बचपन मेरा, था खुशियों से भरपूर मानो दुख तो था मुझ से, कोसो दूर पर किस्मत ने किया मज़ाक एक क्रूर अब हो गई है मेरी खुशियां मुझसे कोसों दूर ।
अब सोचने के लिए हो गया हूं मै मजबूर; मुझे मेरी खुशियों का, न घमंड था न गुरूर पता नहीं, ऐसे क्यू हुआ, मैं तो कभी न था मग्रुर । किस्मत को शायद मेरी खुशियां नहीं थी मंजूर ।