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Jan 2019
एक रात की बात

"चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात,"
सचमे, बड़ी सच निकली यह बात ।
चांद आया था, लेके तारों की बारात,
पर, आया न कुछ भी उस बिचारे के हाथ ।
उसकी दुल्हन, आयी न उसके साथ
थामा न प्रिये ने प्रीतम का हाथ ;
होके निराश, लौट आई बारात ।
प्यार ने फिर एक बार, खाई मात ।
हे विधाता समझ में आती नहीं यह बात;
क्यों होता है यह, बिचारे प्रेमीओ के साथ ?
हंसिल होता नहीं प्यार, लग जाता है आघात ।
पूनम की आश में उसने फैलाए थे दोनों हाथ,
क्यों छा जाती है जीवन में अमावस की काली रात ?

Armin Dutia Motashaw
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