चीख चीख कर रोता है दिल मेरा, पर सुनाई जाती नहीं तुझे पुकार । ओ मानव, तु तो बन बैठा है दानव, क्यों करता है मेरा व्यापार ? मुझे और मेरे बंधुओको उखाड़ फेंकता है जड़- मूल से क्यों ओ नादान? हमारे बिना, जी न पाएगा तु और न तेरी प्रजाति, ओ पागल इनसान । कोसेंगे तुझे खुद, तेरेही बच्चे, जरा समझले और संभल जा तु, ऐ नादान। हमें काटने से मिलेगा तुझे न प्राणवायु, घुट घुट के दम तोड़ेगा तु। हमारे बिना होगी न बरसात; बूंद बूंद पानी को तरसेगा तु । सहन कर न पाएगा तु गरमी, तड़प तड़प कर बुरा होगा तेरा हाल। काटता है पेड़ आज, खुद बुन रहा है तु, अपनी ही मौत की जाल । अब तो संभल जा, बो तु बहुत सारे पेड़ और पौधे; यही काम आएंगे तुझे, न कि सोना, तेरेे पैसे, और औद्धे । वक्त यह जाए न छूट, रेत की तरह फिसलता है जो तेरे हथोसे; समय रेहते, संभल जा, गवा न दे तु उसे, व्यर्थ बातों में।