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Armin Dutia Motashaw
Poems
Oct 2019
साथ
साथ
नाज़ था हमें जिनपर वो धीरे धीरे, रिश्ता तोड़ चले है ।
मात पिता जिनपर हम निर्भर थे, हमें छोड़ कर चले गए हैं।
भाई बहन जिनसे था नाता दिलका, वो भी मुंह मोड़ चुके हैं
अरे , अब तो तन ने भी साथ निभाना छोड़ दिया है ;
धीरे धीरे, साथ हमारा, हमारे ही अंग छोड़ चले है ।
आंखे हो रही है धुंधली, कानभी वादा तोड़ रहे हैं।
केश सफेद हो रहे है, और आइना झुर्रियां बता रहा है ।
दांतों ने तो धोका दिया है,
टूट गए हैं; जिव्हा भी नखरे दिखा रही है।
दिल, जिगर, फेफड़े जिन्हें समजते थे हम अपने;
घुटने, हाथ पैर सब छोड़ रहे हैं साथ; दिखा रहे है जूठे सपने
इसी बात का है दर्द मुझे, छूट रहा है अपनो का साथ ।
खुद के बुड्ढे शरीर को देख कर, होता नहीं है विश्वास !
कैसे जिएंगे ऐ प्रिय जनो तुम बिन, मुश्किल न हो जाए, लेना श्वाश ।।।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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