Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Dec 2018
आजा के अब, और इंतजार होता नहीं है ।
जरा सोच तु, क्या इतना तड़पाना सही है ?
सालों बीते, कितने सावन आए और गए;
हम तो बस, तेरी जुदाई में, यूंही तड़पते रह गए ।

इतना भी निष्ठुर न बन तु, ओ मोरे पिया ;
क्यों इतने सालों से तड़पाता है मोरा जिया ?
इस बिरहन को युह न सता, थोड़ा प्रेम जता ।
कब दर्शन देगा मुझे, यह तो ज़रा मुझे बता ।

Armin Dutia Motashaw
46
 
Please log in to view and add comments on poems