मन एक उड़ता पंछी होता है, उड़ते ख्वाबों का रैन बसेरा होता है, उमड़ घुमड़ कर महलती चाहतों का सबेरा होता है, जाने कितने सवालों का घेरा होता है , ये बावरा मन ना जाने कितनी बार अकेला होता है, किसी की चाहत को सोचता है किसी को यादों मे खोजता है , कभी बारिश की बूंदों मे तो कभी हवाओं मे खेलता है, ये बावरा मन ............................. कभी उड़ता आकाश मे पतंगों सा,कभी सागर की लहरों सा , कभी मुस्कान प्रेमी की तो कभी प्रेमिका के आँचल सा ढलता है , ये बावरा मन .....................................