वैशाखी के मौके पर पर निर्भरता की बैसाखियों को तोड़। याद कर उस ऐतिहासिक क्षण को, जब धर्म बचाने को , निर्बल को सबल बनाने को, दिया था दशमेश पिता ने , इतिहास को नया मोड़ ।
समय रहा है बदल तू उसके साथ चल, न्यूटन जीवन मूल्य अपनाकर, आज आडंबर छोड़।
वैशाखी के मौके पर पर निर्भरता की बैसाखियों को छोड़ ।
किसी सरकार से, न रख कोई अपेक्षा, अपने पैरों पर खड़ा होना सीख ।
तू धरा पुत्र है, अन्नदाता है। तू क्यों मांगे भीख?
वैशाखी के मौके पर पर निर्भरता की बैसाखी छोड़।
आज निराशा छोड़कर जिसके भीतर कर्मठता भरकर जीवन को दे नया मोड़।
वैशाखी के मौके पर पर निर्भरता की बैसाखी छोड़, और समय से कर ले होड़।