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Mohan Jaipuri Jun 2020
स्वागत बूंदाबांदी का
भीषण गर्मी में ही होता है
बरसात के बाद तो
बूंदाबांदी महत्वहीन लगती है
यह समझने में बहुत समय लगता है
कि बरसात के बाद की बूंदाबांदी
हर सजीव के जीवन में नया रस भरती है

जवानी की तपिश में भी
रूमानियत बूंदाबांदी की तरह होती है
तब पौरुष की बरसात तो घर संसार
बसाने में ही खर्च होती है
अधेड़ अवस्था ही बचती है
जिसमें कुछ रूमानियत और
कुछ रूमानियत की यादें
जीवन में उल्लास भरती हैं
बिखरते मेले की मायूसी दूर करती हैं
लेकिन यह क्या ? दुनिया इसे
सठियाना कहती है
और यह बरसात के बाद की बूंदाबांदी
की तरह गंदगी लगाने वाली लगती है
लेकिन उन्हें नहीं पता कि यही
वह बरसात के बाद की बूंदाबांदी है
जो हर सजीव के जीवन में
उल्लास भरकर नया रस बनाती है।
Mohan Jaipuri Jan 2020
गणतंत्र नाम है गौरवशाली
जिससे हर तरफ है खुशहाली
जन की सत्ता में है भागीदारी
चाहे हो पुरुष, चाहे हो नारी
सबको मिलती अपनी बारी
युवा भी रखते अपनी बात
बिना कोई रोक और दुश्वारी।

गांव, शहर,राज्य और देश
सब चुनते हैं अपनी सरकार
खड़ग,भाला, ढाल और तलवार
कभी नहीं होती इन की दरकार
ना गरीब, अमीर , अल्पसंख्यक
और बहुसंख्यक का विशेषाधिकार
सिर्फ स्वस्थ बहस और वोटिंग
यही है बस इसका आधार।

संसद में बनते कानून
समय-समय पर संशोधन
तरह तरह का होता मंथन
जिसका हो जितना प्रज्ञा चिंतन
गरीब, अमीर, धर्म ,जाति का भेद मिट जाए
बस गणतंत्र इतना और सक्षम हो जाए।।
Mohan Jaipuri Mar 2020
अभी तक बुद्धि फिरते देखी
अब हालात बदलते देख रहे हैं
      कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था
      परिवार उस पर इतराता था
          जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था
          तब बुद्धि फिरा कहा जाता था।
एक वायरस ऐसा आया
सारे रिश्तों को साफ कर गया
      यदि हो जाए कोई प्रभावित
      सब भागें हो आतंकित
       जिम्मेदारी अब बन गई भागना
       सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना
देखो यह मानवता की विडंबना
  इसे कहते हैं हालात फिरना।
कहीं बच्चे अकेले रहकर
भूख से दम तोड़ गए
      कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर
      और दब गया मौत का एक्सीलेटर
जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल
अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल
      चीज बहुत हैं दुनिया में
      लेकिन उपयोग कर नहीं सकते
          बन गया आदमी घर का कैदी
          जैसे हो कोई इसने लंका भेदी
हालात बन गया है ड्रैकुला
सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।

— The End —