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Joginder Singh Dec 2024
कभी कभी
जीवन के मोह में पड़कर
अनियंत्रित हो जाता हूं ,
अपने आप पर काबू खोकर ,
अराजक होकर ,
एक भंवर में खो सा जाता हूं
और  
खुद की
निगाहों में ,
एक कायर
लगने लगता हूं ,
ऐसे में
एक हूक सी उठती है हृदय से
कुछ न कर पाने की ,
अच्छी खासी ज़िंदगी के
बोझ बन जाने की ,
खुद ‌को  न समझ पाने की ।

अचानक
अप्रत्याशित
उपेक्षित
अनपेक्षित घटनाक्रम की
करने लगता हूं
इंतज़ार ,
कभी तो पड़ेगी
समय की गर्द से सनी
मैली हुई देह पर
चेतना के बादल से
निस्सृत
कोई बौछार
मन की मैल धोती हुई ,
जीवन की मलिनता को
निर्मल करती हुई।
मन के भीतर से
कभी कभी सुन पड़ती है
अंतर्मन की आवाज़
जो रह रहकर
अंतर्मंथन की प्रेरणा देती है,
स्वयं से
अंतर्साक्षात्कार ‌के लिए
करती है धीरे धीरे तैयार।
स्वयं पर
नियंत्रण रखने को कहती है।
यह अंतर्ध्वनि
जीवन पथ
सतत् प्रशस्त होते रहने का
देती है आश्वासन।
फिर यह अचानक से अंतर्ध्यान हो जाती है
और वैयक्तिक सोच को
ज़मीनी हक़ीक़त की सच्चाई से
जोड़ जाती है।
सच! इस समय
इंसान को
अपने जीवन की
अर्थवत्ता
समझ में आ जाती है।
उसकी समझ यकायक बढ़ जाती है।
०९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
ज़ंग
तबाही का मंज़र
पेश करती है।
यह
कायर के भीतर
खौफ पैदा करती है।
यह
बहुतों को
मौत की नींद सुलाती है।
कभी कभी
ज़ंग
अमन के नाम पर
इंसाफ़ पसन्दों को
रुलाती है।

यह
जब लंबी  
खींच जाती है,
तब यह
बहुतों को
देती है जीवन से मुक्ति।

और
सब से ‌बढ़कर
ज़ंग हथियारों को जंग
नहीं लगने देती,
बेशक
दुनिया बदरंग होकर
लगने लगती है
एकदम से
गई बीती ।

आजकल
ज़ंगें क्यों ‌हो
रही हैं?
कभी
सोच विचार किया है ‌आपने ?
जब हथियार नहीं बिकते ,
तब हथियारों के
सौदागरों की
साज़िश के तहत
मतभेदों और मनभेदों को
बढ़ाया जाता है।
व्यक्तियों, लोगों ,देशों को
परस्पर लड़वाया जाता है।

ज़ंगों ,युद्धों , लड़ाइयों से
देश दुनिया में
विकास के पहियों को
रुकवा कर
विनाश के पथ पर बढ़ाया जाता है।

आओ हम सब यह संकल्प करें
कि जीवन में
ज़ंग से करेंगे गुरेज
ताकि दुनिया और ज़िन्दगी को
रखा जा सके सही सलामत।
ज़ंग कभी न बन सके
तबाही की अलामत।
१८/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
बेशक चलो
सभी से हंसी-मजाक करते हुए ,
प्यार और लगाव से बतियाते हुए ,
क़दम क़दम पर
स्वयं को
जीवन के उतार चढ़ाव से भरे सफर में
हरदम चेताते हुए ।
पर
हर्गिज न बोलो
कभी किसी से
बड़बोले बोल ।
यह
जीवन
अनिश्चितताओं से भरा हुआ है ,
क्या पता?
कब क्या घट जाए?
कहीं बीच सफ़र
ढोल की पोल खुल जाए ।
अतः सोच समझ कर बोलना चाहिए।
कठिनाइयों का सामना
बहादुरी से किया जाना चाहिए।

भूलकर भी मत बोल ,
कभी भी बड़बोले बोल।
कुछ भी कहो,
मगर कहने से पहले
उसे अंतर्घट में लो तोल।
इस जहान में
जीवन की गरिमा बची रहे ,
इस अनमोल जीवन में
अस्तित्व को कोई झिंझोड़ न सके,
आदमी अपनी अस्मिता कायम  रख सकें ,
इसकी खातिर हमेशा
बड़बोले बोलों से बचा जाना चाहिए।
ऐसे बिना सोचे-समझे
कुछ भी कहने से
ख़ुद का पर्दाफाश होता है।
और दुनिया को
हंसी ठिठोली का अवसर मिलता है,
ऐसे में
आत्म सम्मान मिट्टी में मिल जाता है,
आत्म विश्वास भी डांवाडोल हो जाता है।
यही नहीं, आदमी देर तक
भीतर ही भीतर
लज्जित और शर्मिंदा होता रहता है।

०८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ लोग बिना परिश्रम किए
चर्चित रहना चाहते हैं ।
वे बगैर किए धरे
सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं।
भला ऐसा घटित होता है कभी।

उनकी चाहत को
महसूस कर
कभी कभी सोचता हूं कि आजकल
भाड़े के टट्टू
क्यों बनते जा रहे हैं निखट्टू ?
ये दिहाड़ियां करते हुए
कभी कभार
अधिक दिहाड़ी मिलने पर
झट से पाला बदल लेते हैं।
अपने निखट्टूपन को
एक अवसर में बदल जाते हैं।
जिसका काम होता है प्रभावित ,
उसे भीतर तक चिड़चिड़ा बना देते हैं।

उन्हें जब कोई
क्रोध में आकर
भाड़े का टट्टू कहता है ,
तो उनमें बेहिसाब गुस्सा
भर जाता है।
वे तिलमिलाए हुए
उत्पात करने पर
उतारू हो जाते हैं।
वे भाड़े के टट्टू नहीं
बल्कि
टैटू की तरह
दिखाई देना चाहते हैं।
सभी के बीच
अपनी पैठ बनाना चाहते हैं ।
वे हमेशा चर्चाओं में
बने रहना चाहते हैं।
वे इसी चाहत के वशीभूत होकर
जीवन भर भटकते रहते हैं।
आखिरकार थक-हारकर
शीशे की तरह
चकनाचूर होते जाते हैं।

१२/०१/२०१७.
Dec 2024 · 49
द्वंद्व
Joginder Singh Dec 2024
न्याय प्रसाद
और
अन्याय प्रसाद
के बीच जारी है द्वंद्व ।

न्याय प्रसाद
सबका भला चाहता है ,
वह सत्य का बनना  
चाहता है पैरोकार ,
ताकि मिटे जीवन में से
अत्याचार , अनाचार, दुराचार।

अन्याय प्रसाद
सतत् बढ़ाना चाहता है
जीवन के हरेक क्षेत्र में
अपना रसूख और असर।
वह साम ,दाम ,दंड , भेद के बलबूते
अपना दबदबा रखना चाहता है क़ायम ।

इधर न्यायालय में
न्याय प्रसाद
अन्याय प्रसाद से पूरी ताकत से
लड़ रहा है ,
उधर जीवन में
अन्याय प्रसाद
न्याय प्रसाद का विरोध
डटकर कर रहा है।
आम आदमी क्या खास आदमी तक
इन दोनों की
आपसी खींचतान के बीच
पिस रहा है,
घिस घिसकर मर रहा है।
जैसे चलती चक्की में गेहूं के साथ
घुन भी पिस रही हो ।
१२/०१/२०१७.
Dec 2024 · 51
संकल्प
Joginder Singh Dec 2024
नये साल की चार तारीख को
खुल गई ‌नींद ठीक ‌भोर के चार बजे।
निश्चय किया अब मैं पुनः सोऊंगा नहीं !
अधिक देर सोया रहकर, अपने भविष्य को धोऊंगा नहीं !!
  ०४/०१/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
नफ़रत
हसरत की जगह
ले.......ले ,
भला यह कभी
हो सकता है ?
बगैर होंसले
कोई जी सकता है !

अतः
नफ़रत से बच !
यह झूठ को बढ़ावा दे रही है !!
झूठे को बलवान बनाना चाहती है !!!
.... और
सच को करना
चाहती है भस्म ।
नफ़रत
मारधाड़, हिंसा को बढ़ावा देती है।
यह मन की शांति छीन लेती है।
यह अच्छे और सच्चे को
भटकाती रहती है!
यह सच में
अच्छे भलों का जीवन
कष्टप्रद बना देती है।
दोस्त मेरे,
तुम इसके भंवरजाल से
जब तक बच सकता है, तब तक बच ।
यह मानव की सुख समृद्धि, संपन्नता और सौहार्द को
नष्ट करने पर तुली हुई है।
दुनिया इसकी वज़ह से
दुःख, दर्द, तकलीफ़, कष्ट, हताशा , निराशा की
दलदल में फंसी हुई है।
इससे बच सकता है तो बच
ताकि तुम्हारी सोच में बचा रहे सच ,
जो बना हुआ है हम सब के रक्षार्थ  एक सुरक्षा कवच।
१६/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
वह इस भरेपूरे संसार में
अपनेपन के अहसास के बावजूद
निपट अकेला है ।
वह ढूंढ रहा है सुख
पर...
उससे लिपटते जा रहें हैं दुःख ,
जिन्हें वह अपना समझता है
वे भी मोड़ लेते हैं
उससे मुख ।

काश ! उसे मिल सके
प्यार की खुशबू
ताकि मिट सके
उसके भीतर व्यापी बदबू ।

वह इस भरेपूरे संसार में
निपट अकेला है ,
क्यों कि दुनिया के इस मेले को
समझता आया एक झमेला है
फलत:
अपने अनुभव को
अब तक
बांट नहीं पाया है
अपने गीत
अकेले गाता आया है।
कोई उसे समझ नहीं पाया है।
शायद वह
अभी तक
स्वयं को भी नहीं समझ पाया है!
बस अकेला रह कर ही
वह जीवन जी पाया है।
वह भटकता रहा है अब तक
कोई उसके भीतर झांक नहीं पाया है!
उसके हृदय द्वार पर दस्तक
नहीं दे पाया है !
उसने खुद को खूब भटकाया है।
अब तो उसे भटकाव भाने लगा है!
इस सब की बाबत सोचता हुआ
वह पल पल रीत रहा है।
हाय! यह जीवन बीत चला है।
  १६/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
यदि
बनना चाहते तुम ,
सिद्ध करना चाहते तुम
पढ़ें लिखों की भीड़ में
स्वयं को प्रबुद्ध
तो रखिए याद
सदैव यह सच ,
यह याद रखना बेहद जरूरी है
कि अंत:करण बना रहे सदैव शुद्ध ।
अन्यथा व्यापा रहेगा भीतर तम ,
और तुम
अंत:तृष्णाओं के मकड़जाल में फंसकर
सिसकते, सिसकियां भरते रहे जाओगे ।
तुम्हारे भीतर समाया मानव
निरंतर दानव बनता हुआ
गुम होता चला जाएगा ,
वह कभी अपनी जड़ों को खोज नहीं पाएगा ।

वह
लापता होने की हद तक
खुद के टूटने की ,
पहचान के रूठने की
प्रतीति होने की बेचैनी व जड़ता से
पैदा होने के दंश झेलने तक
सतत् एक पीड़ा को अपनाते हुए
जीवन की आपाधापी में खोता चला जाएगा।
वह कभी अपनी प्रबुद्धता को प्रकट नहीं कर पाएगा।
फिर वह कैसे अपने से संतुष्ट रह पाएगा?
अतः प्रबुद्ध होने के लिए
अपने भीतर की
यात्रा करने में सक्षम होना
बेहद जरूरी है।
यह कोई मज़बूरी नहीं है ।
०३/१०/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
' मर ना शीघ्र ,
जीवन वन में घूम ।' ,
जीवन , जीव से , यह सब
पल प्रतिपल कहता है ।

जीवात्मा
जीवन से बेख़बर
शनै : शनै :
रीतती रहती है ।
यथाशीघ्र
जीवन स्वप्न
बीत जाता है ।
जीव अपने उद्गम को
कहां लौट पाता है ?
वह स्वप्निलावस्था में खो जाता है।

०३/१०/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
असहिष्णु को
सहिष्णु बनाना
हो सकता है
चुनौतीपूर्ण दुस्साहस !
आप इस बाबत
उड़ा सकते हैं उपहास !
सच यह है , दोस्त !
यह नामुमकिन नहीं ,
बशर्ते आप होना चाहें सही।
आप परिवर्तन को स्वीकारें ,
न कि खुद को
बाहुबली समझें और अंहकारे फिरें ।
मारामारी का दर्प पाल कर ,
मारे मारे फिरें ।
निज के विरोधाभासों से
सदैव रहें घिरे ।
अपने आप से होकर मंत्र मुग्ध !
खोकर अपनी सुध-बुध !
कहीं बन  न जाएं संदिग्ध!

तब आपकी पहचान संदेह के
घेरे में आ जाएगी ।
ज़िंदगी नारकीय हो जाएगी।
परिवर्तन अपरिहार्य है ,
हमें यही स्वीकार्य है।

०९/०४/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
कभी-कभी
चेतना कहती है
वे
हत्यारे
रहे होंगे कभी
फ़िलहाल
रोटियां बांटते हैं,
नौकरियां देते हैं,
क्या
यह सच नहीं ?
फिर
किस मुंह से
उन्हें हत्यारा कहोगे ?
उनके बगैर गुज़ारा
कैसे करोगे ?
कभी कभी
चेतना कहती है ,
'अच्छा रहेगा
अपनी भूख दबा दो
कहीं गहरे रसातल में...!
फिर भले ही
उन्हें भूला दो ,
जिन्हें तुम 'आया मालिक '
कहते हो!
जिनके आगे पीछे
घूम घूमकर
अपनी दुम
हर समय  
हिलाते रहे हो !!
उनके ‌सामने
हर समय नाचते हो !!
वे
हत्यारे
रहे होंगे कभी
फ़िलहाल मालिक हैं
पोतते रहते कालिख हैं
मासूम चेहरों पर ।
उन्हें
हर समय डांट ‌लगा कर ,
उन्हें
जबरन गुलाम बनाकर ,
उनके मन-मस्तिष्क में
असंतोष जगाने का काम करते हैं ।
उन्हें
विद्रोही बनाने पर तुले हैं।

भले ही वे
उन्हें ‌हर पल
डांटते रहते हों
अपनी बेहूदा
आदतों की वज़ह से!
वे भी तुम्हारी तरह
भीतर तक शांत रहते हैं
पर हर बार डांट डपट
सहने के बावजूद
हर पल
हंसते मुस्कुराते रहते हैं !
अपनी आदतों की वज़ह से !!
क्या तुम इसे समझते हो ?
कहीं तुम भी तो
उन मालिकों और नौकरों की तरह
किसी तरह से भी कम नहीं ,
सताने और अत्याचार सहने को
अपनी आदतों में
शुमार करने के मामले में  !
क्या तुम भी शामिल हो
चालबाजी ,
हुल्लड़बाजी ,
शब्दों की बाजीगरी ,
चोरी सीनाज़ोरी के खेल में  ?
फिर तो कभी रात कटेगी जेल में!
कभी-कभी चेतना
हम सबको आगाह करती है
पर किसी किसी को
उसकी आवाज़ सुनाई देती है।
०६/०३/२०१८.
Joginder Singh Dec 2024
साथी
चाहता जब सुख
और
बिना हेर फेर
कर देता
अपनी चाहत का
इज़हार।

तब
एक  सकपकाहट
स्वत: भीतर आ जाती,
तोड़ देती
कभी-कभी
आत्मविश्वास तक !
आदमी सोचने लगता तब ,
अंदर भरे हैं ढ़ेरों दुःख ,
रह जाता वह तब चुप।

भीतर
एक डर
बना रहता है,
कहीं साथी
इसे कुछ और न मान लें !
काश ! वह मेरी मनोदशा जान ले !!
२१/१२/२०१६.
Dec 2024 · 43
परीक्षा
Joginder Singh Dec 2024
सफलता का इंतज़ार
किसी परीक्षा से कम नहीं है।
बड़ी मुश्किल से मुद्दतों इंतज़ार के बाद
सफल कहलाने की घड़ी आती है।
परीक्षा देते देते उम्र बीत जाती है।
०७/१२/२०२४.
Dec 2024 · 53
इंतज़ार
Joginder Singh Dec 2024
करने दो
उसे इंतज़ार।
इंतज़ार में
समय कट जाता है !
युग तक रीत जाता है!!
२१/१२/२०१६.
Dec 2024 · 50
झूमना
Joginder Singh Dec 2024
संवाद
अंतर्मन से
जब हुआ ,
समस्त
विवाद भूल गया !
सचमुच !
मैं झूम उठा !!

२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
मुस्कराते चेहरे पर
रह रह कर
टिक जाती है नज़र
पर
चेहरे के 'चेहरे' पर
जब सचमुच पड़ती नज़र,
तब हक़ीक़तन
उड़ती चेहरे की मुस्कान!
खोने लगती पहचान !!
मुख पर परेशानी की
लकीरें दिखने लगतीं ।
खूबसूरती बदसूरती में
बदलती है जाती ।
यह मन मस्तिष्क को
बदस्तूर बेंधने लगती।
पल प्रतिपल
ऐसी मनोदशा में
नींद में सेंध लगने लगती !
रातें बेचैनी भरी जाग कर कटतीं!!
दिन में रह रह कर नींद आने लगती!!!
काम करने की कुशलता भी है घटती जाती।
२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में होती नहीं
जब कोई बनावट ।
मन मस्तिष्क में भी
जब तब सफल होने की ,
होने लगती है आहट ।

ऐसे में
चेहरे की बढ़ जाती है रौनक ,
होठों पर आन विराजती
रह रह कर मुस्कुराहट !
जो लेती हर , हरेक थकावट !!
२१/१२/२०१६.
Dec 2024 · 47
संभावना
Joginder Singh Dec 2024
यदि
कोई बूढ़ा
बच्चा बना सा
पढ़ता मिले कभी
तुम्हें
कोई चित्र कथा !
तब तुम
उसे बूढ़े बच्चे पर
फब्तियां
बिल्कुल न कसना ।
उसे
अपने विगत के  
अनुभवों की कसौटी पर
परखना।
संभव है कि वह
अपने अनुभव और अनुभूतियों को
बच्चों को सौंपने के निमित्त
रचना चाहता हो
नवयुग की संवेदना को
अपने भीतर  सहेजे हुए
कोई अनूठी
परी कथा।
बल्कि तुम
उसकी हलचलों के भीतर से
स्वयं को गुजारने की
कोशिश करना ।
संभव है कि तुम
उसे बूढ़े बच्चे से
अभिप्रेरित होकर
चलने लगो
अपनी मित्र मंडली के संग
सकारात्मकता से
ओतप्रोत
जीवन के पथ पर ।


यदि
कोई बालक
हाथ में पकड़े हुए हो
अपने समस्त बालपन के साथ
कोई वयस्कों वाली किताब !
तब तुम मत हो जाना
शोक मग्न!
मत रह जाना भौंचक्का !!
कि तुम्हें उस मुद्रा में देखकर लगे
उसे अबोध को धक्का !!
संभव है-
वह
बूढ़े दादा तक
घर के कोने में
पटकी हुई एक तिरस्कृत
संदूकची में
युवा  काल की स्मृति को
ताज़ा करने वाली
एक प्रतीक चिन्ह सरीखी निशानी को ,
धूल धूसरित
कोई अनोखी किताब
दिखाने ले जा रहा हो।

और...
हो सकता है
वे,दादा और पोता
अपनी अपनी अपनी उम्र को भूलकर
हो जाएं
हंसते हुए खड़े
और देकर
एक दूसरे के हाथ में
अपने हाथ
चल पड़े साथ-साथ
करने
समय का स्वागत ,
जो सदैव हमारे साथ-साथ
चल रहा है निरंतर ,
हमें नित्य ,नए अनुभव और अनुभूतियां
देता हुआ सा ,
हमारे भीतर चुपचाप स्मृतियां बन कर
समाता हुआ ,
हमें  प्रौढ़ बनाता हुआ ।
हमें निरंतर समझदार बनाता हुआ।

०५/११/१९९६.
Joginder Singh Dec 2024
मैं :  हे ईश्वर !
       तुम साम्यवादी हो क्या ?

ईश्वर : हाँ ,  बिल्कुल ।
        मेरे यहाँ से
        व्यक्ति
        इस धरा पर
        समानता और स्वतंत्रता के
        अधिकार सहित आता है ।
  मैं :   फिर क्यों वह गैर बराबरी और
          शोषण का शिकार बन जाता है ?
  ईश्वर :...पर ज़माने की हवा खाकर कोई कोई
          व्यक्ति साधन सम्पन्न बनकर
         पूंजीवादी मानसिकता का बन जाता है।
         वह पहले पहल अपने हमसायों से ख़ूब मेहनत
         करवाता है।
         ‌फिर उन्हें बेच खाता है,
   ‌      शोषण का शिकार बनाता है।
   मैं: आप इस बाबत क्या सोचते हैं ?
   ईश्वर : सोचना ‌क्या ?
          आज का आदमी हर समय धन कमाने की सोच
  ‌         रखता है।
           वह उन्हें गुलाम बना कर रखता है ।
           उनके कमज़ोर पड़ने पर
            वह उन्हें हड़प कर जाता है । तुम्हारा इस बारे में
            क्या सोचना है ?
    मैं :  .......!
    ईश्वर : सच कहूं, बेटा!
‌‌          मेरा जी भर आता है और मुझे लगता है कि
            ईश्वर कहाँ?...वह तो मर चुका है । ईश्वर को तो
           आदमी के अहंकार ने मार दिया है।
    मैं: ......!!
     मैं ईश्वर के इस कथन के समर्थन में सिर हिला देता हूँ।
     पर कहता कुछ नहीं, उन्होंने मुझे निरुत्तर जो कर दिया
      है ।
Joginder Singh Dec 2024
सच
करता नहीं
आघात
कभी भी
किसी की अस्मिता पर।
वह तो प्रदाता है अद्भुत साहस का
कि जिससे मिले मतवातर
जीवन में उड़ान भरने का हौंसला।
सच तो अंतर्मन में
झांक झांक कर
करता रहता
सदैव सचेत
और आगाह...!
बने न रहो जीवन में
देर तक बेपरवाह
काल नदी का प्रवाह
तुम्हारी ओर
सरपट भागा चला आ रहा है,
वह सर्वस्व तक को
बहा ले जाने में सक्षम है
अतः खुद को श्रम में तल्लीन कर
अपने अस्तित्व को संभाल जाओ।

यही नहीं आगे
जीवन पथ पर
दुश्वारियों का समंदर
अथाह
कर रहा है
तुम्हारा इंतजार।

सुनो,संभल जाओ आज ,
नव जीवन का करना है आगाज़।

अपने भीतर की
थाह
पाने के लिए
करो
तुम सतत
चिंतन मनन,
सोच विचार।

ताकि
हो सकें तुम्हें
अपने स्वरूप के
दर्शन।

...और
कर सको तुम
इस जीवन को
शुचिता से सम्पन्न।

...और
निर्मित किया जा सके
एक ठोस जीवनाधार
करने जीवन का परिष्कार
जिससे अर्जित कर सको
जीवन में यश अपार।

०७/१२/२०२४.
Dec 2024 · 88
The Dignity of Life
Joginder Singh Dec 2024
The canvas of the Life is very vast.
Here slow and fast simultaneously exists.
Keep faith in the purity and the
dignity of Life,so that we all can become a part of its comfort zone.

Life itself is a complete package in itself full of uncertainties,ups and downs, complexities, opportunities.

It requires our sincere efforts to make life easy and full of happiness.
We must keep ourselves disciplined for the sake of its improvisation.
Satisfaction and contentment is very essential for the upliftment of body and peace of mind in life.
Dec 2024 · 64
जंगल
Joginder Singh Dec 2024
जंगल में मंगल अमंगल
परस्पर एक दूसरे से
गुत्थमगुत्था हुए
करते रहते हैं अठखेलियां।

वहां कैक्टस सरीखी वनस्पति भी है,
तो बांस जैसी लंबी घास भी,
विविधता से भरपूर वृक्ष, झाड़ झंखाड भी।
इन जंगलों में पाप पुण्य से इतर
जीव जगत के मध्य चलता रहता है संघर्ष।
जैसे अचानक कहीं फूल खिल जाए ,
और अप्रत्याशित रूप से
कोई जीवन बुझ जाए ,
यहां हवा के चलने  से
सूखे और मुरझाए पत्ते
मतवातर गिरते जाएं
और वह पगडंडियों को
धीरे-धीरे लें ढक।


अब शहर जंगल सा हो गया है ,
जहां जीवन तेजी से रहा है भाग
सब एक आपाधापी में खोए हैं ।
इसी शहर में कभी-कभी
कोई विरला व्यक्ति
बहुत धीमी गति से
चलता दिखाई देता है ।
मुझे वह आदमी
जंगल का रखवाला सा प्रतीत होता है।

कभी-कभी इस जंगल में
कोई बालक धीरे-धीरे
अपने ही अंदाज से चलता दिखाई देता है,
कभी धीरे, कभी तेज़,कभी रुक गया,कभी भाग गया।
उसे देख मन में आता है ख़्याल
कि क्या कभी यह  नन्हा सा फूल
इस शहरी जंगल की आपाधापी के बीच
ढंग से खेल पाएगा ,या असमय
नन्हे कंधों पर महत्वाकांक्षा की गठरी लादे जाने से
किसी पत्ते जैसा होकर नीचे तो नहीं गिर जाएगा?
वह किसी बेपरवाह के पैरों के नीचे तो नहीं दब जाएगा ?


जंगल अब शहर में गमलों तक गया है सिमट।
जैसे अच्छी खासी जिंदगी
जो कभी जंगल की खुली हवा में पली-बढ़ी थी।
गांव से शहर आने के बाद  
दफ्तर और घर तक तक सीमित होकर रह जाए।
वह वहीं घुट घुट कर एक दिन जगत से निपट जाए।

अच्छा रहेगा ,  दोस्त !
अपने भीतर के कपाट खोले जाएं ।
स्मृति के झरोखों को खोल कर
अपना विस्मृत हुआ जंगल, जानवर और पंछी
फिर से अपने आसपास खोजें जाएं ।

प्राकृतिक जंगल में
जहां
सब कुछ बंधन मुक्त रूप से  
होता है घटित ,
वहीं
शहरी जंगल में
सब कुछ बंधा बंधा सा,
सब कुछ घुटा घुटा सा
होता है घटित।

कमबख्त आदमी
कभी भी
शहरी जंगल में
सुखी नहीं रह पाता है ,
और  कभी सुख का सांस नहीं ले पाता है,
वह तो असमय
एक मुरझाया फूल बनकर रह जाता है
जो हर समय
अपनी बचपन के जंगलों के
ख्वाब लेता रहता है।
०६/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਇਹ ਖੋਹ ਲੈਂਦੀ
ਬੰਦੇ ਤੋਂ ਖ਼ਵਾਬ ਤੇ ਸ਼ਬਾਬ
ਪਰੰਤੂ
ਬੰਦਾ ਇਸ ਸੱਚ ਨੂੰ
ਸਮਝਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ।
ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਹਮੇਸ਼ਾ ਮੰਨਦਾ ਸਹੀ।
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਬੰਦਾ ਸੋਚੇ ਮੈਂ ਇਸ ਨੂੰ ਪੀ ਰਿਹਾ ਹਾਂ।
ਖ਼ਬਰੇ ਸ਼ਰਾਬ ਸੋਚਦੀ ਹੋਵੇ ,
ਮੈਂ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪੀ ਰਹੀ ਹਾਂ।
Dec 2024 · 78
ਇਸ਼ਕ
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਕੂਕ
ਜਦੋਂ ਦਿਲੋਂ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ
ਤਾਂ ਲੰਬੀਆਂ ਪੈੜਾਂ ਵੀ
ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਘੱਟ ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਪਿਆਰ ਭਰੀ ਖੁਸ਼ਬੂ
ਸੰਮੋਹਣ ਬਣ ਕੇ
ਫੈਲਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਛੁਪੇ
ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਵਿੱਚ
ਰਵਾਨਗੀ ਤੇ ਠੰਡਕ
ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ
ਅਸਮਾਨ ਵਿੱਚ
ਰੰਗ ਬਿਰੰਗੀਆਂ
ਹਸਰਤਾਂ ਤੇ ਤਾਂਘਾਂ
ਇੰਦਰਧਨੁਸ਼ ਬਣ ਕੇ
ਛਾ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀਆਂ
ਤਲਖੀਆਂ ਖ਼ਤਮ
ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
Dec 2024 · 57
ਮੜ੍ਹਕ
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਹੋਵੇ
ਤਾਂ ਅਣਖ ਨਾਲ ‌‌!
ਬੰਦਾ ਜੀਵੇ
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ !!

ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ,
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ ਜੀਇਆ ਕਰੋ ।
ਕਿਵੇਂ ਨਾ ਮਿਲੂ ਸੁਕੂਨ ?
Joginder Singh Dec 2024
I am a 🤡 clown
blessed with a handsome son.
But
I feel ashamed
when he expressed his unhappiness while pointing to my goatee beard.

He feels insulted
among his friends
that his papa looks like a thinner personality
made of single bone very less flesh.

And
when I tried myself to imagine as a fatty father
looks like a 🏈 football
running across a playground
Just wandering here and there
with a speed , wasting no time.

And when I assessed myself as a father in my son's eyes ,
I can understand,
I found myself standing nowhere,
neither near nor far.

Is this fair or unfair judgement
from the 👀 of a father who stands nowhere in life except smiles 😊😁😊!
Joginder Singh Dec 2024
Eyes are watching constantly our human activities.
Too much  workload on them can make us blind.
That' s why we must keep control on our self to spend excessive amount of time to view the 📺,T.V., 🖥️ computer, 📱 mobile phone etc., is harmful.

For such reasons
all of us must keep our eyes
neat and clean.
Preferably we must reduce our screen time for the healthy eyes.

Eyes works as a gateway to the World as well as Universe.
Too much usage of eyes can bring a curse and damage to human lives .

Protect  your eyes first.
They also works as the windows of the life.

Eyes are very sensitive towards light.
They have abilities to adjust the amount of light  present in our surroundings.
But they have limitations, we must try ourselves to know about these limitations.
Light plays a very important role in our lives.
It is essential for our eye sight.

Loss of light makes life miserable. In this regard sound sleep and rest must  be preferable to us.
Dec 2024 · 200
Caring
Joginder Singh Dec 2024
To live life
among under privileged persons for caring them needs a sense of dedication in the depths of mind ,
is very rare these days.

It inspires to all of us
to control our nerves
in hard times of life.

So, take care of them,
to maintain  rhythm of life in them .
Don't restrained yourself to take care and helpful for neglected , helpless persons in our lives.

If we are successful in our lives, we have achieved a special purpose in our minds to keep intact our unmatchable smiles during the journey of life.

Caring is blessings of God for all,
big or small.
Joginder Singh Dec 2024
जो कभी सोचा न था।
वो ही क्यों हो जाता है घटित?
आदमी ऐसे में क्या करे?
खुशी का इज़हार करे,
या फिर भीतर तनाव भरे ?
जो कभी सोचा भी न था,
वो भी मेरे पास मौजूद था।
फिर  भी  मैं  उदास  था ,
दिल का करार नदारद था।
आदमी मैं होशियार न था।
जीवन में बच्चा बना
खेल खेलता रहा।
खिलौने बटोरता रहा।
रूठ कर इन्हें तोड़ता रहा ।
कुछ खो जाने की कसक से
मतवातर रोता ही रहा।
साथ साथ सोचता भी रहा।
जो कभी सोचा न था।
वो सब मेरे साथ घटा।
मैं टुकड़ों में बंटता रहा।
ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ?
ऐसा सब के साथ क्यों ,
होता रहा है हर पल पल !
पास के आदमी दूर लगें!
दूर के आदमी एकदम पास!
जो कभी सोचा न था।
वो जीवन में घटता है।
यह आगे ही आगे बढ़ता है।
कभी न रुकने के लिए!
जी भर कर जीने के लिए!!
अब सब यहां
महत्वाकांक्षा लिए
भटक रहें हैं,
सुख को तरस रहे हैं।
जीवन बढ़ रहा है
अपनी गति से।
कोई विरला यहां काम
करता सहज मति से।
यही जीवन का बंधन है।
इससे छूटे नहीं कि लगे ,
सुन रहा कोई अनाम यहां
क्रंदन ही क्रंदन की कर्कश
ध्वनियां प्रतिध्वनियां पल ,पल।
कर रहीं बेचैन पल प्रति पल स्व को।
फिर भी जीवन बदल रहा है  प्रति पल ,
अपने रंग ढंग क्षण श्रण ,
धूप और छाया के संग खेल,खेल कर
यह क्षणिक व प्यार भरा जीवन
एक अनोखा बंधन ही तो है।
२८/१०/२००७.
Joginder Singh Dec 2024
यदि तुम अंतर्मुखी हो
और अपने बारे में कुछ कहना नहीं चाहते
तो इससे अच्छी बात क्या होगी ?
'दुनिया  तुम्हें  जानने  के  लिए  उतावली  है । '
इस संदर्भ में ऊपर लिखित पंक्ति कोरा झूठ ही होगी।
इसे तुम अच्छी तरह से जानते हो;
बल्कि
इस सच को
भली भांति पहचानते हो , मेरे अंतर्मुखी दोस्त !


यदि तुम बहिर्मुखी हो
और अपने बारे में सब कुछ,
सच और झूठ सहित, कहने को उतावले हो
तो इससे बुरी बात क्या होगी?
'आदमी नंगेपन की सभी सीमाएं लांघ जाए ।'
दुनिया इसे भीतर से कभी स्वीकारेगी नहीं ;
भले ही ,वह
तुम्हारे सामने
खुलेपन का इज़हार करे,
इसे तुम अच्छी तरह से जानते हो ,
बल्कि इसे भली भांति
दृढ़ता से मानते हो , मेरे बहिर्मुखी दोस्त !
आज हम सब
एक अनिश्चित समय में
स्वयं की
धारणाओं के मिथ्यात्व से
रहे हैं जूझ,
और निज के विचारों को
समय की कसौटी पर कस कर
आगे बढ़ने के वास्ते
ढूंढते हैं नित्य नवीन रास्ते ।
हम करते रहते हैं
अपनी पथ पर आगे बढ़ते हुए ,
निरंतर संशोधन !
अच्छा रहेगा/  हम सभी / स्वयं को / संतुलित करें ;
अन्तर्मुखता और बहिर्मुखता के
गुणों और अवगुणों को तटस्थता से समझें और गुने ।
अपनी खूबियों पर
अटल रहते हुए,
अपनी कमियों को
धीरे-धीरे त्यागते हुए ,
पर्दे में अपने स्वाभिमान को रखकर ,
निज को हालातों के अनुरूप ढालकर ,
नूतन जीवन शैली और जीवनचर्या का वरण करें ,
न कि जीवन में क़दम क़दम पर
भीड़ का हिस्सा बनाकर उसकी नकल करें।
क्यों न हम सब अपनी मौलिकता से जुड़ें !
जीवन को  सुख ,संपन्नता , सौंदर्य से जोड़कर आगे बढ़ें ।८/१०/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
परम
एक अनूठा जादूगर है
वह जीवन में
अपने जादू से कण कण को जगा रहा !
क्षण क्षण
सबको आगे बढ़ा रहा !
वह जीवन का जादू
सब के अंतर्घट में जगा रहा है।
इस धरा पर
जन्म और मरण के रंग
बिखेर रहा है।

वह
जीवन का जादूगर
कहता है सबसे
अपने अपने जीवन में
तन मन से
स्वयं को एकाग्रचित कर
मेरे धूप छाईं रंग देखते रहो ।
जीवन  पथ पर अग्रसर बने रहो।

जीवन का अनूठा जादूगर
रखता है यह आस सबसे।
सब ऐसे काम करें
कि जीवन सम्मोहित करता सा लगे ,
इस जीवन में
कोई भी
डरता हुआ न लगे ,
सब जीवन संग्राम में बहादुरी से लड़ें,आगे बढ़े ।


जीवन का यह अनूठा जादूगर
अपने अनूठे अंदाज से
सृष्टि की दिव्य दृष्टि का
स्नेहिल गीत
समय के साथ गाता रहे !
जीव का जीवन सत्य से नाता जुड़ा रहे!!

कायनात का सृजन हार
इस धरा को
अपने जादू से
सभी को
अचंभित करता रहे ,
वह जीवन बगिया को
अपनी उपस्थिति से महकाता रहे ।
जीवन से अखंड प्यार करने का पाठ
अनूठा जादूगर सभी को सतत् पढ़ाता रहे।
वह अपने अनुकंपा से
स्नेह के सम्मोहक पुष्प सब पर बिखेरता रहे।

२८/१०/२००७.
Dec 2024 · 102
Be Original in Life.
Joginder Singh Dec 2024
Connecting to original
makes us too some extent original
as our origin speaks itself.
If you are an introvert soul and keen not to express your self to others.
It is quite good signs for the upliftment of peace and happiness of life, which exists inside only.
The worldly activities are eagerly waiting your participation.

And, more or less you are an extrovert
soul as your day to day activities of daily life speaks.

If you are eager to express your curiosity regarding outer world and it's tendencies.
It is useful and fruitful also.  
Your opinions regarding 'eat,drink and be marry,' can be heard from your  actions for worldly pleasures.
We need  your advice as you proved wisely  while spending your time to attain materialistic goals in life.


We are living in a world of uncertainties.
For  a peaceful, successful journey of life, let's modify our life style .
We  should maintain a balance between our desires, dreams and urgently required needs.
So that we should be able to feed our hungry soul,which is utmost important for the elevation as well as the upliftment of body,mind and soul.

So  you must try yourself to become  a good person in present life.
And connect your futuristic dreams to originality of the life.
Joginder Singh Dec 2024
देह से नेह है मुझे
यह चाहे गाना अब  देह का राग
भीतर भर भर कर  
संवेदना
करना चाहे यह संस्पर्श अनुभूतियों के
समंदर का ।
हाल बताना चाहे मन के अंदर उठी
लहरों का ।
यह सच है कि
इससे
नेह है मुझे
पर मैं इसे स्वस्थ
नहीं रख पाया हूँ।
जिंदगी में भटकता आया हूँ।

जब यह
अपनी पीड़ा
नहीं सह पाती है तो बीमार
हो जाती है ,
तब मेरे भीतर चिंता
और उदासी भर जाती है।

इससे पहले कि
यह लाइलाज़ और
पूर्ण रूपेण से हो
रुग्ण
मुझे हर संभावित करना चाहिए
इसे स्वस्थ रखने के प्रयास।
पूरी तरह से
इसके साथ रचाना चाहिए
संवाद।
इससे खुलकर करनी चाहिए
बात।
इसकी देह में भरना चाहिए
आकर्षण।
आलस्य त्याग कर
नियमित रूप से
करना चाहिए
व्यायाम।
ताकि यह अकाल मृत्यु से
सके बच।
यह खोज सके
देहाकर्षण के आयाम।
दे सके अशांत, आक्रांत,
आत्म को भीतर तक ,
गहरे शांत करने
के निमित्त
दीर्घ चुम्बन!
हों सकें समाप्त
इसके भीतर की सुप्त
इच्छाओं से निर्मित
रह रह कर होने वाले
कम्पन
और निखर सके तनाव रहित होकर
देह के भीतर के वासी का मन।

देह की राग गाने की इच्छा की
पूर्ति भी हो जाए,
इसके साथ साथ
भीतर इसके उमंग तरंग भर जाए ।

आज ज़रूरी है
यह
तन और मन की जुगलबंदी से
राग,ताल, लय के संग
जीवन के राग गाए,
ज़रा सा भी न झिझके
अपना अंतर्मन खोल खोल भीतर इकठ्ठा हुआ
सारा तनाव बहा दे ।
करे यह दिल से
नर्तन!
छूम छन छन...छिन्न...छन्ना छन ...छ।...न...!!

देह से नेह है मुझे
पर...मैं...
इसे मुक्त नहीं कर पाया हूँ ।
इससे मुक्त नहीं हो पाया हूँ।
शायद
देह का राग
मुझ में
भर दे विराग ,
जगा दे
दिलोदिमाग को
रोशन करता हुआ
कोई चिराग़।
और इस की रोशनी में
देह अपने समस्त नेह के साथ
गा सके देह का सम्मोहक
तन और मन के भीतर से प्रतिध्वनित
रागिनी के मनमोहक रंग ढंग से
सज्जित
मनोरम राग
और जो मिटाए
देह के समस्त विषाद ।
कर सके तन और मन से संवाद।

१७/०१/२००६.
Dec 2024 · 57
बचाव
Joginder Singh Dec 2024
अवैध संबंध
लत बनकर
जीव को करते हैं
अकाल मृत्यु के लिए बाध्य।

जीव
इसे भली भांति जानता है ,
फिर भी
वह खुद को इन संबंधों के
मकड़जाल में उलझाता है।
असमय
यमदेव को करता है
आमंत्रित।

मरने के बाद
वह माटी होकर भी
शेष जीवन तक ,
मुक्ति होने तक
प्रेत योनि में जाकर
अपनी आत्मा को
भटकाता रहता है।
वह नारकीय
जीवन के लिए
फिर से हो प्रस्तुत!
जन्मने को हो उद्यत!

अवैध संबंध
भले ही पहले पहल
मन के अंदर
भरें आकर्षण।
पर अंततः
इनसे आदमी
मरें असमय,
प्राकृतिक मौत से
कहीं पहले
अकाल मृत्यु का
बनकर शिकार ।
क्यों न वे
अपने भीतर
समय रहते
अपना बचाव करें।

आओ,
हम अवैध संबंध की राह
से बचने का करें प्रयास।
ताकि हम उपहास के
पात्र न बनें।
बल्कि जीवन में
सुख, शांति, संपन्नता की ओर बढ़ें।
क्यों न करें
हम अपना बचाव ?
फिर कैसे नहीं
जीवन नदिया के
मध्य विचरते हुए ,
लहरों से जूझकर
सकुशल पहुंचे,
लक्ष्य और ठौर तक
जीवन की नाव ?
आओ, हम अपना बचाव करें ।
अनचाहे परिणामों और रोगों से
खुद को बचा पाएं ।
संतुलित जीवन जी पाएं ।

१७/०१/२००६.
Joginder Singh Dec 2024
बेशक
कोयल सुरीला कूकती है।
मुझे गाने को उकसाती है।

मैं भी मूर्ख हूं ।
बहकाई में जल्दी आ जाता हूं।
सो कुछ गाता हूं,...
कांव! कांव!! कांव!!!
तारों की छांव में
मैं मैना अंडे ढूंढता हूं।  
कांव! कांव!! कांव !!!
लगाऊं मैं दांव!
कांव!कांव!!  कांव!!!
(घर के) श्रोताओं को
मेरा बेसुरापन अखरता है।
इसे बखूबी समझता हूं।
पर क्या करूं?
आदत से मजबूर हूं।
उनके टोकने पर
सकपका जाता हूं।
कभी कभी यह भी सोचता हूं कि
काश ! मैं कोयल सा कूक पाऊं।
वह कितना अच्छा गाती है।
मन को बड़ा लुभाती है ।
वह कभी कभार
कौए को ,
उस  को खुद के जानने बूझने के बावजूद
मूर्ख बना जाती है।


यह बात नहीं कि
कोयल
कौए की चाहत को
न समझती हो,
पर
यह सच है कि
वसंत ऋतु में
कौवा यदि
कोयल से
गाने की करेगा होड़
तो कोयल के साथ-साथ
दुनिया भी हंसेंगी तो सही ।

वह यदि तानसेन बनना चाहेगा,
तो खिल्ली तो उड़ेगी ही।
कौआ मूर्ख बनेगा सही।

आप मुझे बताना जरूर।
कोयल कौए को बूद्धू बना कर
क्या सोचती होगी?
और
कौआ कैसा महसूसता होगा,
भद्दे तरीके से
पिट जाने के बाद ?
क्या कोयल भी
कभी कहती होगी, 'आया स्वाद।'

बेशक
कोयल सुरीला गाती है।
कभी-कभी कौवे को गाने के लिए उकसाती है।
बेचारा कौवा मान भी जाता है।
ऐसा करके वह मुंह की खाता है।
कौआ इसे खुले मन से स्वीकारता भी है।
कौआ हमेशा छला जाता है।
भले ही गाना गाने की बात हो
या फिर
कौए के द्वारा
अपने घौंसले में
किसी और के अंडे सेने
जैसा काम हो।
भले यह लगे
हमें एक मजाक हो।
है यह कुदरत में घटने वाला
एक स्वाभाविक क्रिया कलाप ही।
हर बार ग़लती करने के बाद
करनी पड़ती अपनी गलती स्वीकार जी।
माननी पड़ती अपनी हार जी।
१६/०७/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
खंडहर होते ख़्वाब
अब कभी कभी मेरे ख्यालों में आकर
मुझे तड़पाने लगे हैं।
मुझे अपने जैसा खंडहर बनाने पर तुले हैं।

खंडहर होते ख़्वाब
देने लगे हैं  
अब
आदमी की अकर्मण्यता को
मुंह तोड़ जवाब!

खंडहर होते ख्वाब
मांगते हैं अब
बीते पलों का हिसाब ,
ज़िन्दगी
अब
लगने लगी है  एक श्राप ।

कभी सोचा है आपने
ख्वाब खंडित क्यों होते हैं?
बिना ख्वाबों के जीने वाले लोग
मुरझाए फूल सरीखे क्यों होते हैं?
जबकि हकीकत यह है कि
ख्वाबों के मुरझाने से पहले
वे तीखे नश्तर होते हैं।
कहीं भीतर तक
असहिष्णु, लड़ने - लड़ाने,
मरने - मारने पर उतारू,
कहीं गहरे तक जूझारू।

ख्वाबगाह
जब तक गुलज़ार रहती है,
हिम्मत हर पल छलकने और भड़कने को
तैयार रहती है,
जैसे ही यौवन ढला,
जिस्म तनिक कमज़ोर हुआ,
हिम्मत ज़वाब दे जाती है।
ख़्वाब की तरह खंडहर होने की
नियति से जूझने को अभिशप्त
हर समय तना रहने वाला आदमी
ज़िंदगी की सांझ में
झुकता चला जाता है ,
वह समाप्त प्रायः हो जाता है।
अपने पुश्तैनी घर की तरह
शांत, अकेला, चुपचाप सा वीरान हो जाता है।
वह करता रहता है इंतज़ार
खंडहर होते ख़्वाब के खंड खंड होकर खंडित होने का,
प्रस्थान वेला आने का।
ज़िंदगी के मेले झमेले के बीत जाने का।
खुद के रीत जाने का।
खुद के गुज़रा हुआ कल होने का।
रीतते  रीतते ,बीतते बीतते,
अतीत बन ,
समय के भीतर खो जाने का अहसास भर होना
खंडहर होते ख़्वाब को जीना नहीं तो क्या है ?
यह सब अपने भीतर घटता महसूस करने से मैं चुप हूं।
०२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
एक कमज़ोर क्षण में बहकर
मैं जिंदगी से बेवफ़ाई कर बैठा!
सो अब पछता रहा हूं।
उस क्षण को वापस बुला रहा हूं,
जिस पल मैं सहजता से
अपनी ग़लती को कर लूं स्वीकार,
ताकि बना रहे जीवन में
अपनापन और अधिकार।

अब अपनी कमज़ोरी पर
विजय हासिल करना चाहता हूं,
रह रह कर भीतर से कराहता हूं
पर अंदर मेरे, मानवीय कमजोरियों की
एक सतत् श्रृंखला चलायमान रहकर
मुझे कर रही है लहूलुहान,
लगता है कि खुद से मतवातर बतियाना कर देगा ,
मेरी तमाम चिन्ताओं, परेशानियों का समाधान।
१३/०६/२०१८.
Joginder Singh Dec 2024
ज़िंदगी
मौत को
देती है मात !
...

क्योंकि जीवन धारा में
मौत है
एक ठहराव भर !!
यहां
पल प्रतिपल
संशयात्मा
अपने भीतर
अंधेरा भर रही है !
जो खुद की
परछाइयों से
सतत् डर रही है !

अब आप ही बताइए
कि कौन मर रहा है ?
मौत का सौदागर
या ज़िंदगी का जादूगर ?

आखिरकार
ज़िंदगी
मौत को मात
दे ही देती है ,
क्योंकि जिंदगी के
क्षण क्षण में
जिजीविषा भरी है
सो यह जीवन धारा के
साथ बहकर आसपास
फैली गन्दगी को भी
बहाकर ले जाती है ।

ज़िंदगी
जब कभी भी
बिखेरती है
मेरे सम्मुख
अपने सम्मोहन के रंग !
रह जाता हूं ,
बाहर भीतर तक
हैरान और दंग !!

ज़िंदगी
परम प्रदत्त
एक सम्मोहक
चेतना है
जो आदमी को
खुदगर्ज़ी के दलदल से
परे धकेलती है,
और यह अविराम चिंतन से
अपने नित्य नूतन
आयामों से परिचित करवा कर
हमारी चेतना को प्रखर करती है।
१२/०६/२०१८.
Joginder Singh Dec 2024
अफवाह
जंगल की आग
सरीखी होती है ,
यह बड़ी तेज़ी से फैलती है
और कर देती है
सर्वस्व
स्वाहा,
तबाह और बर्बाद ।
यह कराती है
दंगा फ़साद।

आज
अफवाह का बाज़ार
गर्म है ,
गली गली, शहर शहर ,
गांव गांव
और देश प्रदेश तक
जंगल की आग बनकर
सब कुछ झुलसा रही है ।
अफवाह एक आंधी बनकर
चेतना पर छाती जा रही है ,
यह सब को झुलसा रही है।


इसमें फंसकर रह गया है
विकास और प्रगति का चक्र।
इसके कारण चल रहा है एक दुष्चक्र ,
देश दुनिया में अराजकता फैलाने का।


लोग बंद हुए पड़े हैं
घरों में ,
उनके मनों में सन्नाटा छाया है।
उन्होंने खुद पर
एक अघोषित कर्फ्यू लगाया हुआ है।
सभी का सुख-चैन कहीं खो गया है ।
यहां
हर कोई सहमा हुआ सा  है ।
हर किसी का भीतर बाहर ,तमतमाया हुआ सा है ।
अब हवाएं भी करने लगी हैं सवाल ...
यहां हुआ क्यों बवाल ? यहां हुआ क्यों बवाल ?
छोटों से लेकर बड़ों तक का
हुआ बुरा हाल ! !  हुआ बुरा हाल ! !
आज हर कोई घबराया हुआ क्यों है ?
क्या सबकी चेतना गई है सो ?
हर कोई यहां खोया हुआ  है क्यों ?

यहां चारों ओर
अफ़वाहों का हुआ बाज़ार गर्म है ।
इनकी वज़ह से
नफ़रत का धुआं
आदमी के मनों में भरता जा रहा है ।
यह हर किसी में घुटन भरता जा रहा है ।
इसके घेरे में हर कोई बड़ी तेज़ी से आ रहा है।
इस दमघोटू माहौल में हर कोई घबरा रहा है ।

पता नहीं क्यों ?
कौन ?
कहां कहां से?
कोई
मतवातर
अफ़वाहों के बूते
अविश्वास , आशंका, असहजता के
काले बादल फैलाता जा रहा है ।
सच यह है कि
आत्मीयता और आत्मविश्वास
मिट्टी में मिलते जा रहे हैं ।

आज अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है।
कहां लुप्त हुए अब
मानव की सहृदयता और मर्म हैं ?
न बचे कहीं भी अब ,शर्म ,हया और धर्म हैं ।
०२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
While seeing an image of Umangoat river
I was astonished!
The river seems me
looks like exactly a mirror passing through
the mesmerizing world of underwater.
Very very clean !!
and crystal clear water !!
It can remind you about the purity of Life,dear.
I am very eager to visit there!
Dec 2024 · 91
Days of Buffer Zone
Joginder Singh Dec 2024
For peace and prosperity establish buffer zones.
But during the period of deep crisis, buffer zones become the areas of trouble.
In such moments, I caught myself in a trap of disturbance.
I need complete silence to recover my losses .
I want for myself to create a buffer zone for self security and privacy.
Dec 2024 · 56
When Life Says
Joginder Singh Dec 2024
Friend concentrate yourself
when Life wants to say you something unique,
while addressing you.

Hold your breath dear !
Nowadays days you are facing a fear of pollution, which is spreading its adversities arround you.

Forget about regret regarding this .
You have no control over it.

You are merely a victim of merciless world,which is dancing arround you.

Observe yourself and your hectic activities,which resulted in destructive reactions in your consciousness.
Think a bit today who is active and responsible for destruction.
Think about reconstruction of life with a presence of common sense in the mind.
Life expresses his own felt truths to motivate all, despite big or small from time to time.

Life demands from us to think and check the reconditioning of mind in the constantly changing circumstances of life.
Joginder Singh Dec 2024
हाल
न पूछो ,
हालात की
बाबत सोचो ।

धमकी दी नहीं ,
धमाका हुआ बस समझो ।
अब हालात हुए
वश से बाहर।
चुपचाप न रहो ,
हाथ पर हाथ रख कर
न बैठे रहो।
अब और अन्याय न सहो।
कुछ करो , कुछ तो करो ।
अब दंगाइयों पर
सख़्त कार्रवाई करो।

न करो चौकन्ना
घर में रह  रहे  
भीतरघात कर रहे  
आंतरिक शत्रुओं को
अब सबक सिखाना चाहिए।
उन पर अंकुश लगना चाहिए।

हर कार्रवाई के बाद
नेतृत्व को
मौन धारण करना चाहिए,
हालात सुधरने तक।

धमकी  न  दो ,
धमाके सुना दो ।
हो सके तो बग़ैर डरे ,
उन्हें गहरी नींद सुला दो ।
उन्हें मिट्टी में मिला दो ।
अब सही समय है कि
जीवन की खिड़की से
तमाम पर्दें हटा दिए जाएं ।
अपने तमाम मतभेद भूला दिए जाएं ।

अपने और गैरों के बीच से
सभी पर्दों को हटा दिया जाए ।
गफलतों और गलतफहमियों को
जड़ से ख़त्म कर दिया जाए ।
जीवन में पारदर्शिता लाई जाए ।
  २६/०२/२०१७.
Joginder Singh Dec 2024
मौनी बाबा को याद करते हुए ,
जीवन धारा के साथ बहते हुए ,
जब कभी किसी वृक्ष को कटते देखता हूं,
तब मुझे आता है यह विचार कि
ये मौनी बाबा सरीखे
तपस्वी होते हैं।
सारी उम्र
वे
धैर्य टूटने की हद तक
सदैव खड़े होकर
श्वास परश्वास की क्रिया को
दोहराते हुए
अपनी जीवन यात्रा को पूरा करते हैं !
मौन का संगीत रचते हैं !!


आओ हम उनकी देख रेख करें,
उनकी सेवा सुश्रुषा करते रहें ।

आओ,
हम उनकी आयु बढ़ाने के प्रयास करें ,
न कि उन्हें
अकारण धरा पर
बिछाने का दुस्साहस करें।

यदि वे
सतत चिंतनरत से
धरा पर रहते हैं खड़े
तो वे न केवल
आकाश रखेंगे साफ़,
हवा , बादल , वर्षा को भी
करते रहेंगे
आमंत्रित ।

बल्कि
वे हमारे प्राण रक्षक बनकर
हमारी श्रीवृद्धि में भी बनेंगे
सहायक।

ऐसे दानिश्वर से
कब तक हम छल कपट करते रहेंगे ?
यदि हम ऐसा करेंगे
तो यकीनन जीवन को
और ज्यादा नारकीय करेंगे।
व्यक्तिगत स्तर पर
'डा.फास्टस' की मौत को करेंगे।

पेड़
ऋषिकेश वाले
मौनी बाबा की याद
दिलाते हैं।
वे प्रति दानी होकर
साधारण जीवों से
कहीं आगे बढ़ जाते हैं,
यश की पताका फहरा पाते हैं।

मानव रूप में
मौनी बाबा
अख़बार पढ़ते देखें जाते हैं
पर शांत तपस्वी से पेड़
खड़े खड़े जीवन की ख़बर बन जाते हैं ,
पर कोई विरला ही
उनका मौन पाता है पढ़।
उनसे प्रेरणा प्राप्त करते हुए
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का
जुटा पाता है साहस !
कर पाता है सात्विक प्रयास !!
  ०८/१०/२००७.
Dec 2024 · 47
सिमटना
Joginder Singh Dec 2024
'शब्द जाल '
बहुत बार
साहित्य के समंदर में
तुमने फैंके हैं , मछुआरे !

कभी कविता के रूप में ,
तो कभी कथा के रंग में ,
निज की कुंठाओं को ढाल ।

अब तू न ही बुन
कोई मिथ्या शब्द जाल ,
इससे नहीं होगा कमाल
बल्कि तू जितना डर कर भागेगा ,
उतना ही अंतर्घट का वासी
तुम्हारा दोस्त तुम्हें डांटेगा ।

अब
अच्छा रहेगा
तुम स्वयं से
संवाद स्थापित करो ।
यह नहीं कि हर पल
उल्टा सीधा , आड़ी तिरछी
लकीरों वाला
कोई शब्द चित्र
जनता जनार्दन के
सम्मुख प्रस्तुत करो ।

तुम समझ लो कि
जन अब इतना बुद्धू भी नहीं रहा कि
तुम्हारे ख्याली पुलावों को
न समझता हो ,
और वह न ही  
शब्दजाल के झांसे में
आनेवाली
कोई मछ्ली है।'
ऐसा मुझसे चेतना ने कहा
और यह सुनकर
मैं चुप की नींद सो गया।
अपने को जागृत
रखने की दुविधा से ,
लड़ने की कोशिश में ,
मैं एक कछुआ सरीखा होकर
निज के खोल में सिमट कर रह गया था।
निज को सुरक्षित महसूस करना चाहता था।

मैं समय धारा के संग बह गया था।
बहुत कुछ अनकहा सह गया था।

  १४/१०/२००७.
Joginder Singh Dec 2024
सांझ का आगमन
मन के आकाश में हो गया है।
कुछ देर बाद
रात भी आ जाएगी।
जिंदगी आराम करने के लिए सो जाएगी।
जब कभी भी
शाम होती देखता हूं
तो मुझे जिंदगी की शाम
नज़दीक खड़ी होने का होता है अहसास।

पल दो पल के लिए
मैं सिर्फ पछता और छटपटा जाता हूं।

रात होने से पहले
संध्या
दिन के अंत का संकेत देती सी
जब यह उतरती है
दिन की छाती पर ,
तब दिल में
कुछ पीछे छूटने का
होता है अहसास ।
एक हल्का सा दर्द
दिल में उठता है।

मुझे संध्या के झुटपुटे में
अपनी कब्र
दिख पड़ती है,
एक कसक भीतर से उठती है।
अपनी ही सिसकारी की
भीतर से प्रतिध्वनि
सुन पड़ती है।
जो न केवल मेरे भीतर डर भरती है ,
बल्कि यह
अंत की आहट देती सी लगती है ।
  १०/०३/२०११.
Joginder Singh Dec 2024
इन्तज़ार
देर तक करना पड़े
तो ज़िंदगी
लगने लगती पहाड़ !

इन्तज़ार
देर तक करना पड़े
तो ज़िंदगी
करने लगती चीर फाड़!!

सबकी ,
सर्वस्व की!
वर्चस्व की!!
चीरफाड़... ज़िन्दगी  में  हालात देखकर
की जानी चाहिए।
यह तो जिंदादिली से जी जानी चाहिए।
१०/०३/२०११.
Joginder Singh Dec 2024
कैसे कहूं तुमसे ? , दोस्त!
अब कुछ याद नहीं रहता।
याद दिलाने पर
भीतर
बुढ़ाते जाने का अहसास
सर्प दंश सा होकर
अंतर्मन को छलनी है कर जाता!!


अजब विडंबना है!
निज पर चोट करते
भीतरी कमियों को इंगित करते
कटु कसैले मर्म भेदी शब्द
कभी भुला नहीं पाया।
भले ही यह अहसास
कभी-कभी रुला है जाता।


सोचता हूं ...
स्मृति विस्मृति के संग
जीवन के बियावान जंगल में
भटकते जाना
आदमी की है
एक विडंबना भर ।

आदमी भी क्या करें?
जीवन यात्रा के दौरान
पीछे छूट जाते बचपन के घर ,
वर्तमान के ठिकाने
तो लगते हैं सराय भर !
भले ही हम सब
अपनी सुविधा की खातिर
इन्हें  कहें घर।

२९/१०/२००९.
Joginder Singh Dec 2024
यदि बोलोगे तुम झूठ,
बोलते ही रहोगे झूठ के बाद झूठ,
तुम एक दिन स्वयं को
एक झूठी दुनिया में गिरा पाओगे,
कभी ढंग से भी न पछता पाओगे,
शीघ्रातिशीघ्र
दुनिया से रुखसत कर जाओगे,
तब तुम कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे।
कुछ पाने के लिए
तुम मतवातर बोल रहे झूठ ,
क्यों बना रहे खुद को ही मूर्ख ?

जीवन में इतनी जल्दी
पीनी पड़ेगी ज़हर की घूट।
यह कभी सोचा नहीं था।
मुझ पर  मेरा दोस्त,
दुम कटा  कुत्ता
जो कभी भौंका तक न था,
अब लगता है कि वह भी
आज लगातार भौंक भौंक कर,
कर रहा है आगाह ,
अब और झूठ ना बोल ,
वरना हो जाएगा
इस जहान से  बिस्तर गोल ।
अब वह अपना सच बोलकर
मुझे काटने को रहता है उद्यत।

मुझे याद है
अच्छी तरह से ,
बचपन में एक दफा
झूठ बोलते पकड़े जाने पर
मिला था एक झन्नाटेदार चांटा ।

परंतु मैं बना रहा ढीठ!
और अब तो लगता है
कि मैंने ढीठपने की
लांघ दी हैं सब हदें।


अब मुझे तुम्हारा डांटना,
बार-बार आगाह करना,
नहीं  अखरता है ।
तुम्हारा यह कहा कि
यदि झूठ बोलूंगा,
तो काला कौआ भी भी बार-बार काटने से
करेगा गुरेज,
वह भी पीछे हट जाएगा,
सोचेगा, बार-बार काटूंगा,  
तो इस ढीठ पर होगा नहीं कोई  असर ।
मैं खुद को बेवजह  थकाऊंगा ।

आजकल
हरदम
मौत के क़दमों
की आहट,
मेरा पीछा नहीं छोड़ती।
कर देती है,
मेरी बोलती बंद।

वह घूरती आंखों से
मेरे भीतर बरपा रही है कहर,
मैं लगातार रहा हूं डर,
मेरे भीतर
सहम भर गया है।
जीवन कुछ रुक सा
गया है ।

अब आ रहा है याद
तुम्हारा कहा हुआ ,
" दोस्त,
झूठ बोलने से पहले
आईना देख लिया करो।
क्या पता कभी
आईने में सच देख लो ?
और झूठ से गुरेज कर लो !
झूठ के पीछे भागने से
तौबा कर लो।"

मैं  पछता रहा हूं।
जिंदगी की दौड़ में
पिछड़ता जा रहा हूं,
क्योंकि मेरे चरित्र पर
झूठा होने का ठप्पा लगा है।
सच! मुझे अपने ओछेपन की वज़ह से
जीवन में बड़ा भारी धक्का लगा है।
मेरा भविष्य भी अब हक्का-बक्का सा खड़ा है।
सोचता हूं,
मेरे साथ क्या हुआ है?
कोई भी मेरे साथ नहीं खड़ा है।
२९/०१/२०१५.
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