Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jan 2024
आज सिमट रहा हूं
मैं अपने वजूद में
देखकर पीछे छूटा अरसा
कुछ ख्वाहिशों ने चलाया
कुछ जिम्मेदारियों का फरसा
उठा , गिरा फिर उठा
उठा पटक की वर्षा
जीत मेरे हिस्से आई
जितनी दिल फेंक को प्यार
दोस्तों से  जो कुछ सीखा
वही आचरण में है सुमार
इंतजार घरवाले करते हैं
दोस्त तो उठा लेते हैं यार
कड़वी को पी लेते दोस्त
मीठे मिला‌ दे कड़वा
मीठी -कड़वी सुनकर इनकी
हर्षित है मेरा मनवा।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
  138
 
Please log in to view and add comments on poems