदियां
कल कल झरने
हमेशा रहे जिसकी शान
सभ्यताओं की पुर पहचान
शील, संस्कारित मेरा ज्ञान
यही मेरी विश्व  पहचान।

प्रायद्वीपीय दक्षिण क्षेत्र
हमेशा‌ समुद्री व्यापार का केन्द्र
मिशाईल परीक्षण और उत्पादन
दिलाता तकनीकी में मान
मेरे‌ देश की खूबियों पर‌
मैं सौ‌ सौ बार जाऊं कुर्बान।।
Mohan Jaipuri Nov 2024
मौसम तो आते जाते हैं
मौसम की रवानी का क्या कहना
बात पुरानी कहकर देखो
फिर जानो क्या होता‌ है दिल में रहना ।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
सर्दी, गर्मी या फिर हो वर्षा
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

सर्दी में खीर,हलवा संग
ले लो चार पूरियां
सर्दी से बन जाएगी
आपकी दूरियां
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

वर्षा ऋतु में महकने लगता है
मिट्टी का कण-कण
देख कर गिरती बूंदे
कानों में बजने लगता
संगीत छन- छन
रसोई में आकर तल लेते हैं
सनन-सनन चार पूरियां
अचार या भाजी संग
लगती लजीज पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

गर्मी की ऋतु आई
खाने की इच्छा पर भी बन आई
ऐसे में यदि कोई तल दे चार पूरियां
परोस‌ दे धनिया और
पुदीना की चटनी संग पूरियां
ऊपर से पिला दे दो गिलास रायता
आने लगती है नींद की हिलोरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

बांग्ला या गुज्जू
उत्तर या दक्षिण सुदूर
सबकी नजर में
बराबर इसका वजूद
सबको एक जैसी
अजीज हैं पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां
Today is "Akshya Tritiya" which means immortal day. We cook some good food on this day. I have taken "Poori /Puri " for my writing  showing my love for poori
Mohan Jaipuri Feb 2021
पेट सफा
तो सबसे वफा
पेट खफा
फिर जफा
ही जफा।।
😄😄😄
Mohan Jaipuri Aug 2020
प्यार तो एक सुखद‌‌
अहसास है
नजदिकी या‌‌ दूरी‌ का
इसमें नहीं कोई पाश है
मीरा ने जहर‌‌ पीकर किया था
प्रभु प्यार का अहसास
तो अमृता कभी करती थी
सिगरेट के टुकड़ों को पीकर
साहिर के हाथों को महसूस
Remembering Poetess Amrita Pritam on her birthday today
Mohan Jaipuri Feb 2023
कोई देखे तो देखने दो उसे
चर्चा तो होगी बस्ती में
हम हैं सवार एक कस्ती में
प्यार का दरिया गहरा है
चर्चा से कब यह ठहरा है।।
Mohan Jaipuri Jun 2022
कुछ इस पेड़ की तरह
सदा यों ही बढ़ता रहे
तेरे मेरे प्यार का पौधा
कभी बाधा आए तो झुक जाए
अरुणोदय की लाली फिर भी
हमेशा इसमें नजर आए  ।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
मद्धम होती सर्दी में
मद्धम-मद्धम रोशनी
बसन्त की आहट से
दिलों में बनने लगी
प्यार‌ वाली चाशनी।।
Mohan Jaipuri Jul 2021
आज बादल बरसे हैं
गर्मी के नखरे उतरे हैं
देख धरा का सुर्ख रंग
मन में सतरंगी सपने बरसे हैं
ज्यों ज्यों झड़ी लगती गई
चाहत की अग्नि सुलगती गई
अभी तक बाहर‌ गर्मी थी
अब भीतर सुलगे शोले हैं
कभी ना भ्रमित इनसे होना
तेरे सपनों में‌ कोई‌‌ रंग नहीं
यह प्रकृति के हिचकोले हैं।
Mohan Jaipuri Oct 2024
तारे गिननें से नींद नहीं आती
खुशी जब अंदर हो
तभी खूबसूरती भाती
पास में जो है उससे बतिया लो
जानवर ही क्यों ना हो
उससे प्रतिक्रिया आती।।
Mohan Jaipuri Jan 2022
जब भी हो प्रतीक्षा की बात
हमेशा करना हमको याद
चाहे हो पदोन्नति की राह
या फिर साथी की चाह
और भ्रमण की जगह।।
Mohan Jaipuri Jun 2024
प्रेम एक अहसास है
जरूरी नहीं जिससे प्रेम हो वह पास है
अकेले काट देते हैं लोग जिंदगी उनके नाम पर
जिनका नाम खुद से जुड़ा रहना ही
उनमें ऊर्जा का वास है।।
Mohan Jaipuri Mar 2020
वो कहते हैं प्रेम ना कभी अकेला आया
यह अपने साथ वासना की लाता है माया

वासना तो प्रेम का पार्श्व प्रभाव है
जिसका ज्यादा मूल्य ना किसी ने लगाया

वासना तो मात्र एक मोह है कच्चा
प्रेम तो रचता है मर कर भी ताजमहल पक्का

है प्रेम बिन काया, काया में प्रेम कहां से आया
काया से ही प्रेम होता,फिर मीरा को श्याम क्यों भाया
Mohan Jaipuri May 2024
कुछ लोगों से यह नहीं पूछा जाता कैसे हो
उनसे मन ही मन पूछा जाता है क्यों हो?
फिर मन ही जवाब दे देता है
जैसे बालों में जुएं, वैसे ही ये मुएं।।
Mohan Jaipuri Feb 2024
आ गई फरवरी
लाई बसन्त की आहट
मावठ ने भर दी
वनस्पति में खिलखिलाहट
प्रकृति यों शुरू कर रही
मौसम में भरनी गर्माहट
दिलों में जागने लगी
अब प्यार की चाहत
कवियों की कलम भी करने
लगी प्यार की फुसफुसाहट ।।
Mohan Jaipuri Feb 2022
आई फरवरी
भागी सर्दी
बदली वर्दी
देख बसंत
मन हुआ‌ मौजी
साजन‌‌ सुन
प्यार की‌ अर्जी
दिमाग‌‌ से ऊपर
दिल की मर्जी
तेरे बिन‌
सब है‌ फर्जी
घर लौट अब
छोड़ खुदगर्जी
Mohan Jaipuri Mar 2023
फागुन मास अलबेला
हरेक के सर चढ़कर बोला
हर जवान मतवाला
हर गोरी गोकुल बाला।

देखो मौसम निर्जला फिर
भी हर पेड़ हरियाली छाई
गीतों में श्रृंगार रस की
अब चारों ओर है भरमार आई।

चारों ओर होली रंग
संगीत में बांसुरी और चंग
नाचे पुरुष पहन लिबास जनाना
यह महिना है मसखरी का खजाना।

कोई पीये या ना पीये
दिखाते खुद को मदहोश दीवाना
वृद्ध भी भूलकर उम्र
गाते हैं प्रेम फ़साना।‌।
Mohan Jaipuri Oct 2024
जिंदगी का फलसफा
बस इतना सा है
काफी अकेला हूं और
अकेला ही काफी हूं
में जितना फासला है।
Mohan Jaipuri Mar 2020
अभी तक बुद्धि फिरते देखी
अब हालात बदलते देख रहे हैं
      कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था
      परिवार उस पर इतराता था
          जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था
          तब बुद्धि फिरा कहा जाता था।
एक वायरस ऐसा आया
सारे रिश्तों को साफ कर गया
      यदि हो जाए कोई प्रभावित
      सब भागें हो आतंकित
       जिम्मेदारी अब बन गई भागना
       सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना
देखो यह मानवता की विडंबना
  इसे कहते हैं हालात फिरना।
कहीं बच्चे अकेले रहकर
भूख से दम तोड़ गए
      कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर
      और दब गया मौत का एक्सीलेटर
जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल
अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल
      चीज बहुत हैं दुनिया में
      लेकिन उपयोग कर नहीं सकते
          बन गया आदमी घर का कैदी
          जैसे हो कोई इसने लंका भेदी
हालात बन गया है ड्रैकुला
सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।
Mohan Jaipuri Apr 2020
कभी हम लिखते थे खत
शुरू करते थे श्री गणेशाय से
आज मोबाइल मैसेज शुरू होते हैं हाय से।
     अब हम सुनते हैं फ्यूजन संगीत
     संस्कृति छोड़कर पकड़ ली नई रीत
     गुरु चरणों से दूर होकर
     कोचिंग केंद्रों पर सिमट गया ज्ञान का दीप
कभी विचार करते थे परोपकार का
अब करते हैं उसको गुड बाय दूर से
     छोड़कर खेतों की हरियाली
     हमने सड़कों की भीड़ अपना ली
     दबाकर सारी ख्वाहिशें
     हमने अंदर चुप्पी भर ली
कभी रिश्तों का मजबूत कवच था
अब सब कुछ है फिर भी लगते हैं लावारिस से
     गांव की याद आती है सपनों में
     अपनों का अक्स महसूस होता है सांसो में
     रिश्तो की केंचुली उतर रही है
     लगता है जैसे घिस गए हैं बरसों में
कभी हंसते थे खिलखिला कर
अब रहते हैं अनमने से
     कंप्यूटर बन कर जी रहे हैं
     कंप्यूटर पर ही लिख रहे हैं
     कंप्यूटर ने ही समेट लिया हमारा घर
     बच्चे हों या बूढ़े हों सबके कुतर दिए इसने पर
घर- परिवार ,सामाजिक परिवेश को छोड़कर
फिरने लगे हैं रोबोट से।
Mohan Jaipuri May 2024
लोग फिसलते उम्र के हर मोड़ पर हैं
रफ्तार फिसलने की उम्र बढने
पर थोड़ी कम  हो जाती है
दिमाग लगाने को थोड़ा वक्त मिल जाता है।।
Mohan Jaipuri May 2020
बीड़ी, सिगरेट ,चिलम और हुक्का
ये सब हैं फेफड़ों के दुश्मन पक्का
समय रहते जिसने इनको समझा
उसने‌ धुंआ होने से जीवन‌ को रोका।
No to tobacco
Yes to life
Today is world no tobacco day
Mohan Jaipuri Mar 2021
बसंत की आभा है न्यारी
जहां फलती वनस्पति बिन तोय
'फोग' जैसा मरूधर योगी
इस मौसम फलित होय।।
Mohan Jaipuri Dec 2020
मेरा बचपन सीधा था
           बीता गोरे धोरों में।
सूरज उगते खेत पहुंचते
घर आते थे तारों में
खेतों में मोर-पपीहे बोलते
पशु चरते थे कतारों में
              घरवालों से खूब डरता
            बात समझता था उनकी इशारों में।
शाम को खाने में हमेशा खिचड़ी
दही रोटी का कलेवा था
दोपहर में सांगरी की कढ्ढी
संग बाजरी की रोटी का चलेवा‌ था
                 सर्दी जुकाम में चाय पीता
                 यही आदत थी चलन में।
स्कूल चलती थी छप्पर में
ना झंझट था गणवेश का
पानी लाना, रोटी बनाना
शामिल था गुरु सेवा में
बारहखड़ी और पहाड़े बोलना
मिलता था बस मेवा में
                गुरुजी के डंडे का खौफ
               अक्सर सताता था नींदों में।
प्राथमिक बाद दूसरे गांव गया
पैदल पढ़ने मीलों दूर
घरवालों से पढ़ने के लिए
करता रहता मैं जी हुजूर
         इक्कीस रूपये सालाना फीस की खातिर
          कई दिन व्यर्थ होते थे हल चलाने में।
मैं बैठता था पढ़ने घरवाले
ताना देते थे काम चोरी का
कभी-कभी तो छीना- झपटी में
वो रख देते थे कनपटी में
             मां के साथ और आशीर्वाद से
             सदा अव्वल रहा पढ़ाई में।
मां सरस्वती की कृपा थी
काम चलता रहा वजीफे में
दोस्तों और शुभचिंतकों की‌
दुआएं भरता रहा मैं झोली में
                ऐसा करते - करते ही
                पहुंच गया जवानी में।।











‌ ‌ ‌
Mohan Jaipuri Aug 2020
बरसात के दिनों में बादल छाए रहते हैं
पेड़ पौधे खूबसूरती में नहाए रहते हैं
भावनाओं के हुजूम अंदर उमड़ते रहते हैं
यदि ना हो कोई हुजूम थामने वाला
आंखों से झरने अक्सर झरते रहते हैं।
Mohan Jaipuri Feb 2023
ये चोकलेट भी अजीब है
चूसकर खाऊं तो गंवार कहलाऊं
चबाने पर मुंह में ठहरा ना पाऊं
दांतों पर चिपकी सह ना पाऊं
गरमी‌ मिलते ही संभाल ना पाऊं
पैकिंग देखकर रोज ललचाऊं।

तू भी लगती एक चोकलेट
तेरी बातें सुन सुन शर्माऊं
देख देख तुझे लार टपकाऊं
साथ चले तो लोगों से डर जाऊं
ऊंच नीच हो तो तुझे संभाल ना पाऊं
देखें बिना तुझे रह ना पाऊं।

चल‌ मेरी‌‌ चोकलेट
आज से मैं ‌बर्फ बन जाऊं
सिने पर मेरे तू रहे सुरक्षित
बंधन‌ अपना हो जाये अक्षत
दुनिया में ‌निभ जाये दस्तूर
तेरी उंगली के स्वरों का मैं संतूर।।
Mohan Jaipuri Sep 2021
देशी बाजरे की रोटी
ग्वार फली का साग
मरू भूमि के चोमासे
का अद्भुत उपहार
दही भैंस के दूध का
जिसकी काचरी सी‌ आभा
मिल बैठ खायें- पीयें
तो अच्छी हो शोभा।।
Mohan Jaipuri Mar 2023
मेरे सीने में एक बात अटकी थी
मेरे लिए वो कितनो से ही लड़ी थी
आज जब मेरे और औलाद के बीच
दो राहे पर खड़ी थी
बड़ी लड़खड़ा सी गई थी
मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं था
वो सुनकर भी क्या करती
बर्फ़ की सिल्ली सी हम दोनों
के सीने पर पड़ी थी
कहना था तेरा कोई दोष नहीं
वक्त का तकाजा है
पर शब्द जवाब दे गये
बस ये बात सीने में अटकी थी।।
Mohan Jaipuri Jul 2024
बारिश की बूंदों की टप टप
लगता तू नहा रही छप छप
यह बादलों का गढ़ गड़ शौर
नशा मुझ पर करे घनघोर ।
काले बादल ज्यों तेरी
मदहोश करती जुल्फें
बढा रही हैं मेरी
शामों की उल्फतें।
भीनी धरती की खुशबू
लगता सेज बिछाई है तूने
यादों के इस मंजर में लगता है
तू व्याप्त मौसम की इस रवानी में ।
ऐसे में जब बिजली चमके
होश में लाती मुझको
हसीन यादों से जुदा करके
खंजर घोंपती मुझको।।
Mohan Jaipuri Sep 2020
वक्त की धारा में
डूबा एक सितारा
चला गया तन
रह गई सुरधारा
सहमा संगीत
हारा वक्त
बाला रहेगा सदा
हमसे अविभक्त
A tribute to SP Balasubramaniam ,the great musician, singer, actor .
RIP
Mohan Jaipuri Feb 11
आ रहे नव पल्लव
जा रही है खिजां
युवाओं के मिलन में
बिक रहे हैं पिज्जा ।।

Happy Promise day
Mohan Jaipuri Jul 2019
हृदय यूं चिंगारी लगे
अब वर्षा भी खारी लगे

वर्षा आई चाव से
भीगा तन मन सारा
निर्लज्ज कड़के बिजली
कांपे रूह ज्यों बाढ
में बहती कोई नैया
घर आंगन घूमता लगे
हृदय यूं चिंगारी लगे...

पड़-पड़ बूंदों की आवाज
जैसे प्रेम संगीत नायाब
वल्लरियां जब पेड़ों से लिपटे
आलिंगन का इशारा सा‌ लगे
हृदय यूं चिंगारी लगे...

काली घटाएं ऐसे छाई
दिन को ही अब रात बनाई
धड़ धड़ अब हृदय धड़का
कैसे होगा अब अगला तड़का
सारा माहौल दुश्वार लगे
हृदय यूं चिंगारी लगे...

प्यारे मोर पपीहा बोलें
ये पक्षी भी मन की गांठ खोलें
प्रिया हो तो हम भी डोलें
अपने हृदय की वाणी बोलें
हृदय यूं चिंगारी लगे...
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