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Apr 26
मैं हूँ सनातनी
नहीं चाहता कभी भी
कोई तनातनी।

मेरा धर्म कर्मों के
हिसाब किताब पर आधारित है,
यह  भी माना जाता है
जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है।
हम सब
जिन में
अन्य धर्मों के
मतावलंबी भी शामिल हैं ,
इस जीवन में
आध्यात्मिक उन्नति के लिए
आए यात्री मात्र हैं ,
जो अपने कर्मों में
सुधार करने के निमित्त
स्वेच्छा से आए हैं,
ये कतई जबरन नहीं लाए गए हैं।
यह बेशक मृत्युलोक है,
पर कर्म भूमि भी है।
इस जन्म के कर्म  
अगले जन्म का आधार बनते हैं।
इसी सिलसिले को सब आगे बढ़ाते हैं।
कभी हम उन्नति करते हैं
और कभी पतन का शिकार बनते हैं।
यह जन्मों का सिलसिला
हमारी आध्यात्मिक उन्नति पर
जाकर रुकेगा ,
तभी ईश्वरीय चेतना का हिस्सा
आत्मा बनेगी ,
उसे मुक्ति मिलेगी
अर्थात् चेतना परम चेतना में
समाहित होकर मोक्ष को होगी प्राप्त ,
जन्म मरण से मुक्ति मिलेगी।
पर इस क्षण
बहुत सी नव्य आत्माएं
अपनी यात्रा को
शुरू कर रहीं होंगी।
यह एक अद्भुत स्थिति है,
जिससे गुजरना कण कण की नियति है।
ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ एनर्जी
अर्थात् ऊर्जा का रूपांतरण ही तो
सृष्टि का खेल है।
सब का पिता
ईश्वर या अल्लाह है।
एक ही है परम चेतना ,
जिसे इस्लाम ,ब्रह्मवादियों,अन्य मतावलंबियों ने माना है।
हम सनातनी द्वैत और अद्वैत की बात करते हैं
तो बस इसलिए कि
हम भी एक ईश्वरवादी हैं,
पार ब्रह्म की बात करते करते
हम समय की धारणा को भी
अपने भीतर पाते हैं,
यह दशावतार के रूप में
जीवन के विकास क्रम को समझाने
लगता है हमें।
अनेक अवतार बस जीवनोत्सव के
प्रतीक भर हैं।
कुछ अन्य मतावलंबी इसे
अनेक ईश्वर वाद से जोड़ कर
हमें अपना विरोधी समझते हैं।
हम भी एक सत्ता के उपासक हैं
पर थोड़ा हट कर।
जल से जीवन उत्पन्न हुआ,
ईश्वर मत्स्यावतार के रूप में दिख पड़ा।
जैसे जैसे चेतना विकसित हुई ,  
उसी क्रम में अन्य अवतार भी अनुभूत हुए।
राम और कृष्ण , महावीर और बुद्ध ,हमारी चेतना में एक ही हैं।
वे महज अलग अलग समय में
मानवता के प्रतिनिधि भर रहे हैं।
उनके भीतर ईश्वरीय चेतना के कारण उनकी आराधना होती है।
यही नहीं गुरु नानक से लेकर दशमेश गुरु गोविंदसिंह में भी
उस एकेश्वरवादी परम सत्ता के दर्शन होते हैं।
इसी आधार पर निर्गुण और सगुण की उपासना हो रही है ।
देखा जाए तो वैचारिक धरातल पर परमसत्ता एक ही है।
सभी इस सत्य को समझें तो सही।
हमारे यहां कोई भेद भाव नहीं।
हम सनातनी हैं ,
शाश्वत सच की बात करते हैं ।
हमारा आहार व्यवहार
कार्य कारण पर आधारित हैं ,
हमारे ऋषि मुनि हवा में तीर नहीं छोड़ते।
उनके पास हरेक परंपरा का एक आधार है।
यही नहीं यदि कोई बौद्धिक प्रखर चेतना हमें पराजित कर दे ,
तो हम उसके चिंतन को भी मान्य करते हैं।
यही कारण है कि हमारी चेतना सदैव सक्रिय रही है ,
इसमें हरेक मजहब ,धर्म को स्थान देने की परंपरा रही है।
यदि हम पर जबरन धर्म या मजहब थोपने की किसी ने कोशिश की है
तो प्रतिरोध क्षमता भी भीतर भरपूर रही है।
हम महा बलिदानी और स्वाभिमानी रहे हैं।
हम सनातनी चेतना के साथ सदैव आगे बढ़े हैं।
हमारे चेहरे मोहरे काल सरिता में बह रही महाचेतना ने गढ़ें हैं।
तर्क चेतना के बूते कोई भी हम पर विजय पा सकता है ,
कोई शक्ति और तलवार के दम पर हमें बांधना और साधना चाहे, यह स्वीकार्य नहीं।
हम सनातनी प्रतिरोध के लिए भी खड़े हैं, एकजुट होने को उद्यत।


बेशक हम विनम्र हैं,
हम अपने हालात को
अच्छे से समझते हैं,
अस्तित्व की खातिर
हम सब सनातनी
आगे बढ़ने को हैं तत्पर।
एकजुटता से क्या हो सकता है बेहतर ?
इस की खातिर त्याग करना गए हैं सीख।
हम नहीं बने रहना चाहते लकीर के फ़कीर अब।
समय के साथ साथ आगे बढ़ने के लिए मुस्तैद।
२६/०४/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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