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Nov 2024 · 70
ਜ਼ਿੰਦਗੀ
Joginder Singh Nov 2024
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲੰਘ ਰਿਹਾ
ਇੱਕ ਪੜ੍ਹਾਅ ਭਰ ਹੈ ,
ਇੱਥੇ ਆਦਮੀ ਜਨਮਦਾ ਹੈ ,
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਂਦਾ ਹੈ,
ਤੇ ਸਮੇਂ ਪੂਰਾ ਹੋਣ ਤੇ
ਸਮੇਂ ਦੇ ਧੁਰ ਅੰਦਰ ਗੁਆਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।


ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਮੇਂ ਦੇਵਤਾ ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬੰਦਗੀ ਹੈ ,
ਇਸ ਬੰਦਗੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਰਵਾਨਗੀ ਹੈ ,
ਇਸ ਬਾਬਤ ਨਹੀਂ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈਰਾਨਗੀ ਹੈ ।
Joginder Singh Nov 2024
ਪਿਆਰੇ ਦਾ
ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਰਦਾਰ ‌

ਮੈਨੂੰ ਇਹਦਾ
ਰਹਿੰਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ


ਮੈਂ ਪਿਆਰੇ ਨੂੰ ਉਡੀਕਦਾ ਹਾਂ,
ਰਹਿ ਰਹਿ ਕੇ ਸੋਚਦਾ ਹਾਂ,
ਪਿਆਰ ਵਿੱਚ ਕੱਲੀ ਵਾਸਨਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ,
ਇਸ ਵਿੱਚ ਤਿਆਗ ਦੀ ਕਥਾ ਵੀ ਹੈ ਰਹਿੰਦੀ
ਜਿਹੜੀ  ਸਾਰੇ ਜਬਰ ਜੁਲਮ ਨੂੰ ਚੁੱਪਚਾਪ ਸਹਿੰਦੀ


ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਆਰੇ ਦਾ ਹੈ ਇੰਤਜ਼ਾਰ
ਜਿਹੜਾ ਦੇਵੇਗਾ ਮੇਰੀ ਨੁਹਾਰ ਨਿਖਾਰ
ਉਸ ਉੱਤੇ ਮੈਂ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਪੂਰਾ ਐਤਬਾਰ
Nov 2024 · 72
Missing
Joginder Singh Nov 2024
I know very well.
Nowadays for friends as well as foes
I am missing from home and work place, because of my misbehaving with family members and colleagues.



I am running constantly towards my comfort zone ,being silent and I am in a fix, totally indecisive .


I remain most of time silence 🤐.
Violence within me has lost all energy
and enthusiasm.



My inner consciousness, in common language,it is known as mind, always warn me to keep control on anger,and to realise the reality of life .

I ignored all the warnings and advice of my friend mind.As a result my well organised life is changed to a miserable and pathetic life.
I cries from time to time ,due to my
ignorance and hurriedness .


I want to enter in my comfortable zone.But now there is only exit,they have blocked the entrance. And,as a result,I am missing the contentment in life, wandering here and there.

I am a missing person for them.
I have lost the rhythm and freedom in life.My memories are also wandering towards a pathway which is full ofdarkness.The decline of bright and peaceful days is constantly haunting me.I want to correct my previous mistakes of past life.
I strongly need a comfortable life...,which I am missing.
Nov 2024 · 82
Comfort Zone
Joginder Singh Nov 2024
If you have a deep desire to attain name and fame in your present life.
First of all, leave your comfort zone.
Come and face the hard realities of this merciless world to keep in yourself in the race of worldly activities.
To live life in a comfort zone makes a person lazy and crazy.
For a successful career,you should break the barriers, which you constructed  during leading a comfortable life.
Come and face the comedy of life to make career bright and shine like Sun.
He is regularly burning his fuel made of hydrogen,helium etc.
So you must channelize your hidden energy and enthusiasm to lead a responsible and successful career.
Break all the barriers of comfortable zone immediately.
Joginder Singh Nov 2024
Nothing is free here,dear.
Even dearness allowance is not free in work structure of public as well as private sectors.
In capitalism, socialism, democracy and autocracy, price tags are being fixed on each commodity.
Even in social life, you must prepare yourself to pay price for natural instincts like love and hate etc.
Nothing is free here,dear.
Even freedom is not free to spend time for  the care of helpless persons.

So don't spare yourself to take care of
the thankless persons arround you.
You can keep your self  free for your freedom and personal activities .

Your own time is also a victim of price tag culture,dear.
There is nothing priceless.
You have to pay even for your emotions in an emotionalless, materialistic world.
Is it clear to you,dear.
Nov 2024 · 96
Hell
Joginder Singh Nov 2024
Where exists hell on earth or on any other planets?
It exists in our mind only.
It can take it 's existence only in our surroundings ,when nobody is following rules and regulations.
Indiscipline makes a peaceful and prosperous life like a hell,where the death' s bell starts appearing our near soon for a journey of hell.
Joginder Singh Nov 2024
यह
नितांत सच है कि
कोशिश
जीवन की कशिश है।
कोशिश करते-करते
सभी एक दिन
कामयाब हो जाते हैं,
वे अपने भीतर
जीवन की कशिश
भर पाते हैं,
अपने सपने
साकार कर जाते हैं।

कोशिश में ही
जीवन की कशिश
है छुपी हुई।

कोशिश, मतवातर कोशिशें
हैं सब जिजीविषा का उत्स,
जो जीवन को एक उत्सव
तुल्य बनातीं हैं।

कोशिशों ने ही
जीवन रण में संघर्षों की गाथाएं रचीं हैं।
ये कोशिशें ही हैं, जिन्होंने
मानव के भीतर कशिश भरी है।
जो जीवन का केंद्र बिंदु बनी है।

तुम सतत् अथक कोशिशें करते रहो।
अपने व्यक्तित्व में कशिश पैदा करो।
कामयाबी की एक अनूठी कथा रचो।
सुख समृद्धि के पंखों से नित्य नूतन उड़ान भरो।

तुम कोशिशें कर, जीवन संघर्ष में कशिश उत्पन्न करो।
तुम अपने अस्तित्व को पूर्णरूपेण कर्मठता को सौंप दो।
  २८/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
यह सच है
क्रांति की प्रतीक्षा में,
पूरा जीवन
रीत जाता है,
पर क्रांति नहीं होती।
आंतरिक जुड़ाव
खुशी से जुड़ा
जीवन का शाश्वत सच है ।
क्रांति की प्रतीक्षा में
आदमी कभी कभार
ओढ़ लेता है
खामोशी और अनाभिव्यक्ति का
सुरक्षा कवच।
जीवन में
नहीं दिखना चाहता वह
हताश ,निराश ,बीमार।
पर वह
अपने अंतर्विरोधों से
कभी  बच नहीं पाता है
क्योंकि हर आदमी के पास
सदैव होता है
अपना एक सच ,
जो बनता है एक सुरक्षा कवच
और
संकट के समय
जिसे ओढ़कर
आदमी जीवन संघर्ष करता है,
और क्रांति से पहले की
आपातकालीन परिस्थितियों में
सुरक्षित रह पाता है।
क्रांति का जीवन सत्य से जुड़ता
एक अनुपम ,अद्भुत नाता है।
क्रांति की प्रतीक्षा करना सबको भाता है।
Joginder Singh Nov 2024
जब
देशद्रोही अराजकता को
बढ़ावा देने के मंतव्य से
एक पोस्टरवार का
आगाज़ करते हैं,
और
समाज का
पोस्टमार्टम करने की ग़र्ज से
लगवाते हैं पोस्टर,
तब
होता है महसूस,
मैं आजाद
भले ही हूं,
पर
हूं एक कठपुतली ही,
जिसे
कोई देशद्रोही
नचाना चाहता है,
मेरी अस्मिता को
कटघरे में खड़ा करना चाहता है,
अपनी मनमर्ज़ी से
दहलाना चाहता है,
मेरे अस्तित्व को
दहलाना चाहता है।

मैं
देशद्रोही से
सहानुभूति नहीं रखती।

मैं
उसे देशभक्त का
मुखौटा पहने
नहीं देख सकती।

मैं
देशद्रोही को
साथियों सहित
कुचले जाते
देखना चाहती हूं।

मेरे भीतर
मध्यकालीन बर्बरता है,
सिर के बदले सिर ,
आंख के बदले आंख,
ख़ून के बदले ख़ून
सरीखी
मानसिकता है,
रूढ़ियों से बंधी हुई
दासता है।
चूंकि
मैं एक कठपुतली
खुद दूसरे के हाथ से
नचाई जाती रही हूं,
मैं भी
देशद्रोहियों को
अपनी तरह
नाचते देखना चाहती हूं।

मैं परंपरा का
सम्मान करती हूं,
साथ ही
आधुनिकता को
तन मन से स्वीकारती हूं ।

यदि
आधुनिकता
हमें देशद्रोही
बनाती है ,
तब यह कतई नहीं
भाती है ।
ऐसे में
आधुनिकता मुसीबत
बन जाती है !
यह स्थिति
मुझे हारने की
प्रतीति कराती है ।

मैं
देशद्रोही बनाने वाली
पोस्टर में अंकित,
अधिकारों से वंचित ,
भ्रष्टाचार करके संचित
धन संपदा को एकत्रित करने
और निरंकुश बेशर्मी के
रही सदा खिलाफ हूं ।
मैं इस खातिर
अपना वजूद भी
दांव पर लगा सकती हूं ।
जरूरत पड़े तो हथियार भी
उठा सकती हूं ।

भले ही
अब तक मैं
हथियार विहीन
जिंदगी
जिंदादिली से
जीती आई हूं ।
एक अच्छे नागरिक के
समस्त कर्तव्य
निभाती आई हूं ।

यदि कोई
आंखों के सम्मुख
देशद्रोह की
गुस्ताखी करेगा,
तो प्रतिक्रिया वश
यह गुस्ताख कठपुतली
उसे बदतमीजी की
बेझिझक सजा देगी।
साथ ही उसकी
अकल ठिकाने लगाएगी ।

उसे पश्चाताप करने के लिए
बाध्य करेगी ।

जब कोई देशद्रोही
अपने उन्माद में
अट्टहास करता है ,
तब वह अनजाने ही
शत्रु बनाता है!
वह एक कठपुतली में
असंतोष जगा जाता है !
वह कठपुतली के भीतर
प्रमाद के सुर भर जाता है !!


क्या पता कोई चमत्कार हो जाए !
कठपुतली विद्रोह पर आमादा हो जाए!!
वह देशद्रोहियों के लिए
जी का जंजाल बन जाए !
वह देशद्रोहियों में खौफ भर पाए!!

कठपुतली को कभी छोटा न समझो।
वह भी अपना रूप दिखा सकती है।
वह कभी भी अपने भीतर
बदले के भाव जगा सकती है
और घमंडी को नीचा दिखा सकती है।
वह सच की पहरेदारी भी बन सकती है।
Joginder Singh Nov 2024
आज
अचानक मां की याद आई ,
मेरी आंखें भर आईं।
मां
आखिरी समय में
कुछ-कुछ
जिद्दी हो गईं थीं
मानो
उन्हें इस
जगमग जगमग करते जगत से
विरक्ति हो गई हो।
उन्हें समस्त
सांसारिक चमक दमक
फीकी और बेकार
लगने लगी हो।
वह
तस्वीर खिंचवाने से
कतराने लगी थीं।

आज
अचानक
नए वर्ष के दिन
बस में यात्रा करते हुए
उगते सूरज का
अक्स
खिड़की के शीशे में देखकर,
इसके साथ ही
अपनी काया में
बुढ़ापे के लक्षण महसूस कर
अपनी देह के भग्नावशेष
दर्पण में देख
मैं रह गया था सन्न !
मुझे मां की याद आई थी ।
मेरी आंखें भर आईं थीं ।
वर्षों बाद
अब अचानक
मां की व्यथा
मेरी समझ में आई थी।
मां क्यों तस्वीर खिंचवाने से
कतराईं थीं।
मां
मौत की परछाई को
आसपास मंडराते देख
आगत की आहट को समझ पाई थीं।
शायद यही वजह रही हो
मां के जिद्दी हो जाने की ।
मेरी चेतना में
अचानक मां की जो तस्वीर उभरी थी
उसे मैंने नमन किया ।
देखते ही देखते
मां की वह स्मृति अदृश्य हुई।
आंखें खुलीं
तो मुझे एहसास हुआ
कि मैं बस में हूं
और
मेरा गंतव्य आ गया है।
मैं बस से उतरने की तैयारी करने लगा ।
मां मेरी स्मृतियों में सदैव बसी हैं।
मेरी आंखें भरी हैं।
Nov 2024 · 50
जीना
Joginder Singh Nov 2024
जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
अभावग्रस्त
करता रहा
सतत् संघर्ष ।


जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
खुशहाल।
पर रखा उसने
बहुतों को
फटेहाल!
लोभ , मद,मोह के
जाल में फंसा कर
किया बेहाल।



जिन्दगी
तुम भी रहे
हो जी,
अपने अभावों की
वज़ह से
मतवातर
रहते
हमेशा
खीझे हुए।
सोचो
ऐसा क्यों?
क्या
चेतना गई सो? ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों ?
चेतना को
जागृत करो।
अपने जीवन लक्ष्य की
ओर बढ़ो।
१९/०२/२०१३.
Joginder Singh Nov 2024
हमें
जीवन में
समय की पाबंदी चाहिए,
सच्चे और झूठे की जुगलबंदी चाहिए।

समय
कोहिनूर से कम नहीं,
इसे बिताते हुए अक्लमंदी चाहिए।
कुछ लोग
भटकते रहते हैं,
उन्हें जिंदगी में हदबंदी चाहिए।
आज
भटकाव
और अटकाव के इस दौर में
ठहराव  से बचने के लिए
हर किसी को अपने स्व की
घेराबंदी कर लेनी चाहिए,
ताकि मन की शांति बनी रहे,
मन के भीतर आत्म विश्वास बना रहे।
गर्दनें स्वाभिमान से हरदम तनी रहें।

२३/०२/२०१७.
Nov 2024 · 57
काश!
Joginder Singh Nov 2024
काश!
यह जगत
होता एक तपोवन
न कि जंगल भर,
जहां संवेदनाएं रहीं मर,
नहीं बची अब जीने की ललक।

तपोवन में
बनी रहनी चाहिए शांति।
मित्र,
जीवन में
कोई कार्य ऐसा न करें,
जिससे उत्पन्न हो भ्रांति
जो हर ले
सुध बुध और अंतर्मन की शांति ।
२६/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
बेबी डॉल
डाल डाल पर
जीवन से
लाड लड़ाती हुई
आँखें झपका रही है।
जीवन में
सुन्दरता, मनमोहकता के
रंग बिखेर रही है।
बेबी डॉल
आकर्षण का जादू
नस नस में
जगा रही है।
वह अपने ही सम्मोहन से
मंत्र मुग्ध हुई
जीवन से संवाद
रचा रही है।

आजकल
वह खोई खोई रहती है!
दिन रात विरह के गीत गाती है!!
दिनों दिन
अकेलेपन में
खोती जाती है।


हमें
एक बेबी डॉल की तलाश है
जिस में बसती जीवन की श्वास हो!
उसके पास ही कहीं
खिला पलाश हो!!
जिसके इर्द गिर्द
मंडराता मधुमास हो!!!
२८/०२/२०१
Joginder Singh Nov 2024
सब करते हैं
प्यार
किसी  न किसी से।
कोई पैसे से ,
कोई सुंदरता से ,
कोई अपनो से,
कोई कोई गैरों तक से,
कोई खुद से ही बस
मुझे उन सब पर
आता है तरस!

सब
करते हैं प्यार,
गाते हैं मल्हार,
अभिव्यक्ति कर
सकते हैं
लाड दुलार की भी,
पर जो करता है
अपने प्यार की खातिर
सहज ही त्याग भी
उसी के पास रहता है
प्यार का सच्चा आधार जी।

यह हमेशा
करता है गहरी मार जी ।
क्या तुम हो
इस सब के लिए तैयार जी।
सच है,
सब करते हैं प्यार जी।
काश! सब जान पाएं
प्यार के साइड इफेक्ट्स को ,
इन्हें  सहन करने के लिए
खुद को करें तैयार जी।

तभी जान पाएंगे हम
प्यार आकर्षण भर नहीं है,
यह होता है
अंतरंगता से भरपूर
दिली लगाव जी।
इसे पाने के लिए
करना पड़ता है
जीवनपर्यंत त्याग जी।
प्यार असल में है
भावनाओं और संवेदनाओं का फाग जी।
साथ ही दिल का गाया राग भी।

२८/०२/२०१७.
Joginder Singh Nov 2024
जब सोचा मैंने
अचानक
विदूषक
अर्से से हंसी-मजाक नहीं कर रहा।
मैं बड़ी देर तक
उसकी इस मनोदशा को महसूस कर
बहुत बेचैन रहा।
वह जगत तमाशे से
अब तक क्यों दूर रहा ?
वह दुनियादारी के पचड़े में
अभी तक क्यों फंसा नहीं है ?


फिर भी
आज ही क्यों
उसकी हंसी हुई है गायब ।
जरूर कुछ गड़बड़झाला है!
क्या दुनिया के रंगमंच से
अपना यार
जो लुटाता रहा है सब पर प्यार,
रोनी सूरत के साथ प्यारा,सब से न्यारा
विदूषक प्रस्थान करने वाला है?

मैं जो भी उल जलूल, फिजूल
विदूषक की बाबत सोच रहा था।
मेरी कल्पना
कहीं से भी
सत्य के पास नहीं थी।
वह महज कपाल कल्पित रही होगी।
एकदम निराधार।

सच तो यह था कि
अचानक
विदूषक ने
खुद के बारे में सोचा,
मैं अर्से से हंसा नहीं हूं,

तभी पास ही
दीवार पर लटके दर्पण को
विदूषक के दर्प को
खंडित करने की युक्ति सूझी।
उसने विदूषक भाई से
हंसी ठिठोली करनी चाही।

सुना है
कि दर्पण व्यक्ति के
अंतर्वैयक्तिक भावों को पकड़ लेता है,
उसको कहीं गहरे से जकड़ लेता है।

यहीं
विदूषक खा गया मात।
दर्पण ने दिखला दी थी अपनी करामात।
उसके वह राज जान गया,
अतः विदूषक हुआ उदास।
और उसकी हंसी छीनी गई थी।


कृपया
विदूषक को हंसाइए।
उसके चेहरे पर मुस्कान लेकर आइए।
आप स्वयं एक विदूषक बन जाइए।
३१/०५/२०२०.
Nov 2024 · 43
चोट
Joginder Singh Nov 2024
ज़िंदगी के सफर में
ठोकर लग गई,फलत: चोट लगी।
बेहिसाब दर्द है,रोओ मत,
जीवन धारा के भंवर में
स्वयं को खोओ मत।
ठोकरें और चोटें
जीवन जीने की सीख देती हैं।
जीवन की बहती धारा को बदल देती हैं।
बस! ये तो प्यार, विश्वास,हमदर्दी की मरहम मांगतीं हैं।
Joginder Singh Nov 2024
वह
यह सोचते हुए सोया
कि पता नहीं
कब इस जीवन में
वासना दहन होगा ?
होगा भी कि नहीं?

फिर वह कभी उठा ही नहीं।
जीवन में आगे बढ़ा भी नहीं।
दोस्त,
वासना जरूरी है,
इस बिन जीवन यात्रा अधूरी है।
Joginder Singh Nov 2024
आज
बिटिया ने अपना सारा स्नेह
भोजन परोसते समय
प्यार भरी मनुहार के साथ
ढेर सी सब्जी
थाली में डाल कर किया।
मेरे मुख से
बरबस ही
  समस्त स्नेह भाव
एक अद्भुत वाक्य बन प्रस्फुटित हुआ,
" अब सारा प्यार मेरी थाली में
उड़ेल दोगी क्या!"
पास ही उसके पापा बैठे थे, विनोद,
जिन्हें
मैं
कभी-कभी
मनोविनोद के नाम से
संबोधित करता हूं!
यह पल
मुझे
प्यार का सार बता गया।
इसके साथ ही
संसार का सार भी समझा गया।
सच! इस पल को जीकर
मैं भाव विभोर हुआ ।
Joginder Singh Nov 2024
आज
मैं अपने
परम प्रिय
मित्र और पुत्र
विनोद के घर में हूं ।

कल
मेरे परम आदरणीय,आदर्श अध्यापक,
मार्गदर्शक,
प्रेरणा पुंज,
अध्ययनशील
कुंदन भाई साहब जी की
अंत्येष्टि में
शामिल होना पड़ा।  
अधिक देर होने की वजह से
एक आदर्श परिवार में रात बितानी पड़ी है।

आधी रात को
नींद उचट जाने के कारण
जग रहा हूं,
विनोद और उसके परिवार की
बाबत सोच रहा हूं ।
उन दिनों   जब मैं संकटग्रस्त था
नौकरी के दौरान
सहयोगियों के
अहम् और षड्यंत्र का
शिकार बना था,
फलत:
मेरा तबादला  
एक दूरस्थ, पिछड़े इलाके में
किया गया था,
वहां मेरा मन इतना रमा था कि
नौकरी के
अधिकांश साल
उस गांव टकारला को दे दिए थे।
वहीं मुझे मास्टर कुंदन लाल,
विनोद कुमार और ... बहुत सारे जीवनानुभव हुए ।
आदर्श अध्यापक और  आदर्श परिवार की बाबत
जीवन के धरातल पर
समझने का
सुअवसर मिला।

इस परिवार में
अब पांच जीव हैं,  
पहले से कुछ कम,

जीवन के  उतार चढ़ाव ने
कुछ सदस्यों को काल ने
अपने भीतर समा लिया,
इस परिवार को   कष्ट उठाने पड़े ,
आज यह परिवार
एक आदर्श परिवार
कहलाता है,
कारण ...

सभी सदस्यों के मध्य
परस्पर तालमेल है,
वे आपस में कभी लड़ते नहीं,
धन का अपव्यय
करते नहीं,
अन्याय के  खिलाफ डटे रहते हैं।
पति पत्नी , दोनों
तीनों बच्चों को सुशिक्षित
बनाने के लिए
दिन रात
कोल्हू के बैल बने
चौबीसों घंटे मेहनत करके
जीविकोपार्जन करते हैं
और मुझ जैसे अतिथियों का
खिले मन से स्वागत करते हैं ।
ऐसे परिवार ही
देश, समाज, दुनिया को
समृद्ध करते हैं,
वे कर्मठता की मिसाल बन कर
जीवन में टिकाव लेकर आते हैं।
हमारी धरती स्वर्ग सम बने,
सुख की चादर सब पर तने, जैसे आदर्शों को
व्यावहारिक बनाते हैं।
ऐसे परिवार
संक्रमण काल की इस दुनिया में
कभी राम राज्य भी बनेगा,
सतत् इस बाबत आश्वस्त करते हैं।
आदर्श परिवार निर्मित करने की परिपाटी चला कर
राष्ट्र आगे बढ़ते हैं।
Joginder Singh Nov 2024
खरा
कभी नहीं सोचता
कि खोट मन में रही होगी
सो पहन लिया था
उसने अचानक मुखौटा ।
मगर
खोटा क्या कभी सोचता है
कि खोट करने से
वह दिखने लगेगा
छोटा ,
सभी के सम्मुख ही नहीं ,
स्वयं के समक्ष भी ।

वह हमेशा
हरि हरि कहता है,
एक दिन खरा बन पाता है ।
फिर वह हर बार
पूर्ववत विश्वास पर
अडिग रहते हुए
खरी खरी बातें
सभी से कहता है।

मगर
खोटा।
खोट को भी शुद्ध बताता है,
वह खोट में भी
शुद्धता की बात करता है ,
और अपनी साख गवां देता है।
मगर विदूषक पैनी नज़र रखता है,
वह अपने अंतर्मुखी स्वभाव से
मुखौटे का सच
जान जाता है।

वह कभी हां की मुद्रा में सिर हिलाकर,
और कभी न की मुद्रा में सिर हिलाकर,
मतवातर हां और न की मुद्राओं में सिर हिला,हिला कर
खोटे के अंतर्मन में भ्रम उत्पन्न कर देता है।
खोटा अपने मकड़जाल में फंसकर सच उगल देता है।

अपने इस हुनर के दम पर
विदूषक हरदिल अजीज बन पाता है।

वह सभी के सम्मुख
दिल से ठहाके लगाने लगता है,
यही नहीं वह सभी से ठहाके लगवाता है।
इस तरह
विदूषक
सभी को आनंदित कर जाता है।

   ०९/०५/२०२०
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
उसने सोचा था कि
उसने बड़े प्रयासों के बाद
भीतर व्यापे
भय को
बड़ी मुश्किल से
भगाया था।

पर
एक भूल से
वो लौट
आया था!

फिर उसने
बड़ी देर तक
उसे दर बदर कर
भटकाया था!!

भयभीत
भय पर
कैसे पाएं काबू?
यह सभी को जीवन
सिखाना चाहता है,
पर
कोई विरला ही,
भय के झूले में
झूल झूल कर
सोया आत्मविश्वास
जगा पाता है।
खोया आत्मविश्वास
ढूंढ़ पाता है।

यही हे जीवन की सीख ।
यह जीने से मिलती है,
भीख मांगने से नहीं।
जीवन चाहता है
हर कोई स्वयं को सही करे।
अपने अंतर्मन को शुद्ध करे।
Joginder Singh Nov 2024
हैं! मास्टर कुंदन जी चले गए।
अभी कल ही तो मिले थे,
उन्होंने चलते चलते हाथ हिलाया था,
मैं मोटरसाइकिल पर
अपने मित्र के साथ घर जा रहा था,
और मुझे थोड़ी जल्दी थी,
सो मैने भी
प्रतिक्रिया वश अपने हाथ को टाटा के अंदाज में
हिलाया था,
वे चिर परिचित अंदाज में मुस्कराए थे,
मैं भी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया था।

आज
ख़बर मिली,मास्टर जी
अपनी मंजिल की ओर चले गए,
दिल के दौरे से
उनका देहांत हुआ।

एक विचार पुंज शांत हुआ।
पर मेरा मन अशांत हुआ,
अब कर रहा मैं,
उन के लिए
परम से
अपने चरणों में लेने के लिए
अनुरोध भरी याचना ,
और दुआ भी
क्यों कि
वे सच्चे और अच्छे थे,
करते थे यथा शक्ति मदद ,
सही  में थे मेहरबान !
दुर्दिनों और संकट में
सहायता के साथ साथ
नेक और व्याहारिक सलाह भी दी थी।।

सोचता हूँ
उनकी बाबत तो यही  अंतर्ध्वनि
मन के भीतर से आती है
कि
मास्टर कुंदन लाल सचमुच गुदड़ी के लाल थे,
एक नेक और सच्चे इंसान थे,
सहकर्मियों और विद्यार्थियों की
हरपल मदद के लिए रहते थे तैयार।
और हां,वे मेरी तरह
बाइसाइकिल पर घूमने,
संवेदना को ढूंढने के शौकीन थे।
वे रंगीन दुनिया को
एक साधु की नजर से देखते थे, सचमुच वे प्रखर थे।
...और अखबार पढ़ने,तर्क सम्मत अपने विचार व्यक्त करने में
निष्णात।
इलाके में सादगी,मिलनसारिता के लिए विख्यात।
उन जैसा बनना बहुत कठिन है जी।
मस्त मौला मास्टर की तरह
ईमानदार और समझदार ,
अपने नाम कुंदन लाल के अनुरूप
वे सचमुच कुंदन थे ,
जो ऊर्जा,जिजीविषा,सद्भावना से भरपूर।
आज वे  हम सब से चले गए बहुत दूर,
ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए,
परम सत्ता से ढेर सारी बातें करने, और
दुनिया जहां की खबरें परमात्मा तक पहुंचाने के लिए।
वे सारी उमर सादा जीवन,उच्च  विचार, के आदर्श को
आत्मसात करते हुए अपना जीवन जी कर गए।
सब को अकेला छोड़ गए
Joginder Singh Nov 2024
आज
देश नियंता पर
लगा रहा है कोई आरोप
तानाशाह होने का ।

उसे नहीं है पता ,
देश दुनिया संक्रमण काल से गुजर रही ।
बदमाश
सदाशयता पर हावी
होना चाहते हैं ,
उसे
घर की दासी समझते हैं ।
देश की बागडोर संभालना,
नहीं कोई है सरल काम,
इसकी राह में
मुश्किलें आती हैं तमाम ,
अगर उनसे ना सुलझा जाए,
तो अपूर्ण रह जाते सारे काम।
मुझे कभी-कभी
अपना पिता भी एक तानाशाह
जैसा लगता है ।
पर नहीं है वह एक तानाशाह ,
इस सच को हर कोई जानता है !
जानबूझकर अपनी अकड़ दिखाता है !!
जनता में सत्ताधारी की गलत छवि बनाता है।
संविधान खतरे में है ,जैसी बातें कहकर
जनता जनार्दन को मूर्ख बनाता है ।
क्या ऐसा करना
विपक्षी नेता को
सत्ता का सिंहासन दिला पाता है ?
बल्कि
ऐसा करने वाला
देश को गर्त में  पहुंचाता है।
वह आरोप लगाने से पहले
अपने  गिरेबान में झांके ।
तत्पश्चात
सत्ता के नेतृत्व कर्ता को
तानाशाह  कहे ,
अपनी तानाशाही पर नियंत्रण करे।

आज असली तानाशाह
आरोप लगाने वाले हैं।
क्या ऐसा कर के
वे सत्ता के नटवरलाल
बनना चाहते हैं ?
मुझे बताओ।
आज मुझे बताओ।
असली तानाशाह कौन?
सत्ता पर काबिज व्यक्ति
या फिर आरोप लगाने वाला,
एक झूठा  नारेटिव सेट करने वाला ?
मुझे बताओ। मुझे बताओ ।मुझे बताओ।
असली तानाशाह कौन ?
यदि इसका उत्तर पास है आपके,
शीघ्रता से मुझे बताओ।
अन्यथा गूंगे बहरे हो जाओ।
अब और नहीं
जीवन को उलझाओ।
Joginder Singh Nov 2024
न कर अब
अधिक देर तक
निज को झकझोरती
स्व से ज़ोर आजमाइश।
पता नहीं कब
सपने धूल में मिल जाएं?
अचानक
दम तोड़ दे
सुख से सनी,
रंगों से रंगी,
जीवन की रंगीनियों से सजीं ,
अन्तर्मन से जुड़ीं
ख्वाहिशें।


जीवन अनिश्चित है
सो अब न कर
अपने आप से ज़ोर आजमाइश।
नियंत्रित रहेगा तो ही
पूरी होंगी एक एक करके ख्वाहिशें।
इन ख्वाहिशों और ख्वाबों की खातिर
न बना खुद को,
अब और अधिक शातिर ।
कभी तो बाज आ, स्व नियंत्रण की जद में आ जा।
ज़्यादा हील हुज्जत न कर, खुद को काबू में किया कर।
यह जीवन अपनी शर्तों पर, अपने ढंग से जीया कर।
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
एकदम से
अप्रत्याशित
चेतन ने आगाह किया
और मुझसे कहा,
" अरे! क्या कर रहे हो?
खुद से क्यों डर रहे हो?
इधर उधर दौड़ धूप कर
छिद्रान्वेषण भर कर रहे हो।
अपना जीवन क्यों जाया कर रहे हो?"
बस तब से मैं बदल गया।
मुझे एक लक्ष्य स्व सुधार का मिल गया।
Joginder Singh Nov 2024
पापी था ,
पाप कर गया,
धुर अंदर तक धार्मिक भी था,
इसलिए शीघ्र ही
डर भी गया।
सो मैं आंतरिक चेतना की
भगवत कृपा से ,
पश्चातापी बन गया।
मेरा जीवन नरकमय
होने से बच गया।
Joginder Singh Nov 2024
मुझे
पाश्चात्य जगत
आकर्षित
करता रहा है,
अपने अंतर्द्वंद्वों से इतर
वह मुझ में
जीवन चेतना और नैतिकता भी
भर रहा है।
आज वह अद्भुत जगत क्यों
परस्पर लड़ रहा है ?
वह
संपन्नता,खुशहाली की
प्रेरणा बना रहा है,
अब क्यों वह
नफरत कीआग से
जल रहा है?
वहाँ का नेतृत्व
क्या कर  रहा है ?
जन साधारण के भीतर
डर भर रहा है।
वहां भी
यहां की तरह
भाई भाई परस्पर
लड़ रहे हैं।
मानव जीवन नर्क बनता
जा रहा है।
दोस्त! कुछ समझ
आ रहा है ?
यह जीवन अपने
अंतर्द्वंद्वों की वज़ह से
निष्फल बीता जा रहा है।
Joginder Singh Nov 2024
चुनाव जनतंत्र का आधार है।
इसमें होना चाहिए सुधार है।
जिन्हें देश से प्यार है,
वह इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते।
आज चुनाव का जनतंत्र में,
है कोई विकल्प नहीं ।
इसमें ना हो धांधली ,
यह हमारा संकल्प नहीं।
दोस्तों ,चुनाव हमें चुनना सिखाता है।
देश प्रेम की मजबूती दिखलाता है।
चुनो ,चुनो, चुनो ,सही प्रतिनिधि चुनो।
कभी ईमानदार नेता चुनने से ना डरो ।
यदि कोई चुनाव में झूठ ,मकर, फ़रेबी करता है,
उसके खिलाफ धरना प्रदर्शन करो।
कभी भी अपना मत देने से पीछे ना हटो ।
Joginder Singh Nov 2024
गंगा प्रसाद
अक्सर सोचता है,
आज
अपना गंगा प्रसाद,
रह रह कर यह सोचता है
कि दंगा फसाद  
और नफरत से फैली आग,
दोनों के मूल में
छिपा रहता है विवाद ।
यह विवाद
संवाद में बदलना चाहिए ।
अपना गंगा प्रसाद
इस बाबत सोचता है ।
विवाद
हों ही न!
ऐसा होना चाहिए
जन गण का प्रयास!
दंगा फसाद
नहीं होता अनायास
इसके पीछे होता है
धीरे-धीरे बढ़ता असंतोष
और अविश्वास।
या फिर
सत्य को झूठलाने ,
जनता को बहकाने की खातिर
रची गई साजिश!
जो कर देती
कभी-कभी
व्यक्ति देश समाज को अपाहिज ।
दंगे फसाद के पीछे
कौन सक्रिय  रहता है ?
इस बाबत सोचते सोचते
गंगा प्रसाद सरीखा आदमी
कभी-कभी
निष्क्रिय हो जाता है।
नकारात्मक सोच का शिकार होकर
आज का आदमी
अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार लेता है ।
११/८/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
टटपुंजिया हूँ।
क्यों टटोलते हो ?
सारी जिंदगी निठल्ला रहा।
अब ढोल की पोल खोलते हो!
मेरे मुंह पर
सच क्यों नहीं कह देते ?
कह ही दो
मन में रखी बात।
अवहेलना के दंश
सहता आया हूं।

एक बार फिर
दर्द सह जाऊंगा।
काश! तुम मेरी व्यथा को
समझो तो सही।
यदि ऐसा हुआ तो निस्संदेह
मैं जिंदगी की दुश्वारियों को सह जाऊंगा।
दुश्मनों से लोहा ले पाऊंगा।
सामने खड़ी हार को
विजय के  उन्माद में बदल जाऊंगा ।
  २६/०७/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
सोच जरा।
यदि
नफरत नफे का सौदा होती,
तो
सारी दुनिया
इसे ढो रही होती ।
सोच जरा!
फुर्सत सुख नहीं दुःख देती है ,
फुर्सत
आफत की पुड़िया है,
जिससे पैदा होती गड़बड़ियां हैं ।
सोच जरा !रस का पान कर रहा भंवरा ,
रसिक बना नहीं कि जीवन संवरा ।
सच है रसहीनता जीवन की खुशियां नष्ट करती ।
रस का  ह्रास हुआ नहीं कि
नीरसता भीतर डर पैदा करने लगती।
सोच जरा !
तकदीर भरोसे बैठा रहकर,
आदमी दर-दर भटकता सर्वस्व गंवाकर ।
तकदीर बनाने की खातिर ,
अपना सब सुख चैन भूलाकर ।
दिन-रात परिश्रमी बनना पड़ता ,
सोच जरा !
बस !सोच जरा सा !!
कर्म कर ढेर सारा,
नहीं फिरेगा मारा मारा ।
भीतर रहती सोच
अक्सर यह कहती है ।
'बाहर पलती सोच 'से
यह लड़ना चाहती है ।
यह एक द्वंद्व कथा रचना चाहती है ।
यह अंतर्द्वंद्व व्यथा से बचाना ,जो चाहती है !!
२६/०७/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
श्री मान
रख रहा हूं आपके सम्मुख सत्ता का चरित्र कि
सत्ता सताती भर है ।
दीन,हीन,शोषित,वंचित,
सब होते रहे हैं इसके अत्याचार का शिकार ।

सत्ता का चरित्र
बेझिझक, बेहिचक मौत बांटना है ,
चूंकि उसने व्यवस्था को साधना है।

सत्ता की दृष्टि में
क्रूरता जरूरी है,
इस बिन व्यवस्था पर पकड़ अधूरी है।
जिस सत्ता पक्ष ने
व्यवस्था नियंत्रण के मामले में
नरमी दिखलाई है, उसने सदैव मुँह की खाई है।
अतः यह कहना मुनासिब है,जो क्रूर है,वही साहिब है,
हरेक नरमदिल वाला अपना भाई है,
जिससे उस के घर बाहर की व्यवस्था
लगातार चरमराई है,
वज़ह साफ़ है,
ऐसी अवस्था में चमचों, चाटुकारों की बन आई है।
यदि शासक को अच्छे से प्रशासन चलाना है  
तो लुच्चों,लफंगों,बदमाशों,अपराधियों पर
लगाम कसनी अनिवार्य हो जाती है।
यदि दबंगों के भीतर सत्ता का डर कायम रहेगा
तभी सभी से
ढंग से काम लिया जाएगा,
थोड़ी नरमी दिखाने पर तो कोई भी सिर पर चढ़ जाएगा।
क्रूर किस्म का आदमी,
जो देखने में कठोर लगे,बेशक वह नरमदिल और सहृदय हो,सुव्यवस्थित तरीके से राजकाज चला पाता है।

सत्ता डर पैदा करती है।
यह अनुशासन के नाम पर
सब को एक रखती है।
यह निरंकुशता से नहीं चल सकती,
अतः अंकुश अनिवार्य है।
बिना अंकुश
व्यक्ति
सत्ता में होने के बावजूद
अपना सिक्का चला नहीं पाता।
अपना रंग जमा नहीं पाता।
श्री मान,
सत्ता केवल साधनहीन को तंग करती है।
मायाधारी के सामने
तो सत्ता खुद ही नरमदिल बन जाती है,
वह कुछ भी कर सकती है।
सत्ता का चरित्र विचित्र है ,
वह सदा ,सर्वदा शोषकों का साथ देती आई है
और वंचितों को बलि का बकरा समझती आई है।
वह शोषकों की परम मित्र है।
इन से तालमेल बना कर सत्ता शासन निर्मित करती  है। वंचितों को यह उस हद तक प्रताड़ित करती है,
जब तक वह घुटने नहीं टेकते।
सत्ता अपनी जिद्दी प्रवृत्ति के कारण बनी रहती है,
बेशक सत्ता को
शराफत का कोट पहन कर
अपनी बात जबरिया मनवानी पड़े,
सत्ता अड़ जाए,तो जिद्दी को भी हार माननी पड़ती है।

यही विचित्र चरित्र सत्ता का है।
यह जैसे को तैसा की नीति पर चलती है,
यह अपना विजय रथ
नरमी , गरमी,बेशर्मी से आगे बढ़ाती है।
यह चोरी सीनाज़ोरी के बल पर
चुपके-चुपके सिंहासन पर आसीन हो जाती है।
Joginder Singh Nov 2024
मैं उन्नीस मार्च को
स्कूल में रसोई घर बंद कर
लौट आया था अपने घर ।
इस सोच के साथ
कि बीस मार्च को पंजाब बंद के बाद
लौटूंगा स्कूल।

इक्कीस, मार्च को स्कूल वापसी के साथ , सालाना नतीजा तैयार करने के लिए
अपने सहयोगियों से करूंगा बात
और सालाना नतीजा चौबीस
मार्च तक कर लूंगा तैयार‌।


पर! अफसोस !!स्कूल में हो गईं
असमय कोरोना काल की  छुट्टियां ही छुट्टियां ।
बाइस मार्च को लग गया जनता कर्फ्यू ।
पच्चीस मार्च से पहला लॉकडाउन ।
फिर एक एक करके पांच बार लॉकडाउन लगे।
लॉकडाउन खुलने के बाद
स्कूल पहुंचा तो अचानक
खबर मिली स्कूल की आया से
कि छुट्टियों के दौरान
एक बिल्ली का  बच्चा (बलूंगड़ा)
उन्नीस मार्च को
स्कूल बंद करते समय
स्कूल के रसोई घर में हो गया था
मानवीय चूक और अपनी ही गलती से
स्कूल के रसोई घर में कैद।
यह सुनकर मुझे धक्का लगा ।
मैं भीतर तक हो गया शोकाकुल‌ ,
सचमुच था व्याकुल ।
एक-एक करके मेरी आंखों के सामने
स्कूल की रसोई में बिल्ली  के बच्चे का बंद होना,
पंजाब बंद का होना ,
जनता कर्फ्यू का लगना ,
और लंबे समय तक लॉकडाउन का लगना,
और बहुत कुछ
आंखों के आगे दृश्यमान  हो गया।
मैं व्याकुल हो गया।
सोच रहा था यह क्या हो गया ?
मेरा जमीर
कहां गया था सो ?
मैं क्यों न पड़ा रो??
सच !मैं एक भारी वजन को भीतर तक  हो रहा था।
बेचारी बिल्ली लॉकडाउन का हो गई थी शिकार।
मैं रहा था खुद को धिक्कार।
उसके मर जाने के कारण ,मैं खुद को दोषी मान रहा था ।
आया बहन जी मुझे कह रही थीं,
सर जी,बहुत बुरा हुआ ।
कई दिनों के बाद
बिल्ली के क्षतिग्रस्त शव को बाहर निकाला गया
तो बड़ी तीखी बदबू आ रही थी।
सच मुझे तो उल्टी आने को हुई थी।
घर जब मैं आई
तो बड़ी देर तक
मृत बिल्ली की तस्वीर
आंखों के आगे नाचती रही
यही नहीं ,कई दिनों तक
वह बिल्ली रह रहकर मेरे सपनों में आती रही।
सर ,सचमुच बड़ी अभागी बिल्ली थी।
अब आगे और क्या कहूं?
यह सब सुन मैं चुप रहा।
भीतर तक कराह रहा था।
उस दिन एक जून था।
मेरी आंखों के आगे तैर रहा खून ही खून था।
दिल के अंदर आक्रोश था।
कुछ हद तक डरा हुआ था, पछतावा मेरे भीतर भरा था ।
मुझे लगा
मैं भी दुनिया के विशाल रसोई घर में
एक बिल्ली की मानिंद हूं कैद ।
क्या कोरोना के इस दौर में
मेरा भी अंत हो जाएगा ?
कोरोना का यह चक्रव्यूह
कब समाप्ति की ओर बढ़ेगा ?
इंसान रुकी हुई प्रगति के दौर में
फिर कब से नया आगाज करेगा।
हां ,कुछ समय तो प्राणी जगत बिन आई मौत मरेगा।
पता नहीं,
मेरी मृत्यु का समाचार,
कभी मेरे दायरे से बाहर,
निकल पाएगा या नहीं निकल पाएगा ।
क्या मेरा हासिल भी,
और साथ ही सर्वस्व
मिट्टी में मिल जाएगा ।
मृत्यु का पंजीकरण भी
बुहान पीड़ितों की तरह
मृतकों के पंजीकरण रजिस्टर में
मेरा नाम भी दर्ज होने से रह जाएगा ।
लगता है यह दुखांत मुझे प्रेत बनाएगा ।
मरने के बाद भी मुझे धरा पर भटकाएगा।
Joginder Singh Nov 2024
जनाब! बुरा मत मानिएगा।
मारने की ग़र्ज से छतरी नहीं तानिएगा।

बुरा मानने का दौर चला गया ।
पता नहीं ,यह शोर कब थमेगा?

बुरा! बुरा !! बुरा !!!
आजकल हो गया है ।
हमारी सभ्यता का धुरा।

बुरा देखते-देखते
चुप रह जाने की आदत ने
हमें जीती जागती बुराई को
अनदेखा करना सिखा दिया है!
हमें बुराई का पुतला बना दिया है!!

पता नहीं कब राम आएंगे ?
अपने संगी साथियों के संग
बुराई का दहन करने का बीड़ा उठाएंगे।
भारत को राम राज्य के समान बनाएंगे ।
Joginder Singh Nov 2024
सच है!
जब जब
भीतर
ढेर सा दर्द
इक्ट्ठा होता है,
तब तब
जीवन की मरुभूमि में  
अचानक
एकदम अप्रत्याशित
कैक्टस उगता है।
जहां पर
रेत का समन्दर हो,
वहां कैक्टस का उगना।
अच्छा लगता है।

मुझे विदित नहीं था कि
ढेर सारा दुःख, दर्द
तुम्हारे भीतर भरा होगा।


और एक दिन
यह बाहर छलकेगा
कैक्टस के खिले फूल बनकर,
जो जीवन में रह जाएगा
ऊबड़-खाबड़ मरूभूमि का होकर।

यह कतई ठीक नहीं,
हम बिना लड़े और डटे
जीवन रण में
मरूभूमि में
जीवन बसर करने से
निसृत दर्दके आगे
घुटने टेक दें,  
मान लें  हार,यह नहीं हमें स्वीकार।


क्यों न हम!
इस दर्द को  
भूल जाने का
करें नाटक ।

और
कैक्टस सरीखे होकर
जीवन की बगिया में
फूल खिलाएं!
जीवन धारा के संग
आगे बढ़ते जाएं !!
थोड़ा सा
अपने अभावों को भूलकर
जी भरकर खिलखिलाएं!

सच है!
कैक्टस पर फूल भी खिलते हैं।
जीवन की मरूभूमि में
मुसाफ़िर
अपने दुःख,दर्द,तकलीफें
अंदर ही अंदर समेटे
सुदूर रेगिस्तान में
यात्राएं करते हैं
नखलिस्तान खोजने ‌के लिए।
जीवन में मृग मरीचिका और
अपनी तृष्णा, वितृष्णा को
शांत करने के लिए।
कैक्टस के खिले फूल
खोजने के निमित्त,
ताकि शांत रहे चित्त।
कैक्टस पर खिले फूल
मुरझाए कुम्हलाए मानव चित्त को
कर दिया करते हैं आह्लादित,
आनंदित, प्रफुल्लित, मुदित, हर्षित।
Nov 2024 · 74
Lessons From Listening
Joginder Singh Nov 2024
I want to learn endless lessons from the listening.
The sounds of the surroundings inspire me to connect with the sensitivity of the living beings and also non living beings.
These days I am not able to hear the sounds of life which is closely associated with my existence.
And as a natural result,due to hearing loss, it haunts me.
I am now almost  helpless and  starts feeling the undetected sounds of the mind .
These sounds teach me, how to make life full of happiness and kindness.
So,these days,I am engaged myself to listen and learn endless lessons from the life and the time.
My expiry date is very near,and I am listening the sounds of the life to clear my doubts regarding the fear of the death as well as rebirth,dear..!
In spite of the lack of the listening power ,I am waiting for my last hours of the life with a tearful eyes and fearful mind.
Oh !I am astonished to hear the foot steps of the life during  waiting for the death hours.

All of sudden the Life assured me that she is granting me a bonus chance to listen and learn lessons from the life. Now I am happy with the presence of the sounds.
Joginder Singh Nov 2024
शब्द
हमारे मित्र हैं।
ये हैं सक्षम ,
संवेदना को बेहतर बनाने में।
ये रखते
हरदम हम पर पैनी नज़र,  
मन में उपजे भावों को,
  परिमार्जित करते हुए।
ये क़दम क़दम पर
बनते हमारे रक्षक ,
जोड़ हमें जीवन के धरातल से ।
ये मन में जो कुछ भी चलता है,
उसकी पल पल की ख़बर रखते हैं,
साथ ही हमें प्रखर बनाते हैं।


अब मैं
एक काम की बात
बताना चाहता हूँ।
शब्द यदि जिंदा हैं
तो हम अस्तित्व मान हैं,
ये हमारा स्वाभिमान हैं।
  
जब शब्द रूठ जाते हैं,
हम ठूंठ सरीखे बन जाते हैं।
शब्द ब्रह्म की
यदि हम उपासना करें,
कुछ समय निकाल कर ,
इनकी साधना करें ,
तो  ये अनुभूति के शिखरों का
दर्शन कराते हैं,
हमें सतत परिवर्तित करते जाते हैं।

शब्द
हमें मिली हुईं
प्रकृति प्रदत्त शक्तियां हैं,
जो अभिव्यक्ति की खातिर  
सदैव जीवन धारा को जीवन्त बनाए रखतीं हैं।
आओ,  
आज हम इनकी उपासना करें।
ये देव विग्रहों से कम नहीं,
इनकी साधना से बुद्धि होती प्रखर,
अनुभव,जैसे जैसे मिलते जाते,
वे अंतर्मन में विराजते जाते,
भीतर उजास फैलाते जाते।
अपने शब्दों को  
अपशब्दों में कतई न बदलो।
यदि बदलना ही है,
तो खुद को बदलो ,
हमारी सोच बदल जाएगी,
हमें जीवन लक्ष्य के निकट लेती जाएगी।
आओ, बंधुवर,आओ,
आज
शब्दों में निहित
अर्थों के जादू से
स्वयं को परिचित कराया जाए।
और ज्यादा स्व सम्मोहन में जाने से
खुद को बचाया जाए।
पल प्रति पल
शब्दों की उपासना में
अपना ध्यान लगाया जाए
और जीवन को
उज्ज्वल  बनाया जाए,
अवगुणों को
आदत बनने से रोका जाए
ताकि आसपास
सकारात्मक सोच का विकास हो जाए,
संवेदना जीवन का संबल बन जाए।
Joginder Singh Nov 2024
जब जेबें खाली हो गईं,
बैठे बैठे खाते रहे,
कमाया कुछ नहीं,
घरों में बदहाली आ गई,
तब आई
गाँव में रह रहे
सगे संबंधियों की याद।
सोचा, अपनों के पास जाकर ,
फरियाद करेगें ,
उधार के रूप में
मदद के लिए
अनुरोध करेंगे,
बंधु बांधवों के सम्मुख ।
चल पड़े जैसे तैसे पैदल
थके हारे, प्रभु आसरे,गिरते पड़ते,
एक के पीछीक सभी लोग,
तज के सारे लालच लोभ ।
बहुत सारे बीच मार्ग में
भूख और लाचारी,
लूटपाट, मारा मारी ,
धोखाधड़ी का बने शिकार ।
ऊपर से कोरोना का भय विकराल,
लगा कर रहे ताण्डव महाकालेश्वर
बाबा भोलेनाथ
सब की परीक्षा ले रहे,
क्रोध में हैं महाकाल।

देख दुर्दशा बहुतों की,
सुख सुविधा वंचित दिन हीनों की,
बहुतों की आँखों में अश्रु आए झर।
उन्होंने मदद हेतु हाथ बढ़ाए,
वे मानवता के सेतु बन पाए ।
देख, महसूस, दुर्दशा,उन सभी की,
बहुतों को रोना आ गया।
सोचते थे घड़ी घड़ी।
यह कैसा आपातकाल आ गया।
यह कैसा समय आ गया।
अकाल मृत्यु का अप्रत्याशित भय
उनकी संवेदना, सहृदयता,
सहयोग, सौहार्द,
सहानुभूति को खा गया।
सब सकते में थे।
यह कैसा समय आ गया।
अकाल मृत्यु का भय
सबके मनों में घर कर गया।मृत्यु का चला
अनवरत सिलसिला
बहुतों के रोजगार खा गया।
सामाजिक सुरक्षा की मज़बूत दीवारों को ढा गया।
रिश्तेदारों ने दुत्कार दिया।
सोचते थे सब तब
अब कैसे प्राप्त होगी सुरक्षा ढाल?
सब थे बेहाल,
बहुत से मजदूर वर्ग के
बंधु बांधव थे फटेहाल।
कौन रखेगा अब
आदमी और उसकी आदमियत का ख्याल ?

आज वह दौर बीत गया है।
बहुत कुछ सब में से रीत गया है।
अब भी
बहुल से लोग
कोरोना का दंश झेल रहे हैं।
उनकी आर्थिकता बिल्कुल चरमरा चुकी है,
अब भी  कभी कभी
बीमारी,लाचारी, हताशा, निराशा ,
उन्हें आत्महत्या के लिए बाध्य करती है,
कमज़ोर हो चुकी मानसिकता
आत्मघात के लिए उकसाती है।
अभी कुछ दिन पहले मेरे एक पड़ोसी ने
रात्रि तीन बजे करोना काल में आई बीमारी, कमज़ोरी के कारण कर लिया था आत्मघात ।
अब भी कभी कभी
पोस्ट कोरोना  का दुष्प्रभाव
देखने को मिल जाता है।
इसे महसूस कर
अब भी भीतर
भूकंपन सा होता है,
भीतर तक हृदय छलनी हो जाता है।

कोरोना महामारी अब भी जिंदा है,
बेशक आज इंसान,देश,दुनिया,समाज
इस महामारी से उभर चुका है।
मानवता  अभी भी शोकग्रस्त और पस्त है।
कोरोना काल में
बहुत से घरों में
जीवन का सूरज अस्त हुआ था,
वहाँ आज भी सन्नाटा पसरा हुआ है।
वहां बहुत कुछ बिखरा हुआ है,
जिसे समेटा नहीं जा सकता।
Joginder Singh Nov 2024
जारी,जारी,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीतें हैं,इस जहान की।
यहां
ईमानदार
भूखे मरते हैं,
दिन रात
मतवातर
डरते हैं।
अजब-गजब
रवायत है
इस जहान की।
जारी ,जारी ,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं ,इस जहान की।
यहां
बेईमान
राज करते हैं,
दिन रात
जनता के रखवाले
रक्षा करते हैं ,
जबकि
शरारती डराते हैं ,  
और
वे उत्पात मचाने से पीछे नहीं हटते हैं ।
जारी, जारी ,जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं, इस जहान की।
अजब
सियासत है ,
इस हिरासत की ।
यहां
कैदी
आज़ादी भोगते हैं
और
दिन रात
गुलामों पर बेझिझक भौंकते हैं ।
जारी ,जारी, जारी ,जारी,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीते हैं , इस जहान की।
सभी
यहां खुशी-खुशी
देश की खातिर
लड़ते हैं ।
अजब
प्रीत है
इस देश की।
यहां
सभी
अवाम की खातिर
संघर्ष करते हैं।
जारी ,जारी, जारी ,जारी ,जारी है यारो!
अजब ,अजब सी रीतें हैं , इस जहान की।
अजब
अजाब है
इस अजनबियत का।
यहां
सब लोग
नाटक करते हैं।
दिन रात
लगातार
नौटंकी करते हैं।
अजब
नौटंकी जारी है,
पता नहीं
अब किसकी बारी है।
किसने की रंग मंच पर
आगमन की तैयारी है ?
लगता है  
अब हम सब की बारी है।
क्या हम ने कर ली
इसकी खातिर तैयारी है ?
जारी ,जारी ,जारी ,जारी , जारी नौटंकी जारी है।
अजब ,अजब, अजब सी रीतें हैं इस जहान की।
अजब
नौटंकी जारी है।
लगता है ,
अब हम सब की बारी है।
Joginder Singh Nov 2024
गुप्त
देर
तक

गुप्त न रहेगा!
यह नियति है !!
विचित्र स्थिति है!
वह सहजता से  
होता है प्रकट
अपनी संभावना को खोकर।


गुप्त
भेद खुल जाने पर
हो जाता है
लुप्त!
न!न! असलियत यह है कि
वह
अपने भेदों को
मतवातर छुपाता आया है
आज अचानक भेद खुलने से
उसका हुआ है अवसान।  
सारे भेद हुए प्रकट यकायक।
भीतर तक शर्मसार!!
अस्तित्व झिंझोड़ा गया!!लगा दंश!!
कोई अंत की सुई चुभोकर,
कर गया बेचैन।
जगा गया गहरी नींद से,
और स्वयं सो गया गहरी  नींद में।
वह मेरा प्रतिबिंब आज अचानक खो गया है ,
जिसे गुप्त के अवसान के
नाम से नई पहचान दे दी तुमने
जाने अनजाने ही सही,हे मेरे मन!
तुम्हें मेरा सर्वस्व समर्पण।! ,हे मेरे प्यारे , न्यारे मन!
Joginder Singh Nov 2024
दंगा
दंग नहीं
तंग करता है,
यह मन की शांति को
भंग करता है।
दंगाई
बेशक  
अक्ल पर पर्दा पड़ने से
जीवन के रंगों को
न केवल
काला करता है ,
बल्कि वह खुद को
एक कटघरे में खड़ा करता है।

उसकी अस्मिता पर
लग जाता है प्रश्नचिह्न।
दंगे के बाद
भीतर उठे प्रश्न भी मन को
कोयले सरीखा
एक दम स्याह काला
कर देते हैं
कि वहां उजाला पहुंचना
नामुमकिन हो जाता है,
फिर दंगाई
कैसे उज्ज्वल हो सकता है ?
वो तो
समाज के चेहरे पर
स्याही पोतने का काम करता है।
उसके कृत्यों से  
उसका हमसफ़र भी घबराता है।
वह धीरे-धीरे
दंगाई से कटता जाता है।
बेशक वह लोक दिखावे की वज़ह से
साथ निभाता लगे।

दंगा
मानव के चेहरे से
नक़ाब उतार देता है
और असलियत का अहसास कराता है।
दंगाई न केवल नफ़रत फैलाता है,
बल्कि उसकी वज़ह से
आसपास कराहता सुन पड़ता है।

इस कर्कश
कराहने के पीछे-पीछे
विकास के विनाश का
आगमन होता है ,
इसे दंगाई कहां
समझ पाता है?
यह भी सच है कि
दंगा
सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाता है।
दंगा
अराजकता फैलाने की
ग़र्ज से प्रायोजित होता है।
इसके साथ ही
यह
समाज का असली चेहरा दिखाता है
और आडंबरकारी व्यवस्था की  
असलियत को
जग ज़ाहिर कर देता है।

भीड़ तंत्र का  
अहसास है दंगा,
जो यदा-कदा व्यक्ति और समाज के
डाले परदे उतार देता है ,साथ ही नक़ाब भी।
यह देर तक
इर्द-गिर्द  बेबसी की दुर्गन्ध बनाये रखता है ,
सोई हुई चेतना को जगाये रखता है।
Joginder Singh Nov 2024
सुनो उपभोक्ता!
बाजार का सच ।
आज
बाजार की गिद्ध नज़र
तुम्हारी जेब पर है।


हे उपभोक्ता जी,
अपनी जेब संभालो ,
उसमें बची खुची रेज़गारी भी डालो ।
भले ही
रेज़गारी को
आप नजरअंदाज करें,
इसे महत्व  न दें, लेकिन ना भूलें,
बूंद बूंद से घट भर जाता है,
व्यापारी भान जोड़कर ही  
धन कमाने का हुनर जान पाता है,
जब कि बहुत बार उपभोक्ता
अठन्नी जैसी रेज़गारी छोड़ देता है।
दिन भर की बीस अठन्नियां जुड़े,
तो दस रुपए की कीमत रखतीं हैं।
मत भूलो,
कभी-कभी खोटा सिक्का भी खुद को
कारगर साबित कर जाता है।  
कंगाली में नैया पार लगा देता है,
इज़्ज़त भी बचा देता है।

सुनो उपभोक्ता!
तुम उपभोग्य सामग्री तो कतई न बनना।
तुम उपभोगवादी सभ्यता में
जन्मे, पले-बढ़े,चमके हो,
उपभोग संयम से करो।
बाजार को
अपनी ताकत का अहसास करा दो।
उसे अपने चौकन्नेपन से चौंका दो ।

व्यापारी भ्रष्टाचार के पंख
आपसी मिली-भगत से फैला न पाएं ,
तुम्हारी जागरूकता है ,इस समस्या का सटीक उपाय।
बाजार का गणित
यानि अर्थशास्त्र
मांग और पूर्ति के सिद्धांत पर चलता है।
इन दोनों में रहे संतुलन तो बाजार फलता-फूलता है।
ध्यान रहे,मांग और पूर्ति का संतुलन
उपभोक्ता के चित्त पर निर्भर करता है।
तुम्हारा चित्त डोला नहीं
कि बाजार तुम पर हावी हुआ।
बाजार में चोरी  , मक्कारी,
मंहगाई ,लूट खसोट,
हेराफेरी का दुष्चक्र शुरू हुआ।
भाई मेरे,
किसी के मकड़जाल
और उसके चालाकी से
निर्मित घेरे में न फंसना।
तुम फंसे नहीं कि
बाजार बहुत बड़ा खेल, खेल देगा।
इसे आजकल खेला (वस्तुत: झमेला)
कह  दिया जाता है।
ऐसे में
सुख ,सुरक्षा का भरोसा
छिन्न भिन्न होता है।
उपभोक्ता ठगा सा महसूस करता है,
और थक हार कर,सिर पकड़ कर बैठ जाता है,
उसका माथा ठनकता है,
वह हतप्रभ हुआ,हताश, निराश हुआ
स्वयं को अकेला करता जाता है।

कुछ ऐसा ही
खेला शेयरों में, सट्टेबाजी में भी है ,
जिस में
अनाड़ी से लेकर खिलाड़ी तक
भरे पड़े हैं।
कल तक
जो हवा में उड़ रहे थे,
वे आज औंधे मुंह गिरे हुए पत्ते जैसा महसूस कर रहे हैं।
सुनो उपभोक्ता!
इस दुनिया के बाजार में
सब गोलमाल है।
यहां सतर्क रहना जरूरी है।
अन्यथा मन में
अंतर्कलह होने से
आदमी अन्यमनस्क हो जाता है।
वह खुद को रुका हुआ
और रूठा हुआ पाता है ।
उसे कहीं ठौर नहीं मिलता है,
वह भीतर तक
इस हद तक
हिल जाता है,
जैसे किसी ने उसे दिया हो
अचानक , अप्रत्याशित  घटनाक्रम बनकर
झकझोर और झिंझोड़,
ऐसे में
धरी की धरी रह जाती मरोड़।
सुनो उपभोक्ता, मेरी बात गौर से सुनो,
इस पर अमल भी करो
ताकि ठगे न जाओ।

बाजार से सामान लेने के बाद
सुरक्षित घर पहुंच पाओ।

डिजिटल खरीददारी भी
सोच समझकर करो ,
अपने भेद अपने भीतर रखो,
निडर,सतर्क रहना तुम्हारा दायित्व है,
कोई क्या करे, मामला वित्त और चित्त का है।१२/०८/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
अब हमें
दबंगों को,
कभी-कभी
दंगाइयों के संग
और
दंगा पीड़ितों को
दबंग, दंगाइयों के साथ
रखना चाहिए ,
ताकि
सभी परस्पर
एक दूसरे को जान सकें,
और भीतर के असंतोष को खत्म कर
खुद को शांत रख सकें,
ढंग से जीवन यापन कर सकें,
जीवन पथ पर
बिखरे बगैर
आगे ही आगे बढ़ सकें,
ज़िंदगी की किताब को
अच्छे से पढ़ सकें,
खुद को समझ और समझा सकें।


देश में दंगे फसाद ही
उन्माद की वजह बनते हैं,
ये जन,धन,बल को हरते हैं,
इन की मार से बहुत से लोग
बेघर हो कर मारे मारे भटकते हैं।

जब कभी दंगाई
मरने मारने पर उतारू हों
तो उन्हें निर्वासित कर देना चाहिए।
निर्वाचितों को भी चाहिए कि
उनके वोटों का मोह त्याग कर
उन्हें तड़ीपार करने की
सिफारिश प्रशासन से करें
ताकि दंगाइयों को  
कारावास में न रखकर
अलग-अलग दूरस्थ इलाकों में
कमाने, कारोबार करने,सुधरने का मौका मिल सके।
यदि वे फिर भी न सुधरें,
तो जबरन परलोक गमन कराने का रास्ता
देश की न्यायिक व्यवस्था के पास होना चाहिए।
आजकल के हालात
बद्तर होते-होते
असहनीय हो चुके हैं।
अंतोगत्वा
सभी को,
दबंगों को ही नहीं,
वरन दंगाइयों को भी
अपने  अनुचित कारज और दुर्व्यवहार
से गुरेज करना चाहिए
अन्यथा
उन सभी को
होना पड़ेगा
निस्संदेह
व्यवस्था के प्रति
जवाबदेह।
सभी को अपने दुःख, तकलीफों की
अभिव्यक्ति का अधिकार है,
पर अनाधिकृत दबाव बनाने पर ,
दंगा करने और करवाने पर
मिलनी चाहिए सज़ा,
साथ ही बद्तमीजी करने का मज़ा।

देश के समस्त नागरिकों को
अपराधी बनने पर
कोर्ट-कचहरी का सामना करना चाहिए,
ना कि दहशत फैलाने का कोई प्रयास ।


दंगा देश की
अर्थ व्यवस्था के लिए घातक है,
यह प्रगति में भी बाधक है,
इससे दंगाइयों के भी जलते हैं।
पर वे यह मूर्खता करने से
कहां हटते हैं?
वे तो सब को मूर्ख और अज्ञानी समझते हैं।
१२/०८/२०२०.
Nov 2024 · 44
पतन
Joginder Singh Nov 2024
एक पत्ता
पेड़ से गिरा ही था कि
मुझे हुआ अहसास,
कोई अपना पता भूल गया है,
उसे तो सृजनहार से मिलने जाना था।
जाने अनजाने ही!
शायद गिरने के बहाने से ही!!

सोचता हूं...
वो कैसे
उस सृजनहार को
अपना मुख दिखला पाएगा।
कहीं वह भी तो नहीं
डाल से गिरे पत्ते जैसा हो जाएगा।
कभी मूल तक न पहुंच पाएगा।
१४/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
हमें
जो संस्कार मिले हैं,
वे हमें सच से जोड़ते हैं,
झूठ से मुख मोड़ना बतलाते हैं।

हम
सच बोलने के आदी हैं
ना कि
ज़ुल्म ओ सितम के आगे
घुटने टेकने वाले
नैतिकता के अपराधी हैं।


हम तो बस फरियादी हैं।
जीवन के रस से पले बढ़े हैं!
जीवन संघर्षों में सीना तान खड़े हैं!!

हमें जो संस्कार मिले हैं,
उनसे हमें जीवनाधार मिला है।
इन संस्कारों ने हमें निर्मित किया है ,
और बतौर उपहार , हमारा व्यक्तित्व गढ़ा है।
  १४/०५/२०२०.
Nov 2024 · 65
कोई मुझे...
Joginder Singh Nov 2024
जब से
मैं भूल गया हूं
अपना मूल,
चुभ रहे हैं मुझे शूल ।

गिर रही है
मुझे पर
मतवातर
समय की धूल ।

अब
यौवन बीत चुका है,
भीतर से सब रीत गया है,
हाय ! यह जीवन बीत चला है,
लगता मैंने निज को छला है।
मित्र,
अब मैं सतत्
पछताता हूं,
कभी कभी तो
दिल बेचैन हो जाता है,
रह रह कर पिछली भूलों को
याद किया करता हूं,
खुद से लड़ा करता हूं।

अब हूं मैं एक बीमार भर ,
ढूंढ़ो बस एक तीमारदार,  
जो मुझे ढाढस देकर सुला दे!!
दुःख दर्द भरे अहसास भुला दे!!
या फिर मेरी जड़ता मिटा दे!!
भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति जगा दे।!

८/५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
दोस्त!
अपने भीतर की
नफ़रत का नाश कर,  
उल्फत के जज़्बात
अपने भीतर भरा कर ,
अपनी वासना से न डरा कर,
देशऔर दुनिया के सपनों को,
सतत् मेहनत और लगन से
साकार किया कर ।


ऐसा कुछ कहती हैं,
देश के अंदर
और
सरहद पार
रहने वाले बाशिंदों के
दिलों  से निकली
सदा।
समय पाकर
जो बनतीं जातीं
अवाम की दुआएं।
ऐसा
हमने समझ लिया है
इस दुनिया में रहकर,
समय की हवाओं के
संग बहकर।

फिर क्यों न हम
अपने और परायों को
कुछ जोश भरे,कुछ होश भरे
रास्तों पर
आगे बढ़ना सिखलाएं ,
उन्हें मंज़िल तक लेकर जाएं ।

९/५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
दीन ओ धर्म के नाम पर
जब अवाम को
बरगलाया जाता है,
तब क्या ईश्वर को
भुलाया नहीं जाता है?

दीन ओ धर्म
तब तक बचा रहेगा ,
जब तक आदमी का किरदार
सच्चा बना रहेगा ।

दीन ओ धर्म
तभी तक असरकारी है,
जब तक आदमी की
आंखों में
शर्म ओ हया के
जज़्बात जिंदा रहते हैं,
अन्यथा लोग हेराफेरी,
चोरी सीनाज़ोरी में
संलिप्त रहते हैं,
अंहकारी बने रहते हैं,
जो धर्म और कर्म को
दिखावा ही नहीं,
बल्कि छलावा तक मानते हैं।
ऐसे लोग
धर्म की रक्षा के नाम पर
देश, समाज, दुनिया को बांटते हैं,
नफ़रत फैला कर
अपनी दुकान चलाते हैं,
भोले भाले और भले आदमी
उनके झांसे में आकर
बेमौत मारे जाते हैं।
Nov 2024 · 44
मर्यादा
Joginder Singh Nov 2024
मर्यादा
माया से डरे नहीं
बल्कि
वह अपनी सीमा से बंधी रहे।
कुछ ऐसा
तुम पार्थ करो,
सार्थक जीवन के लिए
जन जन के
प्रेरक बनो ।
कहे है इतिहास सभी से
कृष्ण सा चेतना पुंज बनो।
जीवन युद्ध के संघर्षों में  
शत्रुहंता होने के निमित्त
धनुष पर राम बाण से होकर तनो ।
जीवन के वर्चस्व को  
राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत की तरह चुनो।
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