बेलन की सुनो व्यथा इसकी भी है अपनी कथा गीले आटे को आकृति देता कभी रोटी ,कभी पराठा बनाता रोटी खाकर तृप्त होते गृहिणी का गुणगान करते पर बेलन को याद नहीं करते।
जैसे ही गृहिणी का बिगड़े मिजाज सबसे पहले उसे बेलन की आए याद इस दु:ख की ना कहीं फरियाद भाई लोगों यह बात रखो याद अब बेलन बना हथियार इससे होगा अब अत्याचार अब बेलन ही रहेगा याद सोच लिया इसको करेंगे बर्बाद।
ना बेलन के बिना रोटी बनती ना बेलन चलाने वाली दाल गलती इसलिए है बस रिश्क में जीना समझो बेलन को प्रीमियम और बेलनवाली को जीवन बीमा इसी से चलता है यह जीवन कभी तेज और कभी धीमा-धीमा।।