Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
आदमी की नियति
अकेला रहना है।
यदि आदमी अकेलापन अनुभूत न करे,
तो वह कभी जीवन पथ पर आगे न बढ़े।
वह प्रेम पाश में बंधा हुआ
जीवन की स्वाभाविक गति को रोक दे ।

मुझे कभी अपना अकेलापन खटकता था,
अब प्रेम फांस में हूँ ...
तो जड़ हूं , अर्से से अटका हुआ हूँ ,
अपनी जड़ता तोड़ने के निमित्त
कहां कहां नहीं भटका हूँ ?
कामदेव की कृपा दृष्टि होने पर
आदमी अकेला न रहकर
दुकेला हो जाता है ,
स्वतंत्र न रहकर परतंत्र हो जाता है।

पहले पहल
आदमी प्रेम में पड़कर
आनन्दित होता है ,
फिर इसे पाकर
कभी कभी परेशान होता है।
उसे यह सब एक झमेला प्रतीत होता है।

प्रेम से मुक्ति पाने पर
आदमी नितांत अकेला रह जाता है ,
जीवन का मर्म समय रहते समझ जाता है ,
फिर वह इस प्रेम पाश
और जी के जंजाल से बचना चाहता है ,
इसी कशमकश में
वह जीवन में उत्तरोत्तर अकेला पड़ता जाता है !
एक दिन अचानक से जीवन का पटाक्षेप हो जाता है !!आदमी अकेला ही कर्मों का लेखा जोखा करने
धर्मराज के दरबार में हाज़िर हो जाता है !
वहाँ भी वह अकेला होता जाता है !!
पर अजीब विडंबना है ,
वह यहां अकेलापन कतई नहीं चाहता है,
किसी का साथ हरदम चाहता है !!
१२/०२/२०२५.
Feb 12 · 63
श्राप
किसी की आस्था से
खिलवाड़ करना
ठीक नहीं है ,
यह न केवल
पाप कर्म है ,
बल्कि
यह अधर्म है ।
यदि ऐसा करने पर
सुख मिलता ,
तो सभी इस में
संलिप्त होते ,
वे जीवन के अनुष्ठान में
भाग न लेकर
भोग विलास में
लिप्त होते।

किसी की आस्था पर
चोट करना सही नहीं ,
बेशक
तुम बुद्धि बल से
जीवन संचालित करने के
हो पक्षधर ,
तुम आस्थावादी के
मर्म पर अकारण
न करो चोट ,
न पहुंचाओ कोई ठेस,
न करो पैदा किसी के भीतर क्लेश।
यदि कोई अनजाने दुःखी होकर
कोई दे देता है बद्दुआ,
समझो कि
अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार ली ,
अपने भीतर
देर सवेर बेचैनी को
हवा दी ,
अपने सुख समृद्धि और संपन्नता को
अग्नि के हवाले कर दिया ,
अपना जीवन श्राप ग्रस्त कर लिया।
किसी के विश्वास पर
जान बूझ कर किया गया आघात
है बरदाश्त से बाहर ।
यही मनोस्थिति श्राप की वजह बनती है।
भीतर की संवेदनशीलता
अंदर ही अंदर
पछतावा भरती है ,
जो किसी श्राप से कम नहीं है।
अतः आस्था पर चोट न करना बेहतर है ,
अच्छे और सच्चे कर्म करना ही
मानव का होना चाहिए ,
कर्म क्षेत्र है।
आस्था के विरुद्ध किया कर्म अधर्म है ,
न केवल यह पाप है ,
बल्कि तनावयुक्त करने वाला एक श्राप है,
मानवता के खिलाफ़ किया गया अपराध है।
12/02/2025.
Feb 11 · 68
आकर्षण
जीव के भीतर
जीवन के प्रति
बना रहना चाहिए आकर्षण
ताकि जीवन के रंगों को देखने की
उत्कंठा
जीव , जीव के भीतर
स्पष्टता और संवेदना के
अहसासों को भरती रहे ,
उन्हें लक्ष्य सिद्धि के लिए
प्रेरित करती रहे ,
मन में उमंग तरंग बनी रहे।

कभी अचानक
जीवन में
अस्पष्टता का
हुआ प्रवेश कि
समझो
जीवन की गति पर
लग गया विराम।
देर तक
रुके रहने से
जीवन में
मिलती है असफलता ,
जो सतत चुभती है ,
असहज करती है ,
व्यथित करती है ,
व्यवहार में उग्रता भर देती है।
यह जिन्दगी को कष्टदायक कर देती है।

अक्सर
यह आदमी को
असमय थका देती है ,
उसे झट से बूढ़ा बना देती है।

यह सब न केवल
जीवन में रूकावटें पैदा करती है ,
बल्कि यह जिन्दगी में
निराशा और हताशा भर कर
समस्त उत्साह और उमंग को
लेती है छीन ,
भीतर का संबल
आत्मबल होता जाता क्षीण।
आदमी धीरे धीरे होने लगता समाप्त।
वह अचानक छोड़ देता करने प्रयास।
फलत: वह जीवन की दौड़ में से हो जाता बाहर ,
वह बिना लड़े ही जाता , जीवन रण को हार।
यही नहीं वह भीतर तक हो जाता भयभीत
कि पता नहीं किस क्षण
अब उड़ने लगेगा उसका उपहास !
यही सोच कर वह होने लगता उदास !!
जीवन का आकर्षण महज एक तिलिस्म लगने लगता !
धीरे धीरे निरर्थकता बोध से जनित
जीवन में अपकर्षण बढ़ने है लगता !!
११/०२/२०२५.
हरेक के भीतर
हल्के हल्के
धीरे धीरे
जब निरर्थकता का
होने लगता है बोध
तब आदमी को
निद्रा सुख को छोड़
जीवन के कठोर धरातल पर
उतरना पड़ता है,
सच का सामना
करना पड़ता है।
हर कदम अत्यन्त सोच समझ कर
उठाना पड़ता है,
खुद को गहन निद्रा से
जगाना पड़ता है।

उदासी का समय
मन को व्याकुल करने वाला होता है,
यही वह क्षण है,
जब खुद को
जीवन रण के लिए
आदमी तैयार करे ,
अपनी जड़ता और उदासीनता पर
प्रहार करे
ताकि आदमी
जीवन पथ पर बढ़ सके।
वह जीवन धारा को समझ पाए ,
और अपने  मन में
सद्भावना के पुष्प खिला जाए ,
जीवन यात्रा को गंतव्य तक ले जाए।

११/०२/२०२५.
यह उदासी ही है
जो जीवन को कभी कभी
विरक्ति की ओर ले जाती है ,
आदमी को थोड़ा ठहरना,
चिंतन मनन करना सिखाती है।

उस उदासी का क्या करें ?
जो हमें निष्क्रिय करे ,
जीवन धारा में बाधक बने।
क्यों न सब इस उदासी को
जीवन के आकर्षण में बदलने का
सब समयोचित प्रयास करें !
उदासी को देखने की दृष्टि में तब्दील करें !!
११/०२/२०२५.
चारों तरफ
अफरातफरी है।
लोग
प्रलोभन का होकर
शिकार ,
अनाधिकार
स्वयं को
सच्चा साबित
करने का कर
रहें हैं प्रयास।

अनायास
हमारे बीच
अश्लीलता
विवाद का मुद्दा
बन कर
अपनी उपस्थिति का
अहसास कराती है,
यह अप्रत्यक्ष तौर पर
समाज को
आईना दिखाती है।

हमारे आसपास
और मनों में
क्या कुछ अवांछित
घट रहा है ,
हमें विभाजित
कर रहा है।

कोई कुछ नहीं जानता।
यदि जानता भी तो कुछ भी नहीं कहता
क्योंकि
अश्लील कहे जाने का डर
भीतर ही भीतर
सताने लगता ,
जो सृजित हुआ है
उसे मिटाने को
बाध्य करता।

इर्द गिर्द
आसपास फैल
चुका है
मानसिक प्रदूषण
इस हद तक कि
पग पग पर  
साधारण जीवन स्थिति को भी
अश्लीलता के दायरे में
लाए जाने का खतरा
है बढ़ता जा रहा।
सवाल यह है कि
अश्लील क्या है ?
जो मन पर
एक साथ चोट करे ,
मन को गुदगुदाए और लुभाए ,
अंतरात्मा को भड़काए ,
इसके आकर्षण में
आदमी लगातार
फंसता जाए ,
उससे पीछा न छुड़ा पाए ,
अश्लीलता है।
यह टीका टिप्पणी,
गाली गलौज ,
अभद्र इशारे ,
नग्नता और बगैर नग्नता के
अपना स्थान बना लेती है ,
हमारी जागरूकता का
उपहास उड़ा देती है ,
अकल पर पर्दा डाल देती है।
यह अश्लीलता अच्छे भले को
महामूर्ख बन देती है,
आदमी को माफी मांगने ,
दंडित होने के लिए
न्यायालय की पहुँच में
ले जाती है।
कितना अच्छा हो ,
यदि आदमी के पास
मन को पढ़ने की सामर्थ्य होती
तब अश्लीलता इतनी तबाही मचाने में
असफल रहती ,
जितनी आजकल यह
अराजकता फैला रही है,
अच्छी भली जिंदगियां
इसकी जद में आकर
उत्पात मचाने को
आतुर नज़र आ रही हैं।
सच तो यह है कि
अश्लीलता हमारी सोच में
यदि जिन्दा है
तो इसका कारण
हमारे सोचने और जीवनयापन का तरीका है,
यदि हम प्रेमालाप, अपने यौन व्यवहार पर
नियंत्रण करना सीख जाएं
तो अश्लीलता
हमारे मन-मस्तिष्क में
कोई जगह न बना पाए ,
यह सृजन से जुड़
हमारी चेतना का कायाकल्प कर जाए।

अश्लीलता
आदमी के व्यवहार में
जिंदा रहती है,
आदमी
सभ्यता का मुखौटा
यदि शिष्टाचार वश ओढ़ना सीख ले ,
अश्लीलता विवादित न रह
गौण और नगण्य रह जाती है,
यह समाप्त प्रायः हो जाती है।
यह भी सच है कि
कभी कभी
यह हम सब पर हावी हो जाती है,
और हमारी चेतना को
शर्मसार कर जाती है,
हमें खुद की दृष्टि में
विदूषक सरीखा
और नितांत बौना बना देती है,
हमारी बौद्धिकता के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर देती है।
अश्लीलता
कभी कभी
हमें दमित और कुंठित सिद्ध करती है ,
यह मानव के चेहरे पर
अप्रत्याशित रूप से
तमाचा जड़ती है।
यह आदमी के जीवन में
तमाशा खड़ा कर देती है ,
उसे मुखौटा विहीन कर देती है,
यह बनी बनाई इज़्ज़त को
तार तार कर दिया करती है।
10/02/2025.
सचमुच
पहाड़ पर ‌जिन्दगी
पहाड़ सरीखी होती है
देखने में सरल
पर
उतनी ही कठिन
और संघर्षशील।
पहाड़ी मानस की
दिनचर्या
पहाड़ के वैभव को
अपने में
समेटे रहती है
और पहाड़ भी
पहाड़ी मानस से
बतियाता रहता है
कभी-कभी
ताकि
जीवन ऊर्जा और शक्ति,
जीवन के प्रति श्रद्धा और जिजीविषा
बनी रहे,
पहाड़ी मानस में
संघर्ष का संगीत
सदैव पल पल रचा बसा रहे।
पहाड़ी मानस मस्त मौला बना रहे।
जीवन में हर पल डटा रहे।

मैदान का आदमी
पहाड़ के सौंदर्य और वैभव के प्रति
होता रहा है आकर्षित,
वह पर्यटक बन
पहाड़ को समझना और जानना चाहता है
जबकि पहाड़ी मानस
पहाड़ को अपने भीतर समेटे
घर परिवार और रोज़गार के लिए
सुदूर मैदानों, मरूस्थलों और समन्दरों को ओर जाना।
कुदरत आदमी और अन्य जीवों के इर्द-गिर्द
चुपचाप सतत् सक्रिय रहकर
बुना करती है प्रवास का ताना-बाना,
उसके आगे नहीं चलता कोई ‌बहाना।
सब को किस्मत की सलीब ढोना पड़ती है,
जीवन धारा आगे ही आगे बढ़ती रहती है।
१०/०२/२०२५.
Feb 9 · 46
भोलू
आदमी
आज का
कितनी भी
कर ले चालाकियां ,
वह रहेगा
भोलू का भोलू!
कोई भी अपने बुद्धि बल से
चतुर सुजान तक को
दे सकता है
मौका पड़ने पर धोखा।
भोलू जीवन में
धोखे खाता रहा है,
ठगी ठगौरी का शिकार
बनता रहा है,
मन ही मन
कसमसाकर
रह जाता रहा है ।
एक दिन
अचानक भोलू सोच रहा था
अपनी और दुनिया की बाबत
कि जब तक
वह जिन्दगी के
मेले में था,
खुश था,
मेले झमेले में था ,
उसकी दिनचर्या में था।

भीड़ भड़क्का !
धक्कम धक्का !!
वह रह जाता था
अक्सर हक्का बक्का !!
अब वह इस सब से
घबराता है।
भूल कर भी भीड़ का हिस्सा
बनना नहीं चाहता है।
०८/०२/२०२५.
इस धरा पर
जीवन कहाँ से आया ?
शायद कहीं कायनात में
छिपे उस क्षण से ,
जिससे सृष्टि में
उल्का पिंड और विभिन्न तत्वों के
उत्पन्न होने की
शुरूआत हुई।

सुनता हूँ
इस धरा पर
उल्का पिंडों से
धरा पर
जीवन का आविर्भाव हुआ।

यह भी सुनता हूँ कि
दशावतार की गाथा में
जीवन यात्रा का
छिपा हुआ है उद्गम।
यह सोच बड़ी है सूक्ष्म।
जीवों की जीवन यात्रा में
निहित है
जीवन का मर्म !
इसे समझना और पल्लवित करना
जीवन के उद्गम से लेकर
विकसित होने तक
बना हुआ है जीव धर्म।
हरेक जीव अपने अस्तित्व को
बनाए रखने के लिए
संतति को बढ़ाता है,
जिससे जीवन धारा विकसित होती है,
जीवन यात्रा
उत्तरोत्तर अपने आप
सतत
पीढ़ी दर पीढ़ी
आगे बढ़ती है,
जीवों को
जीवन की सार्थकता की
अनुभूति होती है।

चुपचाप
जीवन की गति
पूर्णता को प्राप्त करती है,
जीवन यात्रा आगे बढ़ती है।
०८/०२/२०२५.
Feb 7 · 80
Passion for Love
Passion for Love is quite natural.
To control over these emotions
makes our life unnatural.
To lead a life without sentiments
brings miseries in life.
It is painful and harsh reality of human existence.
Passion for Love is the best gift 💕 for all.
It makes human beings most powerful.
07/01/2025.
अनंत काल से
दुनिया का नक्शा
राजनीतिक हलचलों की
वज़ह से
बदला गया है
पर जमीन और समन्दर
दिशाएं कौन बदल पाया है ?
कोई सम्राट और विश्व विजेता तक !
सब उन्माद और अभिमान के कारण भटके हुए हैं।
इतिहास की पुस्तकों में अटके हुए हैं।

आज मुझे
अपनी बिटिया के लिए
चार्ट पर
दुनिया का नक्शा
बनाना पड़ा।
मैं उलझ कर रह गया।
दुनिया का नक्शा
मुझे बहुत कुछ कह गया।

देश, समन्दर और जमीन,
नदियां, झीलें, झरने ,
पहाड़, मैदान, मरूस्थल, पठार
सब नक्शे में दर्शाए जाते हैं,
कागज़ के ऊपर बनाए और मिटाए जाते हैं,
मज़ा तो तब है
जब उनकी निर्मिति को
दिल से समझा जाए,
उन्हें बचाया जाए।
उन्हें देखने के लिए  
देश और दुनिया भर में घूमा जाए।
ऐसा चुपके-चुपके
दुनिया के नक्शे ने  
मुझसे गुज़ारिश की ,
मैंने भी मौन रहकर
दुनिया घूमने और मतभेद भुलाने की
आंकाक्षा अपने भीतर भरी,
और चुपचाप
अहसास की दुनिया में बह गया।
सच! दुनिया का नक्शा
मुझसे बरबस संवाद रचा गया।
संवेदना को बचाने के लिए
मूक याचना कर गया।
मुझे चेतन कर गया।
०७/०२/२०२५.
Feb 6 · 152
मौका
आज
लोगों को
कामयाब होने का
मिले
यदि कोई
मौका
तो वे कतई
करें न गुरेज
कुछ भी करने से,
अपनों को
धोखा देने से !
चोरी सीनाज़ोरी करने से !
छीना झपटी करने से !

आज का सच है
जो जितना बड़ा धोखेबाज़ ,
उतना कामयाब !
बेशक यह सही नहीं !
कुछ नासमझ इसे मानते हैं सही !
आगे निकलने का मौका
मयस्सर हो तो सही !
पाप और पुण्य का निकष
मरने के उपरांत देखा जाएगा।
आगे बढ़ने का मौका
कब कब हाथ आएगा ?
असफलता मिली तो जीवन रौंदा जाएगा !
०६/०२/२०२५.
जीवन भरपूर आनंद से जीना
एक स्वप्न सरीखा बन जाता है लोगों के लिए
इसलिए बेहद ज़रूरी है कि
जिंदगी को जीया जाए
जिंदादिल बने रहकर
संघर्षों के बीच
बने रहकर
जिजीविषा सहित
हरेक उतार चढ़ाव के साथ
भीतर और बाहर से
तने रहकर ,
हरपल खिले रहकर ।
यह सब सीखना है
तो गुलाब का जीवन चक्र देखिए ,
इस के रूप ,रंग ,गंध,  मुरझाने ,धरा में मिल जाने की
प्रक्रिया को अपने अहसास में भरकर !
ताकि जीवन यात्रा कर सके
आदमी एकदम से निर्भय होकर !!
कहीं आदमी असमय न मुरझा जाए ,
अतः अपरिहार्य है
जिन्दगी जीनी चाहिए
बंदगी करते हुए !!
अपने तन और मन की गंदगी को
अच्छे से साफ करते हुए !!
सकारात्मकता और स्वच्छता से जुड़ते हुए !!
जीवन पथ पर अग्रसर होकर
सतत सार्थकता का वरण करते हुए !!
ज़िंदगी जीओ बन्दगी करते हुए !!
स्वयं को संतुलित रखते हुए!!
०५/०२/२०२५.
समय
कभी रुक नहीं सकता
वह मतवातर
गतिशील रहता है ,
यदि वह रुक जाए ,
तो जीवन में ठहराव आ जाए।
जीवन का क्रम नष्ट भ्रष्ट हो जाए!
इसलिए
समय कभी
रुकता नहीं,
रुक सकता नहीं।
वह चाहता है
प्रकृति की व्यवस्था को
रखना सही।

आदमी का जीवन में
रुक जाना असहनीय होता है,
रुके रहना जैसा अहसास
जीवन को बोझिल कर देता है,
यह जीव के भीतर
थकावट भर देता है।
उसका सारा उत्साह और उमंग
बिखर जाता है ।
आदमी समय में
शीघ्र विलीन हो जाता है।
यही वज़ह है कि
समय कभी रुकता नहीं ।
वह कभी झुकता नहीं ,
बेशक वह जीवन में
उतार चढ़ाव लाकर
गर्व के उन्माद में डूबे आदमी को
झुकने के लिए बाध्य कर दे !
आदमी का जीवन कष्ट साध्य कर दे !!

काश! समय ठहर पाए!
आदमी को चुनौतियों के लिए
तैयार कर
आगे की राह सुगम बना पाए।
समय बेशक ठहरता नहीं,
इसे जितना जीया जाए , उतना कम है।
इसे सलीके से जीना ही
समय को जानने जैसा अति उत्तम है !
समय का ठहराव महज एक दिशा भ्रम है !!
०४/०२/२०२५.
आज मेरे भीतर अंतर्कलह है
मैं अपने पिता के साथ
सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा
संचालित सेवाओं का लाभ उठाने आया हूँ ।
बहुत से लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवा से
असंतुष्ट प्राइवेट अस्पताल से
करवाना चाहते हैं इलाज़।
इसका कारण स्पष्ट है कि
उन्हें नहीं है विश्वास,
सरकारी चिकित्सा से
वे कर पाएंगे स्वास्थ्य लाभ।
वे प्राइवेट अस्पताल में
लूटे जाते हैं।
वहाँ के डॉक्टर भी तो
कभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में
इलाज़ करने की अनुभव प्राप्ति के बाद
प्राइवेट अस्पताल में
चिकित्सा कार्य को निभाते हैं।
अच्छा रहे , यदि आम आदमी समय रहते
सरकारी अस्पताल से
अपने रोग की
चिकित्सा करवाए,
ताकि वह अपनी जिन्दगी में
बेहतर और प्रभावी चिकित्सा विकल्प को तलाश पाए।

मेरे पिता खुद भी एक स्वास्थ्य विभाग से
जुड़े पदाधिकारी रहे हैं,
वे अपने विभाग के कार्यों की गुणवत्ता को
अच्छे से पहचानते हैं।
यदि सभी सरकारी चिकित्सा कार्यों का लाभ उठाएं
तो किसी हद तक आम आदमी
सुरक्षित जीवन की आस रख सकता है ,
सचेत रह कर जीवन में संघर्ष ज़ारी रख सकता है।

इस फरवरी महीने में
मेरे पिता जी नब्बे साल के हो जाएंगे ।
वे बहुत
ज़्यादा बीमार हैं
पर उनके भीतर की जिजीविषा ने
उन्हें जीवन की दुश्वारियों के बावजूद
हौंसले वाला बनाया हुआ है,
मरणासन्न स्थिति में
सकारात्मक विचारों से जोड़ कर
जीवन्त बनाया हुआ है।

उनके जीवन जीने के ढंग ने
मुझे यह सिखाया है कि
बुढ़ापे में कैसे आदमी अपनी कर्मठता से
जीवन को सक्रिय रूप से जी सकता है।
वह जिंदादिली से मौत के ख़ौफ़ को
अपने वजूद से दूर रख
स्वयं को शांत चित्त बनाए रख सकता है,
जबकि आम आदमी जल्दी घबरा जाता है,
वह समय आने से पहले
विचलित, हताश और निराश हो
अपने स्वजनों को दुखी कर देता है,
आप भी कष्ट झेलता है
और परिजनों को भी दुःख,तकलीफ व पीड़ा देता है।

सालों पहले सपरिवार पिता जी के साथ
पहाड़ों की सैर करने गया था।
वहाँ का एक नियम है कि
अगर चलते चलते सांस फूल जाए
तो मतवातर चलने की बजाए
थोड़ा रुक रुक कर आगे बढ़ो।
आज पिता को पहाड़ नहीं ,
मैदान में चलते हुए
उसी नियम का पालन करते देखता हूँ
तो मुझे खरगोश और कछुए की कहानी याद आती है,
लेकिन बदले संदर्भ में
कभी पिता जी खरगोश की तरह
तेज गति से मंज़िल की ओर बढ़ते थे
और आज वे बहुत धीरे धीरे चलते हैं,
सांस फूलने पर रुकते हैं,
दम लेते हैं और आगे बढ़ते हैं।
तकलीफ़ होने पर वे चिल्लाते नहीं,
बल्कि प्रभु का नाम लेते हैं ।
उनके आसपास घर परिवार के सदस्य
समझ जाते हैं कि वे पीड़ा में हैं।
सभी सदस्य चौकन्ने और शांत हो जाते हैं।
वे उनके साथ मन ही मन प्रार्थना करते हैं,
अब जीवन प्रभु तुम्हारे हाथ में है,
आप ही जीवन की डोर को संभालना,
और जीवात्मा को उसकी मंज़िल तक पहुँचा देना।
०३/०२/२०२५.
इस बार का बजट
क्या ग़ज़ब का है जी!
टैक्स देने वालों की मौज हो गई।
उन्हें भारी भरकम छूट मिली।
पहले मैं लाख के करीब टैक्स अदा करता था।
अगले साल यह शून्य पर आ जाएगा।
जीवन में होता है
कभी कभी करिश्मा ।
यह बजट कुछ ऐसा ही
जलवा दिखा गया।
इस बार का बजट
ऐसा कुछ
अहसास करा गया।
लगता है ,
आने वाले चुनावों में
यह भरोसेमंद सत्ता पक्ष के हाथों
ताकतवर विपक्ष की  
विकेट उड़ा गया ,
कहीं भीतर तक
अराजकता की राजनीति में
सहम भर गया !
हारने की आशंका भर गया !!
मुफ़्त के उपहारों से भी
बेहतरीन तोहफ़ा
जन साधारण को दे गया।

उम्मीद है ,
यह बजट विकास को गति देगा।
अगली बार का बजट भी
चुनावों में
मुफ्तखोरी पर
अंकुश लगाएगा।
तभी देश सालों से
चली आ रही
वित्तीय घाटे की रीति  और नीति पर
न चलकर
वित्तीय संतुलन की राह को
अपनाने की परंपरा पर आगे बढ़ पाएगा।
उम्मीद है कि
मेरा जैसा आम व्यक्ति
जो अभी अभी के बजट से
टैक्स मुक्त हुआ है ,
जो टैक्स फ्री नहीं रहना चाहता,
जैसा नागरिक भी
निकट भविष्य में,
आगामी सालों में
टैक्स  फिर से दे पाएगा ,
देश की आर्थिकता में
पहले की तरह
अपना अंशदान दे पाएगा।
साथ ही
यह भी उम्मीद है कि
समाज का सबसे गरीब व्यक्ति भी
जिसे लोग अक्सर
गया गुजरा आदमी  कह देते हैं,
वह भी कभी
आगामी सालों में
अपनी मेहनत से
और अपने वित्तीय कौशल में सुधार कर
निकट भविष्य में
हरेक नागरिक
फिर से टैक्स के दायरे में
आना चाहेगा ,
देश दुनिया और समाज में
सुख समृद्धि संपन्नता का आगमन लाएगा।
इस बार का बजट
किसी अप्रत्याशित घटनाक्रम से कम नहीं,
जिसने सब को
अचरज में ला दिया।
बजट में भरपूर बचत का तड़का लगा दिया।
इस बार के बजट ने
सच में ही
आम और ख़ास तक को चौंका दिया।
०२/०१/२०२५.
साल २०२५-२०२६ का भारत सरकार के वित्तीय बजट पर एक प्रतिक्रिया वश।
देश दुनिया और समाज
खूब तरक्की कर रहा है,
अच्छी बात है
परन्तु चिंतनीय है कि
चारों तरफ़
गन्दगी के ढेर बढ़ रहे हैं,
लोग बीमार होकर
असमय मर रहे हैं।
हमें मुगालता है कि
हम विकास कर रहे हैं।
यह कभी नहीं सोच पाते कि
भीतर तक सड़ रहे हैं,
घुट घुट कर मर रहे हैं।

यही नहीं
आसपास फैला
कूड़ा कर्कट कचरा,
स्वास्थ्य के लिए बना है खतरा।
इस ओर हम अक्सर दे नहीं पाते ध्यान,
जब कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनता,
भीतर तक होते परेशान।
चाहते कोई तो करे ,
परेशानियों का समाधान।
आओ हम सब मिलकर
कूड़ा कर्कट प्रबंधन से जुड़ें
ताकि बची रहें
सुख समृद्धि और सम्पन्नता की जड़ें,
सब सकारात्मक जीवन की ओर बढ़ें।

कूड़ा कर्कट प्रबंधन का
है एक सीधा सादा सरल तरीका,
हम अपनाएं जीवन में
सादगीपूर्ण जीवन जीने का सलीका।
हम कूड़ा कर्कट तत्क्षण समेट लें ,
कोई इसे आकर उठाएगा ,
आसपास साफ़ सुथरा बनाएगा।
हम करें न इसका इन्तज़ार,
हम स्वयं ही इसे यथास्थान पहुंचा दें।
यही नहीं, कूड़े कर्कट को भी उपयोगी बनाएं।
इसके लिए समुचित प्रोद्यौगिकी को अपनाएं।
इस सबसे बढ़कर हम
अपने मनोमस्तिष्क को
भूलकर भी कभी कूड़ा दान न बनाएं ,
ताकि आदमी को कचोटे न कभी कोई कमी।
हम सभी अपना ध्यान जीवन में
कूड़ा कर्कट प्रबंधन में लगाएं।
मतवातर
बढ़ता जा रहा
कूड़े कर्कट के ढेर
कभी जी का जंजाल न बन पाएं ,
आदमी कभी तो
सुख का सांस ले पाएं।
०१/०२/२०२५.
ज़िंदगी भर
मैं बगैर सोच विचार किए
बोलता ही गया।
कभी नहीं बोलने से पीछे हटा,
फलत: अपनी ऊर्जा को
नष्ट करता रहा,
निज की राह
बाधित करता रहा।
निरंतर निरंकुश होकर
स्वयं को रह रह कर
कष्ट में डाले रहा।
आज मैं कल की
निस्बत कुछ समझदार हूं।
कल मैं एक क्षण भी
चुपचाप नहीं बैठ सका था ,
मैंने अपना पर्दाफाश
साक्षात्कार कर्त्ता के सम्मुख
कर दिया था।
मैं वह सब भी कह गया
जिसे लोग छिपाते हैं,
और कामयाब कहलाते हैं।
ज़्यादा बोलना
किसी कमअक्ली से
कम नहीं।
यह कतई सही नहीं।
आदमी को चुप रहना चाहिए,
उसे चुपचाप बने रहने का
सतत प्रयास करना चाहिए
ताकि आदमी जीवन की अर्थवत्ता को जान ले,
स्वयं की संभावना को समय रहते पहचान ले।
आज
अभी अभी
बस यात्रा के दौरान
मैंने मौन रहने का महत्व जाना है।
सोशल मीडिया के माध्यम से
मौन के फ़ायदे के बारे में
ज्ञानार्जन किया है,
अपने जीवन में
ज्ञान की बाबत
चिंतन मनन कर
अपने आप से संवाद रचाया है।
अभी अभी
मैंने मौन को
अपनाने का फैसला किया है कि
अब से मैं कम बोलूंगा,
अपनी ऊर्जा से
खिलवाड़ नहीं ‌करूंगा ,
जीवन में मौन रहकर
आगे बढ़ने का प्रयास करूंगा,
कभी तो जीवन में अर्थवत्ता को अनुभूत कर सकूंगा,
सच के पथ पर अग्रसर होने से पीछे नहीं हटूंगा।
जीवन रण में मैं सदैव डटा रहूंगा।
कभी भी भूलकर किसी की शिकायत नहीं करूंगा।
कल और आज के
जीवन में घटित हुए घटनाक्रम ने
मुझे तनिक अक्लमंद बनाया है,
जीवन में अक्लबंद बने रहने के लिए चेताया है।
यही जीवन की सीख है,
जो यात्रा पथ पर
क़दम क़दम पर
अग्रसर होने से मिलती है,
यह आदमी के अंतर्घट में
चेतना की अमृत तुल्य बूंदें भरती है ,
जीवन में आकर्षण का संचार करती है।
३२/०१/२०२५.
Jan 30 · 31
सहसा
सहसा
जब कोई अचानक
भीतर ही भीतर
कसमसाकर
पल पल टूटता जाए ,
जीवन से रूठता जाए ,
साहस कहीं पीछे छूटता जाए ,
तब आप ही बताइए
आदमी क्या करे ?
क्या वह जीवन में स्वयं को
आगे बढ़ने से रोक ले ?
क्यों न वह निज में बदलाव करे ?
और वह अपनी समस्त ऊर्जा को
लक्ष्य सिद्धि की खातिर
कर्मठ बनने में खपा दे ,
जब तक वह निज को न थका दे ।
जीवन में साहसी बनकर
सुख समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है ,
जीवन पथ की दुश्वारियों से लड़ा जा सकता है ,
सहसा साहस भीतर भर कर डटा जा सकता है।
जीवन पथ पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं।
साहस और सहजता से उनका सामना किया जाता है , संघर्ष के दौर में टिके रह कर विजेता बना जा सकता है।
३०/०१/२०२५.
आज के दिन  
तीस जनवरी की तारीख को
अचानक
देशवासियों को
झेलना पड़ा था आघात ,
जब किसी ने
राजनीति के चाणक्य को
दिया था
चिर निद्रा में सुला ,
सत्य अहिंसा और सत्ता के
केन्द्रबिन्दु रहे
महात्मा पर
गोलियां चला ।
वज़ह
स्पष्ट थी ,
आदमी के भीतर बसी ,
अकड़ और हठधर्मिता ,
छीन लेती है
आदमी का विवेक।

दोनों पक्ष
स्वयं को
मानते हैं सही।  
वे नहीं चाहते करना
अपने दृष्टिकोण में
समयोचित सुधार करना,
फलत: झेलते हुए पीड़ा,
दोनों ही समाप्त हो जाते हैं,
अपने आगे बढ़ने की संभावना के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर जाते हैं।

राजनीति के चाणक्य की
सलाह
कभी भी राजनीतिज्ञों ने
दिल से मानी नहीं,
फलत:
महात्मा को कुर्बानी देनी पड़ी।

आज देश
अराजकता के मुहाने पर खड़ा है।
देश अपनी टीस को भूलकर
तीस जनवरी को
सायरन की आवाज़ के साथ  
मौन श्रद्धांजलि देने को होता है उद्यत।
सब शीघ्रातिशीघ्र आदर्शों को भूलकर
अपनी जीवनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं ।
वे ‌फिर से नव वर्ष के आगमन
और तीस जनवरी के इंतजार में रहते हैं
ताकि फिर से महात्मा को याद किया जा सके,
उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा सके।
मुझे क्या सभी को
तीस जनवरी का व्यग्रता से
रहता है इंतज़ार
ताकि महात्मा को याद कर सकें ,
बेशक उनके आदर्शों से सब मुंह मोड़े रहें।
३०/०२/२०२५.
,
Jan 29 · 61
कुंठा
आदमी के पीछे
यदि कुंठा
किसी पिशाच सरीखी होकर
पड़ जाए तो आदमी
कहां जाए ?
उसे हरेक दिशा में
अंधेरा नज़र आए !
मन के भीतर
मतवातर
सन्नाटा पसरता जाए !!
कुंठित आदमी
अपने आसपास
नागफनी सरीखी
कांटेदार वनस्पति को
जाने अनजाने रोपता है।
उसका संगी साथी भी
भय के आवरण से भीतर तक
जकड़ा हुआ
उसे अत्याचार करने से
रोक नहीं पाता है।
वह अपार कष्ट सहता जाता है !
कभी मन की बात नहीं कह पाता है !!
मित्रवर ! जीवन को सहजता से जीयो।
असमय कुंठित होकर स्वयं को न डसो।
२९/०१/२०२५.
सुख में वृद्धि कैसे हो ?
दुःख में कमी कैसे हो ?
सुख और दुःख में
आदमी कैसे तटस्थ रहे ?
वह जीवन धारा में ‌बहकर
लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु
स्वयं को संतुलित कैसे करे ?

जब कभी इस बाबत सोचता हूं
तो आता है नज़र ,
आज का आदमी है प्रखर।
वह नींद में भी
कभी कभी सोच विचार कर
अत्यधिक चिंतित और विचारमग्न रहकर
कर लेता है खुद को बीमार।
वह नींद में चलने फिरने लगता है।
उसके जीवन में चोट लगने की
संभावना बढ़ जाती है।
जागने पर वह बहुत कुछ भूला रहता है।

नींद में चलना कतई ठीक नहीं।
यह आदमी को कहीं भी पहुंचा देता है।
यह आदमी को कभी कभार नुकसान पहुंचा देता है।
इस पर काबू पाया जा सकता है।
आदमी को जीवन में ठोकर लगने से पहले ही
सजग करते हुए बचाया जा सकता है।

वैसे नींद में चलना कोई ख़तरनाक बीमारी नहीं।
यह किसी को भी हो सकती है,
बचपन में ज्यादा और वयस्कों में बहुत कम।
यदि किसी को
नींद में चलने की बाबत
बताया जाता है
तो वह हैरान रह जाता है,
जब तक उसे प्रमाणित किया जाता नहीं।
और यह है भी सही,
कौन नींद में चलने के आरोप को सहे ?
वैसे सच है कि अज्ञान की नींद में सोया हुआ
व्यक्ति और समाज तक
तकलीफ़ के बावजूद
मतवातर आगे बढ़ते देखे गए हैं।
नींद में चलने वाला आदमी भी  
अचेतावस्था में आगे बढ़ता है।
बेशक ‌जागने पर
वह अपनी इस अवस्था की बाबत
सिरे से इंकार करे।
नींद में चलना बिल्कुल स्वाभाविक है,
बेशक यह चेतन व्यक्ति को अच्छा न लगे।
जीवन धारा हरेक अवस्था में आगे बढ़ी है,
यह रोके से न कभी रुकी है।
यह सोई ही कब थी ?
जो अपनी नींद से जगने पर
हड़बड़ाए आदमी सी जगी है।
नींद में चलना स्वप्न में जीवन जीने जैसा है।
स्वप्न भंग हुआ नहीं कि
सब कुछ नष्ट प्रायः और भूल-भुलैया में खोने सरीखा ,
कुछ कुछ फीका
और
कुछ कुछ तेज़ मिर्ची सा तीखा और तल्ख।
२९/०१/२०२५.
आदमी का दंभ
जब कभी कभी
अपनी सीमा लांघ जाता है,
तब वह विद्रूपता का
अहसास कराता है,
यह न केवल उसे जीवन में
भटकने को बाध्य करता है,
बल्कि उसे सामाजिक ताने-बाने से
किसी हद तक बेदखल कर देता है।
यह उसे जीवन में उत्तरोत्तर
अकेला करता चला जाता है,
आदमी दहशतज़दा होता रहता है।
वह अपना दर्द भी
कभी किसी के सम्मुख
ढंग से नहीं रख पाता है।

कोई नहीं होना चाहता
अपने जीवन में
विद्रूपता के दंश का शिकार,
पर अज्ञानता के कारण
जीवन के सच को जान न पाने से,
अपने विवेक को लेकर
संशय से घिरा होने की वज़ह से  
वह समय रहते जीवन में
ले नहीं पाता कोई निर्णय
जो उसे सार्थकता की अनुभूति कराए ,
उसे निरर्थकता से निजात दिलवा पाए ,
उसे विद्रूपता के मकड़जाल में फंसने से बचा जाए।

विद्रूपता का दंश
आदमी की संवेदना को
लील लेता है,
यह उसे क्रूरता के पाश में
जकड़ लेता है,
आदमी दंभी होकर
एक सीमित दायरे में
सिमट जाता है ,
फलत: वह अपने मूल से
कटता जाता है ,
अपनी संभावना के क्षितिज
खोज नहीं पाता है !
दिन रात भीतर ही भीतर
न केवल
हरपल कराहता रहता है,
बल्कि वह अंतर्मन को
आहत भी कर जाता है।
उसका जीवन तनावयुक्त
बनता जाता है ,
वह शांत नहीं रह पाता है !
असमय कुम्हला कर रह जाता है !!
२८/०१/२०२५.
Jan 28 · 61
तलाश
सच की तलाश में
इधर उधर
भटकना
कोई अच्छी बात नहीं,
आदमी
समय रहते
स्वयं को
ढंग से तराश ले,
यही पर्याप्त है।

बहुत से लोग
सोचते कुछ
और करते कुछ हैं ,
इन की वज़ह से
सुख की तलाश में
निकले जिज्ञासुओं को
भटकना पड़ता है ,
अपने जीवन में
कष्टों से जूझना पड़ता है।
यदि आदमी की
कथनी और करनी में
अंतर न रहे ,
तो सुख समृद्धि और शांति की
तलाश में और अधिक
भटकना न पड़े ,
उसे सुख चैन सहज ही मिले ,
उसका अंतर्मन सदैव खिला रहे !
वह अपने अंदर  के आक्रोश से
और
असंतोष की ज्वाला से
कभी भी न झुलसे ,
बल्कि वह समय-समय पर
अपने को जागृत रखने का प्रयास करता रहे
ताकि वह सहजता पूर्वक
अपनी मंजिल को तलाश सके।
वह जीवन में आगे बढ़ कर न केवल
अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके ,
बल्कि तनावमुक्त जीवन धारा में ‌बहकर
समय रहते
स्वयं की संभावना को
सहज ही खोज सके।
वह जीवन में
सार्थकता की अनुभूति कर सके ,
सहजता से
उसे निरर्थकता के अहसास से मुक्ति मिल सके।
२८/०१/२०२५.
हम कितनी ही फराखदिली
और सहिष्णुता की बात
आपस में कर लें ,
हमारे मन में
मान सम्मान जैसी
मानवीय कमज़ोरी
अवचेतन में
पड़ी रह जाती है,
जब जीवन में
उपेक्षित रह जाने का दंश
दर्प को ठोकर
अचानक अप्रत्याशित ही
दे जाता है
तब मानव सहज नहीं रह पाता है ,
वह भीतर तक तिलमिला जाता है ,
वह प्रतिद्वंद्वी को झकझोरना चाहता है।

इस समय मन में गांठ पड़ जाती है
जो आदमी के समस्त ठाट-बाठ को
धराशायी कर जाती है ,
यह सब घटनाक्रम
आदमी के भीतर को
अशांत और व्यथित कर जाता है।
वह प्रतिद्वंद्वी को
नीचा दिखाने की ताक में लग जाता है।

विनाश काल , विपरीत बुद्धि वाले
दौर में विवेक का अपहरण हो जाता है,
आदमी अपना बुरा भला तक सोच नहीं पाता है।
ऐसा अक्सर सभी के साथ होता है ,
इस नुकसान की भरपाई की चेष्टा करते हुए
दिन रात सतत प्रयास करने पड़ते हैं ,
तब भी वह पहले जैसी बात नहीं बनती है ,
मन के भीतर पछतावे की छतरी रह रह कर तनती है।
यह मनोदशा मरने तक
आदमी को हैरान व परेशान मतवातर करती रहती है।
पर विपरीत परिस्थितियों के आगे किसकी चलती है ?
यह उलझन आदमी का पीछा कभी नहीं छोड़ती है।
२७/०१/२०२५.
जन्म और मरण
इन्सान के हाथ में नहीं।
जैसे जन्मना और मरना
किसी के वश में नहीं।
बीमार -लाचार  
हताश-निराश
आदमी
कभी कभी
मरना चाहता है
पर यह कतई आसान नहीं।
असमय मरने को तुला व्यक्ति
यदि मर भी जाता है
तो वह करता है
किसी पर
कोई अहसान नहीं।
बल्कि वह दुनिया में
कायर ‌कहलाता है,
और उसे भुला दिया जाता है।

आदमी अपने को सक्रिय रखें
ताकि वह सहजता से जीवन पथ पर आगे बढ़े,
अपने अंतर्मन को दृढ़ करते हुए ,
अपनी क्षुद्रताओं से लड़ने का हौसला मन में भरे ,
वह जीवन में संयम से काम लेते हुए
सुख समृद्धि और सम्पन्नता का वरण कर सके।
सक्रियता जीवन है और निष्क्रियता मरण।
कर्मठता से आदमी बन सकता है असाधारण।
मरना और जीना,संघर्ष करते हुए टिके रहना, आसान नहीं।
जीवन को सार्थक दिशा में आगे बढ़ाना ही है सही।
२७/०१/२०२५.
यह सुखद अहसास है कि
उपेक्षित
कभी किसी से
कोई अपेक्षा नहीं रखता क्यों कि उसे
आदमी की फितरत का है
बखूबी पता ,
कोई मांग रखी नहीं कि
समझो बस !
जीवन का सच
समर्थवान शख्स
दाएं बाएं, ऊपर नीचे
होते हुए हो जाएगा
चुपके-चुपके ,चोरी-चोरी
लापता।
उपेक्षित रह जाता बस खड़ा ,
उलझा हुआ,
अपनी बेबसी पर
खाली हाथ मलता हुआ।

इसलिए
उपेक्षित
कभी भी ,
कहीं भी ,
हर कमी और अभाव के बावजूद
हर संभव संघर्ष करता हुआ ,
किसी के आगे
हाथ नहीं फैलाता।
वह कठोर परिश्रम करना  
है भली भांति जानता।
सब तरफ से उपेक्षित रहने के बावजूद
वह अपने बुद्धि कौशल से
सफलता हासिल कर
बनाए रखता है अपना वजूद ।
जीवन के हरेक क्षेत्र में
अपनी मौजूदगी का अहसास
हरपल कराता हुआ
अपनी जिजीविषा बनाए रखता है।
अपनी संवेदना और संभावना को जीवंत रखता है।
चुपचाप सतत् मेहनत कर
अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता है
ताकि वह अपने भीतर व्याप्त चेतना को
जीवन में सार्थक दिशा निर्देश के अनुरूप
ढाल सके,
समाज की रक्षार्थ
स्वयं को एक ढाल में बदल सके ,
तथाकथित सेक्युलर सोच के
अराजक तत्वों से
बदला ले सके ,
उन्हें सार्थक बदलाव के लिए
बाध्य कर सके।
जीवन में सब कुछ  
सर्व सुलभ साध्य कर सके ,
जीवन में निधड़क होकर आगे बढ़ सके।
उपेक्षित स्वयं से परिवर्तन की
अपेक्षा रखता है ,
यही वजह है कि वह अपने प्रयासों में
कोई कमीपेशी नहीं छोड़ता ,
वह संकट के दौर में भी
कभी मुख नहीं मोड़ता,
कभी संघर्ष करना नहीं छोड़ता।
२६/०१/२०२५.
समय समर्थ है
यह सदैव गतिशील रहता है
जीवन में यात्रा करने के दौरान
रुके रहने का अहसास
हद से ज्यादा अखरता है
यह न केवल प्रगति के  न होने का दंश दे जाता है
बल्कि नारकीय जीवन जीने की
प्रतीति भी कराता है।
जीवन में रुके रहने का अहसास
असाधारण उपलब्धियों की प्राप्ति तक को
आम बना देता है।
यह आदमी को
भीतर तक हिला देता है ,
उसे कहीं गहरे तक
थका देता है।

रुके रहने से बेहतर है कि
आदमी स्वयं को गतिशील रखें
ताकि वह असमय न थके,
जीवन में आगे बढ़ कर
अपनी मंजिल को वरता रहे।
२६/०१/२०२५.
आज आदमी ने
बाहर और भीतर को
इतना कर दिया है
प्रदूषण युक्त
इस हद तक
कि कभी कभी
लगने लगता है डर...
पर्यावरण बच पाएगा भी कि नहीं ?
जीवन का दरिया
निर्बाध रूप से
बह पाएगा भी कि नहीं ?
हम सब इस धरा पर
ढंग से रह पाएंगे भी कि नहीं ?
इससे पहले कि
कुछ अवांछित घटे
हम सब
अपने अपने ‌ढंग से
पर्यावरण को सुरक्षित रखने के निमित्त
दिन रात सतत प्रयास करें।
क्यों न हम !
प्रतिदिन
अपना अनमोल समय
परिवेश को सुरक्षित करने के निमित्त
दिन भर चिंतन मनन और व्यवहार में निवेश करें।
हम सब सादा जीवन उच्च विचार को अपनाएं।
जीवन की आपाधापी में
समष्टि के रक्षार्थ
अपनी जीवन शैली को
जंगल ,जल, जमीन, हवा,
धरा, पहाड़,जीवनादि के अनुरूप ढालकर
स्वयं को निरंतर संतुलित और जागृत करते जाएं।
आज जरूरत है
आदमी अपनी संवेदना को
समय रहते बचा पाए।
वह प्रकृति के सान्निध्य में रहकर
पर्यावरण को बचाने के लिए
पुरज़ोर कोशिशें करे
ताकि चेतना परिवेश और पर्यावरण के रक्षार्थ
आदमी को क़दम क़दम पर
न केवल मार्गदर्शन करें
बल्कि वह समय-समय पर
विनाश की चेतावनी भी देती रहे ,
आदमी जागरूक और चौकन्ना बना रहे।
आदमजात अपना विकास
समयबद्ध और सुनियोजित तरीके से करे
ना कि विकास के नाम पर
इस धरा पर
विनाश का तांडव होता रहे !!!
प्रकृति रुदन करती दिखाई दे !!!
आओ हम सब परिवेश के रक्षार्थ
अपने अपने जीवन काल में
किसी न किसी तरह से
समर्थन, समर्पण, संघर्ष करते हुए
तन , मन , धन  का  निवेश  करें
ताकि परिवेश और पर्यावरण को बचाया जा सके,
प्रकृति के सान्निध्य में रहकर
जीवन धारा को स्वाभाविक गति से
आगे बढ़ाया जा सके।
जीवन को सुख ,समृद्धि और सम्पन्नता से
भरपूर बनाया जा सके।
इस जीवन में सार्थकता का आधार
निर्मित किया जा सके ,
ताकि आदमी को
कभी भी अपना जीवन
आधा अधूरा न लगे।
वह पूर्णता का अहसास कर सके।
जीवन में क्षुद्रताओं का त्याग कर सके।
२५/०१/२०२५.
कभी कभी
पतंग किसी खंबे में अटक जाती है,
इस अवस्था में घुटे घुटे
वह तार तार हो जाती है।
उसके उड़ने के ख़्वाब तक मिट्टी में मिल जाते हैं।

कभी कभी
पतंग किसी पेड़ की टहनियों में अटक
अपनी उड़ान को दे देती है विराम।
वह पेड़ की डालियों पर
बैठे रंग बिरंगे पंछियों के संग
हवा के रुख को भांप
नीले गगन में उड़ना चाहती है।
वह उन्मुक्त गगन चाहती है,
जहां वह जी भर कर उड़ सके,
निर्भयता के नित्य नूतन आयामों का संस्पर्श कर सके।

मुझे पेड़ पर अटकी पतंग
एक बंदिनी सी लगती है,
जो आज़ादी की हवा में सांस
लेना चाहती है,
मगर वह पेड़ की
टहनियों में अटक गई है।
उसकी जिन्दगी उलझन भरी हो गई है ,
उसका सुख की सांस लेना,
आज़ादी की हवा में उड़ान भरना
दुश्वार हो गया है।
वह उड़ने को लालायित है।
वह सतत करती है हवा का इंतज़ार ,
हवा का तेज़ झोंका आए
और झट से उसे हवा की सैर करवाए ,
ताकि वह ज़िन्दगी की उलझनों से निपट पाए।
कहीं इंतज़ार में ही उसकी देह नष्ट न हो जाए ।
दिल के ख़्वाब और आस झुंझलाकर न रह जाएं ।
वह कभी उड़ ही न पाए।
समय की आंधी उसको नष्ट भ्रष्ट और त्रस्त कर जाए।
वह मन माफ़िक ज़िन्दगी जीने से वंचित रह जाए।
कभी कभी
ज़िंदगी पेड़ की टहनियों से
उलझी पतंग लगती है,
जहां सुलझने के आसार न हों,
जीवन क़दम क़दम पर
मतवातर आदमी को
परेशान करने पर तुला हो।
ऐसे में आदमी का भला कैसे हो ?
जीवन भी पतंग की तरह
उलझा और अटका हुआ लगता है।
वह भी राह भटके
मुसाफ़िर सा तंग आया लगता है।
सोचिए ज़रा
अब पतंग
कैसे आज़ाद फिजा में निर्भय होकर उड़े।
उसके जीवन की डोर ,
लगातार उलझने
और उलझते जाने से न कटे।
वह  यथाशक्ति जीवन रण में डटे।

२४/०१/२०२५.
धन्य है वह समाज
जहां कन्या पूजन
किया जाता है,
यही है वह दिया
जहां से जीवन शक्ति का
होता है जागरण।
हिंदू समाज पर व्यर्थ ही
नारी अपमान का
लगाया जाता है आक्षेप,
यह वह उर्वर धरा है
जहां से संजीवनी का
उद्भव हुआ है,
मानव ने चेतना को
साक्षात जिया है।
यह वह समाज है
जहां हर पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम
और स्त्री जगत जननी माता सिया है।

२४/०१/२०२५.
आज
दूध  
पता नहीं
मन में चल रही
उधेड़ बुन से
या फिर वैसे ही
लापरवाही से
उबालते समय
बर्तन से बाहर निकल गया ,
यह डांट डपट की
वज़ह बन गया कि
घर में कोई
कब दूध की क़दर करेगा ?
एक समय था जब दूध को तरस जाते थे और
अब घोर लापरवाही !
आज भी आधी आबादी दूध को तरसती है।
और यहां फ़र्श को दूध पिलाया जा रहा है।

पत्नी श्री से कहा कि
घर में
आई नवागंतुक
जूनियर ब्लैकी को
दूध दे दो ,
बेचारी भूखी लगती है ।
वह ऊपर गईं
और फिसल गईं।
दूध का कटोरा
नीचे गिरा ,
दूध फ़र्श पर फैला,
डांट डपट का
एक और बहाना गढ़ा गया।
जैसे सिर मुंडाते ही ओले पड़ें !
न चाहकर भी तीखी बातें सुननी पड़ें !!

सोचता हूँ...
यह रह रह कर दूध का गिरना
किसी मुसीबत आने की अलामत तो नहीं ?
क्यों न समय रहते खुद को कर लूँ सही !
आजकल
मन में सतत उधेड़ बुन लगी रहती है,
फल स्वरूप
एकाग्रता में कमी आ गई है।
दूध उबलने रखूं तो पूरा ध्यान होना चाहिए
दूध के बर्तन पर
ताकि दूध  बर्तन से उबालते समय बाहर निकले नहीं।
वैसे भी दूध हम चुरा कर पीते हैं !
कुदरत ने जिन के लिए दूध का प्रबंध किया है ,
हम इससे उन्हें वंचित कर
बाज़ार के हवाले कर देते हैं।
और हाँ, मंडी में नकली दूध भी आ गया है,
आदमी की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगाने के निमित्त।
फिर इस दौर में आदमी
कैसे रखे स्वयं को प्रसन्न चित्त ?
दूध का अचानक बर्तन से बाहर निकलना
आदमी के मन में ठहराव नहीं रहा , को दर्शाता भर है।
वहम और भ्रम ने आदमी को
कहीं का नहीं छोड़ा , यह सच है।
इसमें कहीं कोई शक की गुंजाइश नहीं है।
२३/०१/२०२५.
कल की तरह
आज का दिन भी
बीत गया ,
बहुत कुछ भीतर भरा था
पर वह भी
लापरवाही के छेद की
वज़ह से
रीत गया।
अब पूर्णतः खाली हूँ ,
सो अपनी बात रख रहा हूँ।

कल
मैं घर पर ही रहा ,
बाहर चलने वाली
ठंडी हवाओं से डरता रहा।
सारा दिन अख़बार,
टेलीविजन,मोबाइल ,
बिस्तर या फिर चाय के
आसरे बीत गया।
फिर भी मैं रीता ही रहा।
देश, समाज, परिवार पर
बोझ बना रहा।

आज दफ़्तर में
कुछ ज़रूरी काम था,
सो घर से समय पर निकला
और ...
दफ़्तर छोड़ आगे निकल गया
जहां एक मित्र से मिलना हुआ
उसने हृदय विदारक ख़बर सुनाई।
मेरे गाँव का एक पुलिसकर्मी
नशे में डूबे बड़े घर के बिगड़ैल बच्चों की
लापरवाही का शिकार हो गया।
वह नाके पर डयूटी दे रहा था।
उसने कार में सवार लड़कों को
रुकने का इशारा किया ही था कि
वे लड़के उसे रौंदते हुए
कार भगा कर ले गए।
पता नहीं वे क्यों डर गए ?
घबराहट में वे अनर्थ कर गए।
फलत: वह बुरी तरह से घायल हुआ।
पहले उसे रूपनगर के राजकीय हस्पताल ले जाया गया ।
उसके बाद उन्हें चंडीगढ़ स्थित पीजीआई में
दाखिल करवाया गया।
जहां ऑपरेशन होने के बावजूद
उन्हें बचाया न जा सका।

आज उनका अंतिम संस्कार है।
यह सब कुछ जानकर
मैं उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुआ।
बड़ा हृदय विदारक माहौल था।
एक संभ्रांत परिवार का कमाऊ सदस्य
अराजक तत्वों की भेंट चढ़ गया ।
परिवार पर अचानक दुःख का पहाड़ टूट पड़ा।

शाम सात बजे घर पहुंचा
तो मैं थोड़ा उदास और निराश था।
जिस सहृदय आदमी की विनम्रता को
सब कल तक सराहते थे ,
वह आज अचानक मानवीय क्रूरता का
बन गया था शिकार।
वह जन रक्षक था
पर अराजकता के कारण
खुद को बचा नहीं पाया।
वह दुर्घटना ग्रस्त होकर
जीवन में संघर्ष करते करते
चिर निद्रा में सो गया।
एक संवेदनशील व्यक्ति
काल के भंवर में खो गया।

मोबाइल पर उनके दाह संस्कार की बाबत
एक वीडियो डाली गई थी,
जिसमें अंतिम अरदास से लेकर
पुलिस कर्मियों के सैल्यूट करने,
सलामी देने की प्रक्रिया दर्शाई गई थी।

पुलिस के जवान
जब तब
चौबीसों घंटे
कभी भी
कहीं भी
अपनी डयूटी ढंग से निभाते हैं
तब भी वे
असुरक्षित क्यों होते जाते हैं ?
असमय
वे हिंसा का शिकार बन जाते हैं।
इस संबंध में
सभी को सोचना होगा।

इस समय मैं
कल और आज के दिन के बारे में
विचार कर रहा हूँ ,
आदमी अपने को हर पल व्यस्त रखे
तो ही अच्छा ,
वरना सुस्ती में
दिन कुछ खो जाने का अहसास कराता है।
आदमी के जीवन का एक और दिन
काल की भेंट चढ़ जाता है।
आदमी के हाथ पल्ले कुछ नहीं पड़ता है।
उसका जीवन पछतावे में बीतने लगता है।
आदमी कर्मठता की राह चले तो दिन भी अच्छे भले लगें।
वह कल ,आज और कल का भरपूर आनंद ले।
ताकि जीवन में सुख समृद्धि का अहसास
तन और मन को प्रफुल्लित करता रहे।
२३/०१/२०२५.
कभी कभी
पिता अपना आपा खो
बैठते हैं ,
जब वह अपने लाडले को
निठल्ला बैठे
देखते हैं ।

उनके क्रोध में भी
छिपा रहता है
लाड,दुलार और स्नेह।
पिता के इस रूप से
पुत्र होता है
भली भांति परिचित ,
फलत: वह रह जाता है चुप।
अक्सर वह पिता के आदेश का
करता है निर्विरोध पालन।
बेशक अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहे !
चाहता है पिता का साया हमेशा बना रहे !!

पिता के आक्रोश का क्या है ?
थोड़ी देर बाद एक दम से
ठोस से द्रव्य बन जाएगा !
कभी कभी वह छलक भी जाएगा !
जब पिता अपनी आंखों में दुलार भरकर ,
झट से पुत्र के लिए चाय बना कर
प्रेमपूर्वक लेकर आएगा।
...और जब पिता पुत्र
दोनों एक साथ मिलकर  
चाय और स्नैक्स के साथ
दुनिया भर की बातें
गहन आत्मीयता के साथ करेंगे ,
तब क्रोध और तल्खी के बादल
स्वत: छंटते चले जाएंगे।

पिता अपने आप ही
क्रोध पर
नियंत्रण का करने का करेंगे प्रयास
और
पुत्र पिता की डांट डपट को
यह तो है
महज़
मन के भीतर की गर्द और गुबार
समझ कर भूल जाएगा।
वह और ज़्यादा समझदार बनकर
पिता की खिदमत करता देखा जाएगा।

पिता और पुत्र का रिश्ता
किसी अलौकिक अहसास से कम नहीं।
दोनों ही अपनी अपनी जगह होते हैं सही।
बस उनमें कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।
उनमें निरन्तर सहन शक्ति बनी रहनी चाहिए।

२२/०१/२०२५.
Jan 21 · 45
कुछ लोग
यहाँ वहाँ सब जगह
कुछ लोग
अपनी बात
बेबाकी से रख
आग में घी
डालने का काम
बहुत सफाई से करते हैं।
ऐसे लोग
प्रायः सभी जगह मिलते हैं!
लोग भी
इनकी बातों का समर्थन
बढ़ चढ़ कर करते हैं।

उनके लिए
लोग बेशक
लड़ते झगड़ते रहें ,
पर वे अपनी बात पर
डटे रहते हैं!
ऐसे लोग
प्रायः जनता जर्नादन के
प्रिय बने रहते हैं!
कुछ लोग
बड़े प्यार और सहानुभूति से
दुखती रग को
सहला कर
सोए दुःख को जगा कर
अपने को अलग कर लेते हैं !
वे अच्छे और सच्चे बने रहते हैं !
उन्हें देख समझ कर
आईना भी शर्मिंदा हो जाता है,
परंतु कुछ लोग सहज ही
इस राह पर चल कर
दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते हैं।
वे आँखों का तारा बने चमकते रहते हैं।

कुछ लोग
बात ही बात में
अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं।
जब तक हकीकत सामने आती है,
वे सर्वस्व हड़प जाते हैं ,
चुपके से अराजकता फैला जाते हैं।
वे मुश्किल से व्यवस्था के काबू में आते हैं।

कुछ लोग
किसी असाध्य रोग से
कम नहीं होते हैं,
आजकल उनकी गिनती बढ़ती जा रही है,
व्यवस्था उनके चंगुल में फंसती जा रही है।
फिर कैसे जिन्दगी आगे बढ़े ?
या वह उन दबंगों से मतवातर डरती रहे ।
इस बाबत आप भी कभी अपने विचार प्रकट करें।
२१/०१/२०२५.
यह संभव नहीं
कि कभी मनुष्य
पूर्णतः विकार रहित हो सके।
फिर भी एक संभावना
उसके भीतर रहती है निहित,
कि वह अपने जीवनशैली
धीरे धीरे विकार रहित बना सके,
ताकि वह अपनी स्वाभाविक कमजोरियों पर
नियंत्रण करने में सफल रहे।

कोई भी विकार
सब किए धरे को
कर देता है बेकार ,
अतः व्यक्ति जीवन में संयमी बने
ताकि वह किसी हद तक
विकार रहित होकर
मन को शुद्ध रख सके,
जीवन धारा में शुचिता का
संस्पर्श कर सके।
वह सहज रहते हुए आगे बढ़ सके,
ताकि उस पर  लंपट होने का
कभी भी दोषारोपण न लग सके।
वह जीवन में
स्वयं के अस्तित्व को
सार्थक कर सके।
विकार रहित जीवन को
अनुभूति और संवेदना से
जोड़ कर
अपने व्यक्तित्व में
निखार ला सके।
वह प्यार और सहानुभूति को
चहुं ओर फैला सके,
चेतना से संवाद रचा सके,
अज्ञान की निद्रा से जाग सके।
२१/०१/२०२५.
व्यक्ति को
विशेष
बनाता है ,
मन के भीतर व्याप्त
जिम्मेदारी का
अहसास!
व्यक्ति
स्वयं को
समझता है खास।
अभी अभी
सुबह सुबह
पढ़ी है एक ख़बर
मेरे शहर का
एक बालक
जूडो की चैंपियनशिप में
जीत कर लाया है
एक सिल्वर मेडल।
वह बड़ा होकर
माँ को देना चाहता है
एक घर की सौगात !
छोटे भाई को
बनाना चाहता है
एक अच्छा इंसान !
उम्र उसकी अभी है
बारह साल ,
वह रखना चाहता है
माँ और छोटे भाई का ख्याल।
जिम्मेदारी की भावना
उसे बना देती है ख़ास।
उसे है जीवन की
मर्यादा का अहसास।
मैं चाहता हूँ कि
मेरा शहर उसके स्वप्न को
पूरा करने में मददगार बने
ताकि विशिष्टता का भाव
उसके भीतर सदैव बना रहे।
जीवन संघर्ष में वह विजयी बने।
सार्थकता के पुष्प
उसके इर्द गिर्द खिलते रहें !
उसे प्रफुल्लित करते रहें !!
विशेष विशिष्ट बने!
जीवन की सुगंध
उसका मार्ग प्रशस्त करती रहे।
२१/०१/२०२५.
किसे नहीं जीवन
अच्छा लगेगा ?
जब जीवन के प्रति
मतवातर आकर्षण जगेगा।
मृत्यंजय क्यों कभी कभी
मौत के आगोश में चला जाता है?
जिसका नाम मृत्यु को जीतने वाला हो ,
वह क्यों जीवन के संघर्षों से हार जाता है?
अभी अभी पढ़ी है एक ख़बर कि
मृत्युंजय ने फंदा लगा लिया।
वह जीवन से कुछ निराश और हताश था।
आओ हम करें प्रयास
कि सब पल प्रति पल
बनाए रखें जीवन में
सकारात्मक घटनाक्रम की आस
ताकि आसपास हो सके उजास,
भीतर भी सुख ,समृद्धि और संपन्नता का
सतत होता रहे अहसास।
अचानक शिवशक्ति को
अपने नाम मृत्यंजय में समाहित
करने वाला जीवात्मा
असमय जीवन में न जाए हार।
वह जीवन को अपनी उपस्थिति से
आह्लादित करने में सक्षम बना रहे।
वह अचानक सभी को
शोकाकुल न कर सके।
वह जीवन को हंसते हंसते वर सके।
२०/०१/२०२५.
Jan 20 · 39
तकलीफ़
अपनी तकलीफ़ को
बता पाना नहीं है
कोई आसान काम।
सुख में खोया आदमी
नहीं दे सकता  
दूसरों के दुःख,दर्द, तकलीफ़ की
ओर ध्यान।
वह रहता अंतर्मगन।
वह आवागमन के झंझटों से दूर रहना चाहता है।
वह अपनी दुनिया में खोया रहता है,
उसका अंतर्मन अपने आप में तल्लीन रहता है।
छोटा बच्चा रोकर
अपनी तकलीफ़ बताता है।
किसान मजदूर धरना प्रदर्शन करने से
सरकार को अपनी तकलीफें बताना चाहते हैं।
और बहुत से लोग तकलीफ़ बताता तो दूर ,
वे संकुचा कर रह जाते हैं।
वे अपनी तकलीफ़ कह नहीं पाते हैं।
वे इस पीड़ा को सहते हुए
और ज्यादा जख्मी होते रहते हैं।
कहीं आप भी तो उन जैसे तो नहीं ?
आप मुखर बनिए।
जीवन में अपनी तकलीफ़ बताना सीखिए।
20/01/2025.
दविंदर ने
एक दिन अचानक
पहले पहल
शिवालिक की नीम पहाड़ी इलाके में
भ्रमण करते हुए
दिखाया था एक कीड़ा
जो गोबर को गोल गोल कर
रहा था धकेल।
आज उस का एक चित्र देखा।
उस की बाबत लिखा था कि
यह गोबर की गंध से
होता है आकर्षित
और इसे गोलाकार में
लपेटता हुआ
अपने बिल में ले जाने को
होता है उद्यत
पर गोबर की गेंद नुमा यह गोला
आकार में बिल के छेद से बन
जाता है कुछ थोड़ा सा बड़ा
वह इसे बिल में धकेलने की करता है कोशिशें
पर अंत में थक हार कर
अपनी बिल में घुस जाता है।
इस घटनाक्रम की तुलना
आदमी की अंतरप्रवृत्ति से की गई थी।
इस पर मुझे दविंदर का ध्यान आया था ।
मैंने भी खुद को गोबर की गंध से आकर्षित हुए
कीट की तरह जीवन को बिताया था
और अंततः मैं एक दिन सेवा निवृत्त हो घर लौट आया था
पर मैं ढंग से अपने इकट्ठे किए गोबर के गोले अर्थात् संचित सामान को सहेज नहीं पाया था।
मैं खाली हाथ लौट पाया था
जस का तस गोबरैला बना हुआ सा।
२०/०१/२०२५.
Jan 20 · 244
Surfing
The waves of ups and downs
in life
makes us
feel quite happy and exciting
while surfing in the ocean of emotions.

All such adventurous situations and  sufferings in life
make the journey of life
too some extent challenging.
Surfing 🌊 on the waves of sufferings
proves the life worth living.
It is just the fun of wandering and giggling.
देह क्या है
एक आकार ,
पंच तत्वों से
निर्मित
एक पुतला भर !
या फिर कुछ ज़्यादा !!
चेतन की देह में उपस्थिति भर!!
देह के भीतर व्यापा चेतन
कहां से मन को नियंत्रित कर पाता है ?
इस बाबत सोचते पर
आदमी मूक रह जाता है।
वह अपनी देह से नेह के जुड़े होने की
जब जब अनुभूति करता है,
वह अचंभित होता हुआ
तब तब अपनी काया के भीतर
विराट की उपस्थिति को समझ पाता है।
वह बस इस अहसास भर से  
स्वयं को उर्जित पाता है
और अपनी संभावना को टटोल जाता है।
इससे पहले कि वह
आकर्षण के पाश में बंध कर
अपनी जीवन धारा को चलायमान रखने के निमित्त
दैहिक निमंत्रण की बाबत सोचना शुरू करे ,
वह स्वयं को दैहिक और मानसिक रूप से दृढ़ करे ,
और हां, वह दैहिक नियंत्रण के लिए
जी भर कर यौगिक क्रियाएं और व्यायाम करे
ताकि उसकी आस्था
जीवनदायिनी
चेतना के प्रति अक्षुण्ण बनी रहे।
यह जीवन में उतार चढ़ाव के समय भी
संतुलित दृष्टिकोण से पल्लवित और पोषित होती रहे,
जीवन धारा को आगे बढ़ाने में सक्षम बनी रहे।
जीवन पथ पर आगे बढ़ने के दौरान
कहीं कोई कमी न रहे ,
बल्कि  इस देह में
ऊर्जा बनी रहे।

देह के निमंत्रण को स्वीकार करने से पूर्व
आदमी का देह पर नियंत्रण बना रहे,
ताकि सफलता मतवातर मिले।
यह जिंदगी सदैव महकती रहे।
यह खुशबू बिखेरती रहे।
यह अपने सार्थक होने की
प्रतीति करा सके।
१९/०१/२०२५.
अचानक
किसी भावावेग में
आकर
आदमी
क्रूरता की
सभी हदें
पार कर जाए
और होश में आने के बाद
भागता फिरे
निरन्तर
वह बेशक पछताए,
परंतु
गुजरा समय लौट कर न आए।
इससे बचने का
ढूंढना चाहे कोई उपाय।
उसका बचना मुश्किल है।
वह कैसे अपना बचाव करे ?
अच्छा है कि वह किसी दुर्ग में
छुपने की बजाय
परिस्थितियों का सामना करे।
कानून और न्याय व्यवस्था के सम्मुख
आत्म समर्पण करे।

अगर छिपने के लिए
मिल भी जाए कोई दुर्ग जैसी सुरक्षित जगह का अहसास
तब भी एक पछतावा सदा करता रहता है पीछा।
एक सवाल मन में रह रह कर करता रहेगा बवाल ,
अब बचाव करूं या भागने की फिराक में रहूं ?
अच्छा रहेगा कि
आदमी खुद को निडर करे
और सजा के लिए खुद को तैयार करे ।
आत्म समर्पण एक बेहतर विकल्प है ,
अपनी गलती को सुधारने का प्रयास ही बेहतर है
जिससे एक बेहतर कल मिल सके ,
ताकि आदमी भविष्य में खुल कर जी सके।
१९/०१/२०२५.
आदमी की जिन्दगी
और जिंदगी में आदमी
एक अद्भुत संतुलन बनाए हैं ,
वे एक दूसरे के साथ
अंतर्गुंफित से हो गए हैं,
दोनों एक दूसरे से
होड़ा होड़ी करने को हैं तैयार
बेशक आस पास उनके
यार मार करने की चली जा रही चाल।
वे अपने आप में तल्लीन
सब कुछ भूले हुए हैं।
बस उन्हें है यह विदित
कि वे दोनों
डांट डपट
छल कपट
आसपास की उठा पटक के
बावजूद
अपने अपने वजूद को
बनाए रखने के निमित्त
कर रहे हैं सतत संघर्ष
और नहीं बचा है कोई विकल्प।
आदमी की जिन्दगी
और
जिन्दगी में आदमी
सरपट भागे
जा रहें हैं अपने पथ पर।
अवसर
अक्सर
अचानक एक अजगर सा होकर
जाता है उनसे लिपट
इस हद तक कि
आदमी की जिन्दगी ,
और जिन्दगी में आदमी  को
समेट कर
बढ़ जाता है सतत
अपने पथ पर।
समय एक अजगर सा होकर
लिपटा जा रहा है
आदमी की जिन्दगी से
इस हद तक कि
उसकी जिन्दगी का किस्सा
लगने लगा है बड़ा अजीब और अद्भुत
बिल्कुल एक शांत बुत सा।
आदमी को
जिन्दगी की तेज़ रफ़्तार के दौर ने
जीने की होड़ ने ,
रोजमर्रा की दौड़ धूप ने
बना दिया है
एक बाज़ीगर सरीखा ।
वह अपनी मूल शांत प्रवृत्ति को छोड़ कर
वह बनता चला जाता है
पल पल तीखा ,एकदम तेज़ तर्रार
हरपल क़दम क़दम पर
अपने प्रतिस्पर्धी को चोट पहुंचाने को उद्यत।
आदमी लड़ता है मतवातर
परस्पर एक दूसरे से
इस हद तक
कि वह हरदम  
करना चाहता उठा पटक ।
वह जैसे ही अपने हिस्से पर
झपटने के बाद
अपने ठौर ठिकाने में लौट कर आता है ,
वह और ज़्यादा अपने भीतर सिमटता जाता है ।
जिन्दगी पर से उसका भरोसा
लगातार पीछे छूटता जाता है ,
वह निपट अकेला रह जाता है।
उसकी जिन्दगी को यह सब नहीं भाता है,
फिर भी वह आदमी का साथ नहीं छोड़ती है।
जिन्दगी का किस्सा है बड़ा अजीबोगरीब ,
आदमी जितना इससे पीछा छुड़ाना चाहता है ,
यह उतना ही
आती जाती है
आदमी के क़रीब।
आदमी कभी भी पीछा नहीं छुड़ा पाता है।
इस डांट डपट छल कपट के दौर में भी
जिन्दगी आदमी के साथ साथ
उसके समानांतर
दौड़ी जा रही है
अपने पथ पर।
यह आदमी को
निरन्तर आगे ही आगे
है बढ़ा रही ,
यह सुख समृद्धि और संपन्नता की ओर
उसे अग्रसर है कर रही।
आदमी के भीतर की बेचैनी
इस सब के बावजूद  
लगातार बढ़ती जा रही है।
यही बेचैनी उसे दरबदर कर ,
ठोकरें खाने को विवश कर
मतवातर भटका रही है।
१८/०१/२०२५.
आदमी के पास
एक संतुलित दृष्टिकोण हो
और साथ ही
हृदय के भीतर
प्रभु का सिमरन एवं
स्मृतियों का संकलन भी
प्रवेश कर जाए ,
तब आदमी को
और क्या चाहिए !
मन के आकाश में
भोर,दोपहर,संध्या, रात्रि की
अनुभूतियों के प्रतिबिंब
जल में झिलमिलाते से हों प्रतीत !
समस्त संसार परम का
करवाने लगे अहसास
दूर और पास
एक साथ जूम होने लगें !
जीवन विशिष्ट लगने लगे !!
इससे इतर और क्या चाहिए !
प्रभु दर्शन को आतुर मन
सुगंधित इत्र सा व्याप्त होकर
करने लगता है रह रह कर नर्तन।
यह सृष्टि और इसका कण कण
ईश्वरीय सत्ता का करता है
पवित्रता से ओत प्रोत गुणगान !
पतित पावन संकीर्तन !!
इससे बढ़कर और क्या चाहिए !
वह इस चेतना के सम्मुख पहुँच कर
स्वयं का हरि चरणों में कर दे समर्पण!
१७/०१/२०२५.
आजकल
दुनिया असली से
नकली बनती जा रही है ,
आभासी दुनिया की
चकाचौंध भी
अब सभी को
लुभा रही है ,
यह दिन प्रति दिन
भरमा रही है।

इस दुनिया के
अपने ही ख़तरे हैं,
हम सब आभास करते हैं
कुछ सचमुच का होने का ,
पर यह होता नहीं , कहीं भी।
इसे असल दुनिया में
खोजने लगें
तो हासिल होता कुछ भी नहीं ,
फिर भी लगता सब कुछ ठीक और सही।
मैं आभासी अंतरंगता के
दौर से भी गुजर चुका हूँ,
खुद को खूब थका चुका हूँ।
सब कपोल कल्पित
किस्से कहानियों में वर्णित
रंग बिरंगी दुनिया के
आकर्षक और लुभावने पात्रों की तरह !
इर्द गिर्द मंडराते और घूमते दिखाई देते हैं !!
एक नशीली महिमा मंडित दुनिया की तरह !
जहां असलियत और सच्चाई के लिए
होती नहीं कोई जगह बेवजह।

आभासी दुनिया का सच
कब हो जाए गायब और गुम !
यह कर दे इंसान को गुमसुम !!
कुछ कहा नहीं जा सकता !
बहुत कुछ कभी सहा नहीं जा सकता !!

जैसे ही रीचार्ज खत्म
समझो आभासी दुनिया का तिलिस्म भी हुआ खत्म !
और जैसे ही इंटरनेट कनेक्शन हुआ डिस्कनेक्ट !
वैसे ही समझो अब कुछ खत्म और समाप्त !
समूल सत्यानाश ! सब कुछ तहस नहस !
जीते जी बेड़ा गर्क !
जिन्दगी बन जाती साक्षात नरक !

इस आभासी दुनिया के खिलाड़ी
एक आभासी दुनिया में रहकर संतुष्ट होते हैं !
वे किसी हद तक
स्व निर्मित कैद को भोगने को विवश होते हैं !
क्या कभी कल्पित वास्तविकता
हम सब को हड़प जाएगी ?
हाय!तब हमारी असली दुनिया कहाँ ठौर ठिकाना पाएगी?
१७/०१/२०२५.
ऋण लेकर
घी पीना ठीक नहीं ,
बेशक बहुत से लोग
खुशियों को बटोरने के लिए
इस विधि को अपनाते हैं।
वे इसे लौटाएंगे ही नहीं!
ऋणप्रदाता जो मर्ज़ी कर ले,
वे बेशर्मी से जीवन को जीते हैं।
ऋण लौटाने की कोई बात करे
तो वे लठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं।
ऐसे लोगों से निपटने के लिए
बाउंसर्स, वकील, क़ानून की मदद ली जाती है ,
फिर भी अपेक्षित ऋण वसूली नहीं हो पाती है।

कुछ शरीफ़ इंसान अव्वल तो ऋण लेते ही नहीं,
यदि ले ही लिया तो उसे लौटाते हैं।
ऐसे लोगों से ही ऋण का व्यापार चलता है,
अर्थ व्यवस्था का पहिया विकास की ओर बढ़ता है।

ऋण लेना भी ज़रूरी है।
बशर्ते इसे समय पर लौटा दिया जाए।
ताकि यह निरन्तर लोगों के काम में आता जाए।

कभी कभी ऋण न लौटाने पर
सहन करना पड़ता है भारी अपमान।
धूल में मिल जाता है मान सम्मान ,
आदमी का ही नहीं देश दुनिया तक का।
देश दुनिया, समाज, परिवार,व्यक्ति को लगता है धक्का।
कोई भी उन पर लगा देता है पाबंदियां,
चुपके से पहना देता है अदृश्य बेड़ियां।
आज कमोबेश बहुतों ने इसे पहना हुआ है
और वे इस ऋण के मकड़जाल से हैं त्रस्त,
जिसने फैला दी है अराजकता,अस्त व्यस्तता,उथल पुथल।

हो सके तो इस ऋण मुक्ति के करें सब प्रयास !
ताकि मिल सके सभी को,
क्या व्यक्ति और क्या देश को, सुख की सांस !!
सभी को हो सके सुख समृद्धि और संपन्नता का अहसास!!
१७/०१/२०२५.
चोरी चोरी
चुपके चुपके
बहुत कुछ
घटता है छुप छुप के।
अगर अचानक कोई
रंगे हाथों पकड़ा जाता है,
तो उसका प्यार
या फिर लुकाव छुपाव
सबके सामने आ जाता है ,
स्वत: सब कुछ खुल कर
नजर आ जाता है ,
पर्दाफाश हो जाता है।
हरेक शरीफ़ और बदमाश तक
प्रायः इस अनावृत हो जाने की
घबराहट की जद में आ जाता है।
पर्दाफाश होने का डर
आदमी के
समाप्त होने तक
पीछा करता रहता है।
अच्छा रहेगा
आदमी दुष्कर्म न ही करे
ताकि कोई डर
अवचेतन मन में
दु:स्वप्न बनकर
मतवातर पीछा न करे।
16/01/2025.
Jan 16 · 53
कैलेंडर
उन्होंने मुझे देना चाहा
नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ
एक आकर्षक कैलेंडर
परंतु मैंने शुभ कामनाओं को
अपने पास संभाल कर रख लिया और
कैलेंडर विनम्रता से लौटा दिया।
वज़ह छोटी व साफ़ थी कि
कैलेंडर पर आराध्य प्रभु की छवि अंकित थी।
साल ख़त्म हुआ नहीं कि
कैलेंडर अनुपयोगी हुआ।
वह शीघ्र अतिशीघ्र कूड़े कचरे के हवाले हुआ।
यह संभव नहीं कि उसे फ्रेम करवा कर संभाला जाए।
फिर क्यों जाने अनजाने
अपने आराध्य देवियों और देवताओं का
अपमान किया जाए ?
अच्छा रहेगा कि कैलेंडरों पर
धार्मिक और आस्था के स्मृति चिन्हों को
प्रकाशित न किया जाए।
उन पर रंगीन पेड़ पौधे,पुष्प,पक्षी,पशु और
बहुत कुछ सार्थकता से भरपूर जीवन धारा को
इंगित करता मनमोहक दृश्वावलियों को छापा जाए।
जो जीवन की सार्थकता का अहसास करवाए ,
मन में मतवातर प्रसन्नता के भावों को जगाए ।
१६/०१/२०२५.
सर्दियों की धूप
देती है
देह को,
देह में रहते नेह को
अपार सुख।
यही गुनगुनी धूप आदमी को
जिन्दगी में गुनगुनाने को
करती है मजबूर
कि उसके भीतर की
तमाम उदासी धीरे धीरे
होती जाती दूर।
सर्दियों की धूप भी
क्या होती है ख़ूब !
यह जीवन में
ऊर्जा भर जाती है,
तन और मन में
आशा और सद्भावना के
पुष्प खिला देती है ,
जीवन में संभावना की
महक का अहसास करा देती है।
ठंडी हवा के दौर में
यह धूप न केवल अच्छी लगती है
बल्कि यह भीतर तक
जीवन धारा से
आत्मीयता की ऊष्मा का बोध करवाने लगती है ,
जिससे
जिन्दगी आनंद से भरपूर लगने लगती है।
कभी कभी यह मन को मस्ताने लगती है।

सर्दियों की गुनगुनी धूप का जादू
जब सिर चढ़ कर बोलता है ,
तब आदमी का सर्वस्व आनंदित होता है ,
उसका रोम रोम भीतर तक पुलकित होता है।
ठंड से घिरे आदमियों के जीवन में
इस गुनगुनी धूप का आगमन
किसी वसंत के आने से कम नहीं।
यह जीवनदायिनी बन जाती है,
यह संजीवनी सरीखी होकर
जीवन को ऊष्मा और ऊर्जा से भरपूर कर देती है।
यह मन में सद्भावना का नव संचार भी करती है,
जिससे जीवन में सार्थकता की प्रतीति होने लगती है।
१६/०१/२०२५.
Next page