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May 2
अब कभी किसी से
मिलने का मन करता है ,
तो उससे मुलाकात करने का
सबसे बढ़िया ढंग
दूरभाष
या फिर
मोबाइल फोन से
वार्तालाप करना है।

मुलाकात आजकल
संक्षिप्त ही होती है ,
मतलब की बात की ,
अपना पक्ष रखा
और अपनी राह ली।

पहले आदमी में
आत्मीयता भरी रहती थी ,
अब जीवन की दौड़ धूप ने
आदमी को अति व्यस्त
कर दिया है ,
उसे किसी हद तक
स्वार्थी बना दिया है ,
मतलबपरस्ती ने
आदमी के भीतर को
नीरसता से भर दिया है ,
और जीवन में
मुलाकात के आकर्षण को
लिया है छीन।
मिलने और मिलाने के
जादू को कर दिया है क्षीण।
आदमी अब मुलायम करने से
बहुधा बचना चाहता है।
ले देकर पास उसके बचा है यह विकल्प
मन किया तो मोबाइल फोन पर
बतिया लिया जाए।
दर्शन की अति उत्कंठा होने पर
वीडियो कान्फ्रेंसिंग से
संवाद रचा लिया जाए।
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा होय , की तर्ज़ पर
घर बैठे बैठे बिना कोई कष्ट उठाए
बगैर अतिथि बने
मुलाकात कर ली जाए
और हाल चाल पूछ कर
अपने जीवन में
दौड़ धूप कर
अपनी उपस्थिति दर्ज की जाए।
मुलाकात आजकल
सिमट कर रह गई है ,
जीवन की अत्याधिक
दौड़ धूप
मनुष्य की
समस्त आत्मीयता को
खा गई है।
इस बाबत अब
क्या बात करूं ?
मन के आकाश में
उदासीनता की बदली
छाई हुई है।
मुलाकात की चाहत
छुई-मुई सी हुई ,हुई
मुरझाई और उदास है।
जाने कहां गया
जीवन में से मधुमास है ?
फलत: जीवन धारा
लगने लगी कुछ उदास है !
अब लुप्त हुआ हास परिहास है !!
०२/०५/२०२५.
Written by
Joginder Singh
65
 
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