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Jan 2020
ठोकर

कभी न आएंगे वो बचपन के दिन

कितना था हमें अपनो पे यकीन;

अब तो फिरते हैं अकेले, बिलकुल दिशाहीन

छोड़ कर चले गए वोह सब, बारी बारी

अब रह गए हैं सुके पत्ते और क्यारी

वक्त ने हमें जबरजस्त ठोकर है मारी ।

Armin Dutia Motashaw
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