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અમને બચાવવા આવ

સાઉ સડી ગયું છે આપણું ન્યાય અને સરકારી તંત્ર

દેખાય છે એક સાધારણ નાગરિકને ઠેર ઠેર ષડયંત્ર

ચારે કોર દગો ફટકો, બેસુંરું થઈ ગયું છે જીવન નું વાજિંત્ર

આં સાઝોની મરમમત કરવા માટે, ક્યાંથી લાવું હું કોઈ એવું મંત્ર

અમને બચાવવા તું જલ્દી આવ, ખતરામાં છે ભારતનું ગણતંત્ર

સતત પતન થઈ રહ્યો છે નીતિ રીતિનો દેશમાં; મોંઘવારી પણ છે સર્વત્ર

ભારત માતા કરે છે વિલાપ; ફેલાઈ રહી છે કુટેવો, કુટનીતિ, રચાય છે ષડયંત્ર

તારા સિવાય પ્રજા જાય ક્યાં, જડતો નથી કોઈ પણ ઉપાય; આપ કોઈ યોગ્ય મંત્ર

Armin Dutia Motashaw
भक्ति

वृद्धावस्ता में हो जाती है जब क्षीण मानव की सारी शारीरिक शक्ति;

तब पल पल काम आती है उसे, उसकी सालों से की हुई भक्ति

हम कितने भी हो व्यस्त भगवंत, देना हमें भक्ति के लिए, थोड़ीसी शक्ति

और देना श्रद्धा और सबुरी, ता की कर सकें हम तनमन से भक्ति

आयुष्य हो जितना भी, तह दिलसे कर सके भक्ति, इतनी देना दाता हमे शक्ति

शरीर को अब लगने लगी है अशक्ति, पर देखना, इस लिए कम न हो जाये हमारी भक्ति

Armin Dutia Motashaw
कवि

एक कवि या कवियत्री की कल्पना का साकार विवरण, लिखित रूप, है कविता

uकभी दर्द स्याही में ढाल देता है कवि, वो दर्द जो उसके दिल पर है बिता;

या तो करता है वर्णन की, वो किसिपे दिल है हारा, या किसीका दिल उसने है जीता !

मधुर वर्णन हो किसीका, या दुखभरी हो दास्तान कविके दिल की; होती है कविता में संवेदना

कहते है कलम में बहुत है ताकत, पन्ने पे स्याही बोल उठती हैं, उनमे छिपी हुई वेदना

कवि का कटाक्ष, उसकी कलम हमे सिखाती है औरोके मन को, किस तरह से भेदना

धन्य है वो कवि जो बता सके सच्ची नेक राह पर कैसे चलना; या फिर मन के भीतर झाँकना

वो सीखा देता है इतने सारे घोडोको, बिना कोई लगाम, नियंत्रण में रखते हुए कैसे हांकना

कवि तो जानता ही है बिना घूंघट उठाये, मुखडेको, नजरोसे, शब्द बाणोंसे कैसे ताकना

सही कहा है किसीने जहाँ पहुचता नहीं रवि, वहाँ, मानव-मन के भीतर, पहोचता है कवि।

Armin Dutia Motashaw
एक कहानी

सुनी होगी आपने कहानियां तो बहुत सारी, काल्पनिक, दिलचस्प, रसीली अनेक

पर आज की कहानी जुड़ी है हमारे जड़ो के साथ, विशाल घटादार पेड़ था एक;

बच्चे उसकी छांव में खेलते थे, बूढ़े लड़ाते थे गप्पे, कभी न कभी बैठा था, हरेक

जीवनभर, बहुत पत्थर झेले थे उस पेड़ने, स्वादिष्ट आम लगते थे जो उस पर

कच्चे आम, खट्टे और मसाले के साथ, लगते थे चटपटे; मझे लेता था अचार का, हर घर

और जब वो पक जाते तो आमरस खाते थे बच्चे और बूढ़े; जाता था पेट भर

एक दिन अचानक उसको काटने आ गए कुछ लोग; नया रास्ता बनाने वाली थी सरकार

इस मुद्दे पर बहुत सारे लोगोंने इस बात का विरोध किया, बार-बार, लगातार

जब कुछ न हुआ तो तय हुआ हम अपनाएंगे गांधीजी की रीत, अहिंसा और असहकार।

मंत्रणा हुई अनेक, बैठके हुई बहुत सारी; अब मामला हो गया था सचमें संगीन

" हम पेड़को न छोड़ेंगे अकेला"; लोगोंने बनाये चार दल, तय हुआ हर दल पहरा देगा छे घंटे, रातदिन

लोकशक्ति जीती, झुकना पड़ा सरकारको, बच गया पेड़; साबित हुआ, कुछ हांसिल नहीं होता, सहकार बिन ।

तो चलो हम आजसे पेड़ नही काटेंगे, नहीं किसीको काटने देंगे ।

Armin Dutia Motashaw
प्यासी धरती करे पुकार

धूपमें तप के हो गई हूं मैं, जलता हुआ अंगार; कहे बिचारि यह धरा

चाहिए अब मुझे ठंडी ठंडी बौछार, और श्रृंगार सुंदर और हरा

नदियाँ हो रही है मेरी खाली, और सागर  पानी से खूब है उभरा

सालभरकी प्यास बुझाने मेघराजको मैंने है, किया पुकार

आकाशको की है मिन्नतें हज़ार, जी भरके खोल दे आज तेरे द्वार

जी भर के मुझपे बरसना आज, सुन ले, इस धरतिने है तुझे पुकारा

ऐ हवा, लाना तू  बदरीयां काली, ओ बदरी बरसा जा जल की धारा

आत्मा है मेरी प्यासी, तृप्त कर दे तू मुझे आज, कर दे मुझे हरा, ओ मेरे यारा

झूम झूमके बरस, प्यासी धरती आज करती है तुझे अंतरमनसे पुकार

बरसना होगा अब तुझे, तन मन है मेरा प्यासा, निभाना होगा तुझे वादा-ए- प्यार

मेरा अंतर है प्यासा, तुझे बरसना होगा यहाँ, निभाना चाहती हूं मैं यह व्यवहार

याद रखना सदा यह बात, प्यार तो आखीर प्यार है, नही कोई व्यापार ।

Armin Dutia Motashaw
राधिका रोये

मैं हूं वो सीप, बिना एक भी कीमती मूल्यवान मोती;

धुंधली पड़ गई है मोती सारते हुए अब मेरे नैननकी ज्योति

मोती आँखोने मेरी, तेरी याद में, न जाने कितने बहाये

तेरे इंतज़ार में मैंने न जाने कितने साल है गवांए

मोती मेरे बन गए है पानी, कीमत इनकी तूने न पहेछानी

दिलका दर्द जो मोती बनके बहा, उस दर्दकि कदर तूने न जानी

क्या कहूं तुझे, तू तो है अब एक राजा, ओ मेरे मथुरावासी !

कब मिलोगे मुझे तुम, ओ कन्हाई, राह निहारु ओ  अविनाशी !

Armin Dutia Motashaw
Death comes to each of us, sparing none, to one n all

We for ourselves or our dear ones, death cannot stall

It's impossible to play this football match; one cannot pass on the ball.

However great a doctor is, a soul he can never reinstall

So finally, when a dear one passes away; into depression we may fall.

This perhaps is a re-awakening for us, a Heavenly alarm or a call

Our subconscious mind we have to stir n awaken; so that happily we enter Ahura's hall

Armin Dutia Motashaw
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