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Jul 2020
तू  बूला

हे  बंसी बजैया, भले  दुनिया तुझे पूजें ,

पर  यूह  सब को छोड़ना क्यूँ तुझे सूझे?

तेरे बिना जैसे यहाँ सब दीये है बुझे ।

क्या ठीक है यह तेरा सबको रुलाना ?

रोते हुए बृन्दावंन मे सब को छोड़कर चले जाना,

और फिर लौट के वहाँ कभी न आना ।

यशोदा मैया रोये, नंद उदास, रोये गोप गोपियां

सोच, राधिका ने कैसे यह जुदाई का जहर होगा  पिया

हर कोई तेरे वियोग में तडप तडप के है  जिया ।

तू क्यूँ बन गया ऐसा निर्मोही, निष्ठुर, नीर्दयी?

बता  जरा, उनके लिये, तेरी प्रित कहां गई ?

बेजान सी राधिका, बिरह मे, तुझ बिन है तडप रही

"आन मिलो श्याम, सुना सुना लागे नंदन वन ;

कंहिभी, कोई काम मे, किसिका लागे न  मन ।

लुट ली तुने हमारी  खुशी, बेजान है तनमन। "

बेबस राधिका को भाये न सावन का झूला;

आ, एक झलक दिखा, इतना न सब को रुला;

बंसी की धुन सुना के हमे तू फिर से एक बार बूला।

Armin Dutia Motashaw
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