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Mohan Jaipuri Sep 2024
परेशानियों के सफर में
परेशानियों का जुड़ना
धैर्यपूर्वक सतत जुझना
जिंदगी को है जवाब अपना।
नमक के डर से जख्म छुपाना
नहीं है  हुनर अपना
इतनी सच्चाई है कर्मों में
तय है जख्मों में नमक
भरने की फिराक में रहने
वालों का हाथ‌  गलना।
Mohan Jaipuri Sep 2024
नारियल प्रिंट पहनूं
नारियल पानी लाऊं
तेरे  हाथों से पीकर
किस्सा हसीन बनाऊं।

हाथों में हाथ डालकर
'बीच' किनारे टहलूं
पहलू में तेरे बैठकर
गोवा की रंगत पाऊं
वर्षों की जिंदगी की
पलों में थकान मिटाऊं
नारियल प्रिंट पहनूं.....।

हवाओं के विपरीत सही
तेरे संग नौका एक चलाऊं
पहन बरमूडा घूम-घूमकर
बचपन को फिर से बुलाऊं
चलता रह राही कहलाऊं
बैठ किनारे  ना लजाऊं
नारियल प्रिंट पहनूं ......।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
तेरी तस्वीर पर लिखते हैं
तो हम खिल उठते हैं
बिन तस्वीर लिखते हैं
तो तेरी रूह से मिल लेते हैं।
Mohan Jaipuri Sep 2024
आज मैंने जिंदगी से पूछा
मैंने अब तक क्या पाया ?
जिंदगी ने उत्तर दिया
कितना खुश किस्मत है तू
कि खोने का डर  ना रहा।
Mohan Jaipuri Sep 2024
अभियंताओं का यह स्वर्णिम काल
धरती पर रहकर आकाश में धमाल।
यात्रा तो बस एक हवाई छलांग
समुद्र हो गये मानो चोड़े एक फर्लांग।
सूरज की रोशनी के ऊर्जा प्लांट
कम्प्यूटर ही करते अंग ट्रांसप्लांट।
धरती से आकाश ,आकाश से धरती
सिग्नल के द्वारा रोज बातें करती।
युद्ध के सामान इतने हल्के फिर भी
पलक‌ झपकते शहरों को मिटाते।
मोटर, कारें, रेलें अपने आप चलते
हम सौ मंजिल ऊंचे घरों में रहते ।
मोबाइल से हम सारे काम करते
कुछ तो इससे विदेशी दुल्हन लाते।।
Mohan Jaipuri Sep 2024
मातृभूमि और मातृभाषा
असली जीवन की परिभाषा
अ अनार से श शंख तक
इसमें छिपी है हमारी गाथा।
अमर, अकबर, एंथनी
बोलने में भेद न करते
घर सबके एक जैसे होते
रहते गले लगते-लगाते ।
राजशाही और प्रजातंत्र में
हुकुम और श्रीमान बोलते
मिशाइलमैन को कलाम,
चांद खटोले को चंद्रयान बोलते
उसमें ही हम पहचान टटोलते।
कहीं राजनीतिवस
कुछ लोग एहतियात बरतते
फिर भी सूकून दिल्ली को
दिल्ली बोलकर ही पाते।
साड़ी, धोती और अंगोछा
पहन कर जीये सारे पुरोधा
हिंदी में आशीर्वाद लेकर
कुछ बने‌‌ हैं 'नोबल' विजेता।
Mohan Jaipuri Sep 2024
गोरा मुखड़ा काली जुल्फें
आंखें तीर-कमान हैं
गुलाबी होंठों की रंगत से
डिग रहा मेरा ईमान है।
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