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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jan 2019
वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम्
जाने कहां गया, आजादी का जज़्बा आज ;
चुप हो गई है, वो "वन्दे मातरम्" के नरों की आवाज़ ।
काश होता जिंदा हमारा वो जज़्बा, आजभी ;
काश गूंजती "वन्दे मातरम्" के नारों की आवाज़ भी ।
कहां गए वो आज़ादी पे मर मीटनेवाले परवाने;
खेली थी खून की होली, वो निडर मस्ताने ;
जाने कहां गया वो जज़्बा वो जुनून !
वो वीरों जिन्हें मिलता था मौत में भी सुकून ।
आज छाई है बेताबी, एक अनचाही उदासी ।
मानो अंग्रजोंने फिर एक बार, छीन लि हो, हमारी झांसी ।
लगता है, मर गई हो एक बार, फिर वो बहादुर रानी,
एक बार फिर खत्म होने को है, आज़ादी की कहानी ।
जागो ओ नवजवानों, गहरी नींद से अपनी जागो ।
जातिवाद, कोमवाद, आरक्षण के पीछे मत भागो ।
माता हमारी एक है, उसको सब मिलके बचाओ ।
सब द्वेष, सब भेद भाव मिटाके, आजसे, अभिसे, एक हो जाओ ।
वन्दे मातरम्
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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