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Jun 2020
नदी मै, नीर से भरी, फिर भी मै हूँ निरंतर प्यासी

रहती है मुझे  सागर से मिलने की  इंतज़ारि और बेकरारी ।

जानू मै, मीठा है मेरा पानी, पर मिलते ही हो जाउंगी खारी;

इसी लिए छायी है मेरे कण कण में, गम्भीर उदासी ।

चाहू मै उसमें समाना, फिर, न जाने  क्यूँ, यह उदासी ?

शायद इसी लिए मै हूँ जनम जनम से प्यासी ।

Armin Dutia Motashaw
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