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56 · Nov 2024
अनुरोध
Joginder Singh Nov 2024
अच्छी सोच का मालिक
कभी-कभी अभद्र भाषा का करता है प्रयोग ,
तो इसकी ख़िलाफत की खातिर ,
आसपास , जहां , तहां,  वहां ,
चारों तरफ़ , कहां-कहां नहीं मचता शोर ।
सच कहूं, लोग  इस शोर को सुनकर नहीं होते बोर ।
आज की ज़िंदगी में यह संकट है घनघोर ।
जनाब ,इस समस्या की बाबत कीजिए विचार विमर्श।

ताकि अच्छी सोच का मालिक
जीवन भर अच्छा ही बना रहे ।
वह जीवन की खुशहाली में योगदान देता रहे ।
यदि आप ऐसा ही चाहते हैं ,जनाब !
तो कभी भूले से भी उसे न दीजिए कभी गालियां।
उसे अपशब्दों, फब्तियों,तानों,
लानत मलामत से कभी भी न नवाजें।
उसे न करें कभी परेशान।
उसके दिलों दिमाग को ठेस पहुंचाना,
उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न अंकित करना।
उस  पर इल्ज़ाम लगा कर बेवजह शर्मिंदा करना,
जैसे मन को ठेस लगाने वाले अनचाहे उपहार न दीजिए ।
कभी-कभी उसे भी अपना लाड़ ,दुलार ,प्यार दीजिए ।
56 · Nov 2024
धोखा
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
मेरे साथ
धोखा हो गया,जब पता चला,
जिसे मैने अच्छा समझा,
वह पाला बदल कर
ओछा हो गया।
वह दगा बाज़ी कर
प्यार और सुकून को
चुपके चुपके चोरी चोरी ले गया।
सोचता हूँ
यह सब क्यों हुआ ?
मैंने उस पर विश्वास किया
और उसने आघात किया।
जिन्दगी में
अकस्मात
घट जाती है दुर्घटना,
भीतर रह जाती  है वेदना।
धोखेबाजी से बचना
कभी कभी होता है मुश्किल ,
यह अक्ल पर
पर्दे पड़ने पर
संभव हो पाती है,
जीते जी जिंदगी को नरक
बना जाती है।



मेरे साथ धोखा हुआ,
आज अच्छा भी , ओछा बना।
चलो,समझ बढ़ाने का , एक मौका मिला।
किस से करूं ,
इस बाबत कोई शिकवा गिला ?
धोखा मिलना, धोखा देना,
है ज़िन्दगी में न रुकने वाला सिलसिला।
२८/११/२०२४.
56 · Dec 2024
निंदा
Joginder Singh Dec 2024
आदमी
यदि जानबूझकर
अपनी ज़िद पर
अड़ा रहे ,
दूसरे को जिंदगी के
कटघरे में
खड़ा करे
तो व्यक्ति
क्या करे ?
क्यों न वह
निंदा को
एक हथियार
बनाकर
शक्ति प्रदर्शन करे ?
सोचिए
ज़रा खुले मन से ,
उसको
शर्मिन्दा करने के लिए
थोड़ी सी
निंदा की है ,
कोई
कमीनगी
थोड़ा की है ,
जैसा को तैसा वाली
प्रतिक्रिया
भर की है ।

११/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
एक दिन
स्टंट करते-करते
मौत उन्हें लील जाएगी ।
वे तो रोमांच के घोड़े पर सवार थे !
बेशक वह मोटरसाइकिल सवार थे !

उन्हें क्या पता था?
कि रोमांचक स्टंट करते-करते
मौत उनका शिकार करने वाली है।
वह उन्हें धराशायी करने वाली है !
मौत तांडव करते हुए आई ,
और उन्हें अपने साथ
काल के समंदर में डूबा गई।
बेशक !उन्हें मौत की ताकत के बारे में पता नहीं था।
वे तो मौत को जिंदगी की तरह मज़ाक भर समझते थे।

जो लोग उनकी स्टंट बाज़ी को
बड़े ग़ौर से निहार रहे थे ।
वह भी तो सब कुछ से अनजान
उन्हें  स्टंट के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।
वे भी ख़तरे के खिलाड़ियों के साथ
अपने भीतर रोमांच और उत्तेजना भर रहे थे।
उन्हें भी तो अंज़ाम का कुछ अहसास रहा होगा,
जो जिंदगी और मौत से मज़ाक कर रहे थे ,
और जो उनके करतबों को देख रहे थे।
अपने सामने मौत का तांडव देखकर
तमाशबीनों ने भी तो
अपने भीतर मौत का डर
पाल लिया था ।
अपनी आंखों के सामने
मौत का भयावह मंज़र देख लिया था ।


उन्हें तो अब मौत कभी  न  सता पाएगी ।
पर जिन्होंने मौत का 'लाइव टेलीकास्ट 'देखा ,
उनके भीतर श्वासों की अवधि पूरी होने तक,
मौत मतवातर
जिंदा लोगों में दहशत भरती जाएगी।
मरने का क्षण आने तक,
मृत्यु उन्हें सताएगी।
मौत की परछाइयां
रह रहकर आतंकित कर जाएंगी।
आप भी
दृश्य श्रव्य सामग्री के तौर पर
कभी-कभी
मौत और रोमांच का
ले सकते हैं मज़ा ज़रूर ,
पर रखिए ध्यान
कि यह मज़ा बनाता है आपको क्रूर,
इससे तो नहीं टूटेगा
स्टंटबाज़ों का क्या, किसी का भी गुरूर ।
देख देख कर यह सब मौत का तमाशा,
जाने अनजाने
घटता जाता
आदमी के भीतर और बाहर का नूर ।

आपको क्या पता?
जो कुछ भी आप देखते हैं ,
वह आपके अवचेतन का हिस्सा बन जाता है ।
आपको पता भी नहीं चलेगा कि
कब आप जाने अनजाने स्टंट कर जाएंगे ।
आपको यह भी नहीं पता चलेगा कि
आप मौत से जीत जाएंगे
या फिर इस इस खेल में ढेर हो जाएंगे !
१७/०१/२०१७.
कभी कभी हादसा हो जाता है
जब इर्द गिर्द धुंध फैली हो,
और हर कोई तीव्र गति से
आगे बढ़ना चाहता हो,
मंज़िल पर पहुंचना चाहता हो।
आदमी ही न रहे तो क्या यात्रा का फायदा है ?
अतः धुंध के दिनों में अतिरिक्त सावधानी रखिए।
भले ही गंतव्य पर देरी से पहुंचना पड़े,
सुरक्षित रहने को
अपनी प्राथमिकता बनाइए।
धुंध का पड़ना स्वाभाविक है,
पर इस मौसम में तेज़ी करना
नितांत अस्वाभाविक है।
कभी कभी हादसे से बचने के लिए
यात्रा टालना तक अच्छा होता है।
फिर भी यदि कोई मज़बूरी है
तो जितना हो सके ,
अपनी चाल धीमी कर लें।
जीवन में धीमेपन को स्वीकार कर लें।
अपने भीतर
तनिक धैर्य को धारण कर लें
और अपने दिमाग में
अस्पष्टता की धुंध और कुहासे को
हावी न होने दें ,
ताकि जीवन में जीवंतता बची रहे।
जीवन में वजूद
धुंध और कुहासे के बावजूद
अपना अहसास कराता रहे।
अनमोल जीवन अपनी सार्थकता को वर सके।
१२/०१/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
क्या
दुनिया में
सच खोटे सिक्के
सरीखा हो गया है ?

क्या
दुनिया में
झूठ का वर्चस्व
कायम हो गया है ?
परन्तु
सच तो आदमी का
सुरक्षा कवच है ,
कोई विरला ही
इस पर
भरोसा करता है।

तुम सदैव
सच पर
भरोसा करोगे
तो यकीनन जीवन में
शांतिपूर्वक जीओगे।
अतः आज से ही तुम
झूठ बोलने से गुरेज करोगे,
जीवन में ‌शुचिता वरोगे।

बेशक!
आज ही तुम
अपने भीतर
दुनिया भर का  
दुःख दर्द समेट लो।

सच की उम्र
लंबी होती है।
झूठे की चोरी सीनाज़ोरी
थोड़े समय तक ही चलती है,
क्यों कि ज़िन्दगी
अपनी जड़ों से जुड़कर ही
आगे यात्रा पथ पर अग्रसर होती है।
यह कभी भी  
खोटे सिक्कों के सम्मुख
समर्पण नहीं करती है।
१८/०१/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
रात सपने में
मुझे एक मदारी दिखा
जो 'मंदारिन ' बोलता था!
वह जी भर कर कुफ्र तोलता था!!
अपनी धमकियों से वह
मेरे भीतर डर भर गया ।
कहीं
गहराई में
एक आवाज सुनी ,
'.. डर गया सो मर गया...'  
मैं डरपोक !
कायम कैसे रखूं अपने होश ?
भीतर कैसे भरूं जिजीविषा और जोश?
यह सब सोचता रह गया ।
देखते ही देखते
सपने का तिलिस्म सब ढह गया।
जागा तो सोचा मैंने
अरे !मदारी तो
सामर्थ्यवान बनने के लिए कह गया।
अब तक मेरा देश
कैसे जुल्मों सितम सह गया?
Joginder Singh Dec 2024
मन के भीतर
             हद से अधिक
यदि होने लगे कभी कभार उथल पुथल
तो कैसे नहीं हो जाएगा आदमी शिथिल ?
यकीनन वह महसूस करेगा खुद को निर्बल।
              मन के भीतर
              सोए हुए डर
  यदि अचानक एक एक कर जागने लगें ,
कैसे नहीं आदमी थोड़ा चलते ही लगे हांफने ?
यकीनन वह खुद को बेकाबू कर लगेगा कांपने।

              मन के भीतर
              बसा है संसार
जो समय बीतने के साथ बनाता सबको अक्लमंद।
यह उतार चढ़ाव भरी राहों से गुजारकर करता निर्द्वंद्व।
इस संसार की अनुभूतियों से सम्बन्ध होते रहते दृढ़।
               मन के भीतर
               बढ़े जब द्वंद्व
अंत समय को झट से ,अचानक अपने नज़दीक देख ।
आदमी जीवन से रचाना चाहता है संवेदना युक्त संवाद।
हो चुका है वह भीतर से पस्त,इसलिए रह जाता तटस्थ।
               मन के भीतर
               दुविधा न बढ़े
अन्तर्जगत अपनी आंतरिक हलचलों से निराश न करे।
बल्कि वह सकारात्मक विचारों से मन को प्रबुद्ध करे।
जीवन में डर सतत् घटें, इसके लिए मानव संयमी बने।
०९/०१/२००८.
      ‌
Joginder Singh Nov 2024
तमाम खाद्यान्न पदार्थों में
खिचड़ी का मिलना
किसी वरदान से कम नहीं।
इसे खाकर तो देख सही।



गले में खिचखिच     खा खिचड़ी
जीवन में खिचखिच  गा   और
खिचड़ी भाषा में पढ़   कबीर जी का सच
कैसे नहीं होगा प्राप्त ?
जीवन में आस्था का सुरक्षा कवच !अगर म
अनायास सीख पाओगे स्वयं को रखना शांत।

खिचड़ी खा, खिचड़ी भाषा के कवि को गुन
और... हां...तूं  मन मेरे
अपने भीतर का राग सुनाकर, उसे ही गुनाकर !

जीवन भरने करना दूर अपने को खिचड़ी से
बनना मस्त मलंग खाकर, जीकर खिचड़ी के संग
मिलेंगे जीवन के खोये रंग,
जीवन न होगा और अधिक बदरंग, मटमैला,
यह जीवन नहीं होगा प्रतीत एक मेला -झमेला ।
०९/१०/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
रिश्ते पाकीज़गी के जज़्बात हैं,इनका इस्तेमाल न कर।
पहले दिल से रिश्ता तोड़,फिर ही कोई गुनाह कर ।।
रिश्ते समझो, तो ही,ये जिंदगी में रंग भरते हैं।
ये लफ़्फ़ाज़ी से नहीं बनते,नादान,तू खुद कोआगाह कर।।
दोस्तों ओ दुश्मनों की भीड़ में, खोया न रहे तेरा वजूद ।
जिंदगी में ,इनसे बिछड़ने के लिए,खुद को तैयार कर।।
अपना,अपनों से क्या रिश्ता रहा है,इस जिंदगी में।
इस  पर न सोच,इसे सुलझाने में खुद को तबाह न कर।।
आज तू हमसफ़र के बग़ैर नया आगाज़ करने निकला है।
अकेलापन,तमाम दर्द भूल,आगे बढ़, नुक्ताचीनी ना कर।।
अब यदि किताब ए जिन्दगी के पन्ने भूत बन मंडरा रहे।
तब भी न रुक, ना डर, इन्हें पढ़ने से इंकार ना कर।।
कारवां जिन्दगी का चलता रहेगा,तेरे रोके ये ना रूकेगा।
जोगी तू  भीतर ये यकीं पैदा कर, रिश्ते मरते नहीं मर
कर।।
Joginder Singh Nov 2024
'सिगरेट पीना
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।'
'धूम्रपान से कैंसर होता है।'
इसी तरह की
बहुत सारी जानकारी
हम पढ़ते भर हैं,
उस पर अमल नहीं करते
क्यों कि मृत्यु से पहले
हम डरना नहीं चाहते ।
हम बहादुर बने रहना चाहते हैं ।
हम जीना चाहते हैं !
हम आगे बढ़ना चाहते हैं !!

सिगरेट पीने से पहले ,
सिगरेट पीने के बाद
लोग कतई नहीं सोचते
कि उन्होंने अपनी देह को
एक ऐशट्रे में बदल डाला है।
बहुत से घरों में
बहुत पहले ऐशट्रे
ड्राइंग रूम की टेबल पर
सजा कर रखी जाती थी,
ताकि कोई सिगरेट पीने वाला आए,
तो वह  ऐशट्रे का इस्तेमाल आसानी से कर सके।

हमारे भीतर भी
एक ऐशट्रे पड़ी रहती है
जिसके भीतर
हमारी बहुत सारी मूर्खताओं की राख
पड़ती रहती है
ऐशट्रे के भरने और खाली होने तक।

ऐशट्रे का जीवन
सतत
करता रहता हमें स्तब्ध!
यही स्तब्धता कर देती हमें हतप्रभ!!
अचानक थर थर कंपाने लगती है।

अपने जीवन को ऐशट्रे सरीखा न बनाएं।
वायु मंडल में घर कर चुका प्रदूषण ही पर्याप्त है,
जिससे मानव जीवन ख़तरे में हे।
इसे कोई भी समझना नहीं चाहता।
११/०५/२०२०.
आजकल
चापलूसी काम नहीं करती।
इस बाबत
आप क्या सोचते हैं ?
ज़रा खुल कर अपनी बात कहिए।
चापलूसी या खुशामद से
जल्दी दाल नहीं गलती।
इससे तो मायूसी हाथ आती है।
आदमी की परेशानी उल्टे बढ़ जाती है।

आज शत्रु के
सिर पर
यदि कोई
छत्र रखना चाहे ,
उसे मान सम्मान की
प्रतीति कराना चाहे
तो क्या यह
संभावना बन
सकती है ?
क्या वह आसानी से
उल्लू बन सकता है ?
कहीं वह तुम्हें ही न छका दे।
चुपके चुपके चोरी चोरी
मिट्टी में न मिला दे।
मन कहता है कि
पहले तो शत्रुता ही न करो,
अगर कोई गलतफहमी की वज़ह से
शत्रु बन ही जाता है
तो सर्वप्रथम उसकी गफलत दूर करने के
भरसक प्रयास करो।
फिर भी बात न बने
तो अपने क़दम पीछे खींच लो।
अपने जीवन को साधना पथ की ओर बढ़ाओ।
सुपात्र को शत्रु से निपटने के लिए
काम पर लगाओ ,
वह किसी भी तरह से
शत्रु से निपट लेगा।
साम ,दाम , दण्ड, भेद से
दुश्मन को अपने पाले में कर ही लेगा।
सुपात्र को सुपारी देने से
यदि कार्य होता है सिद्ध
तो सुपारी दे ही देनी चाहिए।
बस उसे युक्तिपूर्वक काम करने की
हिदायत दे दी जानी चाहिए,
ताकि लाठी भी न टूटे
और काम भी हो जाए।
०८/०१/२०२५.
55 · Dec 2024
ਮੜ੍ਹਕ
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਹੋਵੇ
ਤਾਂ ਅਣਖ ਨਾਲ ‌‌!
ਬੰਦਾ ਜੀਵੇ
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ !!

ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ,
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ ਜੀਇਆ ਕਰੋ ।
ਕਿਵੇਂ ਨਾ ਮਿਲੂ ਸੁਕੂਨ ?
55 · Dec 2024
हवस
Joginder Singh Dec 2024
नाभि दर्शना साड़ी पहने
कोई स्त्री देखकर ,
पुरुष का सभ्य होने का पाखंड
कभी कभी खंडित हो जाता है ।
उसकी लोलुपता
उसकी चेतना पर पड़ जाती है भारी।
यह एक वहम भर है या हवस भरी सामाजिक बीमारी ?
इसका फैसला उसे खुद करना है।
उसे कभी तो भटकन के बाद शुचिता को वरना है।
१६/१२/२०२४.
जब पहले पहल
नौकरी लगी थी
तब तनख्वाह कम थी
पर बरकत ज़्यादा थी।
अब आमदनी भी
पहले की निस्बत ज़्यादा,
पर बरकत बहुत ही कम!
कल थरमस खरीदी,
दाम दिए हजार रुपए से
थोड़े से कम !
पहली नौकरी में
महीना भर काम करने के
उपरांत मिले थे
पगार में लगभग नौ सौ रुपए।
मैं बहुत खुश था !
कल मैं सन्न रह गया था !
निस्संदेह
महंगाई के साथ साथ
संपन्नता भी बढ़ी है।
पर इस नक चढ़ी
महंगाई ने
समय बीतते बीतते
अपने तेवर
दिखाए हैं!
कम आय वर्ग को
ख़ून के आँसू रुलाए हैं !
बहुत से मेहनतकश
बेरहम महंगाई ने
जी भर कर सताए हैं !!
आओ कुछ ऐसा करें!
सभी इस बढ़ती महंगाई का सामना
अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करते हुए करें।
सब ख़ुशी ख़ुशी नौकरी और काम धंधा करें,
वे इस बढ़ती महंगाई को विकास का नतीजा समझें ,
इससे कतई न डरें !
वे महंगाई के साथ साथ
जीवन संघर्ष में जुटे रहें !!
०३/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
उस्ताद जी,
माना कि आप अपने काम में व्यस्त रहते हो,
खूब मेहनत करते हो,
जीवन में मस्त रहते हो।
पर कभी कभी तो
अपने कस्टमर की
जली कटी सुनते हो।
आप कारसाज हो,
बड़ी बेकरारी से काम निपटाते हो,
काम बिगड़ जाने पर
सिर धुनते हो, पछताते हो।

ऐसा क्यों?
बड़े जल्दबाज हो।
क्षमा करना जी ।
मेरे उस्ताद हो।
मुआफ करना , चेला करने चला, गुस्ताखी जी।
अब नहीं देखी जाती,खाना  खराबी जी।
काम के दौरान आप बने न शराबी जी।
अब अपनी बात कहता हूं।
दिन रात गाली गलौज सुनता हूं।
कभी कभी तो बिना गलती किए पिटता हूं।
आप के साथ साथ मैं भी सिर धुनता हूं।
अंदर ही अंदर खुद को भुनता हूं।


सुनिए उस्ताद, कभी कभी खाद पानी देने में कंजूसी न करें,
वरना चेला...हाथ से गया समझो ,जी ।
कौन सुने ? ‌‌
रोज की खिच खिच,चील,पों जी।
आप के मेहरबान ने...आफर दिया है जी।

समय कम है उस्ताद
अब जलेबी की तरह
साफ़ साफ़ सीधी बात जी।


जल्दबाजी में न लिया करें
कोई फ़ैसला।
जो कर दे
जीभ का स्वाद कसैला।

हरदम  चेले चपटे  के नट बोल्ट न कसें।
वो भी इन्सान है,,....बेशक कांगड़ी पहलवान है।

सुनो, उस्ताद...
जल्दबाजी काम बिगाड़े
इससे तो जीती बाजी भी हार में बदल जाती है जी।
विजयोन्माद और खुमारी तक उतर जाती है।
उस्ताद साहब,
सौ बातों की एक बात...
जल्दबाजी होवे है अंधी दौड़ जी।
यदि धीमी शुरुआत कर ली जाए,
तो आदमी जीत लिया करता, हार के कगार पर पहुंची बाजी...!

आपका अपना बेटा
भौंदूंमल।
मेरे घर हरेक सोमवार
जो अख़बार
आता है ,
वह
सकारात्मकता का
सन्देश मन तक
पहुंचाता है।
मुझे अक्सर
इस अख़बार का
इंतज़ार
रहता है ,
बेशक दिन
कोई सा भी रहा हो ,
सकारात्मकता वाला सोनवार
या फिर नकारात्मकता वाली
ख़बरों से भरे अन्य दिन !
मुझे अब
नकारात्मकता में भी
सकारात्मकता  
खोज लेने की विधि
आ गई है ,
यह मन को
भा गई है ।
वज़ह  
सोमवार का
सकारात्मक सच
सप्ताह के
बाकी दिनों में भी
मुझे उर्जित रखता है !
रविवार आने तक
मुझे सोमवार के सकारात्मकता भरपूर
अख़बार पढ़ने का
रहता है इंतज़ार !
सच कहूँ ,
सकारात्मकता में
निहित है
जीवन की रचनात्मकता का राज़ !
अच्छा रहे
सातों दिन सकारात्मकता से
भरपूर खबरें छपें !
नकारात्मकता वाली खबरें
अति ज़रूरी होने पर ही छपें !!
नकारात्मकता
यदि हद से ज्यादा
हम पर हावी हो जाती है ,
तो ज़िंदगी जीना दुरूह हो जाता है ,
समाज में अराजकता फैल  ही जाती है।
अच्छा है कि सब सकारात्मकता को अपनाएं !
नकारात्मकता को जड़ से लगातार खारिज़ करते जाएं !
ताकि सभी के मन और मस्तिष्क जीवन बगिया में उज्ज्वल फूल खिलाएं !
२४/०३/२०२५.
55 · Mar 12
मर्यादा
मनुष्य
जब तक स्वयं को
संयम में
रखता है
मर्यादा बनी रहती है ,
जीवन में
शुचिता
सुगंध बिखेरती रहती है,
संबंध सुखदायक बने रहते हैं
और जैसे ही
मनुष्य
मर्यादा की
लक्ष्मण रेखा को भूला ,
वैसे ही
हुआ उसका अधोपतन !
जीवन का सद्भभाव बिखर गया !
जीवन में दुःख और अभाव का
आगमन हुआ !
आदमी को तुच्छता का बोध हुआ ,
जिजीविषा ने भी घुटने टेक दिए !
समझो आस के दीप भी बुझ गए !
मर्यादाहीन मनुष्य ने अपने कर्म
अनमने होकर करने शुरू किए !
सुख के पुष्प भी धीरे धीरे सूख गए !!
मर्यादा में रहना है
सुख , समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहना !
मर्यादा भंग करना
बन जाता है अक्सर
जीवन को बदरंग करना !
अस्तित्व के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित करना !!
मन की शांति हरना !!
१२/०३/२०२५.
55 · Mar 22
अनुभव
जीवन में अनुभव
मित्र सरीखा होता है ,
बगैर अनुभव के
जीवन फीका फीका सा लगता है ,
इसमें प्रखरता
और तीखापन लाने के लिए
अनुभव का होना बहुत जरूरी है।
अनुभव
एक दिन में नहीं आता,
इसके लिए
जीवन की भट्ठी में
खुद को है तपाना पड़ता है,
तब कहीं जाकर
जीवन कुंदन बनता है,
वह सुख,समृद्धि और संपन्नता का
आधार बनता है।
अनुभव युक्त होने से
संसार का कारज व्यवहार
आगे बढ़ता है।
इस को अनुभूत करने के निमित्त
होना चाहिए शांत चित्त।
अतः मनुष्य अपनी दिनचर्या में
कठोर मेहनत को शामिल करे,
ताकि जीवन में आदमी
निरंतर आगे बढ़ता रहे।
आदमी अनुभव के बूते
सदैव चेतना युक्त
प्रगतिशील बना रहे,
वह संतुलित दृष्टिकोण
अपने जीवन में
विकसित कर सके ,
अपने व्यक्तित्व में निखार लाता रहे
और सब्र ,संतोष ,संतुष्टि को प्राप्त कर सके।
22/03/2025.
यदि आपके मन में भरा हो गुब्बार,
व्यवस्था को लेकर
तो बग़ैर देरी किए
तंज़ कसने शुरू करो
सब पर
बिना कोई संकोच किए !
मगर ध्यान रहे।
जो भी तंज़ कसो,
जिस पर भी तंज़ कसो,
पूरे रंग में आकर
दिल से कसो !
ताकि मन में बस चुके गुब्बार
तनाव की वज़ह न बनें
और कहीं
अच्छाइयों की बाबत भी
नहीं ,नहीं ,कहते कहते,
और करते करते,
कुंठा के बोझ को सहते सहते,
अहंकार का गुब्बारा फट कर
सब कुछ को नेस्तनाबूद न कर दे,
समस्त प्रगति और विकास को
सिरे से बर्बाद न कर दे,
इसलिए तंज़ कसना ज़रूरी है,
यह गरीब गुरबे मानस की मज़बूरी है।
अतः तंज़ जी भर कर कसो,
अपने भीतर के तनावों को समय रहते हरो।
यही जीवन की बेहतरी के लिए मुफीद रहेगा।
कौन यहां अजनबियत से भरी पूरी दुनिया में घुटन सहे ?
क्यों न खुल कर, सब यहां ,तंज़ कसते हुए, जीवन यात्रा पूरी करें ?
२३/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
यह हक़ीक़त है कि
जब तक रोशनी है ,
तब तक परछाई है ।
आज तुम
खुद को रोशनी की जद में पहुंचा कर
परछाई से
जी भरकर लो खेल।
अंधेरे ने
रोशनी को
निगला नहीं कि
सब कुछ समाप्त!
सब कुछ खत्म!
पटाक्षेप !


और
है भी एक हक़ीक़त,
जो इस जीवन रूपी आईने का
भी है सच कि
जब तक अंधेरा है,
तब तक एक्स भी नजर नहीं आएगा।
अंधेरा है तो नींद है,
अंधेरे की हद में
आदमी भले ही
देर तक सो ले ,
अंधेरा छंटा नहीं कि
उसे जागना पड़ता है।

अंधेरा छंटा नहीं ,
समझो सच की रोशनी ने
आज्ञा के अंधेरे को निगला कि
सब कुछ जीवित,
जीवन भी पूर्ववत हुआ
अपनी पूर्व निर्धारित
ढर्रे पर लौटता
होता है प्रतीत।

जीवन  वक्त के संग
बना एक हुड़दंगी सा
आने लगता है नज़र।
वह समय के साथ
अपनी जिंदादिल होने का
रानी लगता है
अहसास,
आदमी को अपना जीवन,
अपना आसपास,
सब कुछ लगने लगता है
ख़ास।
बंधुवर,
आज तुम जीवन का खेल समझ लो।
जीवन समय के साथ-साथ
सच  को आग बढ़ाता जाता है ,
जिससे जीवन धारा की गरिमा
करती रहे यह प्रतीति कि
समय जिसके साथ
एक साथी सा बनकर रहता है,
वह जीवन की गरिमा को
बनाए रख पाता है ,
जीवन की अद्भुत, अनोखी, अनुपम,अतुल छटा को
जीवन यात्रा के क़दम क़दम पर  
अनुभूत कर पाता है ,
समय की लहरों के संग
बहता जाता है ,
अपनी मंजिल को पा जाता है ।

घटतीं ,बढ़तीं,मिटतीं, बनतीं परछाइयां
रोशनी और अंधेरे की उपस्थिति में
पदार्थ के इर्द-गिर्द
उत्पन्न कर एक सम्मोहन
जीवन के भीतर भरकर एक तिलिस्म
क़दम क़दम पर मानव से यह कहती हैं अक्सर ,
तुम सब रहो मिलकर परस्पर
और अब अंततः अपना यह सच जान लो कि
तुम भी एक पदार्थ हो,
इससे कम न अधिक... जीवन पथ के पथिक।
मत हो ,मत हो , यह सुनकर चकित ।
सभी पदार्थ अपने जीवन काल को लेकर रहते भ्रमित
कि वे बने रहेंगे इस धरा पर चिरकाल तक।
परंतु जो चीज बनी है, उसका अंत भी है सुनिश्चित।

२०/०५/२००८.
मुझे
वह हमेशा...
जो कोठे में बंदी जीवन
जी रही है
और
जो दिन में
अनगिनत बार बिकती है,
हर बार बिकने के साथ मरती है,
पल प्रतिपल सिसकती है
फिर भी
लोग कहते हैं
उसे इंगित कर ,
"मनमर्ज़ियां करती है।"
वह मुझे हमेशा से
अच्छी और सच्ची लगती है।
दुनिया बेवजह उस पर ताने कसती है।
जिसे नीचा दिखाने के लिए,
जिसे प्रताड़ित करने के लिए
दुनिया भर ने साज़िशों  को रचा है।
इस मंडी की निर्मिति की है,
जिसमें आदमजात की
सूरत और सीरत बसी है।

वह क्या कभी
किसी क्षण
भावावेगों में बहकर
सोचती है कि
मैं किस घड़ी
उस पत्थर से उल्फत कर बैठी ?
जिसने धोखे से बाज़ार दिया।
और इसके साथ साथ ही
सौगात में
पल पल , तिल तिल कर
भीतर ही भीतर
रिसने और सिसकने की
सज़ा दे डाली।
वह निर्मोही जीवन में
सुख भोगता होगा
और मैं उल्फत में कैद!
एक दुःख, पीड़ा, कष्ट और अजाब झेलती
उम्र कैदी बनी
रही हूं जीवन के
पिंजरे मे पड़ी हुई पछता।

कितना रीत चुकी हूं ,
इसका कोई हिसाब नहीं।
बहुतों के लिए आकर्षण रही हूं ,
भूली-बिसरी याद बनी हूं।
यह सोलह आने सच है कि
पल पल घुट घुट कर जीती हूं ,
दुनिया के लिए एकदम गई बीती हूं।

मेरा चाहने वाला ,
साथ ही बहकाने वाला
क्या कभी अपनी करनी पर
शर्मिंदा होता होगा ?
उसका भीतर
गुनाह का भार
समेटे व्यग्र और रोता होगा ?

शायद नहीं !
फिर वह ही क्यों
बनती रही है शिकार
मर्द के दंभ और दर्प की !

यह भी एक घिनौना सच है कि
आदिकाल से यह सिलसिला
चलता आया है।
जिसने बहुतों को भरमाया है
और कइयों को भटकाया है।
पता नहीं इस पर
कभी रोक लगेगी भी कि नहीं ?
यह सब सभ्य दुनिया के
अस्तित्व को झिंझोड़ पाएगा भी कि नहीं ?
उसके अंदर संवेदनशीलता
जगा भी पाएगा कि नहीं ?
यह जुल्मों सितम का कहर ढाता रहेगा।
सब कुछ को पत्थर बनाता रहेगा।
Joginder Singh Nov 2024
शुक्र है
हम सबके सिर पर
संविधान की छतरी है।
हमें विरासत में मिली
गणतंत्र की गरिमा है।
अन्यथा देखिए और समझिए।
इस देश में
आदमी  की अस्मिता
टोपी धारी के इशारे पर
कब-कब  नहीं  बिखरी  है ?



शुक्र है
हम सबके अस्तित्व पर
तानी गई संविधान की छतरी है ,
वरना अधिकार के नाम पर
बहुत बार
नकटों ने
अपने  लटके-झटकों से
आदमी की नाक कतरी है ।



शुक्र है
इस बार भी नाक बची रह गई ,
संविधान की कृपा से
देश की अस्मिता
इस वर्ष भी बची रह गई ।


मैं संकल्प करता हूं कि
इस गणतंत्र दिवस से
अगले गणतंत्र दिवस तक,
यही नहीं स्वतंत्रता दिवस से
अगले साल स्वतंत्रता दिवस पर,
हर बार देश और जनता से किया गया वायदा
दोहराता रहूंगा, अपने आप को यह याद दिलाता रहूंगा कि
देश तभी बचा रहेगा, जब सभी नागरिक कर्मठ बनेंगे।

मैं अपने साथियों के साथ
देशभर के नागरिकों को
संविधान का अध्ययन करने
और उन और उसके अनुसार अपना जीवन यापन करने
के लिए पुरज़ोर अपील करता रहूंगा।
समय-समय पर उनमें साहस भरता रहूंगा।
स्वयं को और अपनी मित्र मंडली को
विचार संपन्न बनाता रहूंगा।


देश विदेश में घटित हलचलों को
संवैधानिक दृष्टि से पढ़ते हुए
अपने चिंतन का विषय बनाऊंगा।
हर एक संकट के दौर में
खुद को संविधान की छतरी के नीचे बैठा पाऊंगा।

मैं
संविधान को
गीता सदृश पढ़ता रहूंगा,
देशकाल ,हालात अनुसार
संविधान की समीक्षा मैं करता रहूंगा ,
मां-बाप और समाज की
नज़रों में
शर्मिंदा होने से बचता रहूंगा ।


मैं हमेशा संविधान की छतरी तले रहूंगा।
हर वर्ष 26 जनवरी को
संविधान निर्माताओं की देन को याद करूंगा ।
संवैधानिक मूल्यों का पालन कर आगे बढूंगा।

२३/०१/२०११.
Joginder Singh Dec 2024
तुमने बहुत दफा
बहुत से कुत्तों को
दफा करने की ग़र्ज से
उन पर परिस्थितियों वश
पत्थर फैंके होंगे।
और वे भी
परिस्थितियों वश
खूब चीखे चिल्लाए होंगे।

पर
आज
यह न समझना कि
तुम्हारी
दुत्कार फटकार
मुझे भागने को
बाध्य करेगी।
अलबेला श्वान हूं ,
भले ही...  इंसानी निर्दयता से परेशान हूं।
अपनी मर्ज़ी का मालिक हूं ।
अपने रंग ढंग से जीने का आदी हूं ।
मैं , न कि कोई
ज़ुल्म ओ सितम का सताया
कोई मजलूम या अपराधी हूं!
कुत्ता हूं ,
ज्यादा घुड़कियां दीं
तो काट खाऊंगा।
तुम्हें ख़ास से आम आदमी
बना जाऊंगा।
जानवर बेशक हूं ,
पर कोई भेदभाव नहीं करता।
कोई छेड़े तो सही ,
तुरन्त काट खाता हूं।
फिर तो कभी कभी
खूब मार खाता हूं!
पर अपनी फितरत
कहां छोड़ पाया हूं ।
कभी कभी ‌तो
अपने बदले की भावना की
वज़ह से मारा भी जाता हूं ,
अपना वजूद गंवाता हूं।
आदमी के हाथों मारा जाता हूं।

मैं सरेआम
अपने समस्त काम निधड़क करता हूं ,
खाना पीना, मूतना और बहुत कुछ !
पर मेरी वफादारी के आगे
तुम्हारे समस्त क्रिया कलाप तुच्छ !!


मैं / यह जो तुम्हें
पूंछ हिलाता दिखाई दे रहा हूं ,
यह सब मैंने मनुष्यों के साहचर्य में
रहते रहते ही सीखा है !
आप जैसे मनुष्य
स्वार्थ पूर्ति की खातिर
कुछ भी कर सकते हैं ,
यहां तक कि
अपने प्रियजनों को भी
अपने जीवन से बेदखल कर सकते हैं !

मैं श्वान हूं , इंसान नहीं
मुझे दुत्कारो मत ,
वरना आ सकती कभी भी शामत।
गुर्राहट करते हुए आत्म रक्षा करने का
प्रकृति प्रदत्त वरदान मिला है मुझे।
गुर्रा कर स्वयं को बचाना ,
साथ ही मतवातर पूंछ हिलाना ,
और अड़ना, लड़ना, भिड़ना,
सब कुछ भली भांति जानता हूं,
और इस पर अमल भी करता हूं ।

पर कभी कभी
जब कोई
अड़ियल , कडियल , मरियल , सड़ियल आदमी
मुसीबत बनने की चुनौती देने
ढीठपन
पर उतर आए
तो क्यों न उसे
अपने दांतों से
मज़ा चखाया जाए !
अपने भीतर की ढेर सारी कुढ़न
और गुस्से को भड़का कर
देर देर तक, रह रह कर
गुर्राहट करते  करते चुनौती दी जाए ।
आदमी को
भीतर  तक घबराहट भरने में सक्षम
कोई कर्कश स्वर-व्यंजन की ध्वनियों से तैयार
गीत संगीत रचा और सुनाया जाए।
ऐसा कभी कभी
श्वान सभी से कहना चाहता है।

क्यों नहीं ऐसी विषम परिस्थितियों को
उत्पन्न होने देने से बचा जाए ?
अपने जीवन के भीतर करुणा व दया भाव को भरा जाए।

२०/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
अर्से के बाद
मिला एक दोस्त
पूछ बैठा मेरा हाल-चाल!


इससे पहले कि
कोई माकूल जवाब देता,
दोस्त कह बैठा,
लगता है,
सेहत तुम्हारी का
है बुरा हाल।

मैंने उम्र के सिर
चुपके से ठीकरा फोड़ा !
पर , भीतर पैदा हो गया एक कीड़ा !
जो भीतर ही भीतर
खाए जा रहा है।


अब मैं बोलता हूं थोड़ा ,
ज्यादा बोला तो बरसाऊंगा कोड़ा ,
अपने पर और अपनों पर ,
मन में रहते सपनों पर ,
कोई सच बोल कर
कतर  देता है पर ,इस कदर ,
भटकता फिरता हूं  होकर दर-बदर ।

अब तो मुझे
दोस्तों तक से
लगने लगा है डर ,
कहना चाहता हूं
ज़माने भर की हवाओं से
दे दो सबको यह पैग़ाम ,यह ख़बर।
मिलने जरूर आएं,
पर भूल कर भी
कह न दें कोई कड़वा सच
कि लगे काट दिए हैं किसी ने पर ,
अब प्रवास भरनी हो जाएगी मुश्किल।

वे खुशी से आएं,
जीवन में हौसला और
हिम्मत भरकर जाएं।
दिल में कुछ करने की
उमंग तरंग जगाएं ।
आदमी अपने अंतर्विरोधों से लड़े।
वह कभी तो
इनके खिलाफ़ खड़े होने का साहस जुटाए,
अन्यथा उसका जीवनाधार धीरे धीरे दरकता जाए।
इसे समझकर,
विषम परिस्थितियों में खुद को परखकर
जीवन के संघर्षों में जुटा जाता है,
हारी हुई बाज़ी को पलटा जाता है।
इतनी सी बात
यदि किसी की समझ में न आए,
तो क्या किया जा सकता है ?
ऐसे आदमी की बुद्धि पर तरस आता है।
जब आदमी को हार के बाद हार मिलती रहे,
तो उसे लगातार डराने लगता सन्नाटा है।
इस समय लग सकता है कि
कोई जीवन की राह में रुकावट बन आन खड़ा है,
जिसने यकायक स्तंभित करने वाला
झन्नाटेदार चांटा जड़ा है !!
गाल और अंतर्मन तक लाल हुआ है !!
मन के भीतर बवाल मचा है !!

आदमी को चाहिए कि
अब तो वह नैतिक साहस के साथ
जीवन में जूझने के निमित्त खड़ा हो
ताकि जीवन में पनप रहे
अंतर्विरोधों का सामना
वह कभी तो सतत् परिश्रम करते हुए करे,
कहीं यह न हो कि वह जीवन पर्यंत डरता रहे,
जीवन में कभी कुछ साहसिक और सार्थक न कर सके।
ऐसा मन को शांत रखना सीख कर सम्भव है।
इसकी खातिर शान्त चित्त होना अपरिहार्य है,
ताकि आदमी बेरोक टोक लक्ष्य सिद्धि कर सके,
वह जीवन की विषमताओं से मतवातर लड़ सके,
जीवन धारा के संग संघर्ष रत रहकर आगे बढ़ सके।
20/03/2025.
55 · Dec 2024
बचाव
Joginder Singh Dec 2024
अवैध संबंध
लत बनकर
जीव को करते हैं
अकाल मृत्यु के लिए बाध्य।

जीव
इसे भली भांति जानता है ,
फिर भी
वह खुद को इन संबंधों के
मकड़जाल में उलझाता है।
असमय
यमदेव को करता है
आमंत्रित।

मरने के बाद
वह माटी होकर भी
शेष जीवन तक ,
मुक्ति होने तक
प्रेत योनि में जाकर
अपनी आत्मा को
भटकाता रहता है।
वह नारकीय
जीवन के लिए
फिर से हो प्रस्तुत!
जन्मने को हो उद्यत!

अवैध संबंध
भले ही पहले पहल
मन के अंदर
भरें आकर्षण।
पर अंततः
इनसे आदमी
मरें असमय,
प्राकृतिक मौत से
कहीं पहले
अकाल मृत्यु का
बनकर शिकार ।
क्यों न वे
अपने भीतर
समय रहते
अपना बचाव करें।

आओ,
हम अवैध संबंध की राह
से बचने का करें प्रयास।
ताकि हम उपहास के
पात्र न बनें।
बल्कि जीवन में
सुख, शांति, संपन्नता की ओर बढ़ें।
क्यों न करें
हम अपना बचाव ?
फिर कैसे नहीं
जीवन नदिया के
मध्य विचरते हुए ,
लहरों से जूझकर
सकुशल पहुंचे,
लक्ष्य और ठौर तक
जीवन की नाव ?
आओ, हम अपना बचाव करें ।
अनचाहे परिणामों और रोगों से
खुद को बचा पाएं ।
संतुलित जीवन जी पाएं ।

१७/०१/२००६.
55 · Dec 2024
भक्ति
Joginder Singh Dec 2024
सुध बुध भूली ,
राम की हो ली ,
मन के भीतर
जब से सुनी ,
झंकार रे !
जीवन में बढ़ गया
अगाध विश्वास रे !
यह जीवन
अपने आप में
अद्भुत प्रभु का
श्रृंगार रे!

भोले इसे संवार रे!!
भक्त में श्रद्धा भरी
अपार  रे!
तुम्हें जाना है
भव सागर के पार
प्रभु आसरे रे!
बन जा अब परम का
दास रे!
काहे को होय
अधीर रे!
निज को अब बस
सुधार रे!
यह जीवन
एक कर्म स्थली है
बाकी सब मायाधारी का
चमत्कार रे!
कुछ कुछ एक व्यापार रे!!
आजकल
देश दुनिया में
शादी करने से
लोग कतरा रहे हैं ,
वे भगोड़े बन कर
जीवन बिताना चाह रहे हैं।
फिर भी
यदि दाल न गले
तो वे शादी से पहले
लिव इन को अपनाना चाह रहे हैं।
अभी अभी
सच को उजागर करता
एक कार्टून देखा कि
पति यदि काल कवलित हो जाए
तो पत्नी ,
सप्ताह बाद , महीने के बाद ,साल भर बाद भी
पति को याद करती रहती है।
जबकि पति
पत्नी के मरने के बाद
सप्ताह भर याद करता है ,
महीने तक जीवनसाथी तलाश लेता है
और साल बाद
पहली पत्नी को भूल भाल कर
अपनी ही दुनिया में खो जाता है।
यह व्यंग्य चित्र देखकर
मुझे शाहजहां के आखिरी दिनों का ख्याल आया,
जो ताजमहल को देखकर
अपनी बेगम मुमताज को याद करते रहे होंगे।
शाहजहां के लिए
ये दुर्दिन वाले दिन रहे होंगे,
मतवातर निहारने वाले दिन रहे होंगे।
आजकल
लोग जल्दी
वफादारियों और सरदारियों को
भूल जाते हैं,
तभी वे कपड़े बदलने जैसी
मानसिकता के साथ जी पाते हैं ,
वफादारियों और कसमें वायदे दरकिनार कर जाते हैं।
आज स्त्री और पुरुष
पिक, यूज एंड थ्रो कल्चर में
खोते जा रहे हैं ,
अपने खोटेपन को
लग्जरी सॉप की खुशबू में
धोते जा रहे हैं
ताकि किसी को
कुटिलता की भनक न लगे ,
फास्ट लाइफ और लाइफ स्टाइल की
चमक दमक बनी रहे।
बस जीवन की गाड़ी किसी तरह आगे बढ़ती रहे।
१५/०४/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
अब
सच का सामना
करने से
लोग कतराते हैं।

सच के
सम्मुख पहुँच कर
उनके पर
जो कतरे जाते हैं।

अच्छे
खासे इज़्ज़तदर
बेपर्दा हो जाते हैं,
इसलिए
हम बहुधा
सच सुनकर
सकपका जाते हैं,
एक दूसरे की
बगलें झांकने लग जाते हैं।

बेशक
हम इतने भी
बेशर्म नहीं हैं,
कि जीवन भर
चिकने घड़े बने रहें।
हम भीतर ही भीतर
मतवातर कराहते रहें।

हमें
विदित है
भली भांति कि
कभी न कभी
सभी को
सच का सामना
करना ही पड़ेगा ,
तभी जीवन
स्वाभाविक गति से
गंतव्य पथ पर
आगे बढ़ पाएगा।
जीवन सुख से भरपूर हो जाएगा।
२८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
इस बार
लगभग दो महीने तक
हुई नहीं थी बारिश
सोचा था आनेवाला मौसम पता नहीं
कैसा रहने वाला है ?
शायद सर्दियों का लुत्फ़
और क्रिसमस का जश्न फीका रहने वाला है।

परन्तु
प्रभु इच्छा
इंसान के मनमाफ़िक रही
क्रिसमस की पूर्वसंध्या पर
अच्छी खासी खुशियों का आगमन लाने वाली
प्रचुर मात्रा में बर्फबारी हुई
क्रिसमस और नए साल के आगाज़ से पूर्व ही
तन,मन और जोशोखरोश से
क्रिसमस की तैयारी
सकारात्मक सोच के साथ की।

मन के भीतर रहने वाला
घर भर को खुशियों की सौगात देकर जाने वाला
सांता क्लॉस  आप सभी को खुशामदीद कहता है ,
वह आने वाले सालों में
आपकी ख्वाइशों को पूर्ण करने का अनुरोध प्रभु से करता है।
आप भी जीसस के आगमन पर्व पर
विश्व शांति और सौहार्दपूर्ण सहृदयता के लिए कीजिए
मंगल कामनाएं!
ऐसा आज आपका प्रिय भजन गाता हुआ
सांता क्लॉस चाहता है।
वह आपके जीवन के हरेक पड़ाव पर
सफलता हासिल करने का आकांक्षी है।

२५/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
जारी,जारी,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीतें हैं,इस जहान की।
यहां
ईमानदार
भूखे मरते हैं,
दिन रात
मतवातर
डरते हैं।
अजब-गजब
रवायत है
इस जहान की।
जारी ,जारी ,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं ,इस जहान की।
यहां
बेईमान
राज करते हैं,
दिन रात
जनता के रखवाले
रक्षा करते हैं ,
जबकि
शरारती डराते हैं ,  
और
वे उत्पात मचाने से पीछे नहीं हटते हैं ।
जारी, जारी ,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं, इस जहान की।
अजब
सियासत है ,
इस हिरासत की ।
यहां
कैदी
आज़ादी भोगते हैं
और
दिन रात
गुलामों पर बेझिझक भौंकते हैं ।
जारी ,जारी, जारी ,जारी,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं , इस जहान की।
सभी
यहां खुशी-खुशी
देश की खातिर
लड़ते हैं ।
अजब
प्रीत है
इस देश की।
यहां
सभी
अवाम की खातिर
संघर्ष करते हैं।
जारी ,जारी, जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीतें हैं , इस जहान की।
अजब
अजाब है
इस अजनबियत का।
यहां
सब लोग
नाटक करते हैं।
दिन रात
लगातार
नौटंकी करते हैं।
अजब
नौटंकी जारी है,
पता नहीं
अब किसकी बारी है।
किसने की रंग मंच पर
आगमन की तैयारी है ?
लगता है  
अब हम सब की बारी है।
क्या हम ने कर ली
इसकी खातिर तैयारी है ?
जारी ,जारी ,जारी ,जारी , जारी नौटंकी जारी है।
अजब ,अजब, अजब सी रीतें हैं इस जहान की।
अजब
नौटंकी जारी है।
लगता है ,
अब हम सब की बारी है।
Joginder Singh Nov 2024
अब हमें
दबंगों को,
कभी-कभी
दंगाइयों के संग
और
दंगा पीड़ितों को
दबंग, दंगाइयों के साथ
रखना चाहिए ,
ताकि
सभी परस्पर
एक दूसरे को जान सकें,
और भीतर के असंतोष को खत्म कर
खुद को शांत रख सकें,
ढंग से जीवन यापन कर सकें,
जीवन पथ पर
बिखरे बगैर
आगे ही आगे बढ़ सकें,
ज़िंदगी की किताब को
अच्छे से पढ़ सकें,
खुद को समझ और समझा सकें।


देश में दंगे फसाद ही
उन्माद की वजह बनते हैं,
ये जन,धन,बल को हरते हैं,
इन की मार से बहुत से लोग
बेघर हो कर मारे मारे भटकते हैं।

जब कभी दंगाई
मरने मारने पर उतारू हों
तो उन्हें निर्वासित कर देना चाहिए।
निर्वाचितों को भी चाहिए कि
उनके वोटों का मोह त्याग कर
उन्हें तड़ीपार करने की
सिफारिश प्रशासन से करें
ताकि दंगाइयों को  
कारावास में न रखकर
अलग-अलग दूरस्थ इलाकों में
कमाने, कारोबार करने,सुधरने का मौका मिल सके।
यदि वे फिर भी न सुधरें,
तो जबरन परलोक गमन कराने का रास्ता
देश की न्यायिक व्यवस्था के पास होना चाहिए।
आजकल के हालात
बद्तर होते-होते
असहनीय हो चुके हैं।
अंतोगत्वा
सभी को,
दबंगों को ही नहीं,
वरन दंगाइयों को भी
अपने  अनुचित कारज और दुर्व्यवहार
से गुरेज करना चाहिए
अन्यथा
उन सभी को
होना पड़ेगा
निस्संदेह
व्यवस्था के प्रति
जवाबदेह।
सभी को अपने दुःख, तकलीफों की
अभिव्यक्ति का अधिकार है,
पर अनाधिकृत दबाव बनाने पर ,
दंगा करने और करवाने पर
मिलनी चाहिए सज़ा,
साथ ही बद्तमीजी करने का मज़ा।

देश के समस्त नागरिकों को
अपराधी बनने पर
कोर्ट-कचहरी का सामना करना चाहिए,
ना कि दहशत फैलाने का कोई प्रयास ।


दंगा देश की
अर्थ व्यवस्था के लिए घातक है,
यह प्रगति में भी बाधक है,
इससे दंगाइयों के भी जलते हैं।
पर वे यह मूर्खता करने से
कहां हटते हैं?
वे तो सब को मूर्ख और अज्ञानी समझते हैं।
१२/०८/२०२०.
Joginder Singh Dec 2024
यदि
बनना चाहते तुम ,
सिद्ध करना चाहते तुम
पढ़ें लिखों की भीड़ में
स्वयं को प्रबुद्ध
तो रखिए याद
सदैव यह सच ,
यह याद रखना बेहद जरूरी है
कि अंत:करण बना रहे सदैव शुद्ध ।
अन्यथा व्यापा रहेगा भीतर तम ,
और तुम
अंत:तृष्णाओं के मकड़जाल में फंसकर
सिसकते, सिसकियां भरते रहे जाओगे ।
तुम्हारे भीतर समाया मानव
निरंतर दानव बनता हुआ
गुम होता चला जाएगा ,
वह कभी अपनी जड़ों को खोज नहीं पाएगा ।

वह
लापता होने की हद तक
खुद के टूटने की ,
पहचान के रूठने की
प्रतीति होने की बेचैनी व जड़ता से
पैदा होने के दंश झेलने तक
सतत् एक पीड़ा को अपनाते हुए
जीवन की आपाधापी में खोता चला जाएगा।
वह कभी अपनी प्रबुद्धता को प्रकट नहीं कर पाएगा।
फिर वह कैसे अपने से संतुष्ट रह पाएगा?
अतः प्रबुद्ध होने के लिए
अपने भीतर की
यात्रा करने में सक्षम होना
बेहद जरूरी है।
यह कोई मज़बूरी नहीं है ।
०३/१०/२०२४.
मन की गति बड़ी तीव्र है !
इसे समझना भी विचित्र है!
मन का अधिवास है कहां ?
शायद तन के किसी कोने में!
या फिर स्वयं के अवचेतन में!
मन इधर उधर भटकता है !
पर कभी कभी यह अटकता है!!
यह मन , मस्तिष्क में वास करता है।
आदमी सतत इस पर काबू पाने के
निमित्त प्रयास करता रहता है।
यदि एक बार यह नियंत्रित हो जाए ,
तो यह आदमी के भीतर बदलाव लाता है।
आदमी बदला लेना तक भूल जाता है।
उसके भीतर बाहर ठहराव जो आ जाता है।
यह जीव को मंत्र मुग्ध करता हुआ
जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है।
यह जीवंतता की अनुभूति बन कर
मतवातर जीवन में उजास भरता जाता है
आदमी अपने मन पर नियंत्रण करने पर
मनस्वी और मस्तमौला बन जाता है।
वह हर पल एक तपस्वी सा आता है नज़र,
उसका जीवन  और दृष्टिकोण
आमूल चूल परिवर्तित होकर
नितांत जड़ता को चेतनता में बदल देता है।
वह जीवन में उत्तरोत्तर सहिष्णु बनता चला जाता है।
मन हर पल मग्न रहता है।
वह जीवन की संवेदना और सार्थकता का संस्पर्श करता है।
मन जीवन के अनुभवों और अनुभूतियों से जुड़कर
सदैव
क्रियाशील रहता है।
सक्रिय जीवन ही मन को
स्वस्थ और निर्मल बनाता है।
इस के लिए
अपरिहार्य है कि
मन रहे हर पल कार्यरत और मग्न ,
यह एक खुली किताब होकर
सब को सहज ही शिखर की और ले जाए।
इस दिशा में
आदमी कितना बढ़ पाता है ?
यह मन के ऊपर
स्व के नियंत्रण पर निर्भर करता है ,
वरना निष्क्रियता से मन बेकाबू होकर
जीवन की संभावना तक को
तहस नहस कर देता है।
कभी कभी मन की तीव्र गति
अनियंत्रित होकर जीवन में लाती है बिखराव।
जो जीवन में तनाव की बन जाती है वज़ह ,
फलस्वरूप जीवन में व्याप्त जाती है कलह और क्लेश।
इस मनःस्थिति से बचना है तो मन को रखें हर पल मग्न।


०६/०१/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
देह से नेह है मुझे
यह चाहे गाना अब  देह का राग
भीतर भर भर कर  
संवेदना
करना चाहे यह संस्पर्श अनुभूतियों के
समंदर का ।
हाल बताना चाहे मन के अंदर उठी
लहरों का ।
यह सच है कि
इससे
नेह है मुझे
पर मैं इसे स्वस्थ
नहीं रख पाया हूँ।
जिंदगी में भटकता आया हूँ।

जब यह
अपनी पीड़ा
नहीं सह पाती है तो बीमार
हो जाती है ,
तब मेरे भीतर चिंता
और उदासी भर जाती है।

इससे पहले कि
यह लाइलाज़ और
पूर्ण रूपेण से हो
रुग्ण
मुझे हर संभावित करना चाहिए
इसे स्वस्थ रखने के प्रयास।
पूरी तरह से
इसके साथ रचाना चाहिए
संवाद।
इससे खुलकर करनी चाहिए
बात।
इसकी देह में भरना चाहिए
आकर्षण।
आलस्य त्याग कर
नियमित रूप से
करना चाहिए
व्यायाम।
ताकि यह अकाल मृत्यु से
सके बच।
यह खोज सके
देहाकर्षण के आयाम।
दे सके अशांत, आक्रांत,
आत्म को भीतर तक ,
गहरे शांत करने
के निमित्त
दीर्घ चुम्बन!
हों सकें समाप्त
इसके भीतर की सुप्त
इच्छाओं से निर्मित
रह रह कर होने वाले
कम्पन
और निखर सके तनाव रहित होकर
देह के भीतर के वासी का मन।

देह की राग गाने की इच्छा की
पूर्ति भी हो जाए,
इसके साथ साथ
भीतर इसके उमंग तरंग भर जाए ।

आज ज़रूरी है
यह
तन और मन की जुगलबंदी से
राग,ताल, लय के संग
जीवन के राग गाए,
ज़रा सा भी न झिझके
अपना अंतर्मन खोल खोल भीतर इकठ्ठा हुआ
सारा तनाव बहा दे ।
करे यह दिल से
नर्तन!
छूम छन छन...छिन्न...छन्ना छन ...छ।...न...!!

देह से नेह है मुझे
पर...मैं...
इसे मुक्त नहीं कर पाया हूँ ।
इससे मुक्त नहीं हो पाया हूँ।
शायद
देह का राग
मुझ में
भर दे विराग ,
जगा दे
दिलोदिमाग को
रोशन करता हुआ
कोई चिराग़।
और इस की रोशनी में
देह अपने समस्त नेह के साथ
गा सके देह का सम्मोहक
तन और मन के भीतर से प्रतिध्वनित
रागिनी के मनमोहक रंग ढंग से
सज्जित
मनोरम राग
और जो मिटाए
देह के समस्त विषाद ।
कर सके तन और मन से संवाद।

१७/०१/२००६.
आज भी
अराजकता के
इस दौर में
आम जनमानस
न्याय व्यवस्था पर
पूर्णरूपेण करता है भरोसा।

बेशक प्रशासन तंत्र
कितना ही भ्रष्ट हो जाए ,
आम आदमी
न्याय व्यवस्था में
व्यक्त करता है विश्वास ,
वह पंच परमेश्वर की
न्याय संहिता वाली आस्था के
साथ दूध का दूध , पानी का पानी होना
अब भी देखना चाहता है
और इसे हकीकत में भी देखता है ,
आज भी आम जन मानस के सम्मुख
कभी कभी न्यायिक निर्णय बन जाते हैं नज़ीर और मिसाल
...न्याय व्यवस्था लेकर बढ़ने लगती है जागृति की मशाल।
उसके भीतर हिम्मत और हौंसला
पैदा करती है न्याय व्यवस्था,
त्वरित और समुचित फैसले ,
जिससे कम होते हैं
आम और खास के बीच बढ़ते फासले।
न्यायाधीश
न्याय करता है
सोच समझ कर
वह कभी भी एक पक्ष के हक़ में
अपना फैसला नहीं सुनाता
बल्कि वह संतुलित दृष्टिकोण के साथ
अपना निर्णय सुनाता है ,
जिससे न्याय प्रक्रिया कभी बाधित न हो पाए।
आदमी और समाज की चेतना सोई न रह जाए।
जीवन धारा अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ पाए।
०५/०१/२०२५.
54 · Mar 3
विदूषक
आदमी
कभी कभी
अपनी किसी
आंतरिक कमी की
वज़ह से विदूषक जैसा
व्यवहार न चाहकर भी करता है ,
भले ही वह बाद में पछताता रहे अर्से तक।
भय और भयावह अंजाम की दस्तक मन में बनी रहे।

विदूषक भले ही
हमें पहले पहल मूर्ख लगे
पर असल में वह इतना समझदार
और चौकन्ना होता है कि उसे डराया न जा सके ,
वह हरदम रहता है सतर्क ,अपने समस्त तर्क बल के साथ।
विदूषक सदैव तर्क के साथ क़दम रखता है ,
बेशक उसके तर्क आप को हँसाने और गुदगुदाने वाले लगें।

आओ हम विदूषक की मनःस्थिति को समझें।
उसकी भाव भंगिमाओं का भरपूर आनंद लेते हुए बढ़ें।
कभी न कभी आदमी एक विदूषक सरीखा लगने लगता है।
पर वह सदैव सधे कदमों से
जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करता है ,
यही सब उसके व्यक्तित्व के भीतर कशिश भरता है।
उसे निरर्थकता में भी सार्थकता खोजने का हुनर आता है!
तभी वह बड़ी तन्मयता से
तनाव और कुंठा ग्रस्त व्यक्ति के भीतर
हंसी और गुदगुदाहट भर पाता है।
ऐसा करके वह आदमी को तनावरहित कर जाता है !
यही नहीं वह खुद को भी उपचारित कर पाता है !!
०३/०३/२०२५.
आज किसान बेचारा नज़र आता है।
वह शोषण का शिकार बनाया जा रहा है।
ऐसा क्यों ? सोचिए , इस बाबत कुछ करिए ज़रा।
किसान कब तक बना रहेगा बेचारा और बेसहारा ?

उसकी मदद कैसे हो ?
उसकी लाचारी कैसे दूर हो ?
यदि उस की उपज खेत से
सीधे बाज़ार भाव पर खरीद ली जाए ?
और थोड़ा खर्चा करके उपभोक्ता से वसूल ली जाए
तो क्या हो ?
कम से कम किसान इससे सुखी रहेगा।
उपभोक्ता अपने द्वारा की गई
अनावश्यक भोजन की बर्बादी को रोक ले ,
तो यकीनन देश की आर्थिकता दृढ़ होगी।
किसान की चिंताएं धीरे धीरे खत्म होंगी।
इसके साथ ही भ्रष्टाचार में भी शनै: शनै: कमी होगी।
किसान की मदद
उपभोक्ता की सदाशयता से
बिना किसी तनाव ,दुराव ,छिपाव के की जा सकती है।
इस राह पर बढ़ कर ही किसान और समाज की तक़दीर
बदली जा सकती है।
संपन्नता,सुख , समृद्धि और सुविधाएं
बगैर किसी देरी किए खोजी जा सकती हैं।
१३/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
जनाब! बुरा मत मानिएगा।
मारने की ग़र्ज से छतरी नहीं तानिएगा।

बुरा मानने का दौर चला गया ।
पता नहीं ,यह शोर कब थमेगा?

बुरा! बुरा !! बुरा !!!
आजकल हो गया है ।
हमारी सभ्यता का धुरा।

बुरा देखते-देखते
चुप रह जाने की आदत ने
हमें जीती जागती बुराई को
अनदेखा करना सिखा दिया है!
हमें बुराई का पुतला बना दिया है!!

पता नहीं कब राम आएंगे ?
अपने संगी साथियों के संग
बुराई का दहन करने का बीड़ा उठाएंगे।
भारत को राम राज्य के समान बनाएंगे ।
Joginder Singh Nov 2024
समय कभी कभी
उवाचता है अपनी
गहरी पैठी अनुभव जनित
अनुभूति को
अभिव्यक्ति देता हुआ,
" अगर सभी चेतना प्राप्त
अपने  भीतर गहरे उतर
निज की खूबियों को जान पाएं,
अपनी सीमाएं पहचान जाएं
तो वे सभी एकजुट होकर
व्यवस्था में बदलाव ले आएं।"

"खुद को समझ पाना,
फिर जन जन की समझ बढ़ाना,
कर सकता है समाजोपयोगी परिवर्तन।
अन्यथा बने रहेंगे सब, लकीर के फ़कीर।
जस के तस,जो न होंगे कभी, टस से मस।
जड़ से यथास्थिति के बने शिकार,
नहीं होंगे जो सहजता से, परिवर्तित।"
समय मतवातर कह रहा,
" देखो,समझो, काल का पहिया
उन्हें किस दिशा की ओर बढ़ा रहा।
मनुष्य सतत संघर्षरत रहकर
जीवन में उतार चढ़ाव की लहरों में बहकर
पहुँचता है मंज़िल पर, लक्ष्य सिद्धि को साध कर।"

" युगांतरकारी उथल पुथल के दौर में
परिवर्तन की भोर होने तक,बने रहो शांत
वरना अशांति का दलदल, तुम्हें लीलने को है तैयार।
यदि तुम इस अव्यवस्था में धंसते जाओगे,
तो सदैव अपने भीतर
एक त्रिशंकु व्यथा को
पैर पसारते पाओगे।
फिर कभी नहीं
दुष्चक्रों के मकड़जाल से
निकल पाओगे।
तुम तो बस , खुद को
हताश, निराश,थका, हारा, पाओगे।"
  १४/०५/२०२०.
कभी कभी
कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मौका हो
जाता है मयस्सर।
आदमी की गलती
बन जाया करती है
कैलेंडर के
मज़ाक करने का सबब।
आज शनिवार को
मुझे एकादशी का व्रत
पिछले महीने की तिथि के
अनुसार आधे दिन तक रखना पड़ा।
यह तो अचानक
श्रीमती ने फोन पर
एकादशी के
सोमवार को होने की
बाबत बताया।
मैं जब घर आया
तो दीवार पर टंगे
कैलेंडर पर
फरवरी के महीने वाला
पृष्ठ नजर आया,
जबकि महीना मार्च का
चल रहा था।
आज आठ मार्च है ,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।
मैं महीने के ख़त्म होने पर भी
अगले महीने को इंगित करने वाला
पृष्ठ पलट नहीं पाया था।
फलत: कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मिल गया था अवसर
और मैं एकादशी होने के
भ्रम का शिकार।
घर पर सभी सदस्यों ने
कैलेंडर के संग
मुझे हँसी मज़ाक का
पात्र बनाया था।
मैं सचमुच खिसिया गया था।
०८/०३/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
वेदों, गीता, रामायण, महाभारत की
सृजन स्थली
भारतवर्ष
अब
आज के भागम भाग वाले
काल खंड में
महाभारत का स्वरूप भर
प्रतीत होता है।
हर कहीं छोटे बड़े
खंडित स्वरूपों में महाभारत
देश
और दुनिया में मंचित की
जा रही है।
लगता है महाभारत का युद्ध
अभी तक
जारी है।
यहां वहां चारों ओर
अंधकार फैला हुआ है।
छल प्रपंच के मध्य
यहां हर कोई
एक दूसरे को मार रहा है।
यहां हर कोई धीमी मौत मर रहा है।
अर्जुन सरीखा,जो लड़ने में सक्षम है,
जीवन की युद्धभूमि से भाग रहा है।
यहां हर कोई पार्थ की प्रतीक्षा कर रहा है।
इस सब के बावजूद
हर कोई अपना अपना युद्ध लड़ रहा है।
१५/११/२०२४.
54 · Nov 2024
The Purity of The Love
Joginder Singh Nov 2024
The present world seems to us
an unique and wonderful expression of the governing force of the universe.
You can named this force as the nature or as  the almighty God....
which according to our philosophy...
is Omnipotent, Omniscient, Omnipresent.

On the other aspect of the human psychology,
the governing force of the universe resides in the purity of Love where presence of more than two life partners is highly objectionable and
non permissible .
पाप को अंग्रेज़ी में कहते हैं सिन,
मरणोपरांत व्यक्ति बहुधा नरक को जाता है।
कलयुग के व्यक्ति
दिन रात बेख़ौफ़ होकर
पाप करते हैं ,
इससे ही मिलता है उन्हें सुख।
दुःख पहुंचाने में उन्हें मज़ा आता है ,
जब पाप कर्म हाथ धोकर पीछे पड़ जाता है
तब उनका जीवन मज़ाक सरीखा बन जाता है।
ऐसे में शीघ्रातिशीघ्र
उन्हें पाप का द्वार
दूर से आता है नज़र।
जिस में प्रवेश करने से पूर्व
तन मन में अवसाद भर जाता है ,
जीवन का स्वाद फीका पड़ जाता है।
नरक का द्वार
आदमी के पास ही स्थित होता है ,
यह वो तिलिस्म है
जो जीवित को नहीं दिख पड़ता है ,
केवल मृत ही इसे
ढंग से महसूस कर पाता है।

देश में ऑपरेशन सिंदूर जारी है।
जो आतंकियों को बनाने वाला भिखारी है।
देखना आतंकी अब प्राणों की भीख मांगते दिखेंगे।
सिन और डोर को जोड़ने से बनता है शब्द सिंदूर ,
जो सुहागिन महिलाओं की माँग में पहुँच कर
अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन जाता है।
कायर आतंकी इसे पोंछने पर उतारू हो जाते हैं ,
उन्हें बस अपनी वासना नजर आती है ,
सुहागिन की साधना उन अंधों को दिख नहीं है पड़ती।
वासना तीखी मिर्च बन कर उन्हें अक्ल का अंधा है कर देती।
पहलगाम के दूरगामी नतीजे अब दिखने लगे हैं।
पड़ोसी देश के आतंकी शिविरों पर
अब बॉम्ब, गोले, मिसाइल, रॉकेट दागे जा रहे हैं।
इस की मार के तले आकर आतंक के मसीहा अब कराहने लगे हैं।
यह युद्ध पाप के खिलाफ़ है।
इसके लिए पुण्य ने ओढ़ा नकाब है।
क्या करे सवाब , पापी ,देवता से बेख़ौफ़ रहता है ,
वह अच्छे और सच्चे को चुटकियों में मसलना चाहता है ,
अतः पुण्यात्मा को पापी के मन में डर पैदा करने के लिए
न केवल नकाब
बल्कि भीतर तक रौद्र रूप धारण करना पड़ता है ,
साक्षात काली सम बनना पड़ता है।
भारत माता के काली बनने ‌की अब बारी है।
आतंक के खात्मे के लिए  ऑपरेशन सिंदूर ज़ारी है !
अब देश दुनिया और समाज में परिवर्तन की तैयारी है !!
०८/०५/२०२५.
यह जीवन अद्भुत है।
इसमें समय मौन रहकर
जीव में समझ बढ़ाता है।
यहाँ कठोरता और कोमलता में
अंतर्संघर्ष चलता है।
कठोर आसानी से कटता नही,
वह बिना लड़े हार मानता नहीं,
उसे हरदम स्वयं लगता है सही।
कोमल जल्द ही पिघल जाता है,
वह सहज ही हिल मिल जाता है,
वह सभी को आकर्षित करता है।
उसके सान्निध्य में प्रेम पलता है।
कठोर भी भीतर से कोमल होता है,
पर जीवन में अहम क़दम क़दम पर
उसका कभी कभी आड़े आ जाता है।
सो ,इसीलिए वह खुद को
अभिव्यक्त नहीं कर पाता है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे?
सच है, उसके भीतर भी संवेदना बहे।
कठोरता दुर्दिनों में बिखरने से बचाती है,
जबकि कोमलता जीवन धारा में
मतवातर निखार लेकर आती रही है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे ?
वह बिखरने से बचना चाहता है,
वह हमेशा अडोल बना रहता है।
24/02/2025.
Joginder Singh Dec 2024
जब तक खग
नभचर बना रहेगा
और
स्वयं के लिए
उड़ने की ललक को
अपने भीतर
ज़िन्दा रखेगा ,
तब तक ही
वह आजीवन  
संभावना के गगन में
स्वच्छंदता से उड़ान भरता रहेगा।
जैसे ही
वह अपने भीतर
उड़ने की चाहत को
जगाना भूलेगा ,
वैसे ही वह
अचानक
जाएगा थक
और
किसी षड्यंत्र का
हो जाएगा शिकार ,
वह खुद को
एक खुली कैद में
करेगा महसूस
और एक परकटे
परिन्दे सा होकर
भूलेगा चहकना ,
कभी
भूले से चहकेगा भी ,
तो अनजाने ही
अपने भीतर
भर लेगा दर्द ,
एकदम भीतर तक
होकर बर्फ़
रह जाएगा उदासीन।

वह धीरे धीरे
दिख पड़ेगा मरणासन्न ,
यही नहीं
वह इस जीवन में
असमय अकालग्रस्त होकर
कर जाएगा प्रस्थान।

क्या
तुम अब भी
उसे
किसी दरिन्दे
या फिर
किसी बहेलिए के
जाल में फंसते हुए
देखना चाहते हो ?
उसकी अस्मिता को ,
आज़ाद रहकर
निज की संभावना को तलाशते
नहीं ‌देखना चाहते हो ?

०४/०८/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
कैसी
नासमझी भरी
सियासत है यह।
भीड़ भरी
दुनिया के अंदर तक
जन साधारण को
महंगाई से भीतर ही भीतर
त्रस्त कर
भयभीत करो
इस हद तक कि
जिंदगी लगने लगे
एक हिरासत भर।


कैसी
नासमझी भरी
हकीकत है यह कि
विकास के साथ साथ
महंगाई का आना
निहायत जरूरी है।

कैसी
शतरंज के बिसात पर
अपना वजूद
जिंदा रखने की कश्मकश के
दौर में
नेता और अफसरशाही की
मूक सहमति से
गण तंत्र दिवस के अवसर पर
बस किराया
यकायक बढ़ा दिया जाता है।
आम आदमी को लगता है कि
उसकी आज़ादी को काबू में करने के लिए
उसकी आर्थिकता पर
अधिभार लगा दिया गया है।

शर्म ओ हया के पर्दे
सत्ता की दुल्हनिया सरीखे
झट से गिराने को तत्पर
नेतृत्व शक्तियां!
किश्तीनुमा टोपियां!!
धूमिल और उज्ज्वल पगडंडियां!!!
कुछ तो शर्म करो।
गणतंत्र के मौके पर
मंहगाई का तोहफ़ा तो न दो।
तोहफ़ा देना ही है
तो एक दिन आगे पीछे कर के दे दो!
ताकि टीस ज़्यादा तीव्र महसूस न हो।
महसूस करना,
शिद्दत से महसूस कराना,
एक अजब तोहफ़ा नहीं तो क्या है?
यहां सियासत के आगे सब सियाह है, स्वाह है जी!
पहलगाम के
नृशंस हत्याकांड के बाद
आज के रविवार
पी. एम. सर
अपनी मन की बात को
सुरक्षा के संदर्भ में
आगे बढ़ाएंगे।
देखें , उन द्वारा व्यक्त विचार
घायल राष्ट्र को
कितना मरहम लगाते हैं।
वे देश भक्ति के जज्बात को
किस तरह भविष्य की रणनीति से जोड़ेंगे।
वे राष्ट्र की अस्मिता को
किस दृष्टिकोण से
देश के नागरिकों के सम्मुख रखेंगे।
देश अब भी किसी पड़ोसी देश का अहित
नहीं करना चाहता।
वह तो अपनी सरहदों को
सुरक्षित देखना चाहता।
वह देश दुनिया में अमन चैन का परचम
लहराते देखना चाहता ।
हाँ, देश यह जरूर चाहेगा कि
राष्ट्र के आंतरिक शत्रुओं पर
लगाम कसी जाए
ताकि देश भर में
आंतरिक एकता को दृढ़ किया जा सके,
सुख , समृद्धि और संपन्नता भरपूर
राष्ट्र को बनाया जा सके।
उसका हरेक नागरिक
उसकी आन बान शान को बढ़ा सके।
मन की बात में निहित अंतर्ध्वनि को सब सुनें ,
यहां तक कि पड़ोसी देशों के नागरिक भी ,
ताकि सभी देशों के नागरिक
हालात के अनुरूप खुद को ढाल सकें।
वे अपने अपने राष्ट्र की ढाल बनने में सक्षम हो सकें।
देश में अमन शांति कायम रहें ।
बेशक सब अपने अपने स्तर पर
सजग और चौकन्ने बने रहें।
२७/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
अभी अभी
टेलीविजन पर
एक कार्यक्रम देखते हुए,
ब्रेक के दौरान
विज्ञापन देखते हुए
आया एक ख्याल
कि श्रीमती को
दिया जाए एक उपहार।
विज्ञापित सामग्री खरीदी जाए,
और एक टिप्पणी के साथ
श्रीमती जी को सहर्ष
सौंप दी जाए।
विज्ञापन कुछ यूं प्रदर्शित था,
मक्खन सी मुलामियत वाली
पांच सौंदर्य साबुन के  पैक के साथ
एक बॉलपेन फ्री।

श्रीमती की लेखन प्रतिभा का  
करते हुए सम्मान
उन्हें
उपरोक्त विज्ञापन वाली
सामग्री दी जाए,
साथ ही किया जाए
टिप्पणी सहित अनुरोध,
" ....यह सौंदर्य सामग्री बॉलपेन की
ऑफ़र के साथ प्राप्त हुई है जी।
आप  इसका उपयोग करें,
सौंदर्य साबुन से
मल मल कर स्नान कीजिए।
साबुनों के साथ मिले
फ्री के पैन से  कविताएं लिखें
और सुनाएं,
निखार के साथ भी, निखार के बाद भी,मन बहलाएं जी।"

विज्ञापित सामग्री मैं बाज़ार से
ले आया हूं,
सोचता हूँ,
दूं या न दूं,
दूं तो डांट, फटकार के लिए
खुद को तैयार करूँ।
आप से मार्ग दर्शन अपेक्षित है।
वैसे अनुरोधकर्ता घर बाहर उपेक्षित है,
एक दम भोंदू,
रोंदू पति की तरह,
जो तीन में है न तेरह में।
ढूंढता है मजा जीने में,
कभी कभार की सजा में।
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