Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Oct 2019
साथ

नाज़ था हमें जिनपर वो धीरे धीरे, रिश्ता तोड़ चले है ।

मात पिता जिनपर हम निर्भर थे, हमें छोड़ कर चले गए हैं।

भाई बहन जिनसे था नाता दिलका, वो भी मुंह मोड़ चुके हैं

अरे , अब तो तन ने भी साथ निभाना छोड़ दिया है ;

धीरे धीरे, साथ हमारा, हमारे ही अंग छोड़ चले है ।

आंखे हो रही है धुंधली, कानभी वादा तोड़ रहे हैं।

केश सफेद हो रहे है, और आइना झुर्रियां बता रहा है ।

दांतों ने तो धोका दिया है,
टूट गए हैं; जिव्हा भी नखरे दिखा रही है।

दिल, जिगर, फेफड़े जिन्हें समजते थे हम अपने;

घुटने, हाथ पैर सब छोड़ रहे हैं साथ; दिखा रहे है जूठे सपने

इसी बात का है दर्द मुझे, छूट रहा है अपनो का साथ ।

खुद के बुड्ढे शरीर को देख कर, होता नहीं है विश्वास !

कैसे जिएंगे ऐ प्रिय जनो तुम बिन, मुश्किल न हो जाए, लेना श्वाश ।।।

Armin Dutia Motashaw
55
 
Please log in to view and add comments on poems