ओ कान्हा, तूने राधा को रुलाया; और रोई मीरा भी। ओ निर्मोही, दोनों थे तेरे चाहनेवाले; मोती, और हीरा भी। राधा के साथ रास रचाया और मीरा को बनाया रानी से जोगन, ऐसा भी क्या जादू किया तूने दोनों संग, ओ मेरे मनमोहन ! तड़प उठे दोनों तेरे प्यार में, पर जानी न तूने उनकी पिड; कब से बन बैठा तु इतना निष्ठुर; अनदेखी की तूने उनकी पीड । तु कैसे जानता उनकी तड़प; भीड़ बहुत थी तेरे आसपास । तड़प तो वो दोनो जाने, ओ द्वारकाधीश, जग करें उन पर परिहास ।