अब तक सभी अपने अपने कर्म चक्र से बंध कर जीवन को साधे हुए हैं , आगे बढ़ने के लिए संयम के साथ स्वयं को तैयार कर रहें हैं। सभी को पता है अच्छी तरह से , जो बीजेंगे , वही काटेंगे ! यदि कर्म नहीं करेंगे , तो आगे कैसे बढ़ेंगे ! जीवन चक्र से मुक्ति की राह में अनजाने ही एक बाधा खड़ी कर लेंगे। सो सब अपनी सामर्थ्य से भरपूर काम कर रहे हैं , इस जीवन में सुख के बीज बो रहे हैं , बल्कि आगे की भी तैयारी कर रहे हैं। सनातन में कर्म चक्र सतत चलायमान है , जन्म मरण का खेल भी कर्म के मोहरों से चल रहा है। अरे मन ! इस जीवन सत्य को समझ के आगे बढ़ , कर्म करने से पीछे न हट। व्यर्थ ठाली बैठे रहने से टल। कर्म करने से न डर, मतवातर आगे बढ़। आगे बढ़ने की लगन अपने भीतर भर! इस जन्म को यों ही न व्यर्थ कर !! २३/०२/२०२५.