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Jan 2020
हमराज

दर्द मेरा, किसे मै सुनाऊं, कोई रहा न अब हमराज;

और सताने से तो, यह दुनियां, आती नहीं बाज़ !

दफ़न किए बैठे हैं हम सीने में गम, दर्दभरे राज़

देख के रह जाते है दंग, अपनी ही दुनिया के अंदाज़ !!

सीना हो रहा है छलनी; पर निकलती नहीं कोई आवाज़

घावों से भरा है जिगर, सुलग रहे है अरमान

आंसु और आहें है बेशुमार; ले के रहेगी जान

पर ऐसे भी, चाहता है कौन जीवन; खुशी से लूटा देंगे जान

दुनियां में कद्र नहीं करता कोई वफा और ईमान

दर्दभरे दिल से, निकलती है आवाज़; "अब ले ले यह जान "।

Armin Dutia Motashaw
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