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May 4
अपनी मातृ भाषा में
क्रिकेट कमेन्ट्री सुनकर मज़ा आ गया !
इसका लुत्फ़ हंसी-मज़ाक से भी ज़्यादा आया !!
अब जब भी मन करेगा मैं इस खेल की
कमेन्ट्री हरियाणवी में सुनूंगा।
अपने भीतर खुशियां लबालब भरूंगा।
यदि आप हिंदी और हरियाणवी को समझते हैं
तो खेल की कमेन्ट्री हिंदी में न सुनकर
हरियाणवी में सुन लीजिए,
अपने भीतर भरपूर प्रसन्नता भर लीजिए ।
तनिक  जीवन में उदासी को भूल कर
थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक का तड़का जीवन में लगा कर
अपनी स्वाभाविक खिलखिलाहट से दोस्ती कर लीजिए।
कम से कम थोड़े समय के लिए तनावमुक्त हो लीजिए।
इस जीवन में हंसी मज़ाक,
ठहाकों  और कहकहों का आनन्द अवश्य लीजिए।
यही नहीं अपने जीवन की कमेन्ट्री भी  
कभी कभी खुद किया कीजिए।
ज़िन्दगी को जिन्दादिली से जीने का तोहफा दीजिए।
०४/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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   Shambhavi
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