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Jan 2020
जब आंख किसी से लगती है
तब आंख में छवि उसी की बसती है
बातें सारी उसकी कानों में गूंजती है
खिलखिलाहट हरदम सुनाई देती है
अनुराग की आग दिल में ऐसी दहकती है
सारे दरिया उसे मिटाने में असमर्थ होते हैं
किसी को कही नहीं जाती मनोदशा
क्योंकि पशोपेश में ऐसे फंसा
मन नहीं रहता खुद के पास
तन नहीं जा पाता उसके पास
नींद अब आती नहीं पल भर
बस प्यास बन जाती है नींद हर।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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         Edward and Khoisan
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