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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jul 2020
तू बूला
तू बूला
हे बंसी बजैया, भले दुनिया तुझे पूजें ,
पर यूह सब को छोड़ना क्यूँ तुझे सूझे?
तेरे बिना जैसे यहाँ सब दीये है बुझे ।
क्या ठीक है यह तेरा सबको रुलाना ?
रोते हुए बृन्दावंन मे सब को छोड़कर चले जाना,
और फिर लौट के वहाँ कभी न आना ।
यशोदा मैया रोये, नंद उदास, रोये गोप गोपियां
सोच, राधिका ने कैसे यह जुदाई का जहर होगा पिया
हर कोई तेरे वियोग में तडप तडप के है जिया ।
तू क्यूँ बन गया ऐसा निर्मोही, निष्ठुर, नीर्दयी?
बता जरा, उनके लिये, तेरी प्रित कहां गई ?
बेजान सी राधिका, बिरह मे, तुझ बिन है तडप रही
"आन मिलो श्याम, सुना सुना लागे नंदन वन ;
कंहिभी, कोई काम मे, किसिका लागे न मन ।
लुट ली तुने हमारी खुशी, बेजान है तनमन। "
बेबस राधिका को भाये न सावन का झूला;
आ, एक झलक दिखा, इतना न सब को रुला;
बंसी की धुन सुना के हमे तू फिर से एक बार बूला।
Armin Dutia Motashaw
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Armin Dutia Motashaw
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