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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jun 2019
अगन यह आग
अगन- यह आग
ठंडी बारिश की बूंदे; ठंडक न पहुंचाए; जगाए तन में आग
और शीतल चांदनी लगाए तन पे, चन्द्रमा वाला दाग ।
राह देखते देखते कली मुरझा रही है, उदास है सारा बाग
वो ऐसे ही मुरझाई थी, जब होली में आए न थे पिया, बीत गया था फाग
पिया का न कोई संदेश, न ठिकाना; भले का- का करता रहे काग
उसकी खुशियों का गला घोट रहा है नसीब; बन के एक जहरीला नाग ।
थक गए है नैना, राह निहारते, बढ़ती जा रही है अगन, कैसे बुझेगी यह आग ?
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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