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Aug 2019
प्रेम दीवानी

लेके इकतारा चली मीरा, गिरिधर को धुंडने गली गली

जोगन बन गई आज यह प्रेम दीवानी, थी कभी जो, एक कुंवरी मनचली

मनमे मोहन, दिल में मोहन, लेके मूर्ति बस वो चली

पर मोहन न जाने छुप गया कहां ; उसकी आश नहीं फली

राणाने सताया, उदाने परेशान किया, प्रेम प्यासिकी दुनिया जली ।

दासी बन गई अब वह, कभी कुंवारी बन के, थी जो पली ।

फूल बन गए कांटे; चुभने लगी उसे कंटक बनी हुई एक एक कली ।

मिले न इस जोगन को मोहन; धुंड रही वो उसे गांव गांव, गली गली ।

Armin Dutia Motashaw
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