रिश्ते हसाते भी है और रुलाते भी है बार बार पर अब तो रिश्ते ही बदलने लगे हैं लगातार। पैसे हो तो मनुष्य बन जाता है गले का हार; देख लिया, चारों ओर है व्यापार। ऐ मालिक, देखना, इन रिश्तों पे से, उठ न जाए, इस जिवका ऐतबार।
इनसान की हैसियत देखके रिश्ते बदलते हैं अपना रंग पैसा और पावर हो तो चलते हैं सब उस इंसान के संग संग। पैसा कम होते ही, रिश्तेदार बदलने लगते हैं अपना रंग; अपने हो जाते है पराए, यह देखते हो गई मै दंग।
अपने कौन और कौन पराये, यह वक्त बता जाता है पलमे हमें । दिल में तो क्या, घर में भी नहीं आने देते हैं अब हजूर तुम्हे। यह रंग बदलती दुनिया के, रंग समझ न आए हमें। जब अपनों ने ही किया पराया, तो अब हम क्या कहे तुम्हें ?