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Nov 2018
सुन ले मेरी पुकार

चीख चीख कर रोता है दिल मेरा, पर सुनाई जाती नहीं तुझे पुकार ।
ओ मानव, तु तो बन बैठा है दानव, क्यों करता है मेरा व्यापार ?
मुझे और मेरे बंधुओको उखाड़ फेंकता है जड़- मूल से क्यों ओ नादान?
हमारे बिना, जी न पाएगा तु और न तेरी प्रजाति, ओ पागल इनसान ।
कोसेंगे तुझे खुद, तेरेही बच्चे, जरा समझले और संभल जा तु, ऐ नादान।
हमें काटने से मिलेगा तुझे न प्राणवायु, घुट घुट के दम तोड़ेगा तु।
हमारे बिना होगी न बरसात; बूंद बूंद पानी को तरसेगा तु ।
सहन कर न पाएगा तु गरमी, तड़प तड़प कर बुरा होगा तेरा हाल।
काटता है पेड़ आज, खुद बुन रहा है तु,  अपनी ही मौत की जाल ।
अब तो संभल जा, बो तु बहुत सारे  पेड़ और पौधे;
यही काम आएंगे तुझे, न कि सोना, तेरेे पैसे, और औद्धे ।
वक्त यह जाए न छूट, रेत की तरह फिसलता है जो तेरे हथोसे;
समय रेहते, संभल जा, गवा न दे तु उसे, व्यर्थ बातों में।

Armin Dutia Motashaw.
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