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Nov 2019
क्या करू

कभी तो एक नज़र डाल यहां, तुझ बिन जी के क्या करू;

प्रेम की पीड़ा कब तक और कैसे मै अकेली सहुं;

तु क्या जाने जुदाई का गम, इसे मैंने है अकेले सही।

यह कैसी प्रीत, बात होठो पे आती ही नहीं

मन ही मन में रही प्रीत, कह न सकी कभी तुझे;

और तु है, के देखा ही नहीं कभी भी मुझे ।

माना तु है राधिका का, पर मैंने भी तुझे है चाहा

फिर तु इतना निर्मोही बनके,  क्यू है रहा ???

एक नज़र इधर भी डाल, देख भी जा तेरी मीरां का हाल

दिल में जलता है प्रीत का दीप; हूं मैं कितनी बेहाल

आ जाना मौत के पहले, वरना हमेशा रहेगा यह गम

जीते जी मिल न पाए पर मौत में भी न मिल पाए हम ।

Armin Dutia Motashaw
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