Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Sep 2020
कलाई

नाजुक, अती सुंदर थी वो गोरी गोरी, फुलसी  कलाई;

गोरी गोरी और  मुलायम थी , मानो  दूध-मलाई ।

थी उसपर  सुंदर, कलात्मक मेहंदी, जो  पिया को थी भाइ,

रंग बिरंगी चूडियां थी,  उस नाजुक कलाई पर चढाई।

और वोह सोने के कंगन, अती सुंदर की थी उनपर नंगो से जदाई

सोने की पहनी थी अंगूठी उसने, हीरों से मढाई ।

कितना सुंदर मुख होगा उसका, जिसकी इतनी नाजुक है कलाई ।

काश ज़लक एक मिलती मुझे, पर घूंघट में वो थी समाई ।

Armin Dutia Motashaw
42
 
Please log in to view and add comments on poems