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Mar 12 · 55
मर्यादा
मनुष्य
जब तक स्वयं को
संयम में
रखता है
मर्यादा बनी रहती है ,
जीवन में
शुचिता
सुगंध बिखेरती रहती है,
संबंध सुखदायक बने रहते हैं
और जैसे ही
मनुष्य
मर्यादा की
लक्ष्मण रेखा को भूला ,
वैसे ही
हुआ उसका अधोपतन !
जीवन का सद्भभाव बिखर गया !
जीवन में दुःख और अभाव का
आगमन हुआ !
आदमी को तुच्छता का बोध हुआ ,
जिजीविषा ने भी घुटने टेक दिए !
समझो आस के दीप भी बुझ गए !
मर्यादाहीन मनुष्य ने अपने कर्म
अनमने होकर करने शुरू किए !
सुख के पुष्प भी धीरे धीरे सूख गए !!
मर्यादा में रहना है
सुख , समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहना !
मर्यादा भंग करना
बन जाता है अक्सर
जीवन को बदरंग करना !
अस्तित्व के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित करना !!
मन की शांति हरना !!
१२/०३/२०२५.
Mar 11 · 48
परवाज़
जीवन में
अपने बच्चों को
आज़ादी दे कर
उन्मुक्त रहकर उड़ने दो।
उन्हें जीवन में एक लक्ष्य दो।
फिर उन्हें बगैर हस्तक्षेप
मंज़िल की ओर बढ़ने दो।
उन्हें जी भरकर
अपने रंग ढंग से
जीवनाकाश में
परवाज़ भरने दो।

समय रहते
मोह के बंधनों से
उन्हें मुक्त कर दो
ताकि वे अपने परों को
भरपूर जीवन शक्ति से
खोल सकें,
मन माफ़िक दिशा में
उड़ारी भर सकें।
जीवन यात्रा में
अपनी मंज़िल को
सहर्ष वर सकें।


तनाव रहित जीवन चर्या से
अच्छे से परवाज़ भरी जाती है,
अतः बच्चों के भीतर
आत्मविश्वास भरने दो,
उन्हें अपने सपने साकार करने दो।
उन्हें परवाज़ के लिए खुले छोड़ दो
ताकि उनका जीवन यात्रा पथ के लिए
अपने को कर सके समय रहते तैयार।
वे करें न कभी आप से
कभी कोई शिकवा और शिकायत।
उन्हें मिलनी ही चाहिए
ऊर्जा भरपूर रवायत ,
परवाज़ भरने की !
मंज़िल वरने की !!
११/०३/२०२५.
Mar 10 · 147
संवाद
जिन्दगी में
संवाद के अभाव में
अक्सर हो जाया करता है
मन मुटाव ,
अतः परस्पर
संवाद रचाया जाए ।
एक दूसरे तक
अपनी चाहतों को
शांत रहकर
पहुंचाया जाए ,
ताकि समय रहते
सब संभल जाएं ।
वे सब अपने मनोभाव
सहजता से
अभिव्यक्त कर पाएं ।
संवाद स्थापना को
विवादों से ऊपर रखा जाए ,
अनावश्यक असंतोष को
बेवजह तूल न दिया जाए ,
बल्कि जीवन में
अपने को बेहतर करने के लिए
प्रयास किए जाएं ,
हो सके तो मतभेद मिटा दिए जाएं।
संवाद स्थापना की ओर
अपनी समस्त संवेदना
और सहृदयता के साथ बढ़ा जाए।
इसके लिए अपरिहार्य है कि
जीवन को विषमताओं से बचाया जाए ,
जीवन पथ को कंटकविहीन बनाया जाए।
१०/०३/२०२५.
Mar 9 · 71
फैसला
अपने जीवन में
उतार चढ़ावों के
बीच से गुजरते हुए
फैसला लेना
कतई होता नहीं आसान।
जब आप ले लेते हैं
बहुत सोच विचार के बाद
अपनी बाबत
कोई सटीक फैसला
और वह मुफीद भी बैठता है ,
आप मन ही मन में
होते हैं खुश और संतुष्ट।
समय पर लिया गया
फैसला आदमी के जीवन में
सार्थक बदलाव ला देता है ,
यह किसी हद तक
आप को विशिष्ट बना देता है।
यह सब निर्भर करता है
आपके शैक्षणिक कौशल पर।
यही योग्यता देती है
आदमी को फैसला लेने का हुनर !
तभी तो कहा जाता है कि
शिक्षा ही है इन्सान का सच्चा जेवर !
जिसे यह मिल जाए जीवन में,
उसके देखते ही बनते हैं तेवर।
वह जीवन में सार्थकता का
अहसास पग पग पर कर पाता है।
जीवन में स्वत: आगे बढ़  पाता है।
०९/०३/२०२५.
कभी कभी
कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मौका हो
जाता है मयस्सर।
आदमी की गलती
बन जाया करती है
कैलेंडर के
मज़ाक करने का सबब।
आज शनिवार को
मुझे एकादशी का व्रत
पिछले महीने की तिथि के
अनुसार आधे दिन तक रखना पड़ा।
यह तो अचानक
श्रीमती ने फोन पर
एकादशी के
सोमवार को होने की
बाबत बताया।
मैं जब घर आया
तो दीवार पर टंगे
कैलेंडर पर
फरवरी के महीने वाला
पृष्ठ नजर आया,
जबकि महीना मार्च का
चल रहा था।
आज आठ मार्च है ,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।
मैं महीने के ख़त्म होने पर भी
अगले महीने को इंगित करने वाला
पृष्ठ पलट नहीं पाया था।
फलत: कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मिल गया था अवसर
और मैं एकादशी होने के
भ्रम का शिकार।
घर पर सभी सदस्यों ने
कैलेंडर के संग
मुझे हँसी मज़ाक का
पात्र बनाया था।
मैं सचमुच खिसिया गया था।
०८/०३/२०२५.
मनुष्य के समस्त  कार्यकलापों का
है आधार,
भावनाओं का व्यापार।
कोई भी
व्यवसाय को
देखिए और समझिए,
एक सीधा सा
गणित नज़र आता है,
वह है
भावनाओं को समझना
और तदनुरूप
अपना कार्य करना ,
अपने को ढालना।
यह भावनाएं ही हैं
जो हमें जीवन धारा से
जोड़े रखती हैं,
हमारे भीतर जीवंतता
बनाए रखती हैं।
जिसने भी
इन्हें समझ लिया,
उसने अपना उन्नति पथ
प्रशस्त कर लिया।
यह वह व्यापार है
जो कभी फीका नहीं पड़ता,
इसे करने वाला
जीवन में न केवल प्रखर
है होता रहता ,
बल्कि वह संतुलित दृष्टिकोण से
निरन्तर आगे ही आगे है बढ़ता।
भावनाओं का व्यापारी
दर्शन और मनोविज्ञान का
है ज्ञाता होता ,और वह सतत्
अपना परिष्कार करता रहता,
जीवन यात्रा को
आसानी से गंतव्य तक पहुंचाता।
०८/०३/२०२५.
दोस्त!
अगले सप्ताह
आज के दिन
यानिकि
शुक्रवार अर्थात् जुम्मे को
बहुप्रतीक्षित
रंगों का त्योहार
होली है।
इस बार
हम सब होली खेलेंगे ,
मगर सलीके से !
पर्यावरण को ध्यान में
रखते हुए !
मानसिक शांति को
अपने मानस में
संभल संभल कर
धरते हुए !
ताकि फिर से
देश में संभल को
दोहराया न जा सके।
देश दुनिया के
सौहार्द पूर्ण वातावरण को
प्रदूषित न किया जा सके।

होली सभी का त्योहार है ,
अच्छा रहेगा इसे सब मनाएं ,
पर यदि किसी को रंगे जाना
दिल ओ दिमाग से पसंद नहीं ,
उसे बिल्कुल न रंगा जाना होगा सही।
बाहर से भले ही हम रंगों से करें गुरेज़!
कोशिश करें हम भीतर से रंगे जाएं !
हरगिज़ हरगिज़ नहीं
हम जीवन में किसी को
रंगे सियार से नज़र आएं !
हम दिल से होली का त्योहार मनाएं ,
बेशक हम किसी को जबरन रंग न लगाएं।
रंग जीवन के चारों तरफ़ फैले हुए हैं ,
मन को हम पावन रखें ,
हम करतार के रंगों से रंगे हुए हैं।
स्व निर्मित अनुशासन से बंधे हुए हैं।
हमारे क़दम संस्कारों से सधे हुए हैं।
जीवन में हम सब जिद्दी न बने।
आज देश दुनिया अराजकता के मुहाने पर है।
बहुतों की अक्ल ठिकाने पर नहीं है ,
अतः सब होली की सद्भावना को चुनें ,
किसी के उकसावे में आकर कतई न लड़ें!
परस्पर तालमेल कायम करते हुए सब आगे बढ़ें।
०७/०३/२०२५.
Mar 7 · 61
मुस्कान
आदमी
मुख से
कुछ न कहे ,
तब भी उसकी
मुस्कान बहुत कुछ
चुपके से
सब कुछ कह देती है।
इसका अहसास
आज मुझे हुआ
जब ऑटो चालक
राज कुमार के संग
कर रहा था मैं यात्रा ,
साथ में मेरे साहिल बैठा था
जो मेरा विद्यार्थी था
और जिसे मैंने
बल्लोवाल सौंखड़ी में
आयोजित क्षेत्रीय कृषि मेले को
देखने के लिए अपने साथ ले लिया था
ताकि वह कृषि से संबंधित उत्पादों को जान ले,
और आगे चलकर कृषि को
अपनी रोजी रोटी का जरिया बना ले।

पास ही राजकुमार की
परिचिता दुकान में बैठी हुई थी
वह मुस्कुराईं ,
ऑटो चालक राजकुमार ने भी
मुस्कान के साथ
हल्के से सिर
दिया था हिला।
दोनों में से बोला कोई भी नहीं,
पर कुशल क्षेम का
हो गया था आदान-प्रदान।
ऑटो चालक रुका नहीं,
परिचिता भी उठी नहीं,
परंतु
उनकी मुस्कान ने
दिल का हाल चाल
बख़ूबी दिया था बता।
दोनों ने अपनी गहरी मुस्कान से
जीवन का सौंदर्य बोध
सहज ही दिया था जता।
मैं इस मूक मुस्कान के
आदान प्रदान से
मन ही मन हो गया था प्रसन्न।
मैने सहजता से
मुस्कान का जादू जान लिया था।

आप भी हर हाल में मुस्कुराया कीजिए!
अपने भीतर और आसपास की जीवंतता का
अहसास मौन रहकर किया कीजिए।
इस दुनिया में बहुत से लोग हैं परेशान,
पर यदि आदमी हर पल मुस्कराए
तो स्वत: ही देखा देखी
बहुत से लोग मुस्कुराना जाएं सीख!
और उनकी चेतना जीवन का सौंदर्य
अर्थात मुस्कान को आत्मसात कर पाए ,
और जीवन में आदमी
कठिनाइयों का सामना
ख़ुशी ख़ुशी सहजता से
मुस्कान सहित करता देखा जाए।

०७/०३/२०२५.
Mar 6 · 335
Adversity
Adversity must become
our advantage in the life.
There is no need to say anything about the difficulties , ultimately winner knows the reward of struggles.
A winner thinks  and act according to experiences of previous life.
There is no need to cry over the toughness of life, because life of an individual prepares itself  for forthcoming challenges of life with a deep smile!
०६/०३/२०२५.
इस दुनिया का
सब से खतरनाक मनुष्य
अशिष्ट व्यक्ति होता है,

जो अपने व्यवहार से
आम आदमी और ख़ास आदमी तक को
कर देता है शर्मिन्दा।
वह अचानक
सामने वाले की इज्ज़त
अपने असभ्य व्यवहार से
कर देता है तार तार!
सभ्यता का लबादा उतार देता है।
अपने मतलब की जिन्दगी जीता है।

अभी अभी
मेरे शहर के बाईस बी सेक्टर के
भीड़ भरे बाज़ार में
एक शख़्श
अपने दोनों हाथों में
एक तख्ती उठाए
रक्तदान के लिए प्रेरित करते हुए
घर घर गली गली घूमते देखा गया है।
उसकी तख्ती पर लिखा है,
" रक्त दानी विशिष्ट व्यक्ति होता है,
जो प्राण रक्षक होता है।"
यह देख कर मुझे अशिष्ट व्यक्ति का
आ गया है ध्यान !
जो कभी भूले से भी नहीं दे सकता
किसी जरूरतमंद को प्राण दान !
बल्कि वह अपने अहम् की खातिर
बन जाता है शातिर
और हर सकता है
छोटी-छोटी बात के लिए प्राण।

इसलिए मुझे लगता है कि
अशिष्ट व्यवहार करने वाला
न केवल असभ्य बल्कि वह
होता है सबसे ख़तरनाक
जो जीवन में कभी कभी
न केवल अपनी नाक कटा सकता है,
यदि उसका वश चले
तो वह अच्छे भले व्यक्ति को
मौत के घाट उतरवा सकता है।
अशिष्ट व्यक्ति से समय रहते किनारा कीजिए!
खुद को जीवनदान दीजिए !!
०६/०३/२०२५.
Mar 5 · 64
पछतावा
काश! यह जीवन
एक तीर्थ यात्रा समझ कर
जीना सीख पाता
तो नारकीय जीवन से
बच जाता।
इधर उधर न भटकता फिरता।
चिंता और तनाव से बचा रहता।
जीवन के लक्ष्य को भी
हासिल कर लेता।
अब पछतावा भी न होता।
पछतावा
विगत की गलतियों का
परछावा भर है।
आदमी समय रहते
संभल जाए ,
यही इसका हल है।
पछताने और इसकी वज़ह को
समझ कर
समय रहते
निदान करने से
आदमी का बढ़ जाता
आत्मबल है।
जो बनता जीने का
संबल है।
०५/०३/२०२५.
चारों ओर बुराइयों को देख
व्यर्थ की बहसबाजी में उलझने से
अच्छा है कि कोई पहल की जाए ,
सोच समझ कर बुराई के हर पहलू को जाना जाए ,
और तत्पश्चात उसे दूर करने के प्रयास किए जाएं।
बुरे को बुरा , अच्छे को अच्छा कहने में
कोई हर्ज़ नहीं , बस सब अपने फ़र्ज़ समझें तो सही।
फ़र्ज़ पर टिके रहना वाला ,
कथनी और करनी का अंतर मिटाने वाला
अक्सर जीवन के कठिन हालातों से जूझ पाता है।
वह जीवन के उतार चढ़ावों के बावजूद
सकारात्मक सोच के साथ पहल कर पाता है।
वह जीवन की भाग दौड़ में विजेता बनकर
नए बदलाव लेकर आता है।
अपनी अनूठी पहल के बूते
पहले स्थान को हासिल कर जाता है।
वह जीवन के संघर्षों में अग्रणी होकर
अपनी पहचान बना जाता है।
पहले पहले पहल करने वाला
जीवन के सत्य को जान लेने से
बौद्धिक रूप से प्रखर बन जाता है।
वह स्वतः मान सम्मान का
अधिकारी बन जाता है।
वह जन जीवन से खुद को जोड़ जाता है।
वह हरदम अपने पर भरोसा करके
अपनी उपस्थिति का अहसास करवाता रहता है।
पहल करने वाला प्रखर होता है ,
वह अपनी संभावना खोजने के लिए
सदैव तत्पर रहता है।
०५/०३/२०२५.
कलयुग है ,
आजकल भाई
आपस में
छोटी छोटी बातों पर
लड़ पड़ते हैं ,
वे मरने मारने पर
उतारू हो जाते हैं !
काला उर्फ़ सुरिंदर ने
दो दिन पहले
बातों बातों में कहा था कि
जो भाई शादी से पहले
एक दूसरे की रक्षा में
गैरो से लड़ने को रहते हैं तैयार !
वही भाई समय आने पर
एक दूसरे को मारने पर
हो जाते हैं आमादा,
एक दूसरे के पर्दे उतार
शर्मसार कर देते हैं।
अब रामायण काल नहीं रहा !
लक्ष्मण सा भाई विरला ही मिलता है।
बल्कि भाई भाई का ख़ून कर
बन जाया करता है क़ातिल।

अभी यह सब सुने महज दो दिन हुए हैं कि
इसे प्रत्यक्ष घटित होते
अख़बार के माध्यम से जान भी लिया।
अख़बार में एक खबर सुर्खी बन छपी है ,
" ढाबे पर ट्रक चालक ने शराब के नशे में
बड़े भाई को पीट पीटकर मार डाला..."

सनातन में "रामायण " में
आदर्श भाइयों के बारे में
उनके परस्पर प्रेम और सौहार्दपूर्ण
जीवन बाबत दर्शाया गया है।
वहीं "महाभारत" में
कौरवों और पांडवों के बीच
भाइयों भाइयों में होने वाले
विवाद और संवाद की बाबत
विस्तार से कथा के रूप में
बताया गया है,
आदमी की समझ को
बढ़ाने की खातिर
एक मंच सजाया गया है।

मैं इस बाबत सोचता हूँ
तो आता है ख्याल।
आज कथनी और करनी के अंतर ने ,
रिश्तों में स्वार्थ के हावी होने ने
भाई को भाई का वैरी बना दिया है।
स्वार्थ के रिश्तों ने
रामायण के आदर्श भाइयों को
महाभारत करने के लिए उकसाया है।
पता नहीं कहाँ भाई भाई का प्यार जा छुपाया है ?
आदर्श परिवार को भटकाव के रास्ते पर दिया है छोड़ !
पता नहीं कब तक भाई
अपने रिश्ते को एक जुट रख पाएंगे !
या फिर वे भेड़चाल का शिकार होकर
आपस में लड़ कर समाप्त हो जाएंगे !!
आज भाईचारा बचाना बेहद ज़रूरी है ,
ताकि समाज बचा रहे !
देश स्वाभिमान से आगे बढ़ सके !!
०४/०३/२०२५.
बचपन में
मां थपकी दे दे कर
बुला देती थी
निंदिया रानी को ,
देने सुख और आराम।
अब मां रही नहीं,
वे काल के प्रवाह में बह गईं।
अब बुढ़ापे में
निंदिया रानी
अक्सर झपकी बन
रह रह कर देती है सुला,
किसी हद तक
अवसाद देती है मिटा।
अब निंदिया रानी
लगने लगी है मां,
जो देने लगती है
सुख और आराम की छाया!
जिससे हो जाती है ऊर्जित
जीवन की भाग दौड़ में थकी काया !!
अब निंदिया रानी बन गई है मां!
जो सुकून भरी थपकी दे दे कर ,
मां की याद दिलाने लगती है,
सच में मां के बगैर
जिन्दगी आधी अधूरी सी लगती है।
अब निंदिया रानी अक्सर
कुंठा और तनाव से दिलाने निजात
मीठी मीठी झपकी की दे देती है सौगात।
आजकल निंदिया रानी मां सी बन कर
जीवन यात्रा में सुख की प्रतीति कराती है,
यह आदमी को बुढ़ापे में
असमय बीमार होने से बचाया करती है।
०४/०३/२०२५.
Mar 3 · 54
विदूषक
आदमी
कभी कभी
अपनी किसी
आंतरिक कमी की
वज़ह से विदूषक जैसा
व्यवहार न चाहकर भी करता है ,
भले ही वह बाद में पछताता रहे अर्से तक।
भय और भयावह अंजाम की दस्तक मन में बनी रहे।

विदूषक भले ही
हमें पहले पहल मूर्ख लगे
पर असल में वह इतना समझदार
और चौकन्ना होता है कि उसे डराया न जा सके ,
वह हरदम रहता है सतर्क ,अपने समस्त तर्क बल के साथ।
विदूषक सदैव तर्क के साथ क़दम रखता है ,
बेशक उसके तर्क आप को हँसाने और गुदगुदाने वाले लगें।

आओ हम विदूषक की मनःस्थिति को समझें।
उसकी भाव भंगिमाओं का भरपूर आनंद लेते हुए बढ़ें।
कभी न कभी आदमी एक विदूषक सरीखा लगने लगता है।
पर वह सदैव सधे कदमों से
जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करता है ,
यही सब उसके व्यक्तित्व के भीतर कशिश भरता है।
उसे निरर्थकता में भी सार्थकता खोजने का हुनर आता है!
तभी वह बड़ी तन्मयता से
तनाव और कुंठा ग्रस्त व्यक्ति के भीतर
हंसी और गुदगुदाहट भर पाता है।
ऐसा करके वह आदमी को तनावरहित कर जाता है !
यही नहीं वह खुद को भी उपचारित कर पाता है !!
०३/०३/२०२५.
Mar 3 · 60
यात्रा
जीवन यात्रा में
कब लग जाए विराम ?
कोई कह नहीं सकता !
और आगे जाने का
बंद हो जाए रास्ता।
आदमी समय रहते
अपनी क्षमता को बढ़ाए,
ताकि जीवन यात्रा
निर्विघ्न सम्पन्न हो जाए।
मन में कोई पछतावा न रह जाए।
सभी जीवन धारा के अनुरूप
स्वयं को ढाल कर
इस यात्रा को सुखद बनाएं।
हरदम मुस्कान और सुकून के साथ
जीवन यात्रा को गंतव्य तक पहुँचाएं।
०३/०३/२०२५.
Mar 3 · 72
भूलना
हवा में झूलने
जैसा हो गया है
अब उम्र बढ़ने से ,
याददाश्त कमज़ोर होने से ,
बार बार भूलना ,
और किसी नज़दीकी का
याद दिलाना ,
याद दिलवाने की
प्रक्रिया रह रहकर दोहराना ।
आदमी का
फिर भी भूलते जाना ।
स्मृतियों का हवा हवाई हो जाना ,
भीतर तक
कर देता है बेचैन !
बरबस
कभी कभी
बरस जाते हैं नैन !
जिन्दगी की धूप छाँव में
स्मृति की बदलियां
कभी कभी
बरस जाती हैं ,  
याददाश्त की किरणें
अचानक मन के भीतर
प्रवेश कर
आदमी को सुकून दे जाती हैं ,
मन को कमल सा खिला देती हैं।
भूलना लग सकता है
आदमी को शूल
मगर यह जिंदगी का स्वप्निल दौर भी
कभी हो जाता है
समय की धूल जैसा।
जिसे कोई स्मृति अचानक कौंध कर
कर देती है साफ़ !
सब कुछ याद आने लगता है ,
फिर झट से आदमी
अपना आस पास जाता है भूल,
उसकी चेतना पर पड़ जाती अचानक समय की धूल,
आदमी जाता भूल, अपना मूल !
यहीं है जीवन पथ पर बिखरे शूल !!
भूलना हवा में
झूलने जैसा हो गया है,
ऐसा लगता है कभी कभी
जीवन पथ कहीं खो गया है ,
चेतन तक  
कहीं नाराज़ होकर सो गया है।
भूलना हवा में झूलने जैसा होता है जब,
आदमी अपना अता पता खोकर,
लापता हो जाता है।
कभी कभी ही वह लौट पाता है !
वापसी के दौरान वह फिर अपनी सुध बुध भूल
कहीं भटकने लगता है।
ऐसी दशा देख कर
कोई उसका प्यारा
तड़पने लगता है।
०३/०३/२०२५.
जब पहले पहल
नौकरी लगी थी
तब तनख्वाह कम थी
पर बरकत ज़्यादा थी।
अब आमदनी भी
पहले की निस्बत ज़्यादा,
पर बरकत बहुत ही कम!
कल थरमस खरीदी,
दाम दिए हजार रुपए से
थोड़े से कम !
पहली नौकरी में
महीना भर काम करने के
उपरांत मिले थे
पगार में लगभग नौ सौ रुपए।
मैं बहुत खुश था !
कल मैं सन्न रह गया था !
निस्संदेह
महंगाई के साथ साथ
संपन्नता भी बढ़ी है।
पर इस नक चढ़ी
महंगाई ने
समय बीतते बीतते
अपने तेवर
दिखाए हैं!
कम आय वर्ग को
ख़ून के आँसू रुलाए हैं !
बहुत से मेहनतकश
बेरहम महंगाई ने
जी भर कर सताए हैं !!
आओ कुछ ऐसा करें!
सभी इस बढ़ती महंगाई का सामना
अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करते हुए करें।
सब ख़ुशी ख़ुशी नौकरी और काम धंधा करें,
वे इस बढ़ती महंगाई को विकास का नतीजा समझें ,
इससे कतई न डरें !
वे महंगाई के साथ साथ
जीवन संघर्ष में जुटे रहें !!
०३/०३/२०२५.
जो चोर है
वही करता शोर है,
इस दुनिया में
अत्याचार घनघोर है!
साहस दिखाने का
जब समय आता है,
अपना चोर भाई!
पीछे हट जाता है।
शायद तभी
वह शातिर कहलाता है।
अचानक
भीतर से एक आवाज़ आई
सच को उजागर करती हुई,
"पर ,कभी कभी
सेर को सवा सेर
टकरा जाता है।
वह चुपके से
चकमा दे जाता है,
अच्छे भले को
बेवकूफ़ बना जाता है।"
बेचारा चोर भाई !
मन ही मन में
दुखियाता रहता है,
वह कहां सुखी रह पाता है ?
एक दिन वह चुप ही हो जाता है।
वह शोर करना भूल जाता है।
जब समय आता है,
तब वह वही शोर करने से
बाज़ नहीं आता है।
इसमें ही उसे लुत्फ़ और मज़ा आता है।
वह इसी रंग ढंग से ज़िन्दगी जी कर
टाटा बाय बाय कर जाता है।
उसके जाने के बाद सन्नाटा भी
कुछ उदास हुआ सा पसर जाता है।
वह भी चोर के शोर मचाने का
इंतज़ार करने लग जाता है
कि कोई आए और जीवन को करे साकार।
वह भरपूर जिंदगी जीते हुए
लौटाए
जिन्दगी को
चोरी की हुई
जिंदगी की
लूटी हुई बहार ,
जीवन में लेकर आए
सहज रहकर करना सुधार
और निर्मित करना जीवनाधार।



०२/०३/२०२५.
Mar 1 · 100
खलना
उम्र जैसे जैसे बढ़ी
मुझे ऊंचा सुनने लगा है ।
जब कोई कुछ कहता है,
मैं ठीक से सुन पाता नहीं।
कोई मुझे इसका कराता है
चुपके चुपके से अहसास।
मैं पास होकर भी हो जाता हूं दूर।
यह सब मुझे खलता है।
वैसे बहुत कुछ है
जो मुझे अच्छा नहीं लगता।
पर खुद को समझाता हूं
जीवन कमियों के साथ
है आगे मतवातर बढ़ता।
इस में नहीं होना चाहिए
कोई डर और खदशा।
०१/०३/२०२५.
जब आप किसी के
ख़िलाफ़  कुछ कहने का
साहस जुटाने की
ज़ुर्रत करते हैं ,
आप जाने अनजाने
कितने ही
जाने पहचाने और अनजाने चेहरों को
अपना विरोधी बना लेते हैं !
जिन्हें आजकल लोग
दुश्मन समझने की भूल करते हैं !
आज दोस्त बनाने और दुश्मन कहलाने का
किस के पास है समय ?
यदि कभी समय मिल ही जाए
तो क्यों न आदमी इसे अपने
निज के विकास में लगाए ?
वह क्यों किसी से उलझने में
अपनी ऊर्जा को लगाए ?
वह निज से संवाद रचा कर
मन में शान्ति ढूंढने का
करना चाहे उपाय।
आज देखा जाए तो अश्लील कुछ भी नहीं !
क्योंकि आज एक छोटे से बच्चे के हाथ में
मोबाइल फोन दे दिया जाता है ,
ताकि बच्चा रोए न !
मां बाप की आज़ादी में
भूल कर दखल दे न !
जाने अनजाने अश्लीलता बच्चे के अवचेतन में
छाप छोड़ जाती है।
जबकि बच्चे को ढंग से
अच्छे बुरे का विवेक सम्मत फ़र्क करना नहीं आता।

आजकल
इंटरनेट का उपयोग बढ़ गया है,
इसका इस्तेमाल करते हुए
यदि भूल से भी
कुछ गलत टाइप हो जाए
तो कभी कभी अवांछित
आंखों के सामने
चित्र कथा सरीखा मनोरंजक लगकर
अश्लीलता का चस्का लगा देता है ,
जीवन के सम्मुख एक प्रश्नचिह्न लगा देता है।
आज सच को कहना भी अश्लील हो गया है !
झूठ तो खैर अश्लीलता से भी बढ़कर है।
हम अश्लीलता को तिल का ताड़ न बनाएं,
बल्कि अपने मन पर नियंत्रण करना खुद को सिखाएं।
यदि आदमी के पास मन को पढ़ने का हुनर आ जाए ,
तो यकीनन अश्लीलता भी शर्मा जाए ।
भाई भाई के बीच नफ़रत और वैमनस्य भर जाए ।
रामकथा के उपासक भी
महाभारत का हिस्सा बनते नज़र आएं।
क्यों न हम सब सनातन की शरण में जाएं।
वात्स्यायन ऋषि के आदर्शों के अनुरूप
समाज को आगे बढ़ाएं।
हमारा प्राचीन समाज कुंठा मुक्त था।
यह तो स्वार्थी आक्रमणकारियों का दुष्चक्र था,
जिसने असंख्य असमानता की
पौषक कुरीतियों को जन्म दिया,
जिसने हमारा विवेक हर लिया ,
हमें मानवता की राह से भटकने पर विवश कर दिया।
सांस्कृतिक एकता पर
जाति भेद को उभार कर
दीन हीन अपाहिज कर दिया।
अच्छे भले आदमियों और नारियों को
चिंतनहीन कर दिया ,
चिंतामय कर दिया।
सब तनाव में हैं।
आपसी मन मुटाव से
कमज़ोर और शक्तिहीन हो गए हैं।
आंतरिक शक्ति के स्रोत
अश्लीलता ने सुखा दिए हैं,
सब अश्लीलता के खिलाफ़
फ़तवा देने को तैयार बैठे हैं,
बेशक खुद इस समस्या से ग्रस्त हों।
सब भीतर बाहर से डर हुए हैं।
कोई उनका सच न जान ले !
उनकी पहचान को अचानक लील ले !!

अश्लीलता के खिलाफ़
सब को होना चाहिए।
इस बाबत सभी को
जागरूक किया जाना चाहिए।
ताकि
यह जीवन को न डसे !
बल्कि
यह अनुशासित होकर सृजन का पथ बने !!
२८/०२/२०२५.
भोजन भट्ट
खा गया चटपटे खाद्य पदार्थ !
ले ले कर स्वाद
झटपट !
अब ले रहा है
नींद में झूट्टे
और थोड़ी थोड़ी देर के बाद
बदल रहा है करवट,
रेल सफर के दौरान।
चेहरा उसका बता रहा
वह ज़िन्दगी के सफर में भी है
संतुष्ट !
आदमी जिसे
भोजन से मिल जाए
परम संतुष्टि !
हे ईश्वर!
ऐसे देव तुल्य पुरुष पर
बनाए रखना
सर्वदा सर्वदा
अपनी कृपा दृष्टि !
देश दुनिया के बाशिंदों को
दिलाते रहना हमेशा
खाद्य संतुष्टि !
हम जैसे प्राणी भी
श्रद्धापूर्वक करते रहें
ईश्वरीय चेतना की स्तुति
ताकि सभी संतुष्ट जन
जीवन यात्रा के दौरान
अनुभूत कर सकें
दिव्यता से परिपूर्ण
अनुभूति !
वे खोज सकें
मार्ग दर्शक विभूति !!
२७/०२/२०२५.
बचपन में
परिश्रम करने की
सीख
अक्सर दी जाती है,
परिश्रम का फल
मीठा होता है,
बात बात पर
कहा जाता है।
बचपन
खेल कूद ,
शरारतों में बीत जाता है।
देखते देखते
आदमी बड़ा होते ही
श्रम बाज़ार में
पहुँच जाता है,
वहाँ वह दिन रात खपता है,
फिर भी उसे मीठा फल
अपेक्षित मात्रा में
नहीं मिलता है,
परिश्रम के बावजूद
मन में कुछ खटकता है।
श्रम का फल
ठेकेदार बड़ी सफाई से
हज़म कर जाता है।
यहाँ भी पूंजीवादी
बाज़ी मार ले जाता है।
मेहनत मशक्कत करनेवाला
प्रतिस्पर्धा में टिकता ज़रूर है।
शर्म छोड़कर बेशर्म बनने वाला
बाज़ार में सेंध लगा लेता है,
हाँ,वह मज़दूर से तनिक ज़्यादा कमा लेता है !
नैतिकता की दृष्टि से वह भरोसा गंवा लेता है!!
शर्म छोड़कर कुछ जोखिम उठाने वाला
श्रमिक की निस्बत
अपना जीवन स्तर थोड़ा बढ़िया बना लेता है !
वह अपनी हैसियत को ऊँचा उठा लेता है !!
आज समाज भी श्रम की कीमत को पहचाने।
वह श्रमिकों को आगे ले जाने,
खुशहाल बनाने की
कभी तो ठाने।
वे भी तो कभी पहुंचें
जीवन की प्रतिस्पर्धा में
किसी ठौर ठिकाने।
आज सभी समय रहते
श्रम की कीमत पहचान लें ,
ताकि जीवन धारा नया मोड़ ले सके।
श्रमिक वर्ग में असंतोष की ज्वाला कुछ शांत रहे ,
वे कभी विध्वंस की राह चलकर अराजकता न फैलाएं।
काश! सभी समय रहते श्रमिक को
श्रम की कीमत देने में न हिचकिचाएं।
वे जीवन को सुख समृद्धि और संपन्नता तक पहुँचाएं।
२७/०२/२०२५.
बेशक
कटाक्ष काटता है!
यह कभी कभी क्या अक्सर
दिल और दिमाग पर खरोचें लगाकर
घायल करता है !
पर स्वार्थ रंगी दुनिया में
क्या इसके बगैर कोई काम सम्पन्न होता है ?
आप कटाक्ष करिए ज़रुर !
मगर एक सीमा में रहकर !!
यदि कटाक्ष ज्यादा ही काम कर गया
तो कटाक्ष का पैनापन सहने के लिए
संयम के साथ
स्वयं को रखिए तैयार !
ताकि जीवन यात्रा का
कभी छूटे न आधार।
कभी क्रोधवश
आदमी करने लगे उत्पात।
२६/०२/२०२५.
आदमी
अपने इर्द गिर्द के
घटना चक्र को
जानने के निमित्त
कभी कभी
हो जाता है व्यग्र और बेचैन।
भूल जाता है
सुख चैन।
हर पल इधर उधर
न जाने किधर किधर
भटकते रहते नैन।
यदि वह स्वयं की
अंतर्निहित
संभावनाओं को
जान ले ,
उसका जीवन
नया मोड़ ले ले।
आदमी
बस
सब कुछ भटकना छोड़ कर
खुद को जानने का
प्रयास करे !
ताकि जीवन में
सकारात्मक घटनाक्रम
उजास बन कर
पथ प्रदर्शित कर सके !
मन के भीतर से
अंधेरा छंट सके!!
२५/०२/२०२५.
हरेक की चाहत है कि
उसके जीवन में
कभी न रहे
कोई कमी।
उसे मयस्सर हों
सभी सुख सुविधाएं
कभी न कभी।
लेकिन जीवन यात्रा में
शराब की लत
आदत में
शुमार हो जाती है,
तब यह एक श्राप सी होकर
जोंक की तरह
आदमी का खून पीने के निमित्त
उसके वजूद से
लिपट जाती है।

यही नहीं
कभी कभी
शबाब भी उसकी
चेतना से लिपट जाता है,
उसे अपनी खूबसूरती पर
अभिमान हो जाता है,
उसे अपने सिवा कोई दूसरा
नज़र नहीं आता है,
वह औरों के वजूद को
कभी न कभी
नकारने लग जाता है,
आदमी की अकाल पर
पर्दा पड़ जाता है।
उसे हरपल मदिरा से भी
अधिक नशीला नशा भाता है,
वह शानोशौकत और आडंबर में
निरन्तर डूबता जाता है।
इस दौर में आदमी का
सौभाग्य
हरपल हरक़दम उसे
विशिष्टता का अहसास कराता है,
वह एक मायाजाल में फंसता चला जाता है।

शराब और शबाब
जिन्दगी का सत्य नहीं !
इस जैसा भ्रम
झूठ में भी नहीं !!
इस दौर के
आदमी का सच यह है कि
आज जीवन में
सच और झूठ
मायावी संसार को लपेटे
झीने झीने पर्दे हैं
जिनसे हमारे जीवनानुभव जुड़े हैं।
हम सब दुनिया के
मायावी बाज़ार में
लोभ और संपन्नता के आकर्षणों से
बंधे हुए निरीह अवस्था में खड़े हैं।
कभी कभी
अज्ञानतावश
हम आपस में ही लड़ पड़ते हैं,
अनायास जीवन में दुःख पैदा कर
जीवन यात्रा में जड़ता उत्पन्न कर देते हैं।
ये हमारे जीवन का
विरोधाभास है
जो हमें भटकाता रहा है,
अच्छी भली जिंदगी को
असहज बनाता रहा है।
इस मकड़जाल से बचना होगा।
कभी न कभी
नकारात्मकता छोड़
सकारात्मकता से जुड़ना होगा।
हमें जीवन ऊर्जा को संचित करने के लिए
सादा जीवन, उच्च विचार की
जीवन पद्धति की ओर लौटना होगा,
ताकि जीवन के प्रवाह में
बेपरवाह होने से बच सकें,
जीवन को पूरी तन्मयता से
जीने का सलीका सीख सकें।
...और कभी जीवन में
कोई कमी हमें खले नहीं!
सभी सुख समृद्धि
और
संपन्नता को छूएं तो सही!!
२४/०२/२०२५.
यह जीवन अद्भुत है।
इसमें समय मौन रहकर
जीव में समझ बढ़ाता है।
यहाँ कठोरता और कोमलता में
अंतर्संघर्ष चलता है।
कठोर आसानी से कटता नही,
वह बिना लड़े हार मानता नहीं,
उसे हरदम स्वयं लगता है सही।
कोमल जल्द ही पिघल जाता है,
वह सहज ही हिल मिल जाता है,
वह सभी को आकर्षित करता है।
उसके सान्निध्य में प्रेम पलता है।
कठोर भी भीतर से कोमल होता है,
पर जीवन में अहम क़दम क़दम पर
उसका कभी कभी आड़े आ जाता है।
सो ,इसीलिए वह खुद को
अभिव्यक्त नहीं कर पाता है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे?
सच है, उसके भीतर भी संवेदना बहे।
कठोरता दुर्दिनों में बिखरने से बचाती है,
जबकि कोमलता जीवन धारा में
मतवातर निखार लेकर आती रही है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे ?
वह बिखरने से बचना चाहता है,
वह हमेशा अडोल बना रहता है।
24/02/2025.
देखते देखते
जीवन के रंगमंच पर
बदल जाता है
परिदृश्य।
जीवन
जो कभी लगता है
एक परिकथा जैसा,
इसमें
स्वार्थ का दैत्य
कब कर लेता है
प्रवेश,
ख़ास भी आम
लगने लग जाता है,
देखते देखते
मधुमास पतझड़ में
तब्दील हो जाता है,
जीव में भय भर जाता है।
वह मृत्य के
इंतज़ार में
धीरे धीरे गर्क हो जाता है।
अब तो बस
स्वप्नावस्था में
वसंत आगमन का
ख्याल आता है।
देखते देखते ही
जीवन बीत जाता है,
नव आगंतुकों के स्वागतार्थ
यह जीवन का
अलबेला रंगमंच
खाली करना पड़ जाता है,
प्रस्थानवेला का समय
देखते देखते आन खड़ा होता है
जीवन के द्वार पर
यह जीवन का दरबार
बिखर जाता है।
कल कोई नया राजा
अपना दरबार लगाएगा,
जीवन का परिदृश्य
चित्रपट्ट की
चलती फिरती तस्वीरों के संग
फिर से एक नई कहानी दोहराएगा।
इसका आनंद और लुत्फ़
कोई तीसरा उठाएगा।
समय ऐसे ही बीतता जाएगा।
वह सरपट सरपट दौड़ रहा है।
इसके साथ साथ ही वह
जीवन से मोह छोड़ने को कह रहा है।
२४/०२/२०२५.
अब तक सभी
अपने अपने कर्म चक्र से
बंध कर
जीवन को साधे हुए हैं ,
आगे बढ़ने के लिए
संयम के साथ
स्वयं को
तैयार कर रहें हैं।
सभी को पता है अच्छी तरह से ,
जो बीजेंगे , वही काटेंगे !
यदि कर्म नहीं करेंगे ,
तो आगे कैसे बढ़ेंगे !
जीवन चक्र से मुक्ति की राह में
अनजाने ही एक बाधा खड़ी कर लेंगे।
सो सब अपनी सामर्थ्य से
भरपूर काम कर रहे हैं ,
इस जीवन में सुख के बीज बो रहे हैं ,
बल्कि आगे की भी तैयारी कर रहे हैं।
सनातन में कर्म चक्र
सतत चलायमान है ,
जन्म मरण का खेल भी
कर्म के मोहरों से चल रहा है।
अरे मन ! इस जीवन सत्य को समझ के
आगे बढ़ , कर्म करने से पीछे न हट।
व्यर्थ ठाली बैठे रहने से टल।
कर्म करने से न डर, मतवातर आगे बढ़।
आगे बढ़ने की लगन अपने भीतर भर!
इस जन्म को यों ही न व्यर्थ कर !!
२३/०२/२०२५.
श्राद्ध पक्ष में
परंपरा है देश में
अपने पुरखों को याद करते हुए
भोजन जिमाने की !
अपने पुरखों से जुड़ जाने की !

किसी ने कहा था ,
" गुरु जी! हम ब्राह्मण हैं। ..."
मेरे मुखारविंद से
बरबस निकल पड़ा था ,
" यहां पढ़ने वाले
ब्रह्मचारी ही असली ब्राह्मण है
चाहे ये किसी भी समूह से संबद्ध हों।
अतः क्षमा करें।"
यह कह मैं अपने काम में
हो गया था तल्लीन।
फिर अचानक मन में
कुछ दया भाव उत्पन्न हुआ।
बाहर जाकर देखा तो वह भद्र पुरुष जा चुका था।
सेवा का एक मौका हाथ से निकल चुका था।
मैं देर तक पछताया था।
मैंने याचक को अज्ञानवश द्वार से लौटाया था।
एक घटना ने घट कर मुझे कुछ सिखाया था
कि आगे से अज्ञान की पोटली  
मन और चेतना में लिए न फिरो,
बल्कि अपने को मेरे तेरे के भावों से ऊपर उठाओ,
धरा को समरसता की दृष्टि संचित कर अनुपम बनाओ।
हो सके तो लोक जीवन के साथ
स्वार्थहीन होकर रिश्ता जोड़ जाओ।
२३/०२/२०२५.
स्वप्न में घटी घटना की स्मृति पर आधारित ।
आज समाज में
असंतोष की आग
दावानल बनी हुई
सब कुछ भस्मित करती
जा रही है ,
उसके मूल्य
दिनोदिन
अवमूल्यन की राह
बढ़ चले हैं,
सब भोग विलास की राह पर
चल पड़े हैं।
सभी के भीतर
डर,आक्रोश, सनसनी
उत्पन्न होती जा रही है ,
हर वर्ग में तनातनी
बढ़ती जा रही है।
ऐसे समय में
समाज क्या करे ?
वह अपने नागरिकों में
कैसे सार्थक सोच विकसित करे ?
वह किन से
सुख समृद्धि और संपन्नता की आस करे
ताकि उसका मूलभूत ढांचा
सकारात्मकता को
बरकरार रख सके ,
इसमें दरारें न आ सकें।
इसमें और अधिक बिखराव न हो।
कहीं कोई गुप्त तनाव न हो ,
जिससे विघटन की रफ्तार कम हो सके ,
समाज में मूल्य चेतना बची रह सके।

आज समाज
क्यों न स्वयं को
पुनर्संगठित करे !
समाज
निज को
समयोचित बनाकर
अपने विभिन्न वर्गों में
असंतोष की ज्वाला को
नियंत्रण में रखने के लिए
निर्मित कर सके कुछ सार्थक उपाय !
वह समायोजन की और बढ़े !
इसके साथ ही वह अंतर्विरोधों से भी लड़े !!
ताकि सब साम्य भाव को अनुभूत कर सकें !!
२३/०२/२०२५.
मनुष्य का
इस धरा पर आगमन
किस लिए हुआ ?
यह अकारण नहीं ,
क्या इस में कुछ रहस्य छिपा ?
मनुष्य
योनियों के एक मायाजाल से
उभरकर
विशेष प्रयोजनार्थ
लेता है जन्म।
उसमें
अन्य जड़ पदार्थों
और चेतन प्राणियों की
तुलना में
कुछ विशेष चेतना
धीरे धीरे
काल के समंदर से गुज़र कर
है विकसित हुई
ताकि वह चेतन की अनुभूति कर सके !
निरर्थकता से ऊपर उठकर
जीवन की सार्थकता को अनुभूत कर सके !
हमारे यहां सनातन में
कर्म चक्र के प्रति आस्था व्यक्त की गई है ,
कर्म फल यानी कार्य कारण संबंध !
कुछ भी नष्ट नहीं !
महज़ ऊर्जा का रूपांतरण !!
इस आस्था के साथ जनम !
जीवन धारा को
चेतना बनकर
आत्मा में प्रवेश करने का
साक्षात निमंत्रण!
आवागमन का चक्र
इस सृष्टि में चल रहा है।
मनुष्य की चेतना में एक ख्याल कि
वह इस धरा पर क्यों जन्मा ?
क्या मनुष्य को छोड़कर
किसी अन्य जीव में आ सकता है ?
इस बाबत भी
कभी फ़ुर्सत में
विचार कीजिए?
अपनी दृष्टि को आधार दीजिए !
जीव जगत के बाबत
अपना दृष्टिकोण विकसित कीजिए !!
अपनी जगत में उपस्थिति को
दर्शन की पैनी धार दीजिए !
स्वयं को आत्म बोध करने की
दिशा में अग्रसर कीजिए !!
२२/०२/२०२५.
यदि आदमी कभी
अपनी जेहादी मानसिकता को भूल जाए ,
तो कितना अच्छा हो
उसका रोम रोम भीतर तक
कमल सा खिल जाए !
वह बगैर किसी कुंठा और तनाव के
जीवन पथ पर आगे बढ़ पाए !
कितना अच्छा हो
आदमी बस खुद को समझ जाए ,
तो उसका जीवन स्वयंमेव सुधर जाए।
वह निर्मलता का मूल जान जाए ।
वह मन की मलिनता को दूर कर पाए।
वह बाहर और भीतर के प्रदूषण से लड़ पाए।
वह जीवन में कुंदन बन जाए।
२१/०२/२०२४.
मेरा पुत्र
जो है पूरा देसी
पर नाम है जिसका
अंग्रेज सिंह।
कुछ समय पहले
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जाने की
थी जिसकी ख्वाइश!
बहुत सारा धन कमाने का
था जिसका ख्वाब!
घर पर अपने ही ढंग से रहता था ।
जिस का रहन सहन
उसके मां बाप को तनिक नहीं भाता था।
आजकल थोड़ा अक्लमंद बन गया है।

जब से अमेरिका से
मेरे भारतीय भाई लोग
डोनाल्ड ट्रंप की
अमेरिका फर्स्ट की
नीति की वज़ह से
भारत वापसी को हुए हैं
मजबूर !
जो अच्छे मज़दूर और
कामयाब व्यापारी बनने की
योग्यता रखते हैं !
उम्मीद है
वे अब सही राह चलेंगे ,
भारत की तरक्की के लिए
दिन रात उद्यम करेंगे !
भारत को
भारत प्रथम की नीति पर
चलने की राह दिखा कर
फिर से
सुख , समृद्धि और संपन्नता की
ओर ले जाने का प्रयास करेंगे।

अंग्रेज सिंह
अब भारत में रहकर
अपना काम धंधा जमाना चाहता है,
वह ज़माने के पीछे न भाग
अपना दिमाग लगा
जीवन में
कुछ करना चाहता है ,
मेहनत कर के कुछ निखरना चाहता है।

अपने अंग्रेज सिंह के
दादा स्वदेश सिंह
अब उसे कहते हैं कि
अंग्रेज !तुम इतना धन संचित करो
कि डोनाल्ड ट्रंप के देश ही नहीं ,
दुनिया भर के देशों में
टूरिस्ट बन सैर सपाटा करो।
उनकी आर्थिकता को अपने ढंग से बढ़ाओ।
यह नहीं कि विदेश से शर्मिंदा हो कर
अपने देश में लौट के आओ।
बल्कि अपने साथ
एक विदेशी नौकर
मेहनत मशक्कत करने के लिए
लेकर आओ।
भारत का आदर और सम्मान
फिर से बढ़ाओ।
२०/०२/२०२५.
Feb 19 · 51
अमृतसर
आज गुड़िया
पहली बार जा रही है
गुरु की नगरी
अमृतसर
वहां वह अपने साथियों के साथ
भगत पूर्ण सिंह की
कर्मस्थली जाएगी।
अपने भीतर
वंचितों , शोषितों , अपाहिजों के
प्रति करुणा और सद्भावना की
अमृत बूंदें लेकर आएगी ,
अपने भीतर संवेदना का
अमृत संचार लेकर आएगी।

पहली बार
जब मैं दरबार साहिब गया था
तो मुझे वहां दिव्य अनुभूति हुई थी।
उम्मीद है कि
गुड़िया वहां से दिव्य दृष्टि लेकर आएगी ,
सच्चा इंसान बनकर
अपना जीवन सेवा कार्यों में लगाएगी।

वहीं जालियां वाला बाग भी है
देश की आज़ादी में
एक विलक्षण घटना का साक्षी।
एक देशभक्तों का वध स्थल
जिसने देश समाज और दुनिया को
दिया था झकझोर !
और फिर जल्दी आई थी
आज़ादी की भोर !

वहीं पास ही है
दुर्ग्याना मंदिर
जहां बहता है
आस्था का सैलाब
जिससे जीवन में
आ सकता है ठहराव
आदमी समय के बहाव को
महसूस कर
जीवन में
आगे बढ़ने का निश्चय कर
बना सकता है स्वयं को
समाजोपयोगी और निडर।

गुड़िया
आज अभी अभी गई है
पावन नगरी
अमृतसर।
उम्मीद है कि
वह जीवन के लिए
वहां से
उपयोगी
जीवन दृष्टि संचित करके आएगी,
अपने जीवन को सार्थकता से
जोड़ पाएगी ,
स्वयं को सकारात्मक बनाएगी।
२०/०२/२०२५.
जब चाहकर भी
नींद नहीं आती,
सोचिए जरा
उस समय
क्या जिन्दगी में
कुछ अच्छा लगता है ?
जिन्दगी का पल पल
थका थका सा लगता है।
नींद की चाहत
शेयर मार्केट की तेज़ी सी
बढ़ जाती है।
ऐसे समय में
सोना अर्थात नींद की चाहत
सोने से भी
अधिक मूल्यवान लगने लगती है।
आंखों की पलकों पर
नींद की खुमारी दस्तक
देने लगे तो सब कुछ
अच्छा अच्छा लगता है।
समय पर सो पाना ही
जीवन में सच्चा
और आनन्ददायक ,
सुख का अहसास
होने की प्रतीति कराने लगता है।
समुचित नींद न मिल पाए
तो सचमुच आदमी को
झटका लगता है ,
उसे जीवन में
सब कुछ भटकाता हुआ ,
खोया खोया सा लगता है।
पल पल मन में कुछ खटकता है।
जीवन यात्रा में भीतर धक्का लगता सा लगता है।
नींद का इंतज़ार बढ़ जाता है।
आदमी को कुछ भी नहीं भाता है ,
भीतर का सुकून कहीं लापता हो जाता है।
१९/०२/२०२५.
ਇਹ ਦਰਦ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੀ ਹੈ
ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਖ਼ਾਸ।
ਰਿਸ਼ਤਾ ਦਰਦ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਜੀਬੋ ਗ਼ਰੀਬ
ਜਿੰਨਾ ਦਰਦ ਵੱਧਦਾ ਹੈ ,
ਇਨਸਾਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਹਕੀਕਤ ਦੇ ਕਰੀਬ।
ਭਾਵੇਂ ਦਰਦ ਦਿਲ ਦਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਪਿੱਠ ਦਾ ਹੋਵੇ ,
ਇਹ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ,
ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਾਹ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਬੁੜਾਪੇ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਉਦਾਸੀ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਜਵਾਨੀ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਸਾਨੂੰ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਬਚਪਨ ਦਾ ਦਰਦ ਸੁਪਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆ ਆ ਕੇ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਣ ਦੀ ਵਿਉਂਤ ਦੱਸਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਇਨਸਾਨ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਨਹੀਂ ਦੋਸਤ ਹੈ ,
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਰਾਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਕਲਮੰਦ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਸੁੱਖ ਦੀ ਭਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਬਣ ਕੇ
ਜੀਵਨ ਯਾਤਰਾ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਦਰਦ ਹੀ ਹੈ
ਜਿਹੜਾ ਇਨਸਾਨ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ।

ਕਈ ਵਾਰੀ ਦਰਦ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ
ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਇੱਕ ਦਵਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਅੰਦਰੋਂ ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਜਿਉਣ ਦੀ ਤਾਂਘ ਪੈਦਾ ਕਰ
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸੰਚਾਰ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਦਰਦ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਜਾਂਚ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਸਿਰਜਣਾ ਦਾ ਮੂਲ ਹੈ ,
ਕਦੀ ਕਦੀ ਇਸ ਦੇ ਅੱਗੇ
ਸਾਰੇ ਸੁੱਖ ਤੇ ਆਰਾਮ
ਲੱਗਣ ਲੱਗਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਧੂੜ ਹਨ।
18/02/2025.
Feb 18 · 62
अकेलापन
आदमी
दुनिया में
अकेला न रहे
इसके लिए
वह खुद को
अपने जीवन में
छोटे छोटे कामों में
व्यस्त रखने का
प्रयास करता रहे
ताकि जीवन में
अकेलापन
दोधारी तलवार सा होकर
पल प्रति पल
काटता हुआ सा न लगे।

अभी अभी
अखबार में
एक हृदय विदारक
ख़बर पढ़ी है कि
शहर के एक वैज्ञानिक ने
अपने आलीशान मकान में
अकेलपन को न सहन कर
आत्महत्या कर ली है।
परिवार विदेश में रहता है
और वह अकेले अपने घर में
एक निर्वासित जीवन कर
रहे थे बसर,
वे जीवन में
निपट अकेले होते चले गए ,
फलत: मौत को गले लगा गए।

हम कैसी
सुख सुविधा और संपन्नता भरपूर
जीवन जीने को हैं बाध्य
कि जीवन बनता जा रहा है कष्ट साध्य ?
आदमी सब कुछ होते हुए भी
दिनोदिन अकेला पड़ता जा रहा है।
वह खुल कर खुद को
अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है।
वह भीतर ही भीतर
अपनी तन्हाई से घबराकर
मौत को गले लगा रहा है।

हमारे यहां
कुछ जीवन शैली
इस तरह विकसित होनी चाहिए
कि आदमी अकेला न रहे ,
वह अपने इर्द गिर्द बसे
मानवों से हँस और बतिया सके।
कम से कम अपने मन की बात बता सके।
१८/०२/२०२५.
आदमी के इर्द गिर्द
जब अव्यवस्था फैली हो
और उसने विकास को
लिया हो जड़ से जकड़।
हर पल दम घुट रहा हो
तब आदमी के भीतर
गुस्सा भरना जायज़ है ।
उसे प्रताड़ित करना
एकदम नाजायज़ है।

देश अति तीव्र गति से
सुधार चाहता है ,
इस दिशा में
संकीर्ण सोच और स्वार्थ
बन जाते बहुत बड़ी बाधाएं हैं,
जिन्हें लट्ठ से ही साधा जा सकता है।

नाजायज़ खर्चे
अराजकता को
बढ़ावा देते हैं ,
ये विकास कार्यों को
रोक देते हैं।
अर्थ व्यवस्था की
श्वास को
रोकने का
काम करते हैं ,
ये व्यर्थ के अनाप शनाप ख़र्चे
न केवल देश को  
मृत प्रायः करते हैं ,
बल्कि
ये देश को निर्धन करते हैं।
ये देश दुनिया को निर्धन रखने का
दुष्चक्र रचते हैं ,
इसे रोकने का
प्रयास किया जाना चाहिए ,
ताकि देश
विपन्नावस्था से
बच सके ,
आर्थिक दृष्टि से
मजबूती हासिल कर सके।


देश हर हाल में
सुख सुविधा, संपन्नता और समृद्धि को बढ़ाए
इसके लिए सब यथा शक्ति प्रयास करें ,
अन्यथा जीवन नरक तुल्य लगने लगेगा
इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
बस इस डर से
आम और ख़ास आदमी का
गुस्सा करना एकदम जायज़ है,
इस सच से आँखें मूंदे रहना ठीक नहीं।
समय रहते नहीं चेतना , सोए रहना नाजायज है।

अव्यवस्था और अराजकता
अब किसी को बरदाश्त नहीं।
इससे पहले की गुस्सा विस्फोटक बने ,
सब समय रहते अपने में सुधार करें
ताकि देश और समाज पतन के गड्ढे में गिरने से बच सकें।
सब गुस्सा छोड़ शांत मना होकर जीवन पथ पर बढ़ सकें।
१७/०२/२०२५.
Feb 17 · 130
चोर का डर
चोरी करना
नहीं है कोई आसान काम।
यह नहीं कि
कोई चीज़ देखी और चोरी कर ली।
चोरी के लिए जुगत लड़ानी पड़ती है ,
कभी कभी
चोरी और सीनाज़ोरी की नौबत भी
आ जाती है।
इसके लिए
हर ढंग और तरीका अपनाना पड़ता है ,
यही नहीं
घोर अपमान तक सहना पड़ता है।
फिर जाकर
चोरी की वारदात
सफल हो पाती है ,
कभी कभी तो जान भी
सूखती लगती है,
सच में
चोरी करते हुए
कभी कभी तो
उलझन भी होती है।

आज चोरी के क्षेत्र में
बहुत ज़्यादा
प्रतिस्पर्धा हो गई है ,
इसलिए हर पल
चौकस और चौकन्ना
रहना पड़ता है,
तब कहीं जाकर
सफलता होती है मयस्सर।
कभी कभी इसमें रह जाती है कौर कसर ,
मन के भीतर पनपने लगता है डर।
आज चोर को शिकायत है कि
अब बड़े बड़े लोग भी इसमें उतर रहे हैं ,
अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
वे नए नए हथकंडे आजमा रहे हैं।
चोर की भी अपनी एक नैतिकता होती है ,
वे इस पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।
चोरी करने वाले कभी कभी बेवज़ह पकड़े जा रहे हैं,
बस शक की गुंजाइश की वज़ह से !
बेवज़ह की ज़ोर आजमाइश की वज़ह से !
सभी चोर इस बाबत सतर्क हो जाएं !
कभी भी आसानी से पकड़ में न आएं !!
१७/०२/२०२५.
तुम अपने शत्रु को
जड़ से
मिट्टी में मिलाना चाहते हो।
पर हाथ पर हाथ
धरे बैठे हो।
क्या बिना लड़े हार
मान चुके हो ?
तुम
बदला ज़रूर लो
पर कुछ अनूठे रंग ढंग से !
पहले रंग दो
उसे अपने रंग में ,
उसे अपनी सोहबत का
गुलाम बना दो ,
फिर उसे अपने मन माफ़िक
लय और ताल पर
नाचने के काम पर लगा दो।
तुम बदला ले ही लोगे
पर बदले बदले रंग ढंग से !
तुम मारो उसे, प्रेम से,चुपके चुपके!
वह जिंदा रहे पर जीए घुट घुट के !

या फिर एक ओर तरीका है,
आज की तेज़ तरार दुनिया में
यही एक मुनासिब सलीका है कि
दे दो किसी सुपात्र को
सुपारी शत्रु के खेमे में
सेंधमारी करने की
चुपके चुपके।
इसमें भी नहीं है कोई हर्ज़
यदि दुश्मन का
बैठे बिठाए
निकल जाए अर्क।

इसके लिए
मन सबको
सबसे पहले सुपात्र और विश्वासपात्र को
चुनने की
रखता है शर्त,
ताकि शत्रु को
उसके अंजाम तक
पहुंचाया जा सके।
जीवन की रणभूमि में
मित्रों को प्रोत्साहित
किया जाए
और शत्रुओं को
निरुत्साहित।
जैसे को तैसा ,
सरीखी नीति को
अमल में लाया जाए।
तुम कूटनीति से
शत्रु को पराजित
करना चाहते हो।
इसके लिए
क्या शत्रु के सिर पर
छत्र धर कर
उसे अहंकारी बनाना चाहते हो ?
फिर चुपके से
उसे विकट स्थिति में ले जाकर
चुपके चुपके गिराना चाहते हो !
उसे उल्लू बनाना चाहते हो !!

पर याद रखो , मित्र !
आजकल की दुनिया के
रंग ढंग हैं बड़े विचित्र !
कभी कभी सेर को सवा सेर टकर जाता है,
तब ऐसे में लेने के देने पड़ जाते हैं।
सोचो , कहीं
तुम्हारा शत्रु ही
तुम्हें मूर्ख बना दे।
चुपके चुपके चोरी चोरी
करके सीनाज़ोरी
आँखों में धूल झोंक दे !
उल्टा प्रतिघात कर मिट्टी में रौंद दे !!
अतः बदला लेने का ख्याल ही छोड़ दो।
अपनी समस्त ऊर्जा को
सृजनात्मकता की ओर मोड़ दो।
१६/०२/२०२५.
आदमी की सोच
सच की खोज से
जुड़ी रहनी चाहिए।
इस दिशा में बढ़ने से
पहले उसे अपने भीतर
हिम्मत संचित करनी चाहिए।
आदमी अपनी सोच का दायरा
जितना हो सके , उतना बढ़ाए
ताकि कोई भी बाधा उसे
दुःख न पहुँचा पाए।
वह खुद को
एक दिन समझ पाए ,
जीवन पथ पर
निरन्तर बढ़ता जाए ,
हमेशा सच की
समझ भीतर विकसित कर पाए।
वह सोच समझ कर
जीवन के उतार चढ़ावों के संग
सामंजस्य स्थापित कर पाए।
उसकी सोच का दायरा
तंग दिली से
सतत बाहर उसे निकाल कर
उन्मुक्त गगन की सैर कराए।
१६/०२/२०२५.
Feb 16 · 63
खेल
बच्चे
हरेक स्थिति में
ढूंढ़ लेते हैं
अपने लिए ,
कोई न कोई
अद्भुत खेल !

यदि तुम भी
कभी वयस्कता भूल
बच्चे बन पाओ ,
अपना मूल ढूंढ पाओ ,
तो अपने आप
कम होते जाएंगे
कहीं न पहुँचने की
मनोस्थिति से
उत्पन्न शूल।
जीवन यात्रा
स्वाभाविक गति से
आगे बढ़ेगी।
चेतना भी
जीवन में उतार चढ़ावों को
सहजता से स्वीकार करेगी।
मन के भीतर
सब्र और संतोष की
गूँज सुन पड़ेगी।
कभी कहीं कोई कमी
नहीं खलेगी।

बच्चों के
अलबेले खेल से
सीख लेकर
हम चिंता तनाव कम
कर सकते हैं,
अपने इर्द गिर्द और भीतर से
खुशियाँ तलाश सकते हैं ,
जीवन को खुशहाल कर सकते हैं।
१६/०२/२०२५.
काल सोया हुआ
होता है
कभी कभी महसूस,
परंतु
वह चुपके चुपके
बहुत सूक्ष्म गतिविधियों को
लेता है अपने में
समेट।
इतिहास
काल की चेतना को
रेखांकित करने की चेष्टा भर है,
इसमें आक्रमणकारियों ,
शासकों ,
वंचितों शोषितों ,
शरणार्थियों इत्यादि की
कहानियां छिपी रहती हैं ,
जो काल खंड की
गाथाएं कहती हैं।

सभ्यताओं और संस्कृतियों पर
समय की धूल पड़ती रही है ,
जिससे आम जन मानस
अपनी नैसर्गिक चेतना को विस्मृत कर बैठा है ,
आज के अराजकतावादी तत्व
आदमी की इस अज्ञानता का लाभ उठाते हैं ,
उसे भरमाते और भटकाते हैं ,
उसे निद्रा सुख में मतवातर बनाए रखते हैं
ताकि वे जन साधारण को उदासीन बनाए रख सकें।

आज देश दुनिया में
जागरूकता बढ़ रही है ,
समझिए इसे कुछ इस तरह !
काल अब करवट ले रहा है !
आम आदमी सच के रूबरू हो रहा है !
वह जागना चाहता है !
अपनी विस्मृत विरासत से
राबता कायम करना चाहता है !
आदमी का चेतना ही
काल का करवट लेना है
ताकि आदमी जीवन की सच्चाई से जुड़ सके ,
निर्लेप, तटस्थ, शांत रहकर काल चेतना को समझ सके ,
समय की धूल को झाड़ सके ,
अतीत में घटित षडयंत्रों के पीछे
निहित कहानी को जान सके ,
अपनी चेतना के मूल को पहचान सके।

काल जब जब करवट लेता है ,
आदमी का अंतर्मानस जागरूक होता है ,
समय की धूल यकायक झड़ जाती है ,
आदमी की सूरत और सीरत निखरती जाती है।
१६/०२/२०२५.
प्यार क्या है ?
इस बाबत कभी तो
सोच विचार
या फिर
चिंतन मनन किया होगा।
प्यार हो गया बस !
इस अहसास को जी भर के जीया होगा।
भीतर और बाहर तक
इसकी संजीदगी को महसूसा होगा।
प्यार जीवन की ऊर्जा से साक्षात्कार करना है।
जीवन में यह परम की अनुभूति को समझना है।

प्यारे !
प्यार एक बहुआवर्ती अहसास है,
जो इंसान क्या सभी जीवों को
जीवन में बना देता खास है।
इसकी तुलना
कभी कभी
प्याज की परतों के साथ की
जा सकती है ,
यदि इसे परत दर परत
खोला जाए तो हाथ में कुछ भी नहीं आता है !
बस कुछ ऐसा ही
प्यार के साथ भी
घटित होता है।
प्यार की प्यास हरेक जीव के भीतर
पनपनी चाहिए,
यह क़दम क़दम पर
जीवन को रंगीन ही नहीं ,
बल्कि भाव भीना और खुशबू से
सराबोर कर देता है ,
यह चेतना को नाचने गाने के लिए
बाध्य कर देता है,
कष्ट साध्य जीवन जी रहे
जीव के भीतर
यह जिजीविषा भर देता है।
यह किसी अमृतपान की अनुभूति से कम नहीं,
बशर्ते आदमी जीवन में
आगे बढ़ने को लालायित रहे ,
तभी इसकी खुशबू और जीवन का तराना
सभी को जागृत कर प
पाता है ,
जीवन को सकारात्मकता के संस्पर्श से
सार्थकता भरपूर बना देता है ,
सभी को गंतव्य तक पहुँचा देता है।
इसकी प्रेरणा से जीवन सदैव आगे बढ़ता रहा है,
प्यार का अहसास
किसी सच्चे और अच्छे मित्र सरीखा होकर
मार्ग दर्शन का निमित्त बनता है,
जिसमें सभी का चित्त लगता है।
प्रत्येक जीव
इस अहसास को पाने के लिए
आतुर रहा है।
वे सब इस दिशा में
सतत अग्रसर रहे हैं।
इस राह चलते हुए
सभी ने उतार चढ़ाव देखे हैं !
जीवन पथ पर आगे बढ़े हैं !!
२५/०२/२०२५.
दुनिया
सेंट वेलेंटाइन के सद्कर्मों की स्मृति को
जन जन में याद कराने ,
विस्मृतियों से बाहर निकाल कर
स्मृति में बसाने की गर्ज़ से
उनकी याद में
वेलेंटाइन डे
मनाती है ,
पर
मेरे देश में
कई बार
इस दिन
अचानक
छुप छुप कर
मिलने वाले
प्रेमी युगलों की
शामत आ जाती है।
इस बार भी
कुछ ऐसा घटित हो सकता है,
प्रेम की आकांक्षाओं से भरे
युवा और वृद्ध दिल
टूट सकते हैं
वह भी संस्कृति को
बचाने के नाम पर।
शायद
वे अजंता एलोरा की
कंदराओं में
दर्ज़
काम और अध्यात्म के
जीवन्त दस्तावेज़ो को
भूल जाते हैं ,
जहां जीवन का मूल
कलात्मक अभिव्यक्ति पाता है।
हमारे मंदिरों में प्रेम का उदात्त स्वरूप
देखने को मिलता है ,
हमारे पुरखे काम के महत्व को
गहराई तक आत्मसात कर
जीवन का ताना बाना बुनने में
सिद्धहस्त रहे हैं।
फिर हम क्यों जीवन के इस वैभव से मुँह चुराएं ?
क्यों न हम
इस वेलेंटाइन डे पर
प्रेम भाव का प्रचार प्रसार करने में
पहल करें !
कम से कम
हम प्रेम के कोमल भावों को
नफ़रत की कठोरता में
बदलने से गुरेज़ करें ,
बेशक हम अपने मन की शांति के लिए
अपनी संततियों को
संस्कारों की ऊर्जा से
जीवन्त करने का प्रयास करें ,
बस प्रेम में आकंठ डूबे
प्रेमीजनों को अपमानित करने का
दुस्साहस न करें,
उनका उपहास न करें।
आज सुबह एक युवा स्त्री को
बस सफ़र के दौरान इंग्लिश बुक हेट पढ़ते देखा
तो मुझे मूवी हेट स्टोरी का ख्याल आया।
मैंने शहर और गांव में भटकते हुए
वेलेंटाइन डे मनाया।
आप भी कभी जी भर कर
उच्छृंखल होकर
जीवन जीने का प्रयास करें,
क्या पता कुछ अचरज़ भरा घटित हो जाए !
इस दिन कोई जीवन में नया मोड़ आ जाए !!
तन और मन में से तनाव कम हो जाए!
आदमी निडर होकर सलीके से जीना सीख पाए।
१४/०२/२०२५.
कभी कभी
सच्ची और खरी बातें
समझ से परे होती हैं।
खासकर जब
ये देश हितों पर
कुठाराघात करती हैं ,
ऐसे में ये
आम आदमी के
भीतर असंतोष
पैदा करती हैं।

बात करने वाला
बेशक अभिव्यक्ति की आज़ादी के
नाम पर मानवीयता भरपूर
बातें कह जाता है ,
ये बातें मन को अच्छी लगती हैं।
इन्हें क्रियान्वित करना व्यावहारिक नहीं ,
देश समाज में घुसपैठ करने वाला
देश विशेष के नागरिकों के विशेषाधिकार
हासिल करने का अधिकारी नहीं।
पता नहीं क्यों
देश का
बुद्धिजीवी वर्ग
इस सच को समझता ?
कभी कभी बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता है।
आम और खास आदमी तक
भावुकता में पड़ कर
देश हित को नज़र अंदाज़ कर जाता है ,
जिसका दुष्परिणाम
भावी पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है।
देश समाज के हितों का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए
नाकि मानवाधिकार के नाम पर
अराजकता की ओर अग्रसर होना चाहिए।
कभी कभी
समझ से परे के फैसले
चेतना को झकझोर देते हैं !
ये निर्णय यकीनन
देश समाज की अस्मिता की
गर्दन मरोड़ देते हैं ,
इंसानों को अनिश्चितता के
भंवर में छोड़ देते हैं ,
असुरक्षित और डरने के लिए !
ऐसे लोगों की बुद्धिमत्ता का
क्या करें ?
क्यों न उन्हें
उनकी भाषा में उत्तर दें ,
उनको गहरी नींद से जगाएं !
देश दुनिया और समाज के हितों को बचाएं !!
१४/०२/२०२५.
हे मन!
तुम कुछ अच्छा नहीं कर सकते
तो क्या हुआ ?
बुरा तो कर सकते हो ?
बस !
एक काम करना।
वह है !
हरेक बुरे काम के बाद
विष्णु का नाम लेना !
यहां तक कि
अपने परिवारजनों के नाम भी
विष्णु के सहस्रों नामों पर रखना !
अपने मित्रों और दुश्मनों के नाम भी
मन ही मन बदल देना ,
उनके नाम भी विष्णु जी के
प्रचलित नामों पर रखना!
और हां!
दिन रात उठते बैठते
चलते फिरते
सोते जागते
हरि हरि करना !
तब स्वयंमेव बदल जाओगे !
अपने को जान जाओगे !
हे मन !
तुम तम के समंदर को
लांघ जाओगे !
अपनी क्षुद्रताओं को
भस्मित कर पाओगे !
मन के गगन के ऊपर
स्वचेतना को हर पल
पुलकित होते पाओगे।
अपनी क्षमता को
जान जाओगे।
१३/०२/२०२५.
अचानक
दादा को अपने पोते की
आठ पासपोर्ट साइज तस्वीरें
फटी हुई अवस्था में
मिल गईं थीं।
उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगा
कि जिसे बड़े प्यार से,
भाव भीने दुलार से जीवन में
खेलाया और खिलाया हो ,
उसकी तस्वीरें
जीर्ण शीर्ण
लावारिस हालत में पड़ीं हों।
उन्हें यह सब पसंद नहीं था ,
सो उन्होंने अपने पुत्र को बुलाया।
एक पिता होने के कर्त्तव्य के बाबत समझाया
और तस्वीरों को जोड़ने का आदेश सुनाया।
फिर क्या था
पिता काम पर जुट गया
और उसने उन तस्वीरों को जोड़ने का
किया चुपके चुपके से प्रयास।
किसी हद तक
तस्वीरें ठीक ठाक जुड़ भी गईं।
उसने अपने पिता को दिखाया और कहा,
" अब ये काम में आने से रहीं ।
बेशक ये जुड़ गईं हैं,
फिर भी फटी होने की गवाही देती लगती हैं।"
यह सुन कर
दादा ने अपने पोते की बाबत कहा ,
"बेशक अब वह बड़ा हो गया है।
स्कूल के दौर की ये तस्वीरें
उसे बिना किसी काम की
और बेकार लगातीं हों।
फिर भी उसे इन्हें फाड़ना नहीं चाहिए था।
तस्वीरों में भी बीते समय की पहचान होती है।
ये जीवन के एक पड़ाव को इंगित करतीं हैं।
अतः इन्हें समय रहते संभाला जाना चाहिए ,
बेकार समझ फाड़ा नहीं जाना चाहिए।
अच्छा अब इन्हें एक मोटी पुस्तक के नीचे दबा दे ,
ताकि ये तस्वीरें ढंग से जुड़ सकें।"

पुत्र ने पिता की बात मान ली।
तस्वीरों को एक मोटी पुस्तक के नीचे दबा दिया।
पुत्र मन में सोच रहा था कि
दादा को मूल से ज़्यादा ब्याज से
प्यार हो जाता है।
वह भी इस हद तक कि
पोते की जीर्ण शीर्ण तस्वीर तक
दादा को आहत करती है।
उन्हें भविष्य की आहट भी
विचलित नहीं कर पाती
क्योंकि दादा अपना भावी जीवन
पोते के उज्ज्वल भविष्य के रूप में जीना चाहता है।
उन्हें भली भांति है विदित
कि प्रस्थान वेला अटल है
और युवा पीढ़ी का भविष्य निर्माण भी
अति महत्वपूर्ण है।

सबसे बढ़ कर जीवन का सच
एक समय बड़े बुजुर्ग
न जाने कब
बन जाते हैं सुरक्षा कवच !
यही नहीं
उनमें अनिष्ट की आशंका भी भर जाती है,
पर वे कहते कुछ नहीं ,
हालात अनुसार
जीवन के घटनाक्रम को
करते रहते हैं मतवातर सही।
यही उनकी दृष्टि में जीवन का लेखा जोखा।
बुजुर्गों की सोच को  
सब समझें
और दें जीने का मौका ;
न दें उन्हें भूल कर भी धोखा।
बहुत से बुजुर्गों को
वृद्धाश्रम में निर्वासित जीवन जीने को
बाध्य किया जाता है।
उनका सीधा सादा जीवन कष्ट साध्य बन जाता है।
किसी हद तक
जीर्ण शीर्ण तस्वीर की तरह!
इसे ठीक ठाक कर पटरी पर लाया जाना चाहिए।
जीवन को गंतव्य पथ पर
सलीके से बढ़ाया जाना चाहिए।
१३/०२/२०२५.
यदि कोई काम कम करे
और शोर ज़्यादा ,
तो उसका किसी को
है कितना फ़ायदा ?
ऐसे कर्मचारी को
कौन नौकर रखना चाहेगा ?
मौका देख कर
उसे बहाने से
कौन नहीं निकालना चाहेगा ?
अतः काम ज़्यादा करो
और बातें कम से कम
ताकि सभी पर अच्छा प्रभाव पड़े।
सभी ऐसे कर्मचारी की सराहना करें।
जीवन में कद्र
काम की होती है ,
आलोचना अनावश्यक
आराम करने वाले की होती है।
सचमुच ! एक मज़दूर की जिन्दगी
बेहद कठिन और कठोर होती है।
बेशक यह दिखने में सरल लगे ,
उसकी जीवन डगर संघर्षों से भरी होती है
और उसके मन मस्तिष्क में
कार्य कुशलता व हुनर की समझ
औरों की अपेक्षा अधिक होती है।
तभी उसकी पूछ हर जगह होती रही है।
काम ज़्यादा और बातें कम करना
आदमी को दमदार बनाता है ,
ऐसा मानस ही आजकल खुद्दार बना रहता है।
ऐसा मनुष्य ही उपयोगी बना रहता है ,
और स्वाभिमान ऐसे कर्मचारी की
अलहदा पहचान बना देता है।
१३/०२/२०२५.
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