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Joginder Singh Dec 2024
क़दम क़दम पर
झूठ बोलना
कोई अच्छी बात नहीं !
यह ग़लत को
सही ठहरा सकता नहीं !!
झूठ बोलने के बाद
सच को छिपाने के लिए
एक और झूठ बोल देना ,
नहीं हो सकता कतई सही ।

झूठ
जब पुरज़ोर
असर दिखाता है
तो जीता जागता आदमी तक ,
श्वास परश्वास ले रहा वृक्ष भी
हो जाता एक ठूंठ भर,
संवेदना जाती ठिठक ,
यह लगती  धीरे-धीरे मरने।

आदमी की आदमियत
इसे कभी नहीं पाती भूल
उसे क़दम दर क़दम बढ़ने के
बावजूद चुभने लगते शूल।
शीघ्रातिशीघ्र
घटित हो रहे ,
क्षण क्षण हो रहे , परिवर्तन
भीतर तक को , 
करते रहते ,कमज़ोर।
भीतर का बढ़ता शोर भी
रणभूमि में संघर्षरत
मानव को ,
चटा देते धूल।

दोस्त,
भूल कर भी न बोलो ,
स्व नियंत्रण खोकर
कभी भी  झूठ ,
ताकि कभी
अच्छी खासी ज़िंदगी का
यह हरा भरा वृक्ष
बन न जाए कहीं
असमय अकालग्रस्त होकर ठूंठ!
जीवन का अमृत
कहीं लगने लगे
ज़हर की घूट!!
झूठा दिखने से बच ,
ताकि  जीवन में जिंदादिली बची रहे,
और बचें रहें सब के अपने अपने सच !
२८/०१/२०१५.
Joginder Singh Dec 2024
पुत्र!

तुम्हारा  विकास

मेरे  सम्मुख  है   खास  ,

तुम   कल   तक   थे   बीज  ,

आज   बनने   को   हो   उद्यत  ,

एक   लम्बा   चौड़ा  ,   कद्दावर  ,

छायादार   ,   फलदार   वृक्ष   बनकर  ।

तुम   अपनी   व्यथा  -   कथा   कहो   ।

मैं   इसे   ध्यान   से   सुनूंगा   ।

बस   बीच  -  बीच   में

आवश्यकता   अनुसार   टिप्पणियां   करूंगा   ।

मैं   तुम्हारी   हैसियत   से   कतई   नहीं   डरूंगा  ।

तुम्हारा  ,

जनक  ।

२३/०६/२००५.
Dec 2024 · 79
Pendulum
Joginder Singh Dec 2024
He is just wandering

here and there

in a timeless silent world

and looks like a pendulum moving

between the cradle of likes and

dislikes today


to play.
Joginder Singh Dec 2024
नीत्शे!
तुम से पूछना
चाहता हूं कुछ ,
अपनी जिज्ञासा की बाबत।
कहीं इस दुनिया में
ईश दिखा क्या ?
फिर ईश निंदा का
आरोप लगा कर इस
कायनात के भीतर
बसे जन समूहों में डर
क्यों भरा  जा रहा है ?
उन में से कुछ को
क्यों मारा जा रहा है?

ईश्वर पर
निंदा का असर हो सकता है क्या ?
असर होता है
बस! कुछ बेईमानों पर।
वे पर देते कतर
परिंदे उड़ न पाएं !
अपने लक्ष्य को हासिल न कर पाएं !!
०१/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
दीप ऐसा मैं !
मन के भीतर
जला पाऊं
कि खुद को समय रहते
जगा पाऊं मैं !
मुखौटा पहने लोगों की
दुनिया में रहते हुए ,
मन के अंधेरे,
और आसपास के
छल प्रपंच से
बच पाऊं ‌मैं !
नकारात्मकता को
सहजता से
त्याग पाऊं मैं !


दीप ऐसा
यशस्वी
बन पाऊं मैं
कि छेद कर  
छद्म आवरण
दुनिया भर के , मैं !
पार कुहासे और धुंध के
देख पाऊं मैं !
जीवन के छद्म रूपों और मुद्राओं को
सहजता से छोड़ कर
अपने भीतर दीप
जला पाऊं मैं !
कृत्रिमता का आदी यह तन और मन
अपनी इस मिथ्या की खामोशी को  त्याग कर
लगाने लगे अट्टहास,
कराने लगे
अपनी उपस्थिति का अहसास!
काश! तन और मन से
कुंठा ‌की मैल
धो पाऊं मैं !


दीप ऐसे जलें
मेरे भीतर और आसपास ,
अस्पष्ट होती दुनिया का
सही स्वरूप
स्पष्ट ‌स्पष्ट
समझ पाऊं मैं !
जिसकी रोशनी में
स्व -सत्य के
रूबरू होकर
बनूं मैं सक्षम
इस हद तक
कि स्व पीड़ा और ‌पर पीड़ा की
मरहम ढूंढ पाऊं  मैं!
अपना खोया आकाश छू पाऊं ,मैं !!

८/११/२००४.
Joginder Singh Nov 2024
दर्पण
दर्प न  जाने।
वह तो
समर्पण को
सर्वोपरि माने ।

जिस क्षण
दंभी की छवि
उस पर आने विराजे,
उस पल
वह दरक जाये ,
उसके भीतर से
आह निकलती जाये।
उसका दुःख
कोई विरला ही जान पाये।

२०/०८/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
वैशाखी के मौके पर
पर निर्भरता की
बैसाखियों को तोड़।
याद कर
उस ऐतिहासिक क्षण को,
जब धर्म बचाने को ,
निर्बल को सबल बनाने को,
दिया था
दशमेश पिता ने ,
इतिहास को
नया मोड़ ।

समय रहा है बदल
तू उसके साथ चल,
न्यूटन जीवन मूल्य अपनाकर,
आज आडंबर छोड़।

वैशाखी के मौके पर
पर निर्भरता की
बैसाखियों को छोड़ ।


किसी सरकार से,
न रख कोई अपेक्षा,
अपने पैरों पर
खड़ा होना सीख ।

तू धरा पुत्र है,
अन्नदाता है।
तू क्यों मांगे भीख?


वैशाखी के मौके पर
पर निर्भरता की
बैसाखी छोड़।


आज निराशा छोड़कर
जिसके भीतर
कर्मठता भरकर
जीवन को दे
नया मोड़।



वैशाखी के मौके पर
पर निर्भरता की
बैसाखी छोड़, और
समय से कर ले होड़।

१०/०४/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
जब से जंगल सिकुड़ रहे हैं ,
धड़ाधड़ पेड़ कट रहे हैं,
अब शेर भी बचे खुचे दिन गिन रहे हैं !
वे उदासी की गर्त में खोते जा रहे हैं!!

हाय! टूट फूट गए ,शेरों के दिल ।
जंगल में शिकारी आए खड़े हैं ।
वे समाप्त प्रायः शेरों का करना चाहते शिकार।
या फिर पिंजरे में कैद कर चिड़िया घर की शोभा बढ़ाना।

सच! जब भी जंगल में बढ़ती है हलचल,
आते हैं लकड़हारे ,शिकारी और बहुत सारे दलबल।
शेर उनकी हलचलों को ताकता है रह जाता ।
चाहता है वह ,उन पर हमला करना, पर चुप रह जाता है।

जंगल का राजा यह अच्छी तरह से जानता है,
यदि जंगल सही सलामत रहा, वह जिंदा रहेगा।
जैसे ही स्वार्थ का सर्प ,जंगल को कर लेगा हड़प।
वैसे ही जंगल की बर्बादी हो जाएगी शुरू,
एक-एक कर मरते जाएंगे तब ,जीव जगत और वनस्पति।
आदमी सबसे अंत में तिल तिल करके मरेगा।
ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण से आदमी घुट घुट कर मरेगा।
आदमी सर्प बन ,जंगल ,जंगल के राजा शेर को ले मरेगा।
क्या आदमी कभी अपने दुष्कृत्यों से  कभी डरेगा ?
अब कौन सूरमा शेर और जंगल को बचाने के लिए लड़ेगा?
आज जंगल में रहने वाले जीव और उनका राजा खतरे में है।
शेर का संकट  दिनों दिन विकट होता जा रहा है।
यह सोच , मन घबरा रहा है,दिमाग में अंधेरा भर गया है ।
शेर का अस्तित्व संकट में पड़ गया है, मेरा मन डर गया है।

जंगल का शेर ,आज सचमुच गया है डर।
वह तो बस आजकल, ऊपर ऊपर से दहाड़ता है।
पर भीतर उसका, अंदर ही  अंदर कांपता है ।
यह सच कि वह खतरे में है, शेर को भारी भांति है विदित।
यदि  जंगल  बचा रहेगा,  तभी  शेर  रह ‌पाएगा  प्रमुदित।
१३/०१/२०११.
Nov 2024 · 87
बुढ़ापा
Joginder Singh Nov 2024
समय की धुंध में
धुंधला जाती हैं यादें !
विस्मृति में की गर्त में
खो जाती हैं मुलाकातें !!
रह रह कर स्मृति में
गूंजती है खोए हुए संगी साथियों की बातें !!!

आजकल बढ़ती उम्र के दौर से गुज़र रहा हूं मैं,
इससे पहले की कुछ अवांछित घटे ,
घर पहुंचना चाहता हूं।
जीवन की पहली भोर में पहुंचकर
अंतर्मंथन करना चाहता हूं !
जिंदगी की 'रील 'की पुनरावृत्ति चाहता हूं !

अब अक्सर कतराता हूं ,
चहल पहल और शोर से।

समय की धुंध में से गुज़र कर ,
आदमी वर लेता है अपनी मंज़िल आखिरकार ।

उसे होने लगता है जब तब ,
रह ,रह कर ,यह अहसास !
कि 'कुछ अनिष्ट की शंका  है ,
जीवन में मृत्यु का बजता डंका है।'
इससे पहले की ज़िंदगी में
कुछ अवांछित घटे,
सब जीवन संघर्ष में आकर जुटें।

यदि यकायक अंदर बाहर हलचल रुकी ,
तो समझो जीवन की होने वाली है समाप्ति ।
सबको हतप्रभ करता हुआ,
समस्त स्वप्न ध्वस्त करता हुआ,
समय की धुंधयाली चादर को
झीनी करता हुआ , उड़ने को तत्पर है पंछी ।

इस सच को झेलता हूं,
यादों की गठरी को
सिर पर धरे हुए
निज को सतत ठेलता हूं !
सुख दुःख को मेलता हूं !!
जीवन के संग खेलता हूं!!!

२२/०१/२०११.
Joginder Singh Nov 2024
वह आदमी
जो अभी अभी
तुम्हारी बगल से निकला है ।
एक आदमी भर नहीं,
एक खुली किताब भी है।

दिमाग उसके में
हर समय चलता रहता
हिसाब-किताब  है ,
वह ज़िंदगी की बारीकियां को
जानने ,समझने के लिए रहा बेताब है,
उस जैसा होना
किसी का भी
बन सकता ख़्वाब है,
चाल ढाल, पहनने ओढ़ने,
खाने पीने, रहने सहने, का अंदाज़
बना देता उसे नवाब है।
वह सच में
एक खुली किताब है।

तुम्हें आज
उसे पढ़ना है,
उससे लड़ना नहीं।
वह कुछ भी कहे,
कहता रहे,
बस !उससे डरना नहीं ।
वह इंसान है , हैवान नहीं ।
उम्मीद है ,तुम उसे ,अच्छे से ,पढ़ोगे सही ।
न कि ढूंढते रहोगे, उस पूरी किताब के
किरदार में , कोई कमी।
जो तुम अक्सर करते आए हो
और जिंदगी में
खुली किताबों को
पढ़ नहीं पाए हो।
पढ़े लिखे होने के बावजूद
अनपढ़ रह गए हो।
बहुत से अजाब सह रहे हो।

३०/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
तकलीफें जब
सभी हदें लांघकर
आदमी को हताश और निराश कर देती हैं,
तब आदमी
बन जाता है पत्थर।
उसकी आंख के आंसू
सूख जाते हैं।
ऐसे में आदमी
हो जाता है
पत्थर दिल।

तकलीफें
उतनी ही दीजिए
जिसे आपका प्रिय जन
खुशी खुशी सह सके ।
अपनी ज़िन्दगी को
ढंग से जी सके।

कहीं तकलीफ़ का
आधिक्य
चेतना को
न कर दे
पत्थर
और
बाहर से
आदमी ज़िंदा दिखे
पर भीतर से जाए मर ।

२१/०२/२०१४.
Joginder Singh Nov 2024
सरे राह
जब कभी भी
किसी की इज़्ज़त
नीलाम होने को होती है ,
तो उसकी देह और घर की देहरी से
निकलती हैं आहें कराहें ।

इसे
शायद ही कोई
सुन पाता है !
इज़्ज़त की नीलामी को
रोक पाता है !!


दोस्त ,
अपने कुकर्मों से
निजात पा ,
सत्कर्मों की राह पर
ख़ुद को लेकर जा
ताकि
अपना घर
नीलाम होने से सके बच
और
जीवन की खुशियों को
कोई
सके न डस ।

दोस्त!
सुन संभल जा ,
खुद और अस्मिता को
नीलाम होने से बचा।  

२१/०२/२०१४.
Joginder Singh Nov 2024
हो  सके
तो  विवाद  से  बच
ताकि
झुलसे  न  कभी
अंतर्सच ।

यदि
यह  घटित  हुआ
तो  निस्संदेह  समझ
जीवन  कलश  छलक  गया  !
जीवन  कलह से  ठगा गया  !

हो  सके
तो  जीवन  से   संवाद   रच  ,
ताकि   जीवन  में  बचा  रहे   सच  ।
प्राप्त होता रहे  सभी को  यश ....न  कि  अपयश  !

    २९/११/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
शुक्र है
हम सबके सिर पर
संविधान की छतरी है।
हमें विरासत में मिली
गणतंत्र की गरिमा है।
अन्यथा देखिए और समझिए।
इस देश में
आदमी  की अस्मिता
टोपी धारी के इशारे पर
कब-कब  नहीं  बिखरी  है ?



शुक्र है
हम सबके अस्तित्व पर
तानी गई संविधान की छतरी है ,
वरना अधिकार के नाम पर
बहुत बार
नकटों ने
अपने  लटके-झटकों से
आदमी की नाक कतरी है ।



शुक्र है
इस बार भी नाक बची रह गई ,
संविधान की कृपा से
देश की अस्मिता
इस वर्ष भी बची रह गई ।


मैं संकल्प करता हूं कि
इस गणतंत्र दिवस से
अगले गणतंत्र दिवस तक,
यही नहीं स्वतंत्रता दिवस से
अगले साल स्वतंत्रता दिवस पर,
हर बार देश और जनता से किया गया वायदा
दोहराता रहूंगा, अपने आप को यह याद दिलाता रहूंगा कि
देश तभी बचा रहेगा, जब सभी नागरिक कर्मठ बनेंगे।

मैं अपने साथियों के साथ
देशभर के नागरिकों को
संविधान का अध्ययन करने
और उन और उसके अनुसार अपना जीवन यापन करने
के लिए पुरज़ोर अपील करता रहूंगा।
समय-समय पर उनमें साहस भरता रहूंगा।
स्वयं को और अपनी मित्र मंडली को
विचार संपन्न बनाता रहूंगा।


देश विदेश में घटित हलचलों को
संवैधानिक दृष्टि से पढ़ते हुए
अपने चिंतन का विषय बनाऊंगा।
हर एक संकट के दौर में
खुद को संविधान की छतरी के नीचे बैठा पाऊंगा।

मैं
संविधान को
गीता सदृश पढ़ता रहूंगा,
देशकाल ,हालात अनुसार
संविधान की समीक्षा मैं करता रहूंगा ,
मां-बाप और समाज की
नज़रों में
शर्मिंदा होने से बचता रहूंगा ।


मैं हमेशा संविधान की छतरी तले रहूंगा।
हर वर्ष 26 जनवरी को
संविधान निर्माताओं की देन को याद करूंगा ।
संवैधानिक मूल्यों का पालन कर आगे बढूंगा।

२३/०१/२०११.
Nov 2024 · 56
अनुरोध
Joginder Singh Nov 2024
अच्छी सोच का मालिक
कभी-कभी अभद्र भाषा का करता है प्रयोग ,
तो इसकी ख़िलाफत की खातिर ,
आसपास , जहां , तहां,  वहां ,
चारों तरफ़ , कहां-कहां नहीं मचता शोर ।
सच कहूं, लोग  इस शोर को सुनकर नहीं होते बोर ।
आज की ज़िंदगी में यह संकट है घनघोर ।
जनाब ,इस समस्या की बाबत कीजिए विचार विमर्श।

ताकि अच्छी सोच का मालिक
जीवन भर अच्छा ही बना रहे ।
वह जीवन की खुशहाली में योगदान देता रहे ।
यदि आप ऐसा ही चाहते हैं ,जनाब !
तो कभी भूले से भी उसे न दीजिए कभी गालियां।
उसे अपशब्दों, फब्तियों,तानों,
लानत मलामत से कभी भी न नवाजें।
उसे न करें कभी परेशान।
उसके दिलों दिमाग को ठेस पहुंचाना,
उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न अंकित करना।
उस  पर इल्ज़ाम लगा कर बेवजह शर्मिंदा करना,
जैसे मन को ठेस लगाने वाले अनचाहे उपहार न दीजिए ।
कभी-कभी उसे भी अपना लाड़ ,दुलार ,प्यार दीजिए ।
Joginder Singh Nov 2024
आदमी के भीतर
उम्मीद बनी रहे मतवातर ,
तो आदमजात करती नहीं
कोई शिकवा, गिला ,शिकायत ।

अगर
कभी भूल से
जिंदगी करने लगे ,
ज़रूरत के वक्त
बहस मुबाहिसा
तो भी भीतर तक  
आदमी रहता है शांत ,
वह बना रहता धीर प्रशांत ।

वह कोई बलवा
नहीं करता।
उम्मीद उसे
ज़िंदादिल बनाए रखती है,
'कुछ अच्छा होगा। ',
यह आस
उसे कर्मठ बनाए रखती है ।
जीवन की गति को बनाए रखती है ।
३०/११/२०२४.
Nov 2024 · 61
While Writing A Poem
Joginder Singh Nov 2024
Sometimes I need
complete silence to write a poem for Time.
He usually demands to check the potential of creativity in poets
and creators.

In such moments,
I   starts  addressing to The Time...,
Respected Time.
I have no words to express my feelings regarding you.
You are the origin of my all activities.
It is your will to encourage me as a poet otherwise I am not more than like a parrot who repeats some phonetic sounds after practising a whole series of repeating, some words only.

It is true that I can't choose  to write
a poem in copy paste style.

I have respect for you
because you have provided me a complete freedom to express myself and surroundings.
Nov 2024 · 70
In search of alternative
Joginder Singh Nov 2024
I have no choice.
And you are talking with me
about alternatives of love.
It surprises me oftentimes.
My mind warns me sometimes,
you are wasting your time in life to make search for alternative of love as well as hate in life.
Don't spoil your native natural life style.
It keeps your face to smile in hard times,dear.
Is it clear in your mind,dear?
Your present life is a mirror of past life,dear.
Do you heard my words, dear.
You need a very sharp mind to cut the silence and sounds of past  life.
Try to live in the present,
as you are well aware about the significance of time in an individual 's struggle full life.
You can't revind your past life.
Past life is far away from your present life,dear.
So live like a brave person in present life.
Present itself is a wonderful and unique present 🎁 for all of us.
Joginder Singh Nov 2024
आप अक्सर जब
निस्वार्थ भाव से,
अपने प्रियजनों का
पूछते हैं कुशल क्षेम,
तब आप के भीतर
विद्यमान रहता है
प्रेम का सच्चा स्वरूप ।

उसे दिव्यता से जोड़ने पर
मन मन्दिर में
उभरता है
भक्ति की अनुभूति का
सम्मोहक स्वरूप।

और
यही भाव
लौकिकता से
जुड़ने पर  ले लेता है
अपना रंग रूप स्वरूप
कुछ अनोखे अंदाज में
जो होता है
प्रायः आकर्षण से भरपूर।
यहीं से सांसारिक सुख समृद्धि ,
लाड़, प्यार, मनुहार जैसी
भाव सम्पदा से सज्जित
जीवनाधार की शुरुआत होती है,
जहां जीवन हृदय में
कोमल भावनाओं के प्रस्फुटन के रूप में
पोषित, पल्लवित, पुष्पित, प्रफुल्लित होता है।

ऐसी मनोदशा में
प्रेम की शुद्धता और शुचिता का आभास होता है।
यहां 'प्रेम गली अति सांकरी' रहती है।
और जब इस शुचिता में सेंध लग जाती है,
तब यह प्रेम और प्यार का आधार
विशुद्ध वासना और हवस में बदल जाता है।
स्त्री पुरुष का अनुपम जोड़ा भटकता नज़र आता है।
इसके साथ साथ यह अन्यों को भी भटकाता है।
प्रेम, प्यार,लगाव के अंतकाल का , शीघ्रता से ,
घर, परिवार,देश, समाज और दुनिया जहान में ,
आगमन होता है,साथ ही नैतिकता का पतन हो जाता है।
३०/११/२०२४.
Nov 2024 · 55
The Purity of The Love
Joginder Singh Nov 2024
The present world seems to us
an unique and wonderful expression of the governing force of the universe.
You can named this force as the nature or as  the almighty God....
which according to our philosophy...
is Omnipotent, Omniscient, Omnipresent.

On the other aspect of the human psychology,
the governing force of the universe resides in the purity of Love where presence of more than two life partners is highly objectionable and
non permissible .
Joginder Singh Nov 2024
मुझे
अपने पास
बुलाता रहता है
हर पल
कोई अजनबी।
वह मुझे लुभाता है,
पल प्रति पल देता है
प्रलोभन।

वह
मृत्यु को सम्मोहक बताता है,
अपनी गीतों और कविताओं में
मृत्यु  के नाद की कथा कहता है
और  अपने भीतर उन्माद जगाकर
करता रहता है भयभीत।

यह सच है कि
मुझे नहीं है मृत्यु से प्रीत
और कोई मुझे...
हर पल मथता है ,
समय की चक्की में दलता है।


कहीं जीवन यात्रा
यहीं कहीं जाए न ठहर
इस डर से लड़ने को बाध्य कर
कोई मुझे थकाया करता है।

दिन रात, सतत
अविराम चिंतन मनन कर
अंततः चिंता ग्रस्त कर
कोई मुझे जीवन के पार
ले जाना चाहता है।
इसलिए वह
वह रह रह कर मुझे बुलाता है ।

कभी-कभी
वह कई दिनों के लिए
मेरे ज़ेहन से ग़ायब हो जाता है।
वे दिन मेरे लिए
सुख-चैन ,आराम के होते हैं।
पर शीघ्र ही
वह वापसी कर
लौट आया करता है।
फिर से वह
मुझे आतंकित करता है ।


जब तक वह या फिर मैं
सचमुच नहीं होते बेघर ।
हमें जीवन मृत्यु के के बंधनों से
मिल नहीं जाता छुटकारा।
तब तक हम परस्पर घंटों लड़ते रहते हैं,
एक दूसरे को नीचा दिखाने का
हर संभव किया करते हैं प्रयास,
जब तक कोई एक मान नहीं लेता हार।
वह जब  तब
मुझे
देह और नेह  के बंधनों से
छुटकारे का प्रलोभन देकर
लुभाया करता है।

हाय !हाय!
कोई मुझ में
हर पल
मृत्यु का अहसास जगा कर

और
जीवन में  मोहपाश से बांधकर
उन्माद भरा  करता है ,
ज़िंदगी के प्रति
आकर्षण जगा कर ,
अपना वफादार बना कर ,
प्रीत का दीप जलाया करता है।
कोई अजनबी
अचानक से आकर
मुझे
जगाने के करता है  
मतवातर प्रयास
ताकि वह और मैं
लंबी सैर के लिए जा सकें ।
अपने को भीतर तक थका सकें।
जीवन की उलझनों को
अच्छे से सुलझा सकें।
  २२/०९/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
लगता है
आज आदमी
आधा रह गया है,
उसमें लड़ने का माद्दा नहीं बचा है।
इसलिए जल्दी ही
देता घुटने
टेक।
कई दफा
बगैर लड़े
मान लेता हार,
उसकी बुजदिली पर कोई करेगा चोट
तो मुमकिन है
वह लड़ने के लिए
करे स्वयं को
तैयार
थाम ले हथियार ।
करअपना परिष्कार !!
तुम उसे उकसाओ तो सही।
उसे उसकी ताकत का
अहसास कराओ तो सही।
उसे सही दिशा दिखाओ तो सही।
उसे लड़ाकू होने की प्रतीति करवाओ  तो सही।
उसे, सही ढंग से समझाओ तो सही।
उसकी समझ की बही में सही होने,रहने का गणित लिखवाओ तो सही।
उस के भीतर मनुष्य होने का आधार बनाओ तो सही।
आज
बस उसके अहम् को खरा बनाओ तो सही।
समन्दर किनारे घर न बनाने के लिए
उसे समझाओ तो सही।
उसकी खातिर ,उसे उसके सही होने की ख़बर सुनाओ तो
सही।
कुछ और नहीं कर सकते तो उसे सही राम बनाओ तो सही।
उसे सही कुर्सी पर बैठाओ तो सही,
ठसक उसके भीतर भर  ही जाएगी जी।
जिजीविषा उसके भीतर
सही सही मिकदार में उत्पन्न हो ही जाएगी जी।
वह बिल्कुल सही है जी।
हम ही सहीराम को गलत समझे जी।
उसको करने दो  अपनी मनमर्जी जी।
जी लेने दो उसे जी भर कर जी।
... क्यों कि वह पूरा आदमी नहीं,
आधा अधूरा आदमी है जी।
परम्परा और आधुनिकता का सताया आदमी है जी,
जो बस रिरियाना और गिड़गिड़ाना जानता है जी।
२९/११/२०२४.
Nov 2024 · 36
आशंकित मन
Joginder Singh Nov 2024
बेघर को
यदि
घर का
तुम दिखाओगे सपना
तो उसे कैसे नहीं
लगेगा अच्छा?
वह कैसे नहीं,
समझेगा तुम्हें अपना?
परंतु
आजकल
घर के बाशिंदों को
बेघर करने की
रची जा रही हैं साजिशें,
तो किसे अच्छा लगेगा ?
सच!
ऐसे में
भीतर उठती है
पीड़ा, बेचैनी,दर्द,कसक।
इन्सान होने की ठसक क्या!
सब कुछ मिट्टी में मिलता लगता है।
सब कुछ तहस नहस होता लगता है।
कभी कभी रोने का मन करता है,
परंतु दुनिया की निर्मम हंसी से डर लगता है।


मन मनन चिंतन छोड़ कर
करता है महसूस
वह घड़ी रही होगी मनहूस
जब किसी उत्पाती ने
दी थी आधी रात घर की देहरी पर दस्तक
और कर दिया था हम सब को
बेघर और अकेला।
दे दी थी भटकन सभी को।
बस! तभी से है मेरा मन आशंकित।
मुझे हर समय एक दुस्वप्न
घर की देहरी पर दस्तक देता लगता है।
मैं भीतर तक खुद को हिला और डरा पाता हूं।
इस भरी पूरी दुनिया में खुद को अकेला पाता हूं।
मुझे कहीं कोई ठौर ठिकाना नहीं मिलेगा,
बस इसी सोच से पल पल चिंतित रहता हूं।


आजकल मैं एक यतीम हुआ सा
सतत् भटकता हुआ आवारा बना घूमता हूं।
मन मेरा बेघर है ।
उसके भीतर बिछुड़न का डर  कर गया घर है।
अतः अंत के आतंक से भटक रहा गली गली डगर डगर है।
०२/०१/२०१२.
Nov 2024 · 116
Protect The Constitution
Joginder Singh Nov 2024
Here,in my country
constitutional institutions are
in deep trouble.
In my neighborhood countries
such an instability can also be seen.
Someone has guessed
the forces behind such crisis
can be associated with deep state,which is very active through out the world.
What can we do to check on these hurdles?
Think over it to save democracy and other setups of the different states.
Today anarchy is very harmful and dangerous.
So protect the constitution of yours respective statehood.
In critical times,
let us become self critical,
and follow the rules and regulations of the state.
Joginder Singh Nov 2024
तुम
शब्द साधना करो जरूर
शब्द
जब अनमने मन से
मुखारविंद से  निकलें,
तब लगने लगें
वे अपशब्द ।
कैसे करें वे
मन के भावों को
सटीकता से व्यक्त ।
आदमी अपनी संवेदना को अब कैसे बचाए?
वह भटकता हुआ, थका हारा, हताश नज़र आए।

शब्द
आदमी की अस्मिता को
अभिव्यक्त कर पाएं!
काश !
वे अपना जादू
चेतना पर कर जाएं!!
इसलिए
आदमी
शब्द की संप्रेषणीयता  के लिए
कभी तो ढूंढे
अपनी मानसिकता के अनुरूप
कोई नया उपाय।
यह बहुत जरूरी है कि
अब आदमी अपने मन  की बात
सहजता से कह पाए।
वरना चिंता और तनाव
मन के भीतर पैदा होते जायें।

सच के लिए
आज क्यों न सब
शब्द साधना को साधकर
अपने जीवन की राह चुनें।

अपनी बात कहते हुए
हम करें अपने शब्दों का सावधानी से चयन
कि ये न लगें अपशब्द।
ये मन की हरेक उमंग तरंग को
करें सहजता से अभिव्यक्त ।
मानव के भीतर रहते
झूठ को भी बेपर्दा करें ,
और करें सच को उद्घाटित,
ताकि जीवन में शब्द साधक
सच की उदात्तता को
अनुभूति का अंश बनाकर
आगे बढ़ सकें ।

सभी शब्द साधना करें जरूर
परंतु अपने अहंकार को छोड़कर ,
ताकि शब्दों पर अवलंबित
मानव इसी जीवन धारा में
जीवन के सच से रचा सके अपने संवाद।
भूल सके भीतर का समस्त विस्माद,वाद विवाद।
मिल सके जीवन को एक नया मोड़,
और मानव आगे बढ़े
निज के भीतर व्यापे अवगुण छोड़।


आदमी शब्द साधना जरूर करें
ताकि वह रोजमर्रा के अनुभवों को
जीवन की सघन अनुभूति में बदल सके।
वह अपने बिखराव को समेट
निज को उर्जित कर सके !
जीवन पथ पर निष्कंटक बढ़ सके !!

अतः ज़रूरी है मानव के लिए
जैसे-जैसे वह जीवन यात्रा में आगे बढ़ता जाए ।
धीरे-धीरे अपनी समस्त  कमियों को छोड़ता जाए ।
वह अपने जीवन में खूबियां को भरता जाए ।
अपनी लक्ष्य सिद्धि के लिए
शब्दों के संगीत से जुड़ता जाए।


दोस्त,
समय को समझने हेतु,
अपनी को बना लो एक सेतु
शब्दों और अर्थों में संतुलन बनाकर
शब्द साधना करते हुए
अभिव्यक्ति की खातिर
उजास को ढूंढों।


यदि व्यक्ति ने
खुद को जानना और पहचानना है
तो वह अपना जीवन
शब्द साधना को  करें समर्पित।

शब्द साधना करो जरूर !
इससे मिटता मन का गुरूर!!

आज
मानव के भीतर रहते
चंचल मन ने
मनुष्यों को ख़ूब भटकाया है ,
उसे लावारिस   बनाया है ,
उसे अनमनेपन के गड्ढों में ले जा डूबोया है।
उसके भीतर का साथी रहा शब्द,
आजकल गहरी नींद जा सोया है।

आज
मनुज को
इस गहरी नींद से
जगाना ज़रूरी है ।

शब्द साधना करके
मानव की
इस गहरी नींद को
तोड़ना अपरिहार्य है,
क्या यह सच तुम्हें
स्वीकार्य है ?
अतः शब्द साधना करना अपरिहार्य है।
जीवन की सार्थकता के लिए
यह निहायत जरूरी है ।
२१/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
बाप   कैसा भी हो,
बच्चा   करता है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देता है मन की बात बता।
एक झलक प्यारे पापा की देख
अपना दुख देता दक्षिण भुला ,
पापा के प्यार को अनुभूत कर
बहादुर देता है दिखला।



मां।   कैसी भी हो
बच्ची करती है उसे पर विश्वास
वह किसी भी हद तक जाकर
बिना झिझक देती है मन की बात बता ।
प्यारी मम्मी का स्पर्श कर महसूस
अपनी उदासी को  देती है भुला ।
अभाव तक को देती है बिसरा ।



परंतु
समय की आंधी के आगे
किसकी चल?
अचानक अप्रत्याशित आकर वह
छीन लेती है कभी
मां-बाप की ठंडी छाया बच्चों से ।


सच ! उसे समय
जीवन होता प्रतीत
क्रूर व हृदय विहीन बच्चों को !


समय की मरहम
सब कुछ देती है भूल बिसरा ,
जीवन के घेरों में  ,चलना देती सीखा ।




समय की चाल के साथ-साथ
बच्चे धीरे-धीरे होते जाते हैं बड़े
मैं ढूंढना शुरू कर देते हैं
ममत्व भरी मां की छाया ,
सघन घने वृक्ष सा ‌बाप का साया ,
आसपास के समाज में विचरते हुए,
पड़ोसी और पड़ोसिनों से सुख,
सुरक्षा के अहसास की आस !
पर बहुत कम दफा मिल पाता है,
अभाव ग्रस्त बच्चों को , समाज से,
बिछुड़ चुके बचपन का दुर्लभ प्यार ,
पर उन्हें हर दर से ही मिलता
कसक , घृणा और तिरस्कार।


यह जीवन का सत्य है,
और जीवन धारा का कथ्य है ।
बच्चा     बड़े होने तक भी ,
बच्ची      बड़ी होने पर भी ,
सतत्...बिना रुके...
अविराम...निरन्तर ... लगातार...
ढूंढ़ते रहते हैं -- बचपन से बिछुड़े  सुख !
पर... अक्सर... प्रायः...
सांझ से प्रातः काल तक
सपनों की दुनिया तक में
सतत् मिलते रहते हैं दुःख ही दुःख!
जीवन में हर पल बढ़ती ही जाती है
सुख ढूंढ़ पाने की भूख ।
पर ...
एक दिन
बच्चों के सिर से
ढल जाती है समय की धूप।
वे जिंदगी भर  
पड़ोसी पड़ोसिनों में खोये
रिश्तों को ढूंढ़ते रह जाते हैं, पर
मां की ममता
और पिता के सुरक्षित साये से
ये बच्चे  वंचित ही रहते है,
लगातार अकेलेपन के दंश सहते हैं।


कुदरत इनकी कसक को करना चाहती है दूर।
अतः वह एक स्वप्निल दुनिया में ले जाकर
करती रहती है इन बच्चों की कसक और तड़प को शांत।


उधर उनके दिवंगत मां बाप
बिछड़ने के बावजूद चाहते सदैव उनका भला।
सो वे स्मृतिलीन
आत्माएं
अपने बच्चों के सपनों में
बार-बार आकर देखतीं हैं संदेश कि
तुम अकेले नहीं हो, बच्चो!
हम सदैव तुम्हारे आजू बाजू रहती आईं हैं।
अतः डरने की ज़रूरत नहीं है ।
जीवन सदैव सतत रहता है चलायमान।
हमारे विश्राम लेने से मत होना कभी उदास।
समय-समय पर
तुम्हारी हताशा और निराशा को
करने समाप्त
हम तुम्हारे मार्गदर्शन के लिए
सदैव तुम्हारे सपनों में आती रहेंगी।
तुम्हें समय-समय पर संकटों से बचाती रहेंगी।


बच्चे बच्चे अपने मां-बाप को
स्वप्न की अवस्था में देखकर हो जाते पुलकित,
वे स्वयं को महसूसते सुरक्षित ।


बच्चो ,
ढलती धूप के साए भी
अंधेरा होने पर
जीव जगत के सोने पर
स्वप्न का हिस्सा बनकर
बच्चों को
तसल्ली व उत्साह देने के निमित्त
स्वपन में बिना कोई आवाज़ किए
आज उपस्थित होते हैं
बच्चों के सम्मुख
अनुभूति बनकर।


सच ! सचमुच ही!!
जीवन खिलखिलाता हुआ
बच्चों की नींद में
उन्हें स्वप्निल अवस्था में ले जाता हुआ
हो जाता है उपस्थित।
यह उनके मनों में
खिलती धूप का संदेश लेकर !
जीवन में उजास बनकर !
आशा के दीप बनकर !
प्यार के सूरज का उजास होकर!!
उनसे बतियाने लगता है,
मुझे लड़ दुलार करने लगता है।
सच ! ऐसे में...
सोए बच्चों के चेहरे पर
स्वत: जाती है मुस्कान तैर !
अभाव की कसक जाती धुल !!
दिवंगत मां-बाप के साए भी
लौट जाते अपने लोक में
संतुष्ट होकर। ब्रह्मलीन ।
यह सब घटनाक्रम ,देख और महसूस।
प्रकृति भी भर जाती सुख संतोष के अहसास से।
वह निरंतर देखा करती है
ऐसी अनगिनत कथा यात्राओं का बनना ,बिगड़ना
हमारे आसपास से।
वह कहती कुछ नहीं,
मैं देखना चाहती सबको सही।
२८/०९/२००८.
Nov 2024 · 55
पथ की खोज
Joginder Singh Nov 2024
यह सच है कि
समय की घड़ी की
टिक टिक टिक के साथ,
वह कभी न चल सका ,
बीच रास्ते हांफने लगा ।
एक सच यह भी है
कि अपनी सफलता को लेकर
सदैव रहा आशंकित और डरा हुआ,
लगता रहा है उसे,
अब घर ,परिवार ,
समाज में
केवल
बचा रह गया है छल कपट ।
दिल और दिमाग में
छाया हुआ है डर ,
जो अंधेरे में रहकर,
मतवातर हो रहा है सघन ।
एक भयभीत करने वाली धुंध
पल प्रति पल कर रही भीतर घर,
बाहर भीतर सब कुछ अस्पष्ट !
वह हरदम है भटकने को विवश!!
फलत: वह है पग पग पर है
हैरान और परेशान !


सोचता हूं कि  
क्या वह
घर से बेघर होकर ,
एक ख़ानाबदोश बना हुआ ,
भटकता  रहेगा जीवन भर ?
क्या यही उसके जीवन का सच है?
क्या कोई बन पाएगा
उसका मुक्ति पथ का साथी ?
जिसे खोजते खोजते सारी उम्र खपा दी !०६/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
रात सपने में
मुझे एक मदारी दिखा
जो 'मंदारिन ' बोलता था!
वह जी भर कर कुफ्र तोलता था!!
अपनी धमकियों से वह
मेरे भीतर डर भर गया ।
कहीं
गहराई में
एक आवाज सुनी ,
'.. डर गया सो मर गया...'  
मैं डरपोक !
कायम कैसे रखूं अपने होश ?
भीतर कैसे भरूं जिजीविषा और जोश?
यह सब सोचता रह गया ।
देखते ही देखते
सपने का तिलिस्म सब ढह गया।
जागा तो सोचा मैंने
अरे !मदारी तो
सामर्थ्यवान बनने के लिए कह गया।
अब तक मेरा देश
कैसे जुल्मों सितम सह गया?
Nov 2024 · 75
The Dusty Atmosphere
Joginder Singh Nov 2024
The Dust
Here and there
a lot of dust has been spread
in the form of mischievous thoughts
as well as conspicuous material.
Now it is your choice to select or reject.
Friend! Do not make your brain simply like a dustbin.
Because you are a special soul
who has taken birth to win
in spite of difficulties and living in a cunning and calculative world.
You must keep yourself away from the dust and dusty persons.
It can damage your persona.
Joginder Singh Nov 2024
तुम मुझे बार-बार छेड़ते हो ,
क्या है ?
तुम मुझे हाथ में पड़े अखबार की तरह
तोड़ते मरोड़ते हो ,
क्या है ?
तुम मुझे जीवन से
अनुपयोगी समझ कर फेंकना चाहते हो ,
यह सब क्या है ?


पहले तुम मुझे
क़दम क़दम पर
जीवन के रंग
दिखाना चाहते थे ,
और अब एकदम तटस्थ ,
त्रस्त और उदासीन से गए हो ,
यह सब क्या है ?

और अब
तुम्हारे रंग ढंग
कुछ बदले बदले नज़र आते हैं ।
तुम मुझे गीत सुनाते हो।
कभी हंसाते और रुलाते हो ।
कभी अपनी कहानी सुनाते हो।

आखिर तुम चाहते क्या हो ?

मैं तुम्हारे इशारों पर
नाचूं, गाऊं , हंसूं,रोऊं।
तुम ही बता दो , क्या करूं?

मैं अब
'क्या है ? ' नहीं कहूंगी।
यह तुम्हारे जीवन के प्रति
तुम्हारे प्यार और लगाव को दर्शाता है।
मुझे जीवन से जोड़ जाता है।
मेरे जीवन को नया मोड़ दे जाता है।

सच कहूं , तो यह वह सब है ,
जो हर कोई अपने जीवन में चाहता है।
इसकी खातिर अपने मन में कोमलता के भाव जगाता है।

अरे यार!
अब कह भी दो ना !
व्यक्त कर दो मन के सब उदगार।
अब कह ही दो , अपना अनकहा सच ।
मैं तुम्हारे मुख से
कुछ अनूठा और अनोखा
सुनने को  हूं बेचैन ।

अब चुप क्यों हो?
गूंगे क्यों बने हुए हो?
अच्छा जी! अब कितने सीधे सादे , भोले बने हो ।

क्या यही प्यार हे?
इसके इर्द गिर्द घूम रहा संसार है।
यही जीवन की ऊष्मा और ऊर्जा का राज़ है।
ऐसा  कुछ कुछ
एक दिन
अचानक
मेरे इर्द-गिर्द फैली
जीवन धारा ने
मुझे गुदगुदाने की ग़र्ज से कहा।
प्रतिक्रियावश मैं सुख की नींद सो गया !
जीवन के इस सुहाने सपने में खो गया!!
२९/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
महंगाई ने
न केवल किया है,
जनसाधारण को
भीतर तक परेशान ,
बल्कि
इसने पहुंचाया है
आर्थिकता को भारी-भरकम
नुक्सान ।

दिन पर दिन
बढ़ती महंगाई ,
ऊपर से
घटती कमाई ,
मन के अंदर भर
रही आक्रोश ,
इस सब की बाबत
सोच विचार करने के बाद
आया याद ,
हमारी सरकार
जन कल्याण के कार्यक्रम
चलाती है,
इसकी खातिर बड़े बड़े ऋण भी
जुटाती है।
इस ऋण का ब्याज भी
चुकाती है।
ऊपर से
हर साल लोक लुभावन
योजनाएं जारी रखते हुए
घाटे का बजट भी पेश
करती है।


यही नहीं
शासन-प्रशासन के खर्चे भी बढ़ते
जा रहे हैं ।
भ्रष्टाचार का दैत्य भी अब
सब की जेबें
फटाफट ,सटासट
काट रहा है।

चुनाव का बढ़ता खर्च
आर्थिकता को
तीखी मिर्च पाउडर सा रहा है चुभ।

यही नहीं बढ़ता
व्यापार घाटा ,
आर्थिकता के मोर्चे पर
पैदा कर रहा है
व्यक्ति और देश समाज में
सन्नाटा।


ऊपर से तुर्रा यह
कर्ज़ा लेकर ऐश कर लो।
कल का कुछ पता नहीं।
व्यक्ति और सरकार
आमदनी से ज़्यादा खर्च करते हैं,
भला ऐसे क्या खज़ाने भरते हैं?

फिर कैसे मंहगाई घटेगी?
यह तो एक आर्थिक दुष्चक्र की
वज़ह बनेगी।
जनता जनार्दन कैसे
मंहगाई के दुष्चक्र से बचेगी ?
देखना , शीघ्र ही इसके चलते
देश दुनिया में अराजकता और अशांति बढ़ेगी।
व्यक्ति और व्यक्ति के भीतर असंतोष की आग जलेगी।

२९/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
आज सड़क पर
जीवन के रंग मंच पर
जिंदाबाद मुर्दाबाद की नारेबाजी
सुनकर लगता है,
अब कर रही है
जांबाज़ों की फ़ौज ,
अपने ही देश के
ठगों, डाकुओं, लुटेरों के ख़िलाफ़ ,
अपनी आखिरी जंग
लड़ने की तैयारी।

पर
मन में एक आशंका है,
भीतर तक
डर लगता है ,
कहीं सत्ता के बाजीगरों
और देश के गद्दारों का
आपस में  न हो जाए गठजोड़ ।

और और देश में होने लगे
व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़।
कहीं चोर रास्ते से हुई उठा पटक
कर न दे विफल ,
हकों की खातिर होने वाली
जन संघर्षों और जन क्रान्ति को।
कहीं
सुनने न पड़ें
ये शब्द  कि...,
' जांबाज़ों ने जीती बाज़ी,
आंतरिक कलह ,
क्लेश की वज़ह से
आखिरी पड़ाव में
पहुंच कर हारी।'

देश मेरे , यह कैसी लाचारी है?
जनता ने आज
जीती बाजी हारी है ।
इस जनतंत्र में बेशक जनता कभी-कभी
जनता जनार्दन कहलाती है, ... लोकतंत्र की रीढ़ !
पर आज जनता 'अलोक तंत्र' का होकर शिकार ,
रही है अपनी अपनी जिंदगी को किसी तरह से घसीट।
अब जनता दे रही है  दिखाई, एकदम निरीह और असहाय।
महानगर की सड़कों पर भटकती,
लूट खसोट , बलात्कार, अन्याय से पीड़ित ,
एक पगली  सी होकर , शोषण का शिकार।

देश उठो, अपना विरोध दर्ज करो ।
समय रहते अपने फ़र्ज़ पूरे करो।
ना कि निष्क्रिय रहकर, एक मर्ज  सरीखे दिखो।
अपने ही घर में निर्वासित जिंदगी बिता रहे
अपने  नागरिकों के भीतर
नई उमंग तरंग, उत्साह, जोश , जिजीविषा भरो।
उन्हें संघर्षों और क्रांति पथ पर
आगे बढ़ने हेतु तैयार करो।  
  २६/११/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
ठीकरा
असफलता का
किसी और की तरफ़ उछाल दूं ,
अपना दामन झाड़ लूं ।

यह कतई ठीक नहीं ,
यह तो अपने को ठगना है ,
अपने को नष्ट करना है ।

अच्छा रहेगा,
सच से ही प्यार करूं ,
झूठ बोलकर जीवन न बेकार करूं ,
फिर मैं अपना और
दूसरों का
जीना क्यों दुश्वार करूं ?

ठीकरा
असफलता का
फोडूंगा न किसी पर ,
उस पर मिथ्या आरोप लगा ।
बल्कि
करूंगा निरंतर सार्थक प्रयास
और  करूंगा प्राप्त एक दिन
इसी जीवन में सफलता का दामन
खुले मन से,
बगैर किसी झिझक के।

अब स्वयं को
और ज्यादा न करूंगा शर्मिंदा ,
बनूंगा ख़ुदा का बंदा,
न कि कोई अंधा दरिंदा ।

इतना तो खुद्दार हूं,
संघर्ष पथ पर चलने की खातिर
द्वार तुम्हारे पर खड़ा तैयार हूं ।

तुम तो साथ दोगे न ?
दोस्ती का हाथ ,
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ,
आगे बढ़ाओगे ना !!

०१/१०/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
यह हक़ीक़त है कि
जब तक रोशनी है ,
तब तक परछाई है ।
आज तुम
खुद को रोशनी की जद में पहुंचा कर
परछाई से
जी भरकर लो खेल।
अंधेरे ने
रोशनी को
निगला नहीं कि
सब कुछ समाप्त!
सब कुछ खत्म!
पटाक्षेप !


और
है भी एक हक़ीक़त,
जो इस जीवन रूपी आईने का
भी है सच कि
जब तक अंधेरा है,
तब तक एक्स भी नजर नहीं आएगा।
अंधेरा है तो नींद है,
अंधेरे की हद में
आदमी भले ही
देर तक सो ले ,
अंधेरा छंटा नहीं कि
उसे जागना पड़ता है।

अंधेरा छंटा नहीं ,
समझो सच की रोशनी ने
आज्ञा के अंधेरे को निगला कि
सब कुछ जीवित,
जीवन भी पूर्ववत हुआ
अपनी पूर्व निर्धारित
ढर्रे पर लौटता
होता है प्रतीत।

जीवन  वक्त के संग
बना एक हुड़दंगी सा
आने लगता है नज़र।
वह समय के साथ
अपनी जिंदादिल होने का
रानी लगता है
अहसास,
आदमी को अपना जीवन,
अपना आसपास,
सब कुछ लगने लगता है
ख़ास।
बंधुवर,
आज तुम जीवन का खेल समझ लो।
जीवन समय के साथ-साथ
सच  को आग बढ़ाता जाता है ,
जिससे जीवन धारा की गरिमा
करती रहे यह प्रतीति कि
समय जिसके साथ
एक साथी सा बनकर रहता है,
वह जीवन की गरिमा को
बनाए रख पाता है ,
जीवन की अद्भुत, अनोखी, अनुपम,अतुल छटा को
जीवन यात्रा के क़दम क़दम पर  
अनुभूत कर पाता है ,
समय की लहरों के संग
बहता जाता है ,
अपनी मंजिल को पा जाता है ।

घटतीं ,बढ़तीं,मिटतीं, बनतीं परछाइयां
रोशनी और अंधेरे की उपस्थिति में
पदार्थ के इर्द-गिर्द
उत्पन्न कर एक सम्मोहन
जीवन के भीतर भरकर एक तिलिस्म
क़दम क़दम पर मानव से यह कहती हैं अक्सर ,
तुम सब रहो मिलकर परस्पर
और अब अंततः अपना यह सच जान लो कि
तुम भी एक पदार्थ हो,
इससे कम न अधिक... जीवन पथ के पथिक।
मत हो ,मत हो , यह सुनकर चकित ।
सभी पदार्थ अपने जीवन काल को लेकर रहते भ्रमित
कि वे बने रहेंगे इस धरा पर चिरकाल तक।
परंतु जो चीज बनी है, उसका अंत भी है सुनिश्चित।

२०/०५/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
झुकी कंधों वाले आदमी से
आप न्याय की अपेक्षा रखते हैं,
सोचते हैं कि
वह कभी लड़ेगा न्याय की खातिर ,
वह बनेगा नहीं कभी शातिर ।
आप गलत सोचते हैं ,
अपने को क्यों नोचते हैं ?
कहीं वह शख़्स आप तो नहीं ?
श्रीमान जी,
आप अच्छी तरह जान लें ,
जीवन सत्य को पहचान लें ।

दुनिया का बोझ
झुके कंधों वाला आदमी
कभी उठा सकता नहीं,
वह जीवन  की राह को
कभी आसान बना सकता नहीं ।
अतः बेशक आप
झुके कंधे वाले आदमी को
ज़रूर ऊपर उठाइए ,
आप आदमी होने जैसी
मुद्रा को तोअपनाइए ।

फिर कैसे नहीं
आदमी
अन्याय और शोषण के
दुष्चक्र को रोक पाएगा ?

वह कैसे नहीं
झुके कंधे वाले आदमी की
व्यथा को
जड़ से मिटा पाएगा ?
बस आदमी के अंदर
हौंसला होना चाहिए ।
परंतु
झुके कंधों वाले आदमी को
कभी हिम्मत और हौंसला
नसीब होते नहीं ।
वे तो अर्जित करने पड़ते हैं
जीवन में लड़कर ,
निरंतर संघर्ष जारी रख कर ,
अपने भीतर जोश बनाए रखकर
लगातार विपदाओं से जूझ कर ,
न कि जीवन की कठिनाइयों से भाग कर ,
इसलिए आगे बढ़ाने की खातिर
सुख सुविधाओं को त्याग कर
कष्टों और पीड़ाओं को सहने के लिए
आदमी खुद को
भीतरी ही भीतर तैयार करें ,
ताकि झुके कंधों वाला आदमी होने से
न केवल खुद को
बचा सके ,
बल्कि
जीवन में कामयाबी को भी अपना सके।

अतः इस समय
तुम जीवन को
सुख , समृद्धि , संपन्नता, सौहार्दपूर्ण बनाने की सोचो ,
न कि जीवन को प्रलोभन की आग से जलाओ।
इसके लिए तुम निरंतर प्रयास करो,
अपने भीतर
चेतना का बोध जगाओ।

यदि आप कभी
झुके कंधों वाले आदमी को ग़ौर से देखें
तो वह यकीनन
आपके भीतर
सौंदर्य बोध नहीं जगा पाएगा ,
बल्कि
वह आपके भीतर
दुःख और करूणा का अहसास कराएगा ।

झुके कंधों वाले आदमी को देखकर
बेशक  भीतर
कुछ वितृष्णा और खीझ पैदा होती है।
यही नहीं
ऐसा आदमी
कई बार
उलझा पुलझा सा
आता है नज़र,
इसे देख जाने अनजाने
लग जाती है नज़र
अपनी उसको ,
और उसकी किसी दूसरे को।

सच तो यह है कि
झुके कंधों वाला आदमी
कभी भी
दुनिया को पसंद नहीं आता ।
कोई भी उससे जुड़ना नहीं चाहता।
भले ही वह कितना ही काबिल हो।

पता नहीं हम कब
जीवन को देखने का
अपना नज़रिया बदलेंगे ?
यदि ऐसा हो जाए
तो झुके कंधों वाला आदमी भी
सुख-चैन को प्राप्त कर पाए।
वरना वह जीवन भर भटकता ही जाए।
२१/११/२००८.
Nov 2024 · 81
Magic From Heart
Joginder Singh Nov 2024
God  is a big magician for all,
big or small.
His magic is the base of our existence.
When such a mesmerizing potential is obtained by a common man.
He also become a magician himself.

Magic from the heart has massive impact on our lives.
No doubt magic sharps our imagination.
It may be a tricky,witty illusion.
But it heals our spirit through reducing out tensions of daily routine life.
Your ability to listen is truly magical.
It can bring many miracles in a  comman man 's life.


Life itself is a wonderful span
where magic and magician runs parallel to time.
The magic of Time is working in us.
So we all are magicians residing on mother Earth.
Super Magician Time always keep himself  busy to make our existence worthy and fruitful.
Nov 2024 · 84
Identity Crisis
Joginder Singh Nov 2024
The children of celebrities
always passes through a phase of
  Identity crisis in their lives where within
a span of time
they struggle, Jumps over a lot of hurdles
because of surroundings of being
the children of celebrities.

We must respect their privacy ,
they need a lot of protection
because sometimes they are a natural victim of their high profile status.
Joginder Singh Nov 2024
आज
एक साथी ने
मुझे
मेरे बड़े कानों की
बाबत पूछा।

मैंने सहज रहकर  
उत्तर दिया,
"यह आनुवांशिक है।
मेरे पिता के भी कान बड़े हैं ।
वे बुढ़ापे के इस दौर में
शान से खड़े हैं।
दिन-रात घर परिवार के
कार्य करते हैं ,
अपने को हर पल
व्यस्त रखते हैं।"


अपने बड़े कानों पर
मैं तरह-तरह की
टिप्पणियां और फब्तियां
सुनता आया हूं।


स्कूल में बच्चे
मुझे 'गांधी' कहकर चिढ़ाते थे।
मुझे उपद्रवी बनाते थे।
कभी-कभी पिट भी जाते थे।
मास्टर जी मुझे मुर्गा बनाते थे।
कोई कोई मास्टर साहब,
मेरे कान
ताले में चाबी लगाने के अंदाज़ से
मरोड़कर
मेरे भीतर
दर्द और उपहास की पीड़ा को
भर देते थे।
मैं एक शालीन बच्चे की तरह
चुपचाप पिटता रहता था,
गधा कहलाता था।



कुछ बड़ा हुआ,
जब गर्मियों की छुट्टियों में
मैं लुधियाना अपने मामा के घर जाता था
तो वहां भी
सभी को मेरे बड़े-बड़े कान नज़र आते थे।
मेरा बड़ा भाई पेशे  से मास्टर गिरधारी लाल
मुझे 'कन्नड़ ' कहता
तो कोई मुझे समोसा कहता ,
किसी को मेरे कानों में 'गणेश' जी नज़र आते,
और कोई सिर्फ़
मुझे हाथी का बच्चा भी कह देता,
यह तो मुझे बिल्कुल नहीं भाता था,
भला एक दुबला पतला ,मरियल बच्चा,
कभी हाथी का बच्चे  जैसा दिख सकता है क्या?
उस समय मैं भीतर से खीझ जाया करता था।
सोचता था, पता नहीं सबको क्यों
मेरे ये कान भाते हैं ?
इतने ही अच्छे लगते हैं,  
तो क्यों नहीं अपने कान भी
मेरी तरह बड़े करवा लेते।
लुधियाना तो डॉक्टरों का गढ़ है,
किसी डॉक्टर से ऑपरेशन करवा कर
क्यों नहीं करवा लेते बड़े , अपने कान?


कभी-कभी
मैं अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के सामने
अपने बड़े-बड़े कान
इस ढंग से हिलाता हूं
कि बच्चे हंसने मुस्कुराने लगते हैं।
इस तरह मैं एक विदूषक बन जाता हूं।
मनोरंजन तो करता ही हूं,
उनके मासूम चेहरों पर
सहज ही मुस्कान ले आता हूं।


मैं एक बड़े-बड़े कानों वाला विदूषक हूं।
पर  विडंबना देखिए ,
आजकल मुझे कानों से सुनने में दिक्कत होती है।
अब मैं इसे सुनने का काम कम ही लेता हूं,
मेरा एक तरफ का कान  तो काम ही नहीं करता,
सो मुझे पढ़ते समय चालाकी से काम लेना पड़ता है।
फिर भी कभी-कभी दिक्कत हो ही जाती है,
बच्चे और साथी अध्यापक मुझे इंगित कर हंसते रहते हैं।
और मैं कुछ-कुछ शर्मिंदा, थोड़ा सा बेचैन हो जाता हूं।
कई बार तो खिसिया तक जाता हूं ।
अब मैं हंसते हंसते दिल
बहलाने का
काम ज़्यादा करता हूं,
और
पढ़ने से ज़्यादा
गैर सरकारी काम ज़्यादा करता हूं,
यहां तक की सेवादार ,चौकीदार भी बन जाता हूं।
आजकल मैं खुद को
'कामचोर 'ही नहीं 'कान चोर 'भी कहता हूं।



कोई यदि मेरे जैसे
बड़े कान वाले का मज़ाक उड़ाता है ,
उसे उपहास का पात्र बनाता है ,
तो मैं भीतर तक
जल भुन जाता हूं ।
उससे लड़ने भिड़ने पर
आमादा हो जाता हूं।



बालपन में
जब मैं उदास होता था,
किसी द्वारा परेशान किए जाने पर
भीतर तक रुआंसा हो जाता था,
तब मेरे पिता जी मुझे समझाते थे ,
"बेटा , तुम्हारे दादाजी के भी कान बड़े थे।
पर वे किस्मत वाले थे,
अपनी कर्मठता के बल पर
घर समाज में इज़्ज़त पाते थे।
बड़े कान तो भाग्यवान होने की निशानी है।"

यह सब सुनकर मैं शांत हो जाता था,
अपने कुंठित मन को
किसी हद तक समझाने में
सफल हो जाता था।


अब मैं पचास के पार पहुंच चुका हूं ।
कभी-कभी मेरा बेटा
मेरे कानों को इंगित कर
मेरा मज़ाक उड़ाता है।
सच कहूं तो मुझे बड़ा मज़ा आता है।


आजकल मैं उसे बड़े गौर से देखा करता हूं,
और सोचता हूं, शुक्र है परमात्मा का, कि
उसके कान मेरे जैसे बड़े-बड़े नहीं हैं।
उस पर कान संबंधी
आनुवांशिकता का कोई असर नहीं हुआ है।
उसके कान सामान्य हैं !
भाग्य भी तो सामान्य है!!
उसे भी मेरी तरह जीवन में मेहनत मशक्कत करनी पड़ेगी।
उसे अपनी किस्मत खुद ही गढ़नी पड़ेगी ।
और यह है भी  कटु सच्चाई ।
जात पात और बेरोजगारी
उसे घेरे हुए हैं,
सामान्य कद काठी,कृश काया भी
उसे जकड़े हुए हैं ।

सच कहूं तो आज भी
कभी-कभी मुझे
लंबे और  बड़े
कानों वाली कुंठा
घेर लेती है,
यह मुझे घुटनों के बल ला देती है,
मेरे घुटने टिकवा देती है।
Nov 2024 · 109
Impossible
Joginder Singh Nov 2024
My hero often repeats a sentence,
"Nothing is impossible in the world of love and war."
And, his opponent oftenly repeats a sentence ,"I want peace on rent in this cunning world."
And myself while thinking about their destiny , suddenly conclude that both are wrong to follow their ways .
The world of love and war is like a toy made of clay to play in the hands of dictators and lovers.
Peace on rent is absolutely a ridiculous  impossible idea which cannot be executed in the world of love, hate , rivalries, inequality, dissatisfaction,jealousy and war.
The warmth of life is still miles away from us and so is the peace, contentment,love,affection,attraction and also satisfaction in day to day lives of ambitious human beings.
Nov 2024 · 58
धोखा
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
मेरे साथ
धोखा हो गया,जब पता चला,
जिसे मैने अच्छा समझा,
वह पाला बदल कर
ओछा हो गया।
वह दगा बाज़ी कर
प्यार और सुकून को
चुपके चुपके चोरी चोरी ले गया।
सोचता हूँ
यह सब क्यों हुआ ?
मैंने उस पर विश्वास किया
और उसने आघात किया।
जिन्दगी में
अकस्मात
घट जाती है दुर्घटना,
भीतर रह जाती  है वेदना।
धोखेबाजी से बचना
कभी कभी होता है मुश्किल ,
यह अक्ल पर
पर्दे पड़ने पर
संभव हो पाती है,
जीते जी जिंदगी को नरक
बना जाती है।



मेरे साथ धोखा हुआ,
आज अच्छा भी , ओछा बना।
चलो,समझ बढ़ाने का , एक मौका मिला।
किस से करूं ,
इस बाबत कोई शिकवा गिला ?
धोखा मिलना, धोखा देना,
है ज़िन्दगी में न रुकने वाला सिलसिला।
२८/११/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
कभी प्यार के इर्द-गिर्द
मंडराया करती थीं
मनमोहक ,रंग बिरंगी ,
अलबेली उड़ान भरतीं
तितलियां।
अब वहां बची हैं
तो तल्ख़ियां ही तल्ख़ियां ।

कभी उनसे
मिलने और मिलाने का ,
अखियां मिलाने और छुपाने का
सिलसिला
अच्छा खासा रहा था चल
फिर अचानक हमारे बीच
आ गया था चंचल मन
मचाया था उसने उत्पात
किया था उसने हुड़दंग ।


बस फिर क्या था
यह सिलसिला गया था थम
समझो सब कुछ हुआ खत्म
फिर हमारे बीच तकरार आ गई
यह संबंधों को खा गई
प्यार के वसंत के बाद
अचानक एक काली अंधेरी आ गई
जो मेरे और उनके बीच एक दीवार उठा गई।


अभी हम मिलते हैं,
पर दिल की बात नहीं कह पाते हैं,
अपने बीच एक दीवार,
उस दीवार पर भी एक दरार
देख पाते हैं,
हमें अपने हुजूर के आसपास
मकड़ी के जाले लगे नजर आते हैं,
हम उस मकड़ जाल में फंसते चले जाते हैं।

अब यह दीवार
और ऊंची उठती जा रही है ।
कभी-कभी
मैं इस दीवार के इधर
और वह इस दीवार के उधर
या फिर इससे उल्ट।

जब इस स्थिति  को पलटते हैं ,
तो वह इस दीवार के इधर ,
और मैं इस दीवार के उधर ,
आते हैं नज़र ।
हम ना मिल सकते के लिए
हैं अब अभिशप्त
तो अब हमारे घरों में
तल्ख़ियां आ गईं हैं,
और हम चुप रहते हैं,
अंदर ही अंदर सड़ते रहते हैं ।

आज हमारे जीवन में अब
कहां चली गई है मौज मस्ती ?
अब तो बस हमारे संबंधों में
तल्ख़ियां और कड़वाहट ही बचीं हैं।
जीवन में मौज मस्ती बीती बात हुई।
यह कहीं उम्र बढ़ने के साथ पीछे छूटती गई।
अब तो बस मन में
तल्ख़ियां और कड़वाहटें भरती जा रहीं हैं।
यह हमें हर रोज़ की ज़िंदगी में घुटनों के बल ला  रही हैं ।
हाय ! प्यार में तल्खियां बढ़ती जा रहीं हैं।
यह दिन रात हमारे अस्तित्व को खा रहीं हैं।
Nov 2024 · 70
Pearl of love
Joginder Singh Nov 2024
Oh dear!

Find the pearl of love
  
in the ocean of emotions

for me and self .

It  will strengthen the bonds of affection
for me and you.

Nowadays attractions of life,sun and smiles is turned into affection.

So avoid distractions in present life.
Time is passing through us rapidly.
You must understand it clearly.

Yours
Hours of Life.
Nov 2024 · 215
Time
Joginder Singh Nov 2024
Time! Time!
Wash out my timidness.
I want to be a good person for the dignity of life.
But my timidness is a hurdle in my way.
So wash out my timidness.
To find the way of lost happiness.
Joginder Singh Nov 2024
शक की परिधि में आना
नहीं है कोई अच्छी बात,
यह तो स्वयं पर
करना है आघात।

अतः जीवन में
आत्महंता व्यवहार
कभी भी न करो,
अपने मन को काबू में करो।
अपने क्रिया कलापों को
शुचिता केन्द्रित बनाओ।
अपने नैतिकता विरोधी
व्यहवार को छोड़ दो।
खुद को संदिग्ध होने से बचाओ।
शक की परिधि में आने से खुद को रोको।
एक संयमित जीवन जीने का आगाज़ करो।

तुम सब अपना जीवन
कीचड़ में पले बढ़े
पुष्पित पल्लवित हुए
कमल पुष्प सा व्यतीत करो।

आज के प्रलोभन भरपूर
जीवन में शुचिता को अपनाओ।
यह मन को शुद्ध बनाती है।
यह व्यक्ति को प्रबुद्ध कर
मन के भीतर कमल खिला कर
जीवन को
जीवन्त और आकर्षण भरपूर
बनाती है,
यह शुचिता
व्यक्ति के भीतर
सकारात्मकता के बहुरंगी पुष्पों को
खिलाती है।

मित्र प्यारे,
तुम अपने भीतर
शुचिता के कमल खिलाओ। ताकि तुम स्वत:
जीवन को साधन संपन्नता का
उपहार दे पाओ ।
जीवन में
लक्ष्य सिद्धि तक
सुगमता और सहजता से
पहुंच पाओ।

दोस्त,
तुम अपने भीतर
शुचिता के कमल खिलाओ।
अंतर्मन में परम की अनुभूति कर पाओ।
  २८/११/२०२४.
Nov 2024 · 60
Why Desires Die So Early?
Joginder Singh Nov 2024
I am a witness of the day to day activities of mind,
where
Some desires die so early
because of craziness of man
or of laziness in life.

How can a man find
his source of happiness and inspiration
in his routine activities of mind?

Is through concentrating for meditation ?
To increase and enhance mental energy existing in the mind.

In  such circumstances
sometimes
Inner consciousness guides him
by creating a constructive idea in the mind that he must involve himself in such activities where energy is required in great abundance.

Then and then only,
one can enter in the territory of calmness, contentment and the peace of mind while facing life.
Joginder Singh Nov 2024
देश तुम सोए हो गहरी नींद में ,
लुटेरे लूट रहे हैं तुम्हारा वैभव हाकिमों के वेश में ।

सत्ता बनी आज विपदा ,
रही जनसाधारण को सता,जनादेश जैसे भावावेगों से।

देश तुम जागो ,सोए क्यों हो ?
निद्रा सुख में खोये खोये से क्यों हो ?

उठो देश,धधक उठो आग होकर ,
बोल उठो, देश,आज युग-धर्म की आवाज़ होकर ।

देश उठो, वंचितों में जोश भरो,
शोषितों पीड़ितों की बेचारगी कुछ तो कम करो ।
Nov 2024 · 76
जीवन कथा
Joginder Singh Nov 2024
मरने से पहले
आदमी
बाज़ दफा
हो जाता है विक्षिप्त
जीवन कथा
है अति संक्षिप्त!

२४/११/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
बूढ़े के भीतर
रहना चाहिए
सदैव एक बच्चा ।
जो झूठ को झाड़ कर
करता रहे
जीवन धारा को सच्चा ,
ताकि अंत
शांतिपूर्वक हो सके
और बन सके बूढ़ा
अनंत के आनंद  की
अनुभूति का हिस्सा।
इसलिए आदमी के भीतर
रहना चाहिए
भीतर सदैव एक बच्चा।
Joginder Singh Nov 2024
नाद
पर कर नृत्य
अनुभूति के पार उतरकर,
बनकर अद्वितीय !
कर मुझे चमत्कृत !
ओ ,योगीनाथ शिव !

तुम्हारे आगमन की गंध,
कण-कण में है जा समाई।

आज नाट्य, नाद, नाच ,गान के स्वर, आदिनाथेश्वर!
कर रहे पग पग पर मानव को प्रखर!!

तुम प्रखरता के शिखर पर
बैठी संवेदना हो,
साक्षात सत्य हो,
परम कल्याणकारी हो।

स्वयं में सुंदरता का सार हो।
तुम्हें मेरा नमन।
हे सत्यं शिवम्  सुंदरम के प्रणेता।!
तुम्हीं सृष्टि की दृष्टि हो ।
तुम्हारे भीतर समाया है काल।
तभी तुम महाकाल कहलाते हो।
यही काल बनता जीवन का आकर्षण है ,
जो जीव , जीव को अपनी ओर खींचता है।
मृत्यु का संस्पर्श कराकर
भोलेनाथ ब्रह्मांड की चेतना से
जीवन के कल्पवृक्ष को सींचते हैं !!

हे  भूतनाथ !
नाद तुम्हारा
जीवन का संवाद बने,
साथ ही यह समस्त वाद विवाद हरे ।
सृष्टि के कण कण से
जीव के भीतर व्यापी चेतना का
आप में समाई महाचेतना से संबंध जुड़े।

ओ' आदियोगी भगवान!
तुम्हारे दिशा निर्देशों पर
सब आगे बढ़ें,
जीवन के भीतर से अमृत का संधान करें।
तुमसे प्रेरित होकर
विषपान करने में सक्षम बनें।
जीवन में ज़हर सरीखे कष्टों को सहन कर सकें।
तुम्हारे भक्त अमर जीवन की  चाहत से सदैव दूर रहें।
वह मृत्यु को अटल मानकर
अपने भीतर बाहर की तमाम हलचलों को भूलकर
अपने  और आप को खोजने का प्रयास करें।
आपको खोजने की खातिर सदैव लालायित रहें।


हे आदिनाथ!
आपको क्या कहूं?
आप अंतर्यामी हैं।
सर्वस्व के स्वामी हैं।
हम सब जीवन धारा के साथ बहते रहें।
आपकी कृपा में ही मोक्ष को देखें ।
सभी आपकी चेतना को
जानने और समझने की चेष्टा करते रहें।

२४/०२/२०१७.
Nov 2024 · 79
Before Blast
Joginder Singh Nov 2024
Why you have remind him his forgotten past?
He has dissatisfaction regarding his past life.
If he derailed himself from present life, soon he can act like a bomb and blast.
Blasts of dissatisfaction, frustrated youth,poverty, corruption, unemployment, destructive activities is silent today.
But the situation goes out of control, blasts can be heard in reality also.तुमने उसे उसका भूला हुआ अतीत क्यों याद दिलाया?वह अपने पिछले जीवन को लेकर असंतुष्ट है।यदि वह वर्तमान जीवन से खुद को पटरी से उतार ले, तो जल्द ही वह बम की तरह काम कर सकता है और विस्फोट कर सकता है असंतोष, कुंठित युवा, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, विनाशकारी गतिविधियों के धमाके आज शांत हैं, लेकिन स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है, धमाके वास्तविकता में भी सुने जा सकते हैं।
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