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Joginder Singh Nov 2024
'सिगरेट पीना
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।'
'धूम्रपान से कैंसर होता है।'
इसी तरह की
बहुत सारी जानकारी
हम पढ़ते भर हैं,
उस पर अमल नहीं करते
क्यों कि मृत्यु से पहले
हम डरना नहीं चाहते ।
हम बहादुर बने रहना चाहते हैं ।
हम जीना चाहते हैं !
हम आगे बढ़ना चाहते हैं !!

सिगरेट पीने से पहले ,
सिगरेट पीने के बाद
लोग कतई नहीं सोचते
कि उन्होंने अपनी देह को
एक ऐशट्रे में बदल डाला है।
बहुत से घरों में
बहुत पहले ऐशट्रे
ड्राइंग रूम की टेबल पर
सजा कर रखी जाती थी,
ताकि कोई सिगरेट पीने वाला आए,
तो वह  ऐशट्रे का इस्तेमाल आसानी से कर सके।

हमारे भीतर भी
एक ऐशट्रे पड़ी रहती है
जिसके भीतर
हमारी बहुत सारी मूर्खताओं की राख
पड़ती रहती है
ऐशट्रे के भरने और खाली होने तक।

ऐशट्रे का जीवन
सतत
करता रहता हमें स्तब्ध!
यही स्तब्धता कर देती हमें हतप्रभ!!
अचानक थर थर कंपाने लगती है।

अपने जीवन को ऐशट्रे सरीखा न बनाएं।
वायु मंडल में घर कर चुका प्रदूषण ही पर्याप्त है,
जिससे मानव जीवन ख़तरे में हे।
इसे कोई भी समझना नहीं चाहता।
११/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
प्राप्य को
झुठलाते नहीं ,
उसे दिल से स्वीकारते हैं ।
अगर वह ना मिले तो भी
उसे हासिल करने की
चेष्टा करना ही
मानव का सर्वोपरि धर्म है ।
यह जीवन का मर्म है ।
प्राप्य की खातिर
जीवन में जिजीविषा भरना ,
परम के आगे की गई
एक प्रार्थना है ।


जिसके भीतर
प्राप्य तक
पहुंचने की बसी हुई
संभावना है!!

जीवन अपने आप में
बहुत बड़ी प्राप्ति है,
जन्म और मरण के बीच
नहीं हो सकती
इसकी समाप्ति है ।

अतः आज तुम कर लो
खुद पर तुम यक़ीन
कि यकीनन
जीवन की समाप्ति
असंभव है,
मृत्यु भी एक प्राप्ति ही है
जो मोक्ष का मार्ग है ,
शेष
परमार्थ के धागे से बंधा
इच्छाओं के जाल में
फंसे आदमी का स्वार्थ भर है।
इसे न समझ पाने से
जीवन का नीरस होना
मरना भर है!
अपने अंदर डर भरना भर है !

११/०५/२०२०.
Joginder Singh Nov 2024
रचनाकार के पास एक सत्य था ।
उसका अपना ही अनूठा कथ्य था ।
उसने इसे जीवन का हिस्सा बनाया।
और अपनी जिंदगी की कहानी को ,
एक किस्सा बनाकर लिख दिया।



जब यह किस्सा, संपादक के संपर्क में आया।
तब सत्य ही , संपादक ने इसे अपनी नजरिये से देखा।
और उसने अपनी दृष्टिकोण की कैंची से, किया दुरुस्त।
फिर उसने इस किस्से को, पाठकों को दिया सौंप।


पाठक ने इसे पढ़कर, गुना और सराहा।
परंतु रचनाकार में पनप रहा था असंतोष।
उसे लगा कि संपादक ने किया है अन्याय।
रचनाकार खुद को महसूस कर रहा था असहाय।,


संपादक की जिम्मेदारी उसे एक सीमा में बांधे थी।
पाठक वर्ग  और कुछ नीति निर्देशों से संपादक बंधा था।
वह रचनाओं की कांट, छांट, सोच समझ कर करता था ।
और रचनाकार को संपादक पूर्वाग्रह से ग्रस्त लगता था।


समय चक्र बदला, अचानक रचनाकार बना एक संपादक।
अब अपने ढंग से रचना को असरकारी बनाने के निमित्त,
किया करता है, सोच और समझ की कैंची से काट छांट।
सच ही अब, उसे हो चुका है, संपादन शैली का अहसास।

अब एक रचनाकार के तौर पर, वह गया है समझ।
रचनाकार भावुक ,संवेदनशील हो ,जाता है भावों में बह।
उसके समस्त पूर्वाग्रह और दुराग्रह चुके हैं धुल अब।
जान चुका है भली भांति , संपादक की कैंची की ताकत।


बेशक रचनाकार के पास अपना सत्य और कथ्य होता है।
पर संपादक के पास एक नजरिया ,अनूठी समझ होती है।
वह रचना पर कैंची चलाने से पूर्व अच्छे से जांचता है।
तत्पश्चात वह रचना को संप्रेषणीय बनाने की सोचता है।


जब जब  संपादक ने  कैंची से एक सीमा रेखा खींची।
तब तब रचना का कथ्य और सत्य असरकारक बना।
आज रचनाकार, संपादक और पाठक की ना टूटे कड़ी।
करो प्रयास, नेह स्नेह के बंधन से सृजन की डोर रहे बंधी।
न उठे  रचनाकार के मानस में, दुःख ,बेबसी की आंधी।

२९/०८/२००५.
Joginder Singh Nov 2024
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ
ਪਿੰਡ ਦੀ
ਉਦਾਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ  ਵਿੱਚ
ਚਿੰਤਾ ਗ੍ਰਸਤ ਪਿੰਡ ਦਾ ਆਦਮੀ
ਧੁਰ ਅੰਦਰ ਤੱਕ ਚੁੱਪ ਹੈ ।
ਚੰਨ
ਸਿਆਹ ਕਾਲੀਆਂ  ਬਦਲੀਆਂ ਨਾਲ
ਰਿਹਾ ਹੈ ਖੇਡ ।
ਤੇਜ਼ ਹਵਾਵਾਂ  ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਹਨ,
ਵਿੱਚ  ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ ਗਰਜ਼ ਦੇ ਨਾਲ਼
ਬੱਦਲਾਂ ਦੇ ਝੁਰਮੁਟ ਵਿੱਚੋਂ
ਬਿਜਲੀ ਮਾਰਦੀ ਪਈ ਹੈ ਲਿਸ਼ਕਾਰੇ ।

ਇੰਜ਼ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ
ਬਿਜਲੀ
ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ
ਆਪਣੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਵਸਾ ਕੇ ਰੱਖਣ ਦੇ ਵਾਸਤੇ
ਖਿੱਚ ਰਹੀ ਹੋਵੇ
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ।

ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿਉਂ ਬਿਜਲੀ
ਖਿੱਚ ਰਹੀ ਹੈ
ਰਹਿ ਰਹਿ ਕੇ
ਪਿੰਡ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ।
ਅਚਾਨਕ ਬਾਰਿਸ਼ ਹੋਣ ਲੱਗੀ,
ਮਨ ਨੂੰ ਕੁਝ ਠੰਡਕ ਮਿਲਣ ਲੱਗੀ।
ਇਸੇ
ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦੀ
ਕੈਦ ਨੂੰ ਝਲਦਾ ਹੋਇਆ ਇਕ ਆਦਮੀ
ਸੋਚਦਾ ਹੈ ਕਿ
ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਲਾਈਟ ਕਦੋਂ ਆਵੇਗੀ,
ਕਦੋਂ ਲਿਖ ਸਕਾਂਗਾ ਮੈਂ ,
ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ  ਵਾਸਤੇ
ਕੁਝ ਔਖੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ
ਆਪਣੀ ਨੋਟ ਬੁੱਕ ਵਿੱਚ।

ਸਾਲ ਬੀਤ ਚੱਲਿਆ ਹੈ,
ਪਰ ਸਿਲੇਬਸ ਹੁਣ ਤੱਕ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ।

ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਦਮੀ
ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ
ਸਕੂਲ ਤੱਕ ਸੀਮਿਤ ਕਰਕੇ ,
ਓਹ
ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਜੰਜਾਲ ਵਿੱਚ
ਰਿਹਾ ਸੀ ਜਕੜ।

ਠੀਕ ਉਸੀ ਸਮੇਂ
ਚੰਨ ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ
ਉਸ ਆਦਮੀ ਦੇ ਘਰ ਉੱਪਰ
ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ ਨਾਲ
ਰਿਹਾ ਸੀ ਖੇਡ।


ਉਹ ਆਦਮੀ
ਫਿਕਰਾਂ ਨਾਲ  ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਕੜ,
ਸਮਝ ਰਿਹਾ ਸੀ ਖੁਦ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕੈਦ ਵਿੱਚ।

ਅਚਾਨਕ
ਚੰਨ ਨੂੰ
ਸਿਆਹ  ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ ਨੇ
ਲਿਆ ਸੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਢੱਕ।

ਉਸੀ ਵੇਲੇ
ਉਹ ਆਦਮੀ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਮੈਨੂੰ ਕਦੋਂ ਮਿਲੇਗੀ ਮੁਕਤੀ,
ਤੇ ਆਪਣਾ ਫਲਕ ।

ਉਸੀ ਸਮੇਂ
ਬਿਜਲੀ
ਹਨੇਰੀ ਬਦਲੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ
ਘੁੱਪ ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ
ਅੱਧ ਸੁੱਤੇ , ਹਨੇਰੇ ਚ ਡੁੱਬੇ ਪਿੰਡ ਉੱਪਰ ਚਮਕੀ।

ਨੀਮ ਪਹਾੜੀ ਪਿੰਡ ਦਾ ਆਦਮੀ
ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਉਹ ਚੰਨ, ਹਨੇਰੀ ਰਾਤ ਵਿੱਚ ਕਾਲੀਆਂ ਬਦਲੀਆਂ,
ਗਰਜ਼ਦੇ ਬੱਦਲਾਂ, ਅੱਧ ਸੁੱਤੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਭੌਂਕਦੇ ਕੁੱਤਿਆਂ,
ਦਮ ਘੋਟੂ ਮਾਹੌਲ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ
ਆਪਣੇ ਮੰਜੇ ਤੇ ਪਿਆ ਸੌਣ  ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ,
ਪਰ ਨਿੰਦਰ ਉਸ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ।
ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ
ਉਸਦੇ ਮਨ ਅੰਦਰ ਵੀ
ਹਨੇਰਾ ਪਸਰ ਗਿਆ।
ਉਹ ਸੁਖ ਦੀ ਸਾਹ
ਲੈਣ ਲਈ
ਸੀ ਤਰਸ ਗਿਆ।

23/11/2024.
Joginder Singh Nov 2024
हे कामदेव!
जब तुम
तन मन में
एक खुमारी बनकर
देहवीणा को
अपना स्पर्श कराते हो
तो तन मन को भीतर तक को
झंकृत कर
जीवन में  राग और रागिनी के सुर
भर जाते हो।

ऐसे में
सब कुछ
तुम्हारे सम्मोहन में
अपनी सुध बुध ,भूल बिसार
दुनिया की सब शर्मोहया छोड़ कर
इक अजब-गजब सी
मदहोशी की
लहरों में
डूब डूब

कहीं
दूर चला जाता है,
यह सब आदमी
के भीतर
सुख तृप्ति के पल
भर जाता है।

इन्द्रियां
अपने कर्म भूल
कामुकता के शूल
चुभने से
कुछ-कुछ मूक हुईं
अपने भीतर
सनसनाहट महसूस
पहले पहल
रह जातीं सन्न !
तन और मन
कहीं गहरे तक
होते प्रसन्न!!

और  सब
इन आनंदित क्षणों को
दिल ओ दिमाग में
उतार
निरंतर
अपना शुद्धीकरण
करते हैं।

कभी-कभी
भीतर
सन्नाटा पसर जाता है।
इंसान
अपनी सुध-बुध खोकर
रोमांस और मस्ती की
डगर पर चल देता है।

हे कामदेव!
तुम देह मेरी में ठहरकर
आज वसन्तोत्सव मनाओ।
काम
तुम मेरी नीरस
काया के भीतर
करो प्रवेश।
मेरी नीरसता का हरण करो।
तुम और के दर पर न जाओ।

हे कामदेव!
तुम मेरे भीतर रस बोध कराकर
मुझे पुनर्जीवित कर जाओ।
ताकि
सुलगते अरमानों की
मृत्युशैया के हवाले कर
मुझे समय से पहले बूढ़ा  न कर पाओ।

हे कामदेव!
तुम समय समय पर
अपने रंग
मुझ पर
छिड़का कर
मुझे
अपनी अनुभूति कराओ ।
काम मेरे भीतर
सुरक्षा का आभास करवाओ।
यही नहीं तुम
सभी के भीतर
जीवंतता की प्रतीति करवाओ।
Nov 2024 · 44
पथ की खोज
Joginder Singh Nov 2024
यह सच है कि
घड़ी की टिक टिक के साथ
कभी ना दौड़  सका,
बीच रास्ते हांफने लगा।

सच है यह भी कि
अपनी सफलता को लेकर
रहा सदा मैं
आशंकित,
अब केवल बचा रह गया है भीतर मेरे
लोभ ,लालच, मद और अहंकार ।
हर पल रहता हूं
छल कपट करने को आतुर ।
किस विधि करूं मैं अंकित ,
मन के भीतर व्यापे भावों के समुद्र को
कागज़,या फिर कैनवास पर?
फिलहाल मेरे
दिल और दिमाग में
धुंध सा छाया हुआ है डर ,
यह बना हुआ
आजकल
मेरे सम्मुख आतंक ।
मन के भीतर व्यापे अंधेरे ने
मुझे एक धुंधलके में  ला खड़ा किया है।
यह मुझे मतवातर करता है
भटकने को हरदम विवश !
फल स्वरूप
हूं जीवन पथ पर
क़दम दर कदम
हैरान और परेशान !!

कैसे, कब और कहां मिलेगी मुझे मंजिल ?

कभी-कभी
थक हारकर
मैं सोचता हूं कि
मेरा घर से बेघर होना ,
ख़ानाबदोश सा भटकना ही
क्या मेरा सच है?
आखिर कब मिलेगा मुझे
आत्मविश्वास से भरपूर ,एक सुरक्षा कवच ,
जो बने कभी
मुक्तिपथ का साथी
इसे खोजने में मैंने
अपनी उम्र बिता दी।
मुझे अपने जीवन के अनुरूप
मुक्तिपथ चाहिए
और चाहिए जीवन में परमात्मा का आशीर्वाद ,
ताकि और अधिक जीवन की भटकन में
ना मिले
अब पश्चाताप और संताप।
मैं खोज लूं जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए ,
सुख और सुकून के दो पल,
संवार सकूं अपना वर्तमान और कल।
मिलती रहे मुझे जीवन में
आगे बढ़ने की शक्ति और आंतरिक बल।
०६/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
समय समर्थ है
और आदमी
उससे ,जब लेने लगता है होड़
तब कभी-कभी
जीत अप्रत्याशित ही
उसका साथ देती छोड़।


अपनी हार
सदैव होती है
बर्दाश्त से बाहर
इससे करेगा कौन इन्कार?


आदमी ने कब नहीं
वजूद की खातिर
किया समझौता स्वीकार ?
पर अंतरात्मा रही है साक्षी,
सांसें रहीं घुटी घुटी।
अंततः होना ही पड़ा
आदमी और आदमियत को
शनै: शनै: हाशिए से बाहर।
आदमी भूलता गया
वसंत का मौसम!
उसे करना पड़ा
पतझड़ का श्रृंगार !


सच! मैं अब
उस समझौता परस्त
आदमी सा होकर
खड़ा हूं बीच बाज़ार,
बिकने की खातिर
एकदम
घर और दफ्तर की चौखट से बाहर।
साथ ही सर्वस्व
हाशिए से बाहर
होते जाने को अभिशप्त है ,
अंदर बाहर तक हड़बड़ाया !!
जो करता रहा है इंतज़ार,
जीवन भर !
बहार का नहीं ,
बल्कि
पतझड़ का,
ताकि
हो सके संभव
पतझड़ का श्रृंगार!!
भले ही वसन्त
देह के करीब से
हवा का झोंका होकर
जाए गुजर ,
पर
छोड़ न पाएं
अपना कोई असर।

सो आदमी करने
लगता है
कभी कभी सीधे ही
जीवन में
वसंत को
छोड़ कर ,
पतझड़ का इंतजार
ताकि
कर सके  वह
पतझड़ का श्रृंगार।
उसके लिए भी वसन्त की ही
करनी पड़ती है प्रतीक्षा,
तभी संभव है
कि आदमी
वसंत ऋतु में
देख ले मन की
आंखों  के भीतर से,
वसन्त कर रही है
चुपचाप
अपने आगमन की
प्रतीति कराकर ,
अपनी उज्ज्वल काया से
पतझड़ का श्रृंगार ।
०६/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
ਜਿਹੜਾ ਵੀ
ਇਸ਼ਕ ਦੇ ਚੱਕਰ ਚ ਪੈ ਜਾਵੇ,
ਸਚ ਕਹਾਂ ਤਾਂ ਉਹ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰੁਲ ਜਾਵੇ।

ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਕਹਿੰਦਾ ਰਹੇਗਾ ਕਿ
ਇਸ਼ਕ ਸੀ,
ਇਸ਼ਕ ਹੈ,
ਇਸ਼ਕ ਰਹਿੰਦੀ ਵਸਦੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤੱਕ ਰਹੇਗਾ ।
ਪਰ ਉਹਦੀ ਕਿਸਮਤ ਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ
ਉਹ ਪੱਥਰ ਦਾ ਸਨਮ ਬਣਿਆ ਰਹੇਗਾ
ਅਤੇ ਉਹ ਘੁੱਟ ਘੁੱਟ ਕੇ ਜੀ ਲਵੇਗਾ,
ਮਗਰ ਆਸ਼ਿਕ ਬਣਨ ਤੋਂ ਕਦੇ ਨਾ ਹਟੇਗਾ ,ਨਾ ਹੀ ਪਿੱਛੇ ਰਹੇਗਾ।
ਜੇਕਰ ਉਹ ਪਿੱਛੇ ਹਟ ਗਿਆ ਤਾਂ ਭੈੜਾ ਜਮਾਨਾ ਕੀ ਕਹੇਗਾ ।

ਅੱਜ ਆਸ਼ਕ ਆਪਣੇ ਦੁੱਖ ਮੋਢਿਆਂ ਤੇ ਚੁੱਕੇ
ਪਿੰਡ ਪਿੰਡ, ਗਲੀ ਗਲੀ, ਸ਼ਹਿਰ ਸ਼ਹਿਰ,ਘੁੰਮਦਾ ਪਿਆ ਹੈ ।
ਉਸ ਦੀ ਦੁੱਖ ਭਰੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਉਹ ਮਰ ਜਾਏਗਾ ਪਰ ਇਸ਼ਕ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਿੱਛੇ ਨਾ ਹਟੇਗਾ ।
ਜੇਕਰ ਉਹ ਪਿੱਛੇ ਹਟ ਗਿਆ ਤਾਂ ਭੈੜਾ ਜਮਾਨਾ ਕੀ ਕਹੇਗਾ।


ਅੱਜ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ
ਆਸ਼ਕਾਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ
ਇੱਕ ਚਾਨਣ ਮੁਨਾਰਾ ਬਣ ਕੇ ਖੜਾ ਹੈ ,
ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਜਜਬਾ ਹੀ ਸਭ ਜਜਬਿਆਂ ਤੋਂ ਬੜਾ ਹੈ।

ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦੇ
ਪਾਕ ਜਜ਼ਬਿਆਂ ਦੀ ਖਾਤਰ
ਅੱਜ ਆਸ਼ਿਕ ਬਣਿਆ ਹੈ ਪ੍ਰੇਮ ਲਈ ਪਾਤਰ ।
ਉਸ ਦੀ ਝੋਲੀ ਚ ਹਮਦਰਦੀ ਦੇ ਕੁਝ ਬੋਲ ਦਿਲੋਂ ਦੇ ਦਿਓ ।
ਉਹ ਉਲਫਤ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤਿਆਂ ਦੀ ਪਵਿੱਤਰਤਾ ਦੇ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਸੱਦਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਵੇ ਰੱਬਾ, ਤੂੰ ਉਹਨਾਂ ਪਾਕ ਰੂਹਾਂ ਦੀਆਂ ਧੜਕਣਾਂ ਨੂੰ
ਆਸ਼ਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਅੰਦਰ ਸੰਭਾਲ ਕੇ ਰੱਖੀਂ।
ਆਸ਼ਕ ਹਮੇਸ਼ਾ ਗੂੰਗਾ ਤੇ ਜੜ ਬਣ ਕੇ ਰਹੇਗਾ ।
ਉਹ ਆਪਣਾ ਦੁੱਖ ਦਰਦ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਕਹੇਗਾ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੌਸਮਾਂ ਨੂੰ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਸਹੇਗਾ।
ਇਸ਼ਕ ਲਈ ਜੀਏਗਾ ਤੇ ਇਸ਼ਕ ਲਈ ਮਰੇਗਾ।
ਉਹ ਪ੍ਰੇਮ ਨਗਰ ਵੱਲ ਆਪਣੇ ਕਦਮਾਂ ਨੂੰ ਚੁੱਕਦਾ ਰਹੇਗਾ।
ਓਹ ਕਦੇ ਵੀ ਉਫ਼ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ।
ਉਹ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਤਾਨੇ ਮਿਹਣੇ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਸਹੇਗਾ ।
Joginder Singh Nov 2024
आज ,अचानक, अभी-अभी,
श्रीमती जी ने मुझे चौंकाया है।
एक विस्मयकारी समाचार सुनाया है।
समाचार कुछ इस प्रकार है कि
शादी बर्बादी के सत्ताईस साल पूरे हो गए ।

शादी के समय मैं ठीक-ठाक लगता था ,
श्रीमती जी किसी विश्व सुंदरी से कम नहीं लगती थीं।
अब बरसों बाद
अपने को आईने में देखा,
तो मुझे जोर का झटका लगा, धीरे से लगा।
शादी के समय
मैं  कितना खुश था
और आजकल वह खुशी काफुर है।
सोचता हूं ,
जो दंपत्ति वैवाहिक जीवन
भरपूर जी ले,
बहादुर है।
  
उस समय की सूरत और सीरत में
काफ़ी बदलाव आ चुका है,
हमारे जीवन से वसंत जा चुका है,
कब हमारे जीवन में
सुख दुख के मौसम आए और चले गए ,
जीवन की भाग दौड़ में कुछ पता ही ना चला।

आज यदि
श्रीमती जी
शादी की सालगिरह की
याद न दिलातीं
तो आज का दिन भी
जीवन की भूल भुलैया में खो जाता।
मैं अखबार पढ़ने, कविता लिखने में ही, सारा दिन गंवाता।
शुक्र है परमात्मा का
कि जीवन में श्रीमती के आने से
तना हुआ है सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का छाता।


श्रीमान जी,
कम से कम आप ना भूलना कभी
इस जीवन में अपनी शादी की सालगिरह
वरना नुकसान उठाना पड़ सकता है ,
बीवी के रूठने पर
उसे प्यार मनुहार से मनाना पड़ सकता है,
वैवाहिक जीवन ख़तरे में पड़ सकता है।


यह सच है कि
बुढ़ापे में पत्नी के बिना पति का दिल नहीं लगता ,
भले ही पति कितना ही भुलक्कड़ और घुमक्कड़ हो जाए ,
उसे चैन पत्नी से सुख-दुख की बातें करके ही आता है।
वैसे आजकल दिन भाग दौड़ में गुजर जाता है,
किचन में ही बर्तन मांजते समय ही पति ,पत्नी से खुलकर बातें कर पाता है।


लगता है
मैं कुछ भटक गया हूं,
जीवन में कहीं अटक गया हूं।
घर में ही मिलता है प्यार,
वरना यह तिलिस्मी है स्वार्थी संसार।

यदि आप विवाहित हैं , श्री मान जी,
तो
सदैव रखें पत्नी का ख्याल जी,
वरना मच सकता है बवाल।
विवाहित जीवन है  एक अद्भुत मकड़ जाल।
ऐसा है कुछ मेरे जीवन का हाल ।
Joginder Singh Nov 2024
मेरे देश!

एक मुसीबत
जो दुश्मन सी होकर
तुम्हें ललकार रही है ।
उसे हटाना,
जड़ से मिटाना
तुम्हारी आज़ादी है!
बेशक! तुम्हारी नजर में ...
अभी ख़ाना जंगी
समाज की बर्बादी है!!
पर...
वे समझे इसे... तभी न!

मेरे दोस्त!
मुसीबत
जो रह रहकर
तुम्हारे वजूद पर
चोट पहुंचाने को है तत्पर!
उसे दुश्मन समझ
तुम कुचल दो।
फ़न
उठाने से पहले ही
समय रहते
सांप को कुचल दो ।
इसी तरह अपने दुश्मनों को
मसल दो ,
तो ही अच्छा रहेगा।
वरना ... सच्चा भी झूठा!
झूठा तो ... खैर , झूठा ही रहेगा।
झूठे को सच्चा
कोई मूर्ख ही कहेगा ।


मुसीबत
जो आतंक को
मन के भीतर
रह रहकर
भर रही है ,
उस आतंक के सामने
आज़ादी के मायने
कहां रह जाते हैं ?
माना तुम अमन पसंद हो,
अपने को आज़ाद रखना चाहते हो ,
तो लड़ने ,  
संघर्ष करने से
झिझक कैसी  ?
तनिक भी झिझके
तो  दुश्मन करेगा
तुम्हारे सपनों की ऐसी तैसी ।

अतः
उठो मेरे देश !
उठो मेरे दोस्त !
उठो ,उठो ,उठो,
और शत्रु से भिड़ जाओ ।
अपनी मौजूदगी ,
अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति
दिन रात परिश्रम करके करो ।
यूं ही व्यर्थ ही ना डरो।
कर्मठ बनो।
अपने जीवन की
अर्थवत्ता को
संघर्ष करते करते
सिद्ध कर जाओ।
हे देश! हे दोस्त!
उठो ,कुछ करो ।
उठो , कुछ करो।
समय कुर्बानी मांगता है।
नादान ना बने रहो।
१६/०८/२०१६.
Joginder Singh Nov 2024
'खुद को क्या संज्ञा दूं ?
खुद को क्या सजा दूं ?'
कभी-कभी यह सब सोचता हूं ,
रह जाता हूं भीतर तक गुमसुम ।
स्वत: स्व  से पूछता  हूं,
"मैं?... गुमशुदा या ग़म जुदा?"


ज़िंदगी मुखातिब हो कहती तब
कम दर कदम मंजिल को वर ,
निरंतर आगे अपने पथ पर बढ़ ।
अब ना रहना कभी गुमसुम ।
ऐसे रहे तो रह जाएंगी  राहें थम।
ऐसा क्या था पास तुम्हारे ?
जिसके छिटकने से फिरते मारे मारे ।
जिसके  खो जाने के डर से तुम चुप हो ।
भूल क्यों गए अपने भीतर की अंतर्धुन ?


जिंदगी करने लगेगी मुझे कई सवाल।
यह कभी सोचा तक न था ।
यह धीरे-धीरे भर देगी मेरे भीतर बवाल ।
इस बाबत तो बिल्कुल ही न सोचा था।
और संजीदा होकर सोचता हूं ,
तो होता हूं हतप्रभ और भौंचक्का।


खुद को क्या संज्ञा दू ?
क्या सजा दूं बेखबर रहने की ?
अब मतवातर  सुन पड़ती है ,
बेचैन करती अपनी गुमशुदगी की सदा ।
जिसे महसूस कर , छोड़ देता हूं और ज्यादा भटकना।
चुपचाप स्वयं की बाबत सोचता हुआ घर लौट आता हूं ।
जीवन संघर्षों में खुद को
बहादुर बनाने का साहस जुटाऊंगा।
मन ही मन यह वायदा स्वयं से करता हूं ‌।

०२/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
उम्मीद है
इस बार तुम
हंगामा नहीं करोगे,
सरे राह
अपने और गैरों को नंगा नहीं करोगे।


उम्मीद है
इस बार तुम
नई रोशनी का
दिल से स्वागत करोगे,
अपनों और गैरों को
नूतनता के रू-ब-रू कराकर
नाउम्मीदी से
मुरझाए चेहरों में
ताजगी भरोगे!
उनमें प्रसन्नता भरी चमक लाओगे!!


उम्मीद है
इस बार तुम
बेवजह ड्रामा नहीं करोगे,
बल्कि एक नया मील पत्थर
सदैव की भांति
परिश्रम करते हुए खड़ा करोगे!


उम्मीद है
इस बार तुम
सच से नहीं डरोगे,
बल्कि
असफलता को भी मात दे सकोगे !
कामयाबी के लिए झूठ बोलने से बचोगे !

२४/११/२००८.
Nov 2024 · 72
The Defeat
Joginder Singh Nov 2024
I am on back foot because of my surroundings.
Defeat makes me unhappy.
It brings the gloomy season of winter in me.
Where 🥶 shivering makes me miserable and I
starts avoiding to engage in my public dealings.
Defeat seems me a silent killer.
Defeat after defeat make us cowards.

Let us struggle ourselves to change defeat in to a victory,where hope appears in the form of miracles and sensitiveness of lively lights of forthcoming festivals.
I feel a transformation period of life is waiting for all.
Be a laborious person,so that all defeated fellows would enjoy their lives.
Joginder Singh Nov 2024
"चट चट चटखारे ले,
न! न!!     नज़ारे ले।
जिन्दगी चाट सरीखी चटपटी,
मत कर हड़बड़ी गड़बड़ी।
बस जीना इसे,प्यारे ,
सीख ले।"
यह सब योगी मन ने
भोगी मन से कहा।
इससे पहले कि मन में
कोहराम मचे,
योगी मन
समाधि और ध्यान अवस्था
में चला गया ।
भोगी मन हक्का बक्का ,
भौंचक्का रह गया।
जाने अनजाने
जिंदगी में
एक कड़वा मज़ाक सह गया।
  ०२/०१/२००९.
Nov 2024 · 82
आतंकी
Joginder Singh Nov 2024
वो पति परमेश्वर
क्रोधाग्नि से चालित होकर,
अपना विवेक खोकर
अपनी अर्धांगिनी को  
छोटी छोटी बातों पर
प्रताड़ित करता है।

कभी कभी वह
शांति ढूंढने के लिए
जंगल,पहाड़,शहर, गांव,
जहां मन किया,उधर के लिए
घर से निकल पड़ता है
और भटक कर घर वापिस आ जाता है।

कल अचानक वह
क्रोध में अंधा हुआ
अनियंत्रित होकर
अपनी गर्भवती पत्नी पर
हमला कर बैठा,
उससे मारपीट कर,
अपशब्दों से अपमानित
करने की भूल कर बैठा।

वह अब पछता रहा है।
रूठी हुई धर्म पत्नी को
मना रहा है,साथ ही
माफ़ी भी माँग रहा है।
क्या वह आतंकी नहीं ?
वह घरेलू आतंक को समझे सही।
इस आतंक को समय रहते रोके भी।
०१/१२/२००८.
Nov 2024 · 61
आकांक्षा
Joginder Singh Nov 2024
हार की कगार पर
खड़े रहकर भी
जो जीत के स्वप्न ले!
ऐसा नेता
देश तुम्हें मिले !

हर पल सार्थकता से जुड़ा रहे,
ऐसा बंधु
सभी को मिले!
जिसकी उपस्थिति से
तन मन खिले!

०१/१२/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
" काटने दौड़ा घर
अचानक मेरे पीछे,
जब जिन्दगी बितानी पड़ी,
तुम्हारी अम्मा के हरि चरणों में
जा विराजने के बाद,उस भाग्यवान के बगैर।"


"यह सब अक्सर
बाबू जी दोहराया करते थे,
हमें देर तक समझाया करते थे,
वे रह रह कर के कहते थे,
"मिल जुल कर रहा करो।
छोटी छोटी बातों पर
कुत्ते बिल्ली सा न लड़ा करो ।"


एक दिन अचानक
बाबूजी भी अम्मा की राह चले गए।
अनजाने ही एकदम हमें बड़ा कर गए।
पर अफ़सोस...
हम आपस में लड़ते रहे,
घर के अंदर भी गुंडागर्दी करते रहे।
परस्पर एक दूसरे के अंदर
वहशत और हुड़दंग भरते रहे।


आप ही बताइए।
हम सभी कभी बड़े होंगे भी कि नहीं?
या बस जीवन भर मूर्ख बने रहेंगे!
बंदर बाँट के कारण लड़ते रहेंगे।
जीवन भर दुःख देते और दुखी करते रहेंगे।
ताउम्र दुःख, पीड़ा, तकलीफ़ सहेंगे!!
मगर समझौता नहीं करेंगे!
अहंकारी बने रहेंगे।

बस आप हमें समझाते रहें जी।
हमें अम्मा बापू की याद आती रहे।
हम उनके बगैर अधूरे हैं जी।
२०/०३/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
तुम्हें मुझ से
काम है,
पर
पास नहीं दाम है।


इससे पहले कि
क्रोध का ज्वर चढ़े,
मेरे भाई, तू भाग ले ।
दुम दबाकर भाग ले ।
कुत्ते कहीं के।


अचानक
जिंदगी में
यह सब सुना
तो पता नहीं क्यों?
मैं चुप रहा।
मुझे डर घेर रहा।


सोचा
कब उससे
लड़ने का साहस जुटाऊंगा ?
कभी अपने पैरों पर
खड़ा हो पाऊंगा भी कि नहीं  ?
या फिर
पहले पहल
व्यवस्था को कोसता
देखा जाऊंगा
और फिर
व्यवस्था के भीतर
घुसपैठ कर
दुम हिलाऊंगा ।


सच ! मैं अनिश्चय में हूं।
अर्से से  किंकर्तव्यविमूढ़!
कहीं गहरे तक जड़!!
२३/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਹੋਂਦ
ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਪਿੱਛੇ ਛੁਡਾਵੇ
ਕਿਉਂ ਨਾ ਮੈਂ
ਗਹਿਰੀ ਨੀਂਦ ਵਿੱਚ ਸੋ ਜਾਵਾਂ।
ਸੂਰਜ ਦੇ ਦਸਤਕ ਦੇਣ ਤੇ ਵੀ
ਕਦੀ ਨਾ ਉੱਠ ਪਾਵਾਂ।


ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾ ਕਿ
ਕੁਝ ਅਣਸੁਖਾਵਾਂ ਘਟੇ।
ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ,
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਗੁੜੀ ਨੀਂਦੋਂ ਜਗਾ ਪਾਵਾਂ।
ਤਾਂ ਜੋ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਚੀ ਰਹੇ,
ਹੋਰ ਜੀਵਾਂ ਵਾਂਗ
ਆਪਣੇ ਲਈ ਸੁਫਨੇ ਬੁਣਦੀ ਰਹੇ।


ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿ
ਅਸੀਂ ਆਪਸ ਚ ਲੜ ਮਰੀਏ।
ਦੋਸਤ ,ਅਸੀਂ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਦਾਈ ਲਈਏ।
ਆਪਣੇ ਸਫਰ ਵੱਲ ਤੁਰ ਪਈਐ।
26/12/2017.
Joginder Singh Nov 2024
अब बेईमान बेनकाब कैसे होगा ?
इस बाबत हमें सोचना होगा।

लोग बस पैसा चाहते हैं,
इस भेड़ चाल को रोकना होगा।

देखा देखी खर्च बढ़ाए लोगों ने ,
इस आदत को अब छोड़ना होगा।

चालबाज आदर्श बना घूमता है ,
उसके मंसूबों को अब तोड़ना होगा।

झूठा अब तोहमतें  लगा रहा ,
उसे सच्चाई से जोड़ना होगा।

आतंक सैलाब में बदल गया ,
इसका बहाव अब मोड़ना होगा।

लोभ लालच अब हमें डरा रहा,
हमें सतयुग की ओर लौटना होगा।

सब मिल कर करें कुछ अनूठा,
हमें टूटे हुओं को जोड़ना होगा।
Joginder Singh Nov 2024
अक्सर गलती करने पर
नींद ढंग से आती नहीं,
तुम ही बताओ,
सोने की खातिर
किस विध दूँ ,
निज को थपकी ।
बेचैनी को भूलभाल कर
सो सकूँ निश्चिंत होकर
और रख सकूँ  क़ायम
जिजीविषा को।
दूँढ सकूँ
अपना खोया हुआ
सुकून।  

०४/०८/२००९.
Nov 2024 · 60
वारिस
Joginder Singh Nov 2024
जिसे लावारिस समझा उम्र भर
वही मिला मुझे
सच्चा वारिस बनकर
आजकल
वह
मेरे भीतर जीवन के लिए
उत्साह जगाता है,
वह
क़दम क़दम पर
मेरे साथ निरंतर चलकर
मुझे आगे बढ़ा रहा है।
अब वह मेरी नज़र में
एक विजेता बनकर उभरा है,
जिसने संकट में
मेरे भीतर सुरक्षा का अहसास
जगाया है।
मैं पूर्वाग्रह के वशीभूत होकर
उसे व्यर्थ ही
दुत्कारता रहा।
नाहक
उसे शर्मिंदा करने को आतुर रहा।
जीवन में
शातिर बना रहा।
  ०४/०८/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
अर्से के बाद
मिला एक दोस्त
पूछ बैठा मेरा हाल-चाल!


इससे पहले कि
कोई माकूल जवाब देता,
दोस्त कह बैठा,
लगता है,
सेहत तुम्हारी का
है बुरा हाल।

मैंने उम्र के सिर
चुपके से ठीकरा फोड़ा !
पर , भीतर पैदा हो गया एक कीड़ा !
जो भीतर ही भीतर
खाए जा रहा है।


अब मैं बोलता हूं थोड़ा ,
ज्यादा बोला तो बरसाऊंगा कोड़ा ,
अपने पर और अपनों पर ,
मन में रहते सपनों पर ,
कोई सच बोल कर
कतर  देता है पर ,इस कदर ,
भटकता फिरता हूं  होकर दर-बदर ।

अब तो मुझे
दोस्तों तक से
लगने लगा है डर ,
कहना चाहता हूं
ज़माने भर की हवाओं से
दे दो सबको यह पैग़ाम ,यह ख़बर।
मिलने जरूर आएं,
पर भूल कर भी
कह न दें कोई कड़वा सच
कि लगे काट दिए हैं किसी ने पर ,
अब प्रवास भरनी हो जाएगी मुश्किल।

वे खुशी से आएं,
जीवन में हौसला और
हिम्मत भरकर जाएं।
दिल में कुछ करने की
उमंग तरंग जगाएं ।
Nov 2024 · 64
Assurity
Joginder Singh Nov 2024
Among uncertainties in life,
no body can provide assurity in a changing world.

As I am growing old with the mercy of time.
Too some extent, I have lost my purity in life.
I have a desire to purify myself right from beginning to the level of consciousness.
As I am aged year by year,
I find myself vague and unclear.
I have  strong desires for purification.
I need balance in life,
I'm balancing now myself .
Wandering aimlessly makes a person infertile, unproductive and destructive.
I like a constructive and well adjusted life ,with a deep attraction for living a peaceful and purposeful life.

Nobody can give assurity regarding this except self.
Nov 2024 · 44
Protest
Joginder Singh Nov 2024
In a brutal and barbarous world,raising a banner to protest is not so easy as it seems to some of us.

It needs courage.
Without it,our identity merged into nothingness .
So show your support for protest against cruelty, exploitation,discrimination ,
in a gentle way.
All of us want to see the rays of hope during these dark days of present life.
Always raise your banners to protest in such a manner that anarchists can't make access to us.

We have civil rights to protest.
Protests always protect rights .
Nov 2024 · 93
Courtesy
Joginder Singh Nov 2024
If you have an inner desire to become a gentleman in real life.
Than, you must visit to a court , where without courtesy no execution is possible.

In court room,
justice is being provided with solid, concrete,authentic arguments.
Dear brother,here courtesy is not a fantasy , it becomes a reality there.
Nov 2024 · 90
A Helping Hand
Joginder Singh Nov 2024
Every body in life,
needs a helping  hand.
So that one can stand firmly to face the hardness and the obstacles of life.
For this noble cause,
please mould your self to enjoy a tensionfree and peaceful life.
You must be a helping hand to your friends and family members.
Remember true worship exists only  ,when you engage yourself to provide help to needy people.
Nov 2024 · 61
मुँहफट
Joginder Singh Nov 2024
याद रखो ,दोस्त !
मुंहफट
कभी उर में
कुछ
छुपा कर
नहीं रखते।
इधर सुना नहीं कि मुंह खुला नहीं ।
वे
तत्काल कर देते हैं हिसाब किताब।
तुम अब भी
उनके मुंह लगना चाहोगे।
तुम कभी उन्हें
वाद विवाद संवाद में
पराजित नहीं कर पाओगे।
मुंह फट को हार जाने,
हार कर मुँह फुलाने की आदत नहीं होती।
आज तो तुम
ढूंढ़ ही लो
मुंहफट भाई को
मज़ा चखाने का कोई नुस्खा
या फिर कोई नुक्ता।
तुम उसकी नुक्ताचीनी ही न करो तो अच्छा।
वो
समझता है तुम्हें बच्चा ,
और तुम उसके सामने तनना चाहते हो।
रहने दो,झुक जाओ।
अपने अंतर्मन से
संवाद रचाने के प्रयास करो।
नाहक मुंहफट को
न गले लगाया करो।
अपने भीतर के अहंकार को
कुछ तो दबाया करो।
हो सकता हे कि वह चुप रह जाए।
और तुम को करार मिल पाए।
Joginder Singh Nov 2024
सार  सार  को  ग्रहण  करने वाला !
सब  से  सच ,  सच  कहने  वाला !
होता  नहीं  कतई मूर्ख  कभी  भी  !
झूठे   का   साथ  ‌निभाने  ‌‌वाला   !
छल  कपट , मक्कारी करने  वाला !
पहुंचाता पल पल  निरीहों  को  दुःख !
बना  देता   है  ‌ ‌‌ज़िंदगी ‌ ‌को  नरक  !
तुम  ही  बतलाओ  आज ‌, बंधुवर  !
एक  झूठ  को  हवा   देता   है   और
दूसरा  सच  को  बचाकर  रखता  है ।
तुम  अब ‌ किसका  समर्थन  करोगे  ?
क्या  फिर  से   भेड़  चाल  चलोगे  ?
क्या इंसानियत  को  शर्मसार  करोगे ?
क्या  तुम   प्रश्नचिह्न    लगा  पाओगे ?
तुम जीवन के इस चक्रव्यूह से बच जाओगे?
  ०४/०८/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
असंतोष की लपटों से घिरा आदमी
छल प्रपंच,उठा पटक के चलते
क्या कभी ऊपर उठ पाएगा?
वह अपने पैरों पर  खड़ा होने की
क्या कभी हिम्मत वह जुटा पाएगा ?


तुम उसके भविष्य को लेकर
दिन रात चिंतित रहते हो।
यदि तुम उसका भला चाहते हो ,
तो कर दो भय दूर उसके भीतर से।
देखना वह स्वत: साहसी हो जाएगा।
सच्चा साथी बनकर सबको दिखाएगा।
बशर्ते तुम भी उसकी तरह संजीदा रहो।
उस के साथ इंसाफ की आवाज उठाते रहो।
हाथों में थाम कर मशाल
उसके साथ साथ चल सको।
Joginder Singh Nov 2024
अदालत के भीतर बाहर
सच के हलफनामे के साथ
झूठ का पुलिंदा
बेशर्मी की हद तक
क़दम दर क़दम
किया गया नत्थी!
सच्चे ने देखा , महसूसा , इसे
पर धार ली चुप्पी।
ऐसे में,
अंधा और गूंगा बनना
कतई ठीक नहीं है जी।

यदि तुम इस बाबत चुप रहते हो,
तो इसके मायने हैं
तुम भीरू हो,
हरदम अन्याय सहने के पक्षधर बने हो।
इस दयनीय अवस्था में
झूठा सच्चे पर हावी हो जाता है।
न्यायालय भी क्या करे?
वह बाधित हो जाता है।
अब इस विकट स्थिति में
मजबूरी वश
सच्चे को झुकना पड़ता है।
बिना अपराध किए सज़ा काटनी पड़ती है।

क्या यही है सच्चे का हश्र और नियति ?
बड़ी विकट बनी हुई है परिस्थिति।
सोचता हूं कि अब हर पल की यह चुप्पी ठीक नहीं।
इससे तो बस चहुं ओर उल्टी गंगा ही बहेगी।
अब तुम अपनी आवाज़ को
बुलंद बनाने की कोशिशें तेज़ करो।
सच के पक्षधर बनो, भीतर तक साहसी बनो।
छद्म धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा उतार फेंको।
० ४/०८/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
जानवरों में
होती है जान!
पेड़ों,पक्षियों, सूक्ष्म जीवों में
होते हैं प्राण!!

आदमी
सरीखे पशु में
रहता आया है
सदियों सदियों से
आत्म सम्मान!


फिर क्यों हम
जीव जन्तुओं के वैरी बने हुए?
क्यों न हम सब
परस्पर सुरक्षित रहने की ग़र्ज से
एक विशालकाय
वानस्पतिक सुरक्षा छतरी बुनें?
आज हम सब पर्यावरण मित्र बनें।


बंधुवर! तुम आज इसी पल
पर्यावरण मित्र बनो
और संगी साथियों के साथ
प्रदूषण के दैत्य से लड़ो।
सच की रोशनी में ही आगे बढ़ो।
  १७/०९/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
अब अक्सर
भीतर का चोर
रह रहकर
चोरी को उकसाता है,
शॉर्टकट की राह से
सफलता के स्वप्न दिखाता है
पर...
विगत का अनुभव
रोशन होकर
ईमानदार बनाता है।
वह
चोरी चोरी
चुपके चुपके
हेरा फेरी के नुकसान गिनाता है!
अनुशासित जीवन से जोड़ पता है!!



भीतर का चोर
अपना सा मुंह लेकर रह जाता है।
बावजूद इसके
वह शोर मचाता है ,
देर तक चीखता चिल्लाता है।
अंतर् का चोर
भीतर की शांति भंग करना चाहता है।
जब उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है,
तब वह थक हार कर सो जाता है।
अच्छा है वह सोया रहे,
भीतर का चिराग जलता रहे ,
जीवन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहे!
बाहर भीतर चिंतन व्यापा रहे!
मन के भीतर सदैव शांति बनी रहे!
अंतर्मन में शुचिता बनी रहे!!
अंतर्मन का चोर सदैव असफल रहे।
Joginder Singh Nov 2024
तुम मुझ से
स्व शिक्षितों की सामर्थ्य के विषय में
अक्सर पूछते हो।
उन जैसा सामर्थ्य प्राप्त कर लेना
कोई आसान नहीं।
इस की खातिर अथक प्रयास करने पड़ते हैं,
तब कहीं जाकर मेहनत
अंततः मेहनत फलीभूत होती है।


पर यही सवाल तुम मुझ से
अनपढ़ों की बाबत करते,
तो तुम्हे यह जवाब मिलता।

काश!अब
आगे बढ़ती दुनिया में
कोई भी न रहे अशिक्षित ।
कोई भी न कहलाए
अब कतई अंगूठा छाप।
अनपढ़ता कलंक है
सभ्य समाज के माथे पर।
यह इंसानों को
पर कटे परिंदे जैसी बना देती है,
उनकी परवाज़ पर रोक लगा देती है।

जन जन के सदप्रयासों से
अनपढ़ता का उन्मूलन किया जाना चाहिए।
शिक्षा,प्रौढ़ शिक्षा का अधिकार
सब तक पहुंचना चाहिए।

आप जैसा जागरुक
अनपढ़ों तक ,
'शिक्षा बेशकीमती गहना है,
इसे सभी ने पहनना है ।,'का पैगाम
पहुँचा दे,तो एक क्रांति हो सकती है।
देश,समाज,परिवार का कायाकल्प हो सकता है।
अतः आज जरूरत है
अनपढ़ों को
शिक्षा का महत्त्व बताने की,
उन्हें जीवन की राह दिखाने की
उनकी जीवन पुस्तक पढ़ पाने की।
यदि ऐसा हुआ तो
कोई नहीं करेगा खता।
उन्हें सहजता से सुलभ हो जाएगा,
मुक्ति का पता।
जिसे शोषितों, वंचितों से छुपाया गया,
उन्हें अज्ञानी रखकर बंधक बनाया गया।
Nov 2024 · 72
विस्फोट
Joginder Singh Nov 2024
दुनिया को कर भी ले विजित
किसी चमकदार दिन
कोई सिकंदर
और कर ले हस्तगत सर्वस्व।
धरा की सम्पदा को लूट ले।
तब भी माया बटोरने में मशगूल,
लोभ,लालच, प्रलोभन के मकड़जाल में जकड़ा
वह,महसूस
करेगा
किसी क्षण
भले वह विजयी हुआ है,
पर ...यह सब है  व्यर्थ!
करता रहा जीवन को
अभिमान युक्त।
पता नहीं कब होऊंगा?
अपनी कुंठा से मुक्त।!

कभी कभी वजूद
अपना होना,न होना को  परे छोड़कर
खो देता है
अपनी मौजूदगी का अहसास।
यह सब घटना-क्रम
एक विस्फोट से कम नहीं होता।


सच है कि यह विस्फोट
कभी कभार ही होता है।
ऐसे समय में  
रीतने का अहसास होता है।
अचानक एक विस्फोट
अन्तश्चेतना में होता है,
विजेता को नींद से जगाने के लिए!
मन के भीतर व्यापे
अंधेरे को दूर भगाने के लिए!!
Joginder Singh Nov 2024
स्वप्न जगाती
दुनिया में बंद दुस्वप्न
पता नहीं
कब
ओढ़ेंगे कफन ?



मुझे भली भांति है विदित
दुस्वप्नों के भीतर
छिपे रहते हैं हमारे अच्छे बुरे रहस्य।
इन सपनों के माध्यम से
हम अपना विश्लेषण करते हैं,
क्योंकि सपने हमारे आंतरिक सच का दर्पण होते हैं।


मुझे चहुं और
मृतकों के फिर से जिंदा होने
उनकी  श्वासोच्छवास का
हो रहा है मतवातर अहसास।
मेरे मृत्यु को प्राप्त हो चुके मित्र संबंधी
वापस लौट आए हैं
और वे मेरे इर्द-गिर्द जमघट लगाए हैं।
वे मेरे भीतर चुपचाप ,धीरे-धीरे डर भर रहे हैं।
मैं डर रहा हूं और वह मेरे ऊपर हंस रहे हैं।



अचानक मेरी जाग खुल जाती है,
धीरे-धीरे अपनी आंखें खोल,देखता हूं आसपास ।
अब मैं खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा हूं।
अपने तमाम डर किसी ताबूत में चुपचाप भर रहा हूं।


हां ,यकीनन
मुझे अपने तमाम डर
करने होंगे कहीं गहरे दफन
ताकि कर सकूं मैं निर्मित
रंग-बिरंगे , सम्मोहन से भरपूर
वर वसन, वस्त्र
और उन्हें दुस्वप्नों पर ओढ़ा सकूं।


इन दुस्वप्नों को
बार बार देखने के बावजूद
मन में चाहत भरी है
इन्हें देखते रहने की,
बार-बार डरते, सहमते रहने की।



चाहता हूं कि
स्वप्न जगती इस अद्भुत दुनिया में
सतत नित्य नूतन
सपनों का सतत आगमन देख सकूं
और समय के समंदर की लहरों पर
आशाओं के दीप तैरा सकूं।



मैं जानता हूं यह भली भांति !
दुस्वप्न फैलाते हैं मन के भीतर अशांति और भ्रम।
फिर भी इस दुनिया में भ्रमण करने का हूं चाहवान।
दुस्वप्न सदैव, रहस्यमई,डर भरपूर
दुनिया की प्रतीति कराते हैं।
चाहे इन पर कितना ही छिड़क दो
संभावनाओं का सुगंधित इत्र।!
ये जीवन की विचित्रताओं का अहसास बनकर लुभाते हैं।



काश! मैं होऊं इतना सक्षम!
मैं इन दुस्वप्नों से लड़ सकूं।
उनसे लड़ते हुए आगे बढ़ सकूं।

१६/०२/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
कैसे दिन थे वे!
हम चाय पकौड़ियों से
हो जाते थे तृप्त !
उन दिनों हम थे संतुष्ट।

अब दिन बदल गए क्या?
नहीं ,दिन तो वही हैं।
हम बदल गए हैं।
थोड़े स्वार्थी अधिक हुए हैं ।

उन दिनों
दिन भर खाने पीने की जुगत भिड़ाकर ।
इधर बिल्ली ,उधर कुत्ते को परस्पर लड़ा कर ।
हेरा फेरी, चोरी सीनाज़ोरी ,
मटरगश्ती, मौज मस्ती में रहकर ।
समय बिताया करते थे,
चिंता फ़िक्र को अपने से दूर रखा करते थे।
परस्पर एक दूसरे के संग
उपहास , हास-परिहास किया करते थे।


आजकल
सूरज की पहली किरण से लेकर,
दिन छिपने तक रहते असंतुष्ट !
कितनी बढ़ गई है हमारी भूख?
कितने बढ़ गए हैं हमारे पेट?
हम दिन रात उसे भरने का करते रहते उपक्रम।
अचानक आन विराजता है, जीवन में अंत।
हम आस लगाए रखते कि जीवन में आएगा वसंत।
हमारे जीवन देहरी पर,मृत्यु है आ  विराजती।
किया जाने लगता,
हमारा क्रिया कर्म।



कैसे दिन थे वे!
हम चाय पकौड़ियों से,
हो जाते थे तृप्त!
उन दिनों हम सच में थे संतुष्ट!!



अब अक्सर सोचता रहता हूं...
... दिन तो वही हैं...
हमारी सोच ही है प्रदूषण का शिकार हुई,
हमारे लोभ - लालच की है जिह्वा बढ़ गई,
वह ज़मीर को है हड़प  कर गई,
और आदमी के अंदर -बाहर गंदगी भर गई!
चुपचाप उज्ज्वल काया को मलिन कर गई!!



काश! वे दिन लौट आएं!
हम निश्चल हंसी हंस पाएं!!
इसके साथ ही, चाय पकौड़ी से ही प्रसन्न और संतुष्ट रहें।
अपने जीवन में छोटी-छोटी खुशियों का संचय करें।
जिंदगी की लहरों के साथ विचरकर स्वयं को संतुष्ट करें ।

  १८/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
देश की
आर्थिकता
आजकल बैसाखियों के आसरे
चल रही है ,
सोचता हूं,
देश के भीतर
तभी आर्थिक अपराध बढ़े हैं,
सभी भीतर तक भ्रष्ट हुए हैं।


देश समाज और दुनिया में
सभी अपनी आर्थिकता को
सुदृढ़ कर रहे हैं
मतवातर
हम ही धनार्जन की दौड़ में
पिछड़े हुए हैं।
आखिरकार ऐसा क्यों है?


आजकल
सत्ताधारी दल
और
विपक्षी दल
परस्पर लड़ रहे हैं ,
नूरा कुश्ती कर रहे हैं।

परस्पर
एक दूसरे पर हेराफेरी करने,
भ्रष्टाचारी होने के
आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
इन दोनों की लड़ाई का
कुछ आर्थिक शक्तियां
लाभ उठा रही हैं।
देश भर में निवेश, शेयरों को
अपने हाथों में लेकर
रक्त चूसने की हद तक लाभ कमा रही हैं।
उपभोक्ताओं को सस्ते सामान मुहैया कर लुभा रही हैं।
अंदर ही अंदर
देश की आर्थिकता को
दीमक सी होकर
खोखला करती जा रही हैं।


आज
देश का व्यापार संतुलन
बिगड़ चुका है,आयात अधिक, निर्यात कम है।
इस स्थिति को
समझते बूझते हुए भी सत्ता पक्ष और विपक्ष
चोरी-चोरी ,चुपके-चुपके
अपना अपना खेल, खेल रहे हैं।
जन साधारण इन सब के बीच पिस रही है।
देश की आर्थिकता
चुपचाप परित्यक्ताओं सी  होकर
सिसकियां भर रही है।
हाय! देश की शासन व्यवस्था क्या कर रही है?
Joginder Singh Nov 2024
तमाम खाद्यान्न पदार्थों में
खिचड़ी का मिलना
किसी वरदान से कम नहीं।
इसे खाकर तो देख सही।



गले में खिचखिच     खा खिचड़ी
जीवन में खिचखिच  गा   और
खिचड़ी भाषा में पढ़   कबीर जी का सच
कैसे नहीं होगा प्राप्त ?
जीवन में आस्था का सुरक्षा कवच !अगर म
अनायास सीख पाओगे स्वयं को रखना शांत।

खिचड़ी खा, खिचड़ी भाषा के कवि को गुन
और... हां...तूं  मन मेरे
अपने भीतर का राग सुनाकर, उसे ही गुनाकर !

जीवन भरने करना दूर अपने को खिचड़ी से
बनना मस्त मलंग खाकर, जीकर खिचड़ी के संग
मिलेंगे जीवन के खोये रंग,
जीवन न होगा और अधिक बदरंग, मटमैला,
यह जीवन नहीं होगा प्रतीत एक मेला -झमेला ।
०९/१०/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
ਅੱਜ ਕੱਲ ਦੇ ਰਾਂਝੇ
ਅਕਲੋਂ ਸਖਣੇ
ਸਾਨੂੰ ਪਿਆਰ ਦਾ ਪਾਠ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਜੀ।

ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ
ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣ ਕੇ
ਸਾਡੇ ਵੀ ਜੀਅ ਮਚਲਾਉਣ ਜੀ।


ਅਸੀਂ ਸੋਚਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ
ਕਿ ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਵੀ ਰਾਂਝੇ ਬਣ ਜਾਂਦੇ,
ਕਿਸੇ ਹੀਰ ਸਲੇਟੀ ਨੂੰ ਲੱਭ ਲਿਆਉਂਦੇ।

ਸਾਡੇ ਬੱਚੇ ਦੇਖ ਸਾਨੂੰ ਲੱਗਣ ਮੁਸਕਰਾਉਂਦੇ ,
ਉਹਨਾਂ ਵੱਲ ਅਸੀਂ ਵੀ ਤੱਕ ਕੇ ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ ਸ਼ਰਮਾਉਂਦੇ,
ਫੇਰ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਬੈਠ ਕੇ ਠਹਾਕੇ ਕੇ ਅਸੀਂ ਲਗਾਉਂਦੇ।
Joginder Singh Nov 2024
ਅਜੋਕੇ ਸਮੇਂ ਚ ਰਹਿਣਾ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਹੈ,
ਜਿੱਥੇ ਕਦਮ ਕਦਮ ਤੇ ਮਿਲਦਾ ਧੋਖਾ ਹੈ ,
ਅੱਜ ਫਿਰਕਾ ਪ੍ਰਸਤੀ ਨੇ ਖੁੰਝ ਲਿਆ ਸਾਥੋਂ
ਅੱਗੇ ਵਧਣ, ਤਰਕੀ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਹੈ।
ਅਜੋਕੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰਾਂਝੇ, ਅਕਲ ਤੋਂ ਵਾਂਝੇ,
ਕਰਦੇ ਮਾੜੀਆਂ ਹਰਕਤਾਂ, ਕਿੰਵੇ ਹੋਊ ਬਰਕਤਾਂ।

ਸਮਾਂ ਤਾਂ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ,
ਫਿਰ ਸਾਨੂੰ ਅਜੋਕਾ ਸਮੇਂ ਕਿਉਂ ਮਾੜਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ,
ਲੱਗਦਾ ਹੈ , ਸਾਡੀ ਬੇਅਕਲੀ ਨੇ, ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ,
ਹਰ ਵੇਲੇ ਚੋਰੀ ਸੀਨਾ ਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰ ਭਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ।
ਤਾਂ ਹੀ ਤਾਂ ਅਜੋਕੇ ਸਮਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣਾ ਔਖਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ।
Nov 2024 · 50
ਪਰਵਾਸ
Joginder Singh Nov 2024
ਸਾਡੇ ਵੱਡੇ ਵਡੇਰੇ
ਕਦੀ ਕਦੀ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ,
ਘਰ ਪਰਿਵਾਰ ਤੋਂ ਦੂਰ
ਮਨ ਦੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਖੋਜਣ ,
ਕਰਦੇ ਸਨ ਚੁੱਪ ਰਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਵਾਸ।

ਉਸ ਵੇਲੇ
ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ  
ਸੁੱਚਾ ਤੇ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਹਰੇਕ ਬੰਦਾ
ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਵਾਇਦਾ
ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ,
ਨਾ ਕਿ ਅੱਜ ਵਾਂਗ
ਬੇਵਜਹ ਮਨਾਂ ਚ ਦਹਿਸ਼ਤ ਭਰ ਕੇ
ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਧੜਕਣਾਂ ਨੂੰ ਵਧਾਉਂਦਾ ਹੈ ।




ਉਸ ਵੇਲੇ ਦਾ ਫਲਸਫਾ ਸੀ ,
ਚਕਲਾ ਬੇਲਨ ,ਤਵਾ ਪਰਾਤ,
ਜਿੱਥੇ ਸੂਰਜ ਛੁਪਿਆ ਤੇ ਛਿਪਿਆ ,
ਉੱਥੇ ਕੱਟ ਲਵੋ ਰਾਤ ।



ਸਾਡੇ ਵੇਲੇ
ਆਲਾ ਦੁਆਲਾ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ
ਬਦਲ ਰਿਹਾ ਹੈ,
ਕੱਲ ਤੱਕ
ਸਾਡੇ ਵੱਡੇ ਵਡੇਰੇ
ਤੜਕੇ ਸਾਰ ਰੱਬ ਨੂੰ ਧਿਆਂਉਦੇ ਸਨ,
ਨਾ ਕਿ ਅੱਜ ਵਾਂਗ
ਮੋਬਾਇਲ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਧਿਆਨ ਲਗਾਉਂਦੇ  ਹਨ ।
ਕਈ ਵਾਰ
ਮੈਨੂੰ ਇੰਝ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ
ਅਜੋਕੇ ਆਦਮੀ ਨੇ
ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ
ਮੋਬਾਈਲ ਨਾ ਫੜ ਕੇ
ਇੱਕ ਟਾਈਮ ਬੰਬ ਫੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ,
ਜਿਹੜਾ ਇਨਸਾਨੀ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਛੇਤੀ ਨਾਲ ਲੀਲ ਰਿਹਾ ਹੈ ,
ਸਾਡੀ ਹਮਦਰਦੀ, ਵੇਦਨਾ , ਸੰਵੇਦਨਾ ਨੂੰ ਸਾਥੋਂ ਛੀਨ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਵੱਡੇ ਵਡੇਰਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਵਾਸ
ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ, ਸ਼ਹਿਰਾਂ ,ਕਸਬਿਆਂ ਤੱਕ
ਸੀਮਿਤ ਹੁੰਦਾ ਸੀ,
ਮਨਾ ਦੇ ਅੰਦਰ ਅਸੀਮ ਸੁੱਖ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੁੰਦਾ ਸੀ।
Joginder Singh Nov 2024
कोई भी रही हो
वजह
रिश्ते बनने ,बिगड़ने की
उसकी
बेवजह ना करो पड़ताल ।


चुपचाप
अपने करते रहो काम,
बेवजह
दर्द अपनों के में
करते ना रहो इज़ाफ़ा ।


कोई भी रही हो
वजह
शत्रुता बढ़ाने की
या फिर
मित्रता निभाने की
बेवजह
उसे तूल ना देकर ,
तिल का ताड़ ना बनाकर ,
सच को करो स्वीकार ।
समझ लो,
बाकी है सब बेकार ।


कायम रखो मिज़ाज अपने को ,
ताकि बढ़ता रहे मतवातर
जिंदगी का जहाज,
समय के समन्दर में ,
उसे लंगर की
रहे ना जरूरत।

०२/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
ਤੁਸੀਂ ਦਿਲ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ
ਹਰ ਵੇਲੇ ਵਿਹਲੇ ਬੈਠੇ ਹੋਏ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੇ ਹੋ
ਜਾਂ ਫਿਰ ਕਦੇ ਕਦੇ
ਇਧਰ ਉਧਰ ਬੰਦਰਾਂ ਵਾਂਗ ਟਪੂਸੀਆਂ ਭਰਦੇ ਹੋ ।

ਕਦੇ ਕਦੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੇ ਹੋ,
ਉਹ ਵੀ ਵਾਰ ਵਾਰ ਟੋਕਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ,
ਇਹ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੈ , ਕਾਕਾ ਜੀ,
ਤੁਸੀਂ ਦਿਲ ਲਗਾ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰੋ,
ਮਾਰੋ ਨਾ ਹੁਣ ਡਾਕਾ ਜੀ।

ਤੁਸੀਂ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਦਿਆਂ ਹੀ
ਬਦਨ ਢਿੱਲਾ ਛੱਡ ਕੇ
ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਥੱਕ ਜਾਣ ਦੀ
ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋ ਸ਼ਿਕਾਇਤ,
ਇਹ ਵਤੀਰਾ ਬਿਲਕੁਲ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਾਇਜ਼।

ਬੰਦਾ ਜੇਕਰ ਵਿਹਲਾ ਬੈਠਣਾ ਸਿੱਖ ਜਾਵੇ,
ਉਹ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨਾ ਭਾਵੇ।
ਅਜਿਹੀਆ ਬੰਦਾ ਜੇਕਰ ਦਿਨ ਭਰ
ਦੁਨਿਆਵੀ ਕਿਰਿਆ ਕਲਾਪਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਦਾ ਰਹੇ ,
ਕੋਈ ਵੀ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰੇ,
ਤਾਂ ਵੀ ਛੇਤੀ ਹੀ ਥੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ
ਅਤੇ ਕਦੇ ਕਦੇ ਤਾਂ ਉਸਦੀ
ਵਾਰ ਵਾਰ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਬਕਵਾਸ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਸੁਆਦਾਂ ਨੂੰ ਕਸੈਲਾ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ।

ਵਧੀਆ ਰਹੇਗਾ ਅਸੀਂ ,
ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਤੇ ਆਪਣੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਕਰੀਏ ਪੜਚੋਲ।

ਸੱਚ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ
ਕੰਮ ਕੋਈ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜੀ।
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ
ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ,
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਧਨ, ਦੌਲਤ, ਸ਼ੋਹਰਤ।
ਇਹ ਰੱਬ ਦੀ ਰਜ਼ਾ ਹੈ ਕਿ
ਬੰਦਾ ਦਿਨ ਰਾਤ ਰੱਜ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰੇ,
ਉਹ ਕਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਿੱਛੇ ਨਾ ਹਟੇ।
Nov 2024 · 85
Naughtiness
Joginder Singh Nov 2024
Let us become naughty today.
Celibrate it as a happiness day .
We all are travellers here.
Next day we wouldn't be there to enjoy.
Life is full of uncertainties.
Let us put some moments of happiness in  our self consciousness.
Be naughty and tensionfree.
Naughtiness and fun within limits are the best for leading a postive life here.

Is it clear,my dear
Moments for departure is very near.
So, celibrate naughtiness within us.
Nov 2024 · 108
During These Days
Joginder Singh Nov 2024
Waves of illusions are floating towards us.
During these days all of us are perplexed.
What is our future and fate?
Let us  think and
decide in this regard immediate.
Joginder Singh Nov 2024
जाति के चश्मे से
देखोगे अगर तुम
आदमी को,
तो आदमियत से
दूर होते जाओगे !


विकास के नाम पर
चाहे अनचाहे ही
एक जंगल राज
खड़ा कर जाओगे!
बेशक पछताओगे!
खुद को कभी-कभी
मकड़जाल में जकड़ी
एक मकड़ी सरीखा
तुम खुद को पाओगे ।
अपनी नियति को कैद महसूस कर ,
तुम मतवातर अपनी भीतर ,
घुटन महसूस कर,तिलमिलाए देखे जाओगे।
तुम कब इस दुष्चक्र से
बाहर निकल कर आओगे?


ठीक है ,जाति तुम्हारी पहचान है।
कोई तुम्हें जाति में विचरने से नहीं रोकता ।
बेशक जाति पहचान रही है ,
परंपरावादी व्यवस्था की ।
आज जरूरत है ,
इस व्यवस्था में स्वच्छता लाने की ,
इसके गुणों व अच्छाइयों को, दिल से अपनाने की ।


यदि जाति के चश्मे से ना देखोगे आदमी को ।
सदैव साफ रखोगे नीयत तुम अपनी को ,
तो जाति तुम्हारी पहचान बनेगी ।
यह कभी विकास में बाधक न बनेगी ।
   ०८/०२/२०१७
Nov 2024 · 96
Love Birds
Joginder Singh Nov 2024
Nowadays walking in a garden is not so easy.
Love Birds often sit on benches, enjoying picnic in the corners of the garden to avoid general public.

Old man like me usually disturbed.
Sometimes we restrict ourselves in the garden so that our young generation can enjoy their lives undisturbed.
Joginder Singh Nov 2024
ਪ੍ਰੇਮ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ,
ਉਸ ਵਿੱਚੋਂ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਖੋਜਣਾ,
ਤੇ ਸੰਵੇਦਨਾ ਨੂੰ ਜਗਾ ਪਾਉਨਾ,
ਫੇਰ ਇੱਕ ਜਾਦੂ ਭਰੇ ਸਪਰਸ਼ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋਣਾ
ਪੈਰਾਂ ਤੋਂ ਸਿਰ ਤੱਕ
ਤਨ ਮਨ ਦਾ ਰੰਗਿਆ ਜਾਣਾ
ਆਸਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਆ।


ਪ੍ਰੇਮ ਦੇ ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਦੀ
ਪੜਚੋਲ ਕਰਨਾ
ਉਸ ਵਿੱਚੋਂ ਮੌਤ ਦੀ ਗੰਧ ਨੂੰ ਲੱਭਣਾ
ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋਇਆ ਵੀ
ਤਨ ਮਨ ਦੀ ਹਲਚਲਾਂ ਦਾ
ਅਣਗੋਲਿਆਂ ਤੇ ਅਣਕਿਹਾ ਰਹਿ ਜਾਣਾ
ਕਿਸੇ ਖੁਰਦਰੇ ਅਹਿਸਾਸ ਵਰਗਾ
ਹੁੰਦਾ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿਆ।


ਤੁਸੀਂ ਪ੍ਰੇਮ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਿਆ ਕਰੋ।
ਹਰ ਵੇਲੇ ਨਾ ਆਪਣੇ ਆਪ ਤੋਂ ਡਰਿਆ ਕਰੋ।
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਜਗ੍ਹਾ ਬਣਾ ਲਵੇਗਾ।
ਸੁੱਤੇ ਹੋਏ ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਨੂੰ ਜਗਾ ਦੇਵੇਗਾ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਭਟਕਦਿਆਂ ਹੋਈ
ਮਿਲੀ ਨਫਰਤ ਨੂੰ ਮਿਟਾ ਦੇਵੇਗਾ।
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਰਹਿਣ ਯੋਗ ਬਣਾ ਦੇਵੇਗਾ।

22/09/2008.
Joginder Singh Nov 2024
ਬਹੁਤ ਵਾਰ
ਜਦੋਂ ਵੀ ਸੋਚਦਾ ਹਾਂ ,ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤੇ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ,
ਮੈਂ ਉਲਝ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ।
ਕਾਲ ਦੇ ਹਥੋੜੇ ਦੀ ਜਦ ਵਿੱਚ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ,
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਇੱਕ ਸਿਹਰਨ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ।


ਮੇਰੀ ਨਿਗਾਹ ਵਿੱਚ,
ਮੌਤ
ਦੇਹ ਦੇ ਮੋਹ ਪਾਸ਼ ਤੋਂ
ਆਜ਼ਾਦੀ ਹੈ।

ਮੌਤ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀਆਂ ਹਲਚੱਲਾਂ ਵਿੱਚੋਂ
ਆਪਣੀਆਂ ਜੜਾਂ ਨੂੰ ਖੋਜਣਾ ਹੈ ।


ਮੌਤ ਭਰਮਾਂ ਵਹਿਮਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਮੁਕਤੀ ਹੈ,
ਇਹ ਰੱਬੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਨ ਦੀ ਜੁਗਤ ਹੈ।
ਇਹ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਵਿੱਚ ਵਿਚਰਨ ਦਾ ਇੱਕ ਅਦਭੁਤ ਮੌਕਾ ਹੈ।

ਮਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
ਜੀਵ ਕਿੱਥੇ ਜਾਂਦਾ ਹੈ,
ਕੀ ਉਹ ਆਪਣੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਦਾ
ਹਾਲ ਚਾਲ ਪੁੱਛ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ,,
ਇਸ ਬਾਬਤ ਜਦੋਂ ਵੀ ਮੈਂ
ਆਪਣੇ ਮਨ ਤੋਂ ਜਾਣਨਾ ਚਾਹਿਆ,
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਇੱਕ ਘੁੰਮਣ ਘੇਰੀ ਵਿੱਚ ਪਾਇਆ।


ਹਾਂ ,ਇਹ ਵੀ ਸੱਚ ਹੈ ਕਿ
ਆਤਮਾ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਵਿੱਚ ਘੁੰਮਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ।
ਸਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਦਾ ਸੱਚ ਹੈ ਕਿ
ਮੌਤ ਸਾਨੂੰ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ ।
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