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Aug 2020
चांदनी

बीना चांद के, जिसका कोई भी  अस्तित्व नहीं, मै हूँ वो चांदनी ।

फीकी पड़ रही हूँ, बिना तेरे ; पता है हर किसीको, चांद  के बिना कैसी चांदनी !

अमावस्यकी रात बडी ही है लम्बी, जब चांद नही, तो कहां से होगी चांदनी !

न जाने कब तक यूहीं चलेगी यह अमावस्य की रात; उदास है बिचारि चांदनी!

ऐ चांद, तरस रही है तेरे दिदार को  तेरी यह फीकी पड़ती हुई चांदनी ।

दर्शन दे ओ चांद मेरे, तरस रही है तेरे लिए, तेरी अपनी ही यह चांदनी।

बादल छाये हैं गहरे, काले और  घनेरे; आंख मिचौनी न खेल, कहती है चांदनी ।

Armin Dutia Motashaw
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