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Joginder Singh Nov 2024
आज
मैं अपने
परम प्रिय
मित्र और पुत्र
विनोद के घर में हूं ।

कल
मेरे परम आदरणीय,आदर्श अध्यापक,
मार्गदर्शक,
प्रेरणा पुंज,
अध्ययनशील
कुंदन भाई साहब जी की
अंत्येष्टि में
शामिल होना पड़ा।  
अधिक देर होने की वजह से
एक आदर्श परिवार में रात बितानी पड़ी है।

आधी रात को
नींद उचट जाने के कारण
जग रहा हूं,
विनोद और उसके परिवार की
बाबत सोच रहा हूं ।
उन दिनों   जब मैं संकटग्रस्त था
नौकरी के दौरान
सहयोगियों के
अहम् और षड्यंत्र का
शिकार बना था,
फलत:
मेरा तबादला  
एक दूरस्थ, पिछड़े इलाके में
किया गया था,
वहां मेरा मन इतना रमा था कि
नौकरी के
अधिकांश साल
उस गांव टकारला को दे दिए थे।
वहीं मुझे मास्टर कुंदन लाल,
विनोद कुमार और ... बहुत सारे जीवनानुभव हुए ।
आदर्श अध्यापक और  आदर्श परिवार की बाबत
जीवन के धरातल पर
समझने का
सुअवसर मिला।

इस परिवार में
अब पांच जीव हैं,  
पहले से कुछ कम,

जीवन के  उतार चढ़ाव ने
कुछ सदस्यों को काल ने
अपने भीतर समा लिया,
इस परिवार को   कष्ट उठाने पड़े ,
आज यह परिवार
एक आदर्श परिवार
कहलाता है,
कारण ...

सभी सदस्यों के मध्य
परस्पर तालमेल है,
वे आपस में कभी लड़ते नहीं,
धन का अपव्यय
करते नहीं,
अन्याय के  खिलाफ डटे रहते हैं।
पति पत्नी , दोनों
तीनों बच्चों को सुशिक्षित
बनाने के लिए
दिन रात
कोल्हू के बैल बने
चौबीसों घंटे मेहनत करके
जीविकोपार्जन करते हैं
और मुझ जैसे अतिथियों का
खिले मन से स्वागत करते हैं ।
ऐसे परिवार ही
देश, समाज, दुनिया को
समृद्ध करते हैं,
वे कर्मठता की मिसाल बन कर
जीवन में टिकाव लेकर आते हैं।
हमारी धरती स्वर्ग सम बने,
सुख की चादर सब पर तने, जैसे आदर्शों को
व्यावहारिक बनाते हैं।
ऐसे परिवार
संक्रमण काल की इस दुनिया में
कभी राम राज्य भी बनेगा,
सतत् इस बाबत आश्वस्त करते हैं।
आदर्श परिवार निर्मित करने की परिपाटी चला कर
राष्ट्र आगे बढ़ते हैं।
Joginder Singh Nov 2024
आप अक्सर जब
निस्वार्थ भाव से,
अपने प्रियजनों का
पूछते हैं कुशल क्षेम,
तब आप के भीतर
विद्यमान रहता है
प्रेम का सच्चा स्वरूप ।

उसे दिव्यता से जोड़ने पर
मन मन्दिर में
उभरता है
भक्ति की अनुभूति का
सम्मोहक स्वरूप।

और
यही भाव
लौकिकता से
जुड़ने पर  ले लेता है
अपना रंग रूप स्वरूप
कुछ अनोखे अंदाज में
जो होता है
प्रायः आकर्षण से भरपूर।
यहीं से सांसारिक सुख समृद्धि ,
लाड़, प्यार, मनुहार जैसी
भाव सम्पदा से सज्जित
जीवनाधार की शुरुआत होती है,
जहां जीवन हृदय में
कोमल भावनाओं के प्रस्फुटन के रूप में
पोषित, पल्लवित, पुष्पित, प्रफुल्लित होता है।

ऐसी मनोदशा में
प्रेम की शुद्धता और शुचिता का आभास होता है।
यहां 'प्रेम गली अति सांकरी' रहती है।
और जब इस शुचिता में सेंध लग जाती है,
तब यह प्रेम और प्यार का आधार
विशुद्ध वासना और हवस में बदल जाता है।
स्त्री पुरुष का अनुपम जोड़ा भटकता नज़र आता है।
इसके साथ साथ यह अन्यों को भी भटकाता है।
प्रेम, प्यार,लगाव के अंतकाल का , शीघ्रता से ,
घर, परिवार,देश, समाज और दुनिया जहान में ,
आगमन होता है,साथ ही नैतिकता का पतन हो जाता है।
३०/११/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
अगर तुम्हें
इंसाफ़ चाहिए
तो लड़ने का ,
अन्याय से
बेझिझक
जा भिड़ने का
कलेजा चाहिए ।
मुझे नहीं लगता
कि यह तुम में है ।
फिर तुम
किस मुंह से
इंसाफ़ मांगती हो ?
अपने भीतर
क्यों नहीं झांकते हो ?
क्यों किसी इंसाफ़ पसंद
फ़रिश्ते की राह ताकते हो ?
तुम सच की  
राह साफ़ करो।
जिससे सभी को
इंसाफ़ मयस्सर हो।
दोस्त , इस हक़ीक़त के
रू-ब-रू  हो तो सही।
सोचो , तुम किसी
फ़रिश्ते से यक़ीनन कम नहीं।

१७/०१/२०१७.
77 · Dec 2024
Passionate Life
Joginder Singh Dec 2024
Only  passionate life
Can survive on earth ,
it has  too some extent  
worth and
a meaningful existence.
76 · Nov 2024
Before Blast
Joginder Singh Nov 2024
Why you have remind him his forgotten past?
He has dissatisfaction regarding his past life.
If he derailed himself from present life, soon he can act like a bomb and blast.
Blasts of dissatisfaction, frustrated youth,poverty, corruption, unemployment, destructive activities is silent today.
But the situation goes out of control, blasts can be heard in reality also.तुमने उसे उसका भूला हुआ अतीत क्यों याद दिलाया?वह अपने पिछले जीवन को लेकर असंतुष्ट है।यदि वह वर्तमान जीवन से खुद को पटरी से उतार ले, तो जल्द ही वह बम की तरह काम कर सकता है और विस्फोट कर सकता है असंतोष, कुंठित युवा, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, विनाशकारी गतिविधियों के धमाके आज शांत हैं, लेकिन स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है, धमाके वास्तविकता में भी सुने जा सकते हैं।
76 · Nov 2024
छप्पन भोग
Joginder Singh Nov 2024
देवों को,देवियों को,
छप्पन भोग लगाने का
जीवन के मन मंदिर में
रहा है चलन।
उसका वश चले
तो वह फास्ट फूड को भी
इसमें कर ले शामिल।
वह खुद को नास्तिक कहता है,यही नहीं अराजक भी।
वह जन संवेदना को नकार
बना बैठा है एहसासों का कातिल।
जो दुनिया भर पर कब्जा करना चाहता है।
भविष्य का तानाशाह होना चाहता है।
वह कोई और नहीं, तुम्हारे ही नहीं, सब में मौजूद
घना अज्ञान का अंधेरा है।
इससे छुटकारा पा लोगे
तो ही होगा ज्ञान का सूरज उदित।
मन भी रह पाएगा मुदित।
आदमी के लिए
छप्पन भोग
फास्ट फूड से छुटकारा पा लेना है।
देखिए,कैसे नहीं ,उसकी सेहत सुधरती?
लुच्चे को अच्छी लगती है
अय्याशी।
यह वह राह है
जहां आदमी क्या औरत
सीख ही जाता
करना बदमाशी।
आज कल गलत रास्ते पर
लोग
देखा-देखी
चल पड़ते हैं ,
बिन आई मौत को
जाने अनजाने
चुन लेते हैं ,
अचानक
गर्त में गिर पड़ते हैं ,
किरदार को
भूल कर
अपने भीतर का
अमन चैन गंवा दिया करते हैं।
वे दिन रात नंगे होने से ,
भेद खुलने से
हरदम डरते हैं।
नहीं पता उन्हें कि
कुछ लोग मुखौटा पहने हुए
उन्हें नचाते हैं ,
उन्हें भरमाते हैं।
वे सहानुभूति की आड़ में
चुपचाप हर पल शोषण कर जाते हैं।
अच्छा है
जीवन में
कभी कभी
बेहयाई की चादर ओढ़ लो
ताकि जीवन भर
कठपुतली न बने रहो
और
देर तक शोषित व वंचित न बने रहो।
कम से कम अपना जीवन
अपनी शर्तों पर जी सको।
यूं ही पग पग पर न डरो।
कभी तो बहादुरी से जीओ।
दोस्त ,
यदि संभव हो तो
अय्याशी से बचो ,
अपनी संभावना को न डसो
क्यों कि
आदमी को
एक अवगुण भी
अर्श से
गिरा देता है ,
उसकी हस्ती को
फर्श पर पहुंचा देता है।
यह नाम ,पहचान ,वजूद को
मिट्टी में मिला देता है।


०६/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
खाक अच्छा लगता है
जब अचानक बड़ा धक्का लगता है
भीड़ भरे चौराहे पर
जिंदगी यकायक अकेला छोड़ दे !
वह संभलने का मौका तक न दे!!
पहले पहल आदमी घबरा जाता है ,
फिर वह संभल कर,
आसपास भीड़ का अभ्यस्त हो जाता है,
और खुद को संभालना सीख जाता है।
जिंदगी दिन भर तेज रफ्तार से भाग रही है।
आदमी इस भागम भाग से तंग आ कर
क्या जिन्दगी जीना छोड़ दे ?
क्यों ना वह समय के संग आगे बढ़े!
आतंक के साए के निशान पीछे छोड़ दे!
जब तक जीवनधारा नया मोड़ न ले !
जिंदगी की फितरत रही है...
पहले आदमी को भंवरजाल में फंसाना,
तत्पश्चात उसे नख से शिखर तक उलझाना।
सच यह है... आदमी की हसरत रही है,
भीतर के आदमी को जिंदादिल बनाए रखना।
उसे आदमियत की राह पर लेकर जाना।
थके हारे को मंज़िल के पार पहुंचाना।
बड़ा अच्छा लगता है ....
पहले पहल आदमी का लड़खड़ाना,
फिर गिरने से पहले ही, खुद को पतंग सा उठाना
....और मुसीबतों की हवा से लड़ते हुए ... उड़ते जाना।
१५/०२/२०१०.
Joginder Singh Nov 2024
कोई
बरसात के मौसम की तरह
बिना वज़ह
मुझ पर
बरस गया।
सच! मैं सहानुभूति को
तरस गया,
यह मिलनी नहीं थी।
सो मैं खुद को समझा गया,
यहाँ अपनी लड़ाई
अपने भीतर की आग़ धधकाए रख कर
लड़नी पड़ती है।

अचानक
कोई देख लेने की बात कर
मुझे टेलीफ़ोन पर
धमकी दे गया।
मैं..... बकरे सा
ममिया कर रह गया,
जुर्म ओ सितम सह गया।
कुछ पल बाद
होश में आने के बाद
धमकी की याद आने के बाद
एक सिसकी भीतर से निकली।
उस पल खुद को असहाय महसूस किया।

जब तब यह धमकी
मेरी अंतर्ध्वनियों पर
रह रह हावी होती गई,
भीतर की बेचैनी बढ़ती गई।

समझो बस!
मेरा सर्वस्व आग बबूला हो गया।

मैंने उसे ताड़ना चाहा,
मैने उसे तोड़ना चाहा।
मन में एक ख्याल
समय समंदर में से
एक बुलबुले सा उभरा,
...अरे भले मानस !
तुम सोचो जरा,
तुम उससे कितना ही लड़ो।
उसे तोड़ो या ताड़ना दो।
टूटोगे तुम ही।
बल्कि वह अपनी बेशर्म हँसी से
तुम्हे ही रुलाएगा और करेगा प्रताड़ित
अतः खुद पर रोक लगाओ।
इस धमकी को भूल ही जाओ।
अपने सुकून को अब और न आग लगाओ।
वो जो तुम्हारे विरोध पर उतारू है,
सिरे का बाजारू है।
तुम उसे अपशब्द कह भी दोगे ,तो भी क्या होगा?
वो खुद को डिस्टर्ब महसूस कर
ज़्यादा से ज़्यादा पाव या अधिया पी लेगा।
कुछ गालियां देकर
कुछ पल साक्षात नरक में जी लेगा।

तुम रात भर सो नहीं पाओगे।
अगले दिन काम पर
उनींदापन झेलते हुए, बेआरामी में
खुद को धंसा पाओगे।

यह सब घटनाक्रम
मुझे अकलमंद बना गया।

एक पल सोचा मैंने...
अच्छा रहेगा
मैं उसे नजरअंदाज करूँ।
खुद से उसे न छेड़ने का समझौता करूँ ।
यूं ही हर पल घुट घुट कर न मरूं ।
क्यों न मैं
उस जैसी काइयां मानस जात से
परहेज़ करूँ।
२७/०७/२०१०.
E
76 · May 10
काल चक्र
योगेश्वर कृष्ण का
सुदर्शन चक्र
युद्धभूमि में
काल चक्र बन कर
सब को नियंत्रित करता रहा है।
आप कहेंगे कि
महाभारत के युद्ध में
उन्होंने हथियार उठाया नहीं।
क्या यह सही नहीं ?
बेशक
उन्होंने हथियार उठाया नहीं।
मन के भीतर
जोड़ घटाव गुणा तकसीम कर
उन्होंने काल चक्र को
अपने ढंग से
नियंत्रित किया था।
सारथी बने योगेश्वर ने
अर्जुन को रथ से उतार
अभय दान दिया था ,
जब रथ भस्म हुआ था।
काल चक्र को
हर युग में
परम चेतना ने
मानव रूप में जीया है ,
तभी जीवन ने
नित्य नूतन आयाम छुए हैं।
सब हरि लीला से
चमत्कृत हुए हैं।
११/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
अब अक्सर
भीतर का चोर
रह रहकर
चोरी को उकसाता है,
शॉर्टकट की राह से
सफलता के स्वप्न दिखाता है
पर...
विगत का अनुभव
रोशन होकर
ईमानदार बनाता है।
वह
चोरी चोरी
चुपके चुपके
हेरा फेरी के नुकसान गिनाता है!
अनुशासित जीवन से जोड़ पता है!!



भीतर का चोर
अपना सा मुंह लेकर रह जाता है।
बावजूद इसके
वह शोर मचाता है ,
देर तक चीखता चिल्लाता है।
अंतर् का चोर
भीतर की शांति भंग करना चाहता है।
जब उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है,
तब वह थक हार कर सो जाता है।
अच्छा है वह सोया रहे,
भीतर का चिराग जलता रहे ,
जीवन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहे!
बाहर भीतर चिंतन व्यापा रहे!
मन के भीतर सदैव शांति बनी रहे!
अंतर्मन में शुचिता बनी रहे!!
अंतर्मन का चोर सदैव असफल रहे।
शब्द ब्रह्म का मूल है
पर यही शब्द
बिना विचारे प्रयुक्त हो
तो कभी कभी
लगने लगता है
अपशब्द !
जो कर देता है
अचानक हतप्रभ !
आदमी एकदम से
भौंचक्का रह जाता है।
उसे पहले पहल
कुछ भी समझ
नहीं आता है ,
जब भी समझ आता है,
वह खिन्न नजर आता है।
लगता है कि उसे अचानक
किसी ने चुभो दिए हों शूल।
शब्द अपने मंतव्य को
ठीक से व्यक्त कर दे ,
बस इसे ध्यान में रखकर
शब्द को प्रयुक्त कीजिए।
बिना विचारे इस शब्द ब्रह्म का
इस्तेमाल भ्रम फैलाने के लिए
हरगिज़ हरगिज़ न कीजिए।
इसे सोच समझकर प्रयुक्त करें ,
ताकि यह भूले से भी कभी
अपशब्द बनता हुआ न लगे !
आदमी को चाहिए कि
ये सदैव मरहम बनकर काम करें!
बल्कि ये अशांत मानस को
शीतलता का अहसास करा कर शांत करें।
२८/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
बेटियों का श्राप
कोई बाप
अपनी नवजात बेटी को मार कर,
उसे गंदे नाले में फैंककर
चल दे बगैर किसी डर के
और बगैर शर्मोहया के करें दुर्गा पूजन ।
तो फिर क्यों न मिले ?
उसे श्राप
उस नन्ही मृतक बिटिया का ?
कोई पिता
ठंड के मौसम में
छोड़ जाएं अपनी बिटिया को,
मरने के लिए ,
यह सोचकर
कि कोई सहृदय
उसे उठाकर
कर देगा सुपुर्द ,
किसी के सुरक्षित हाथों में !
और वह
कर ही लेगा
गुज़र बसर ।
ताउम्र गुज़ार लेगा
ग़रीबी में ,
चुप रहकर
प्रायश्चित करता हुआ।
पर
दुर्भाग्यवश
वह बेचारी
'पालना घर' पहुंचने से पहले ही
सदा सदा की नींद जाए सो
तो क्यों न !
ऐसे पिता को भी
मिले
नन्ही बिटिया का श्राप?

सोचता हूं ,
ऐसे पत्थर दिल बाप को
समय दे ,दे
यकायक अधरंग होने की सज़ा।
वह पिता
खुद को समझने लगे
एक पत्थर भर!

चाहता हूं,
यह श्राप
हर उस ‌' नपुंसक ' पिता को भी मिले
जो कि बनता है  पाषाण हृदय ,
अपनी बिटिया के भरण पोषण से गया डर ।
उसे अपनी गरीबी पहाड़ सी दुष्कर लगे।

कुछ बाप
अपनी संकीर्ण मानसिकता की वज़ह से
अपनी बिटिया के इर्द गिर्द
आसपास की रूढ़िवादिता से डरकर
नहीं देते हैं
बिटिया की समुचित परवरिश पर ध्यान,
उनको भी सन्मति दे भगवान्।

बल्कि
पिता कैसा भी हो?
ग़रीब हो या अमीर,
कोई भी रहे , चाहे हो धर्म का पिता,
उन्हें चाहिए कि
वे अपनी गुड़ियाओं के भीतर
जीवन के प्रति
सकारात्मक सोच भरें
नाकि
वे सारी उम्र
अपने अपने  डरों से डरें ,
कम से कम
वे समाज में व्याप्त
मानसिक प्रदूषण से
स्वयं और बेटियों को
अपाहिज तो न करें।


चाहता हूं,
अब तो बस
बेटियां
सहृदय बाप की ही
गोद में खिलें
न कि
भ्रूण हत्या,
दहेज बलि,
हत्या, बलात्कार
जैसी अमानुषिक घटनाओं का
हों शिकार ।
आज समय की मांग है कि
वे अपने भीतरी आत्मबल से करें,
अपने अधिकारों की रक्षा।

अपने भीतर रानी लक्ष्मीबाई,
माता जीजाबाई,
इंदिरा,
मदर टैरेसा,
ज्योति बाई फुले प्रभृति
प्रेरक व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेकर
अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए
अथक परिश्रम और प्रयास करें
ताकि उनके भीतर
मनुष्योचित पुरुषार्थ दृष्टिगोचर हो,
इसके साथ साथ
वे अपने लक्ष्य
भीतर ममत्व की विराट संवेदना भरकर पूर्ण करें।
वे जीवन में संपूर्णता का संस्पर्श करें।
75 · Nov 2024
Need
Joginder Singh Nov 2024
Do we need limitless greed?
Inspite  a home,food, clothes and a job.
Engage yourself in search for a
contented life.
Keep your spirit so high,where only limit is sky.
Make constant efforts to attain
a comfortable life .
यदि किसी आदमी को
अचानक पता चले कि
उसकी लुप्त हो गई है संवेदना।
वह जीवन की जीवंतता को
महसूस नहीं कर पा रहा है ,
बस जीवन को ढोए चला जा रहा है ,
तो स्वाभाविक है , उसे झेलनी पड़े वेदना।
एक सच यह भी है कि
आदमी हो जाता है काठ के पुतले सरीखा।
जो चाहकर भी कुछ महसूस नहीं कर पाता ,
भीतर और बाहर सब कुछ विरोधाभास के तले दब जाता।
आदमी किसी हद तक
किंकर्तव्यविमूढ़ है बन जाता।
वह अच्छे बुरे की बाबत नहीं सोच पाता।
१३/०३/२०२५.
75 · Nov 2024
The Power of Pressure
Joginder Singh Nov 2024
When pressure compels a person to resign.
When such happens in surroundings.
It is not a healthy signal for the human society .
It clearly indicates
that the nexus between syndicate  and state
has an upper hand in public life.
The corruption is flourishing day by day.
If all such activities increase,
that means human existence is at stake.
Joginder Singh Nov 2024
प्रवास की चाहत
बेशक भीतर छुपी है,
परन्तु प्रयास
कुछ नहीं किया,
जहां था, वहीं रुका रहा।
दोष किस पर लगाऊं?
अपनी अकर्मण्यता पर..?
या फिर अपने हालात पर?
सच तो यह है कि
असफलता
बहानेबाजी का सबब भी बनती है।
सब कुछ समझते बूझते हुए भी
भृकुटी  तनती है।
    १७/१०/२०२४
75 · Nov 2024
Fearfulness
Joginder Singh Nov 2024
A fearful person always cries
loudly or silently!
Let's think about his destiny today.
Because the continuously presence of fear in his mind makes him very insecure.
Sometimes fear brought terror and  tears into eyes.
As a result mind feels disturbance inside.
Mind completely lost his strength
to make balance between ups and downs of the life.
Let us try to taught our terrified friend the strategy of fear management,
so that he can reattain the lost  energy and enthusiasm in his life.

I hope his perfect smile attract you very soon.
The terror of fearfulness will be remain in him as a part of  past life.
energy
Joginder Singh Nov 2024
आज
फिर से
झूठ बोलना पड़ा!
अपने
सच से
मुँह मोड़ना पड़ा!
सच!
मैं अपने किए पर
शर्मिंदा हूँ,
तुम्हारा गला घोटा,
बना खोटा सिक्का,
भेड़ की खाल में छिपा
दरिंदा हूँ।
सोचता हूँ...
ऐसी कोई मज़बूरी
मेरे सम्मुख कतई न थी
कि बोलना पड़े झूठ,
पीना पड़े ज़हर का घूंट।

क्या झूठ बोलने का भी
कोई मजा होता है?
आदमी बार बार झूठ बोलता है!
अपने ज़मीर को विषाक्त बनाता है!!
रह रह अपने को
दूसरों की नज़रों में गिराता है।

दोस्त,
करूंगा यह वायदा
अब खुद से
कि बोल कर झूठ
अंतरात्मा को
करूंगा नहीं और ज्यादा ठूंठ
और न ही करूंगा
फिर कभी
अपनी जिंदगी को
जड़ विहीन!
और न ही करूंगा
कभी भी
सच की तौहीन!!
१६/०२/२०१०
74 · Apr 13
संयोग वश
बहुधा
जिनसे कभी
मिलने की संभावना तक
नहीं होती
वे अचानक
जीवन में आकर
आकर्षण का केंद्र
बनकर
जीवन को
हर्षोल्लास से
भर जाते हैं।
इसलिए
हमें जीवन धारा में
आ गए उतार चढ़ाव से
कभी भी व्यथित होने की
जरूरत नहीं है।
हमारे इर्द गिर्द
बहुत कुछ घटित हो रहा है।
यह संयोग ही है कि
हम इस घटनाक्रम की बाबत
चिंतन मनन कर पा रहे हैं।
संयोग वश
हम मिलते और बिछुड़ते हैं ,
चाहकर भी हम
अपनी मनमर्जी नहीं कर पा रहे हैं।
यह सब क्या है ?
क्या हम सब का
मनुष्य होना
और
कुछ का पशु होना
संयोग नहीं ?
या फिर
कर्मों का खेल है !
संयोग वश ही
हम परस्पर संवाद रचा पाते हैं ,
एक दूसरे को समझ
और समझा पाते हैं ,
फलत: समझौता कर जाते हैं।
आपदा प्रबंधन कर
अनमोल जीवन की रक्षा करने में
सफल हो जाते हैं।
सब जगह संयोग वश
जीवन में  
अदृश्य रूप से
घटनाक्रम घट रहा है,
जिससे सतत् कथाएं बन और मिट रही हैं ।
यही जीवन को दर्शनीय बनाता है।
१४/०४/२०२५.
जन्म से अब तक
समय को
खूब खूब
टटोला है
मगर
कभी अपना मुंह
सच के
सम्मानार्थ
नहीं खोला है
बेशक
आत्मा के धुर अंदर
जो समझता रहा
अज्ञानतावश
खुद को
धुरंधर।
अचानक
ठोकरें लगने से
जिसकी आंखें
अभी अभी खुली हैं।
सच से सामना
बेशक सचमुच
कड़वा होता है ,
यह कभी-कभी सुख की सुबह
लेकर आता है ,
जीवन को
सुख समृद्धि और सम्पन्नता भरपूर
कर जाता है।
अब
मेरे भीतर पछतावा है।
कभी कभी
दिखाई देता
अतीत का परछावा है।
मैं खुद को
सुधारना चाहता हूं ,
मैं बिखरना नहीं चाहता हूं।
इसके लिए
मुझे अपने भीतर पड़े
डरों पर
विजय पानी होगी ,
सच से जुड़ने की
उत्कट अभिलाषा
जगानी होगी।
तभी डर कहीं पीछे छूट पाएगा।
वह सच के आलोक को
अपना मार्गदर्शक
बनता अनुभूत कर पाएगा।

दोस्त !
यह सही समय है ,
जब डर से छुटकारा मिले ,
सच से जुड़ने का
संबल और नैतिक साहस
भीतर तक
जिजीविषा का अहसास कराए
ताकि जीवन सकारात्मक सोच से जुड़ सके ,
यह सार्थक दिशा में मुड़ सके,
यह भटकने से बच सके।
ऐसा कुछ कुछ
अचानक
समय ने चेताते हुए कहा ,
और मैं संभल गया ,
यह संभलना ही
अब संभावना का द्वार बना है।

१८/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
कभी
देश में फैला था
एक दंगा।
अर्से बाद हुआ
खुलासा ,
जिससे
नेतृत्व हुआ
नंगा।
सोचता हूँ,
अब
क्या होगा?
नेतृत्व
खुद को
बचा पाएगा
या कुछ
अप्रत्याशित
घट जाएगा।
क्या
समाज
जातियों में
बंट जाएगा?
३/६/२०२०
Joginder Singh Dec 2024
जो कभी सोचा न था।
वो ही क्यों हो जाता है घटित?
आदमी ऐसे में क्या करे?
खुशी का इज़हार करे,
या फिर भीतर तनाव भरे ?
जो कभी सोचा भी न था,
वो भी मेरे पास मौजूद था।
फिर  भी  मैं  उदास  था ,
दिल का करार नदारद था।
आदमी मैं होशियार न था।
जीवन में बच्चा बना
खेल खेलता रहा।
खिलौने बटोरता रहा।
रूठ कर इन्हें तोड़ता रहा ।
कुछ खो जाने की कसक से
मतवातर रोता ही रहा।
साथ साथ सोचता भी रहा।
जो कभी सोचा न था।
वो सब मेरे साथ घटा।
मैं टुकड़ों में बंटता रहा।
ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ?
ऐसा सब के साथ क्यों ,
होता रहा है हर पल पल !
पास के आदमी दूर लगें!
दूर के आदमी एकदम पास!
जो कभी सोचा न था।
वो जीवन में घटता है।
यह आगे ही आगे बढ़ता है।
कभी न रुकने के लिए!
जी भर कर जीने के लिए!!
अब सब यहां
महत्वाकांक्षा लिए
भटक रहें हैं,
सुख को तरस रहे हैं।
जीवन बढ़ रहा है
अपनी गति से।
कोई विरला यहां काम
करता सहज मति से।
यही जीवन का बंधन है।
इससे छूटे नहीं कि लगे ,
सुन रहा कोई अनाम यहां
क्रंदन ही क्रंदन की कर्कश
ध्वनियां प्रतिध्वनियां पल ,पल।
कर रहीं बेचैन पल प्रति पल स्व को।
फिर भी जीवन बदल रहा है  प्रति पल ,
अपने रंग ढंग क्षण श्रण ,
धूप और छाया के संग खेल,खेल कर
यह क्षणिक व प्यार भरा जीवन
एक अनोखा बंधन ही तो है।
२८/१०/२००७.
74 · Nov 2024
The Dusty Atmosphere
Joginder Singh Nov 2024
The Dust
Here and there
a lot of dust has been spread
in the form of mischievous thoughts
as well as conspicuous material.
Now it is your choice to select or reject.
Friend! Do not make your brain simply like a dustbin.
Because you are a special soul
who has taken birth to win
in spite of difficulties and living in a cunning and calculative world.
You must keep yourself away from the dust and dusty persons.
It can damage your persona.
74 · Nov 2024
जीवन कथा
Joginder Singh Nov 2024
मरने से पहले
आदमी
बाज़ दफा
हो जाता है विक्षिप्त
जीवन कथा
है अति संक्षिप्त!

२४/११/२००८.
74 · Dec 2024
बच्चा चोर
Joginder Singh Dec 2024
अभी अभी पढ़ा है
पत्रिका में प्रकाशित हुआ
संपादकीय
जिसके भीतर बच्चों को चोरी करने
और उन से  हाथ पांव तोड़ भीख मंगवाने,
उन्हें निस्संतान दम्पत्तियों को सौंपने,
उन मासूमों से अनैतिक और आपराधिक कृत्य करवाने का
किया गया है ज़िक्र,
इसे पढ़कर हुई फ़िक्र!

मुझे आया
कलपते बिलखते
मां-बाप और बच्चों का ध्यान।
मैं हुआ परेशान!

क्या हमारी नैतिकता
हो चुकी है अपाहिज और कलंकित
कि समाज और शासन-प्रशासन व्यवस्था
तनिक भी नहीं है इस बाबत चिंतित ?
उन पर परिस्थितियों का बोझ है लदा हुआ,
इस वज़ह से अदालतों में लंबित मामलों का है ढेर
इधर-उधर बिखरे रिश्तों सरीखा है पड़ा हुआ।
स्वार्थपरकता कहती सी लगती है,
उसकी गूंज अनुगूंज सुन पड़ती है , पीड़ा को बढ़ाती हुई,
' फिर क्या हुआ?...सब ठीक-ठाक हो जाएगा।'
मन में पैदा हुआ है एक ख्याल,
पैदा कर देता है भीतर बवाल और सवाल ,
' ख़ाक ठीक होगा देश समाज और दुनिया का हाल।
जब तक कि सब लोग
अपनी दिनचर्या और सोच नहीं सुधारते ?
क्या प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था और
बच्चों की चोरी करने और करवाने वालों को
सख़्त से सख़्त सजा नहीं दे सकते ?

मुझे अपने भाई वासुदेव का ध्यान आया था
जो खुशकिस्मत था, अपनी सूझबूझ और बहादुरी से
बच्चों को चुराने वाले गिरोह से बचकर  
सकुशल लौट पाया था,
पर  भीतर व्याप चुके इसके दुष्प्रभाव
अब भी सालों बाद दुस्वप्न बनकर सताते होंगे।

मुझे अपने सुदूर मध्य भारत में
भतीजे के अपहरण और हत्या होने का भी आया ध्यान,
जो जीवन भर के लिए परिवार को असहनीय दुःख दे गया।
क्या ऐसे दुखी परिवारों की पीड़ा को कोई दूर करेगा?

बच्चों को चुराने वाली इस  मानसिकता के खिलाफ़
सभी को देर सवेर बुलन्द करनी होगी अपनी-अपनी आवाज़
तभी बच्चा चोरी का सिलसिला  
किसी हद तक रुक पायेगा।
देश-समाज सुख-समृद्धि से रह रहे नज़र आएंगे।
वरना देश दुनिया के घर घर में
बच्चा - चोर उत्पात मचाते देखे जाएंगे।
फिर भी क्या हम इसके दंश झेल पाएंगे ?

२३/१२/२०२४.
देश
अब युद्ध के लिए
तैयार है ,
अब शत्रु पर
प्रहार के लिए
इंतज़ार है।

इस के लिए
हमें क्या रसद का
संग्रह करना चाहिए ?
इस बाबत
अपने बुजुर्ग से
पूछता हूँ...
उत्तर मिलता है
बिल्कुल नहीं !
देश पहले भी
आधी रोटी खाकर
युद्ध को लड़ चुका है।
इससे कुछ अधिक ही
देश भक्ति
और जिजीविषा का जज़्बा
देशवासियों में भर चुका है।
अब रणभेरी का इंतज़ार है।
युद्ध में जीतने का जुनून
सब पर सवार है।
देखना है अब आर पार की लड़ाई
किस करवट बैठेगी ?
विजयश्री किस प्रकार से
देशवासियों के अंतर्मन में झांकेगी ?
शहादत कितने युद्धवीरों की बलि मांगेगी ?
अब युद्ध
विशुद्ध युद्ध होगा।
इस युद्ध से जनमानस
प्रबुद्ध होगा।
हर जीत के बाद
देशवासियों का अंतर्मन
नैतिकता की दृष्टि से
शुद्ध होगा !
यह बिछड़े देशवासियों से
पुनर्मिलन का
एक ऐतिहासिक अवसर होगा।
सभी परिवर्तन के स्वागतार्थ आगे बढ़ेंगे।
वे अवश्य ही
विजयोत्सव की खातिर चिंतन मनन करेंगे ,
जीवन के आदर्शों की कसौटी पर
खरा उतरने की कोशिश करेंगे।
०६/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
सर्वस्व का वर्चस्व
स्थापित करने के निमित्त
हम करेंगे
अपनी तमाम धन संपदा, शक्ति को संचित कर
और यथाशक्ति अपना समय
और अपनी सामर्थ्य भर शक्ति को देकर
करते रहेंगे जन जन से सहयोग।
ताकि
शोषितों, वंचितों के
जीवन को
अपरिहार्य और अनिवार्य सुधारों से
जोड़ा जा सके,
उनके जीवन में बदलाव
लाया जा सके।
उनका जीवन स्तर
सुधारा जा सके।

यदि शोषितों, वंचितों के
जीवन में सुखद परिवर्तन आएगा,
तभी देश आगे बढ़ेगा।
किसी हद तक
शोषण और दमन चक्र रुकेगा।

ऐसा होने से
जन जन में सुरक्षा व सुख का
अहसास जगेगा।

देश और समाज भी
समानता, सहिष्णुता के क्षितिज छूएगा।
और यही नहीं,
देश व समाज में
सुख, समृद्धि, संपन्नता का आगमन होगा।

लग सकेगी रोक
वर्तमान में अपने पैर पसारे
तमाम विद्रूपताओं,  क्षुद्रताओं से
जन्मीं बुराइयों और अक्षमताओं पर।

और साथ ही
स्व और पर को
जीवन के उतार चढ़ावों के बीच
रखा जा सकेगा
अस्तित्वमान।
उनमें नित्य नूतन ऊर्जा पोषित कर
उत्साह, आह्लाद, जिजीविषा जैसे
भावों के दरिया का
कराया जा सकेगा
आगमन।
जीवन से
रचाया जा सकेगा
संवाद
तमाम वाद विवाद
मिटाकर।

देश भर में
व्यापी
परंपरावादी सामाजिक व्यवस्था को
समसामयिकता, आधुनिकता
और समग्रता से
जा सकेगा
जोड़ा।

आओ आज हम यह शपथ लें कि
सर्वस्व का वर्चस्व स्थापित करने हेतु
हम निर्मित करेंगे
जन जन को जोड़ने में सक्षम  
आस्था, विश्वास, सद्भावना, सांत्वना,
प्राच्यविद्या और आधुनिक शिक्षा से प्रेरित
अविस्मरणीय,
अद्भुत, अनोखा,
सेतु।
.......और इस सेतु पर से
दो विपरीत विचार धाराएं भी
बेरोक टोक आ जा सकें।

उन्हें सांझे मंच पर लाकर
पारस्परिक समन्वय व सामंजस्य
स्थापित करने में
महत्वपूर्ण योगदान
यह नवनिर्मित सेतु कर पाएगा।
ऐसे भरोसे के साथ
सभी को आगे बढ़ना होगा
तभी देश दुनिया को आदर्श बनाया जा सकेगा।
अपनी संततियों को
इस नव निर्मित सेतु से
विकास पथ की ओर
ले जाया जा सकेगा।
सर्वस्व के वर्चस्व हेतु
इस सेतु को निर्मित करना ज़रूरी है,
ताकि नई और पुरानी पीढ़ियों में
जागरूकता फैलाई जा सके।
२५/११/२०२५.
बचपन में
उम्र पांच साल रही होगी
साल उन्नीस सौ इकहत्तर
महीना दिसंबर
शहर चंडीगढ़
सायरन की आवाज़ सुन कर
सब चौकन्ने हो जाते
रात हुई तो रोशनी,आग सब बंद
लोग भी अपने घर में बंद हो जाते
एक दिन रात्रि के समय
सायरन बजा  
लोग चौकन्ने और सतर्क
कंप्लीट ब्लैक आउट
मैं , मां और बहन
सब घर में कैद
सीढ़ियों के नीचे
लुक छुप कर बैठे
तभी  
बाहर को झांका
तो आसमान में रंग बिरंगी
रोशनियों को देख कर
दीवाली के होने का भ्रम हुआ
यह बाद में विदित हुआ कि
यह रंग बिरंगी रोशनी तो शत्रु के हवाई जहाज को
निशाना बनाने वाले तोप के गोलों से हुई थी।
उन दिनों मैं अबोध था ,
ब्लैक आउट डेज
मेरे इर्द गिर्द बगैर ख़ौफ़ पैदा किए निकल गए।
उन दिनों पाकिस्तानी जासूस पकड़े जाने की ख़बर
मुझे परी कथा की तरह लगती थी।
मैने इस बाबत दो चार बार
अपनी मां से चर्चा की थी।

मुझे यह भी याद है भली भांति
यदि कोई ब्लैक आउट डेज के समय
घर पर गलती से बल्ब जलता छोड़ता
तो उसी समय कोई पत्थर दनदनाता आता
और झट से बल्ब को तोड़ देता ,
वह नहीं टूटता तो खिड़की का कांच ही तोड़ देता।
बल्ब झट से ऑफ करना पड़ता।
गालियां जो सुनने को मिलतीं ,वो अलग।
वे दिन अजब थे, कुछ लोग डर और अज़ाब से भरे थे।
लोग देशप्रेम से ओतप्रोत चौकीदार बन देश सेवा को तत्पर रहते थे।

ये ब्लैकआउट डेज
बड़ा होने के बाद भी स्वप्नों में
आ आ कर मुझे सताते रहे हैं।
मेरे भीतर डर दहशत वहशत जगाते रहे हैं।
आज छप्पन साल बाद
शहर में ब्लैक आउट की रिहर्सल की गई है।
एक बार फिर सायरन बजा।
रोशनी बंद की गई।
किसी किसी के घर की रोशनी बंद नहीं थी।
उन्हें क्या ही कहा जाए ?
आज आधी रात ऑपरेशन सिंदूर किया गया।
देश की सेनाओं ने दहशतगर्दों के नौ ठिकानों पर हमला किया।
कल पड़ोसी देश भी निश्चय ही हवाई हमले करेगा।
कभी न कभी ब्लैकआउट भी होगा।
यदि इस समय किसी ने लापरवाही की तो क्या होगा ?
ब्लैकआउट धन,जान माल की सुरक्षा के लिए है।
इस बाबत सब जागरूक हों तो सही।
आजकल पार्कों में सोलर लाइटें लगी हैं।
सी सी टी वी कैमरे भी गलियों, दुकानों,मकानों ,चौराहों पर
चौकीदार का काम कर रहें हैं।
इन के साथ रोशनी का प्रबंध भी किया गया है ,
जो अंधेरा होते ही स्वयंमेव रोशन हो जाते हैं।
आप ही बताइए ब्लैकआउट के समय इनका क्या करें ?
इन पर जरूरत पड़ने पर रोक कैसे लगे ?
क्या इन पर काला लिफाफा बांध दिया जाए ?
फिलहाल कुछ काले दिनों के लिए !
स्थिति सामान्य होने पर काले लिफ़ाफ़ों को हटा दिया जाए !
जैसे जीवन में कुछ बड़े होने तक
ब्लैक आउट डेज अपने आप स्मृतियों में धुंधलाते चले गए।
और आपातकाल में ये फिर से शुभ चिंतक बन कर लौट आए हैं।
०७/०५/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
यदि मेरा
फिर से
कोई मेरा नाम रखना चाहे  
तो मुझे अच्छा लगेगा यह नाम ।
चूंकि भाता नहीं मुझे कोई काम।
श्रीमान जी,
रखिए मेरा नाम निखट्टू,सुबह से शाम तक
सुननी पड़ती
तरह तरह की बातें...!

प्रतिक्रिया देना मैने छोड़ दिया है।
गूंगा बन जीना सीख लिया है।
अकलमंद बन समझौता किया है।
फिर भी बहुत सी
अंतर्ध्वनियों ने मुझे ढेर किया है
सो अब निःशब्द हूं।

आप भी कहेंगे
निखट्टू
निशब्द कैसे हो सकता है?
उत्तर है जी,
यह तो वही जानता है।
जो कुछ अच्छा बुरा खोजने पर
प्रतिक्रिया न कर चुप रहना सीख गया है।
जिसके पास संवेदना के बावजूद चुप्पी है,
वह नि:शब्द नहीं तो क्या है?
है कोई प्रत्युत्तर जी??

अब
निखट्टू को
परिभाषित करता हूँ,
ऐसा व्यक्ति
जो देश काल से
निर्लिप्त रहे,
आदेशों के बावजूद
कुछ भी न करे।
कोई उस पर कितना ही चिल्लाए,
पर वह चुप रहने से बाज़ न आए।
...और जो जरूरत के बावजूद
कुछ न करे,
निष्क्रियता की चादर ओढ़कर
देश, घर,दुनिया में कहीं पड़ा रहे।
ऐसे आदमी को निखट्टू कहते हैं।
जिसके वजूद को सब सहने को मजबूर हैं।
कमल देखिए, उसे सारी समझ है,फिर भी चुप है।
वह निखट्टू नहीं तो क्या है?

मुझे विदित है कि निखट्टू
आदतन
लिखती, निखट्टू रह जाते हैं।
वरना,मौका मिले तो वह सब के कान कतर दें।
यदि किसी व्यक्ति  को जीवन में उद्देश्य न मिले,
तो वह धीरे धीरे  एक निखट्टू में तब्दील हो जाता है।
एक दिन चिकना घड़ा बन जाता है,
जिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
कोई कितना ही अपनी खीझ उस पर निकाले,
निखट्टू हर दम हंसता मुस्कुराता रहता है।
निखट्टू  तो निखट्टू है,
वह तो बेअसर है।
उसे अपने तरीके से जिंदगी जीनी है, भले ही
किसी को वह एकदम
सिर से पैर तक   ढीठ लगे,
बेशर्मी का ताज उसके सिर ही सजे।
भई वाह!निखट्टू के मजे ही मजे!!
Joginder Singh Nov 2024
अब बेईमान बेनकाब कैसे होगा ?
इस बाबत हमें सोचना होगा।

लोग बस पैसा चाहते हैं,
इस भेड़ चाल को रोकना होगा।

देखा देखी खर्च बढ़ाए लोगों ने ,
इस आदत को अब छोड़ना होगा।

चालबाज आदर्श बना घूमता है ,
उसके मंसूबों को अब तोड़ना होगा।

झूठा अब तोहमतें  लगा रहा ,
उसे सच्चाई से जोड़ना होगा।

आतंक सैलाब में बदल गया ,
इसका बहाव अब मोड़ना होगा।

लोभ लालच अब हमें डरा रहा,
हमें सतयुग की ओर लौटना होगा।

सब मिल कर करें कुछ अनूठा,
हमें टूटे हुओं को जोड़ना होगा।
73 · Dec 2024
सार्थकता
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ भी बेकार नहीं होता ,
यहां तक कि
कवायद या कोई शिकवा शिक़ायत भी नहीं ,
आखिर हम इस सब के पीछे की
कहानी को समझें तो सही ।

कभी किसी की
शिकायत करें तो सही ,
कैसे नहीं अक्ल ठिकाने लगा दी जाती?
ज़िंदगी की पेचीदगियों की समझ,
समझ में समा जाती !
यह शिकायत,
शिकायत के निपटारे की
कवायद ही है ,
जो जीवन में
आदमी को
निरंतर समझदार
बना रही है,
सोये हुए को
जगा रही है।

जीवन में हर पल की
क्रिया प्रतिक्रिया के फलस्वरूप
होने वाली कवायदें
जीवन में सार्थकता का
संस्पर्श करा रही हैं।
ये जीवन धारा में
बदलाव की वज़ह
बनती जा रही हैं।
१९/१२/२०२४.
ज़िन्दगी में
दुराव छिपाव का
सिलसिला
बहुत पुराना है ,
यदि ये न हो तो
ज़िन्दगी
नीरस हो जाती है ,
सरसता
गायब हो जाती है।

ज़िन्दगी में
भूल कर भी न बनिए
कभी खुली किताब ,
यह खुलापन
कभी कभी किसी को
बेशक
अच्छा लगे ,
पर पीठ पीछे
ख़ूब भद्द पीटे।
अतः दुराव छिपाव
अत्यंत ज़रूरी है ,
इसे
जानने के
चक्कर में पड़कर
जीवन यात्रा में
रोमांच बना रहता है ,
आदमी  क्या औरत तक
जीवन में
परस्पर
एक दूसरे से
नोक झोंक
करते रहते हैं।
वे अक्सर
दुराव छिपाव रख कर
रोमांचित होते रहते हैं।
यदि देव योग से
कभी भेद खुल जाए
तो बहाने बनाने पड़ जाते हैं।
१२/०४/२०२५..
इस दुनिया का
सब से खतरनाक मनुष्य
अशिष्ट व्यक्ति होता है,

जो अपने व्यवहार से
आम आदमी और ख़ास आदमी तक को
कर देता है शर्मिन्दा।
वह अचानक
सामने वाले की इज्ज़त
अपने असभ्य व्यवहार से
कर देता है तार तार!
सभ्यता का लबादा उतार देता है।
अपने मतलब की जिन्दगी जीता है।

अभी अभी
मेरे शहर के बाईस बी सेक्टर के
भीड़ भरे बाज़ार में
एक शख़्श
अपने दोनों हाथों में
एक तख्ती उठाए
रक्तदान के लिए प्रेरित करते हुए
घर घर गली गली घूमते देखा गया है।
उसकी तख्ती पर लिखा है,
" रक्त दानी विशिष्ट व्यक्ति होता है,
जो प्राण रक्षक होता है।"
यह देख कर मुझे अशिष्ट व्यक्ति का
आ गया है ध्यान !
जो कभी भूले से भी नहीं दे सकता
किसी जरूरतमंद को प्राण दान !
बल्कि वह अपने अहम् की खातिर
बन जाता है शातिर
और हर सकता है
छोटी-छोटी बात के लिए प्राण।

इसलिए मुझे लगता है कि
अशिष्ट व्यवहार करने वाला
न केवल असभ्य बल्कि वह
होता है सबसे ख़तरनाक
जो जीवन में कभी कभी
न केवल अपनी नाक कटा सकता है,
यदि उसका वश चले
तो वह अच्छे भले व्यक्ति को
मौत के घाट उतरवा सकता है।
अशिष्ट व्यक्ति से समय रहते किनारा कीजिए!
खुद को जीवनदान दीजिए !!
०६/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
परम
एक अनूठा जादूगर है
वह जीवन में
अपने जादू से कण कण को जगा रहा !
क्षण क्षण
सबको आगे बढ़ा रहा !
वह जीवन का जादू
सब के अंतर्घट में जगा रहा है।
इस धरा पर
जन्म और मरण के रंग
बिखेर रहा है।

वह
जीवन का जादूगर
कहता है सबसे
अपने अपने जीवन में
तन मन से
स्वयं को एकाग्रचित कर
मेरे धूप छाईं रंग देखते रहो ।
जीवन  पथ पर अग्रसर बने रहो।

जीवन का अनूठा जादूगर
रखता है यह आस सबसे।
सब ऐसे काम करें
कि जीवन सम्मोहित करता सा लगे ,
इस जीवन में
कोई भी
डरता हुआ न लगे ,
सब जीवन संग्राम में बहादुरी से लड़ें,आगे बढ़े ।


जीवन का यह अनूठा जादूगर
अपने अनूठे अंदाज से
सृष्टि की दिव्य दृष्टि का
स्नेहिल गीत
समय के साथ गाता रहे !
जीव का जीवन सत्य से नाता जुड़ा रहे!!

कायनात का सृजन हार
इस धरा को
अपने जादू से
सभी को
अचंभित करता रहे ,
वह जीवन बगिया को
अपनी उपस्थिति से महकाता रहे ।
जीवन से अखंड प्यार करने का पाठ
अनूठा जादूगर सभी को सतत् पढ़ाता रहे।
वह अपने अनुकंपा से
स्नेह के सम्मोहक पुष्प सब पर बिखेरता रहे।

२८/१०/२००७.
Always dream about
a pollution free social setup.
Keep courage to say shut up
to pollutant minds in life
for cleanliness
and the safe journey of human beings.
05/05/2025.
Joginder Singh Dec 2024
उसकी नज़र
लगी कि
जहर भूला ,
अपनी तासीर
ज़िंदगी ,
एक अमृत कलश सरीखी
आने लगती नज़र ।

काश ! उसकी नज़र
सबको आए नज़र
हर कोई चाहता की
भूलभुलैया में खो जाए !
ज़िंदगी एक सतरंगी पींघ पर
झूमने लग जाए !!

उसकी नज़र
चाहत की राहत सरीखी हो जाए ,
आदमी प्रेम धुन गुनगुनाते हुए
समाप्ति की ओर बढ़ता चला जाए ।
उसके चेहरे मोहरे पर
कुछ न करने का मलाल
कभी न आए नज़र ।

उसकी नज़र
इश्क मुश्क की
अनकही इबारत है
जिसकी नींव पर
हरेक निर्मित करना चाहता है ,
भव्यता की पायेदार इमारत ।
भले ही
ज़िंदगी कुछ न करने की
शिकायत करती आए नज़र ।

उसकी नज़र को
किसी की नज़र न लगे कभी भी
उसे महसूस न हो
जीवन में
कोई भी कमी कभी भी ।
उसकी नज़र का ज़हर
पी लेंगे सभी कभी भी ।
अपने भीतर के ज़हर को भूलकर,
तोड़ कर अपने समस्त
सिद्धांत और उसूल !
२२/१२/२०१६.
हार के बाद हार फिर एक बार फिर हार
हार को हराना है हमें, फिर से विजेता
स्वयं को बनाना है हमें ।
बस! बहुत हुआ!
अब गिरते , गिरते भी
स्वयं को संतुलित रखना है हमें।
क़दम से क़दम मिलाकर चलना है हमें।
गिरने के दौर में , बुलन्द बनाना है एक दूसरे को हमें।

आज दुर्दिनों का दौर है भले
भीतर निराशा हताशा है भले ही
हमें मतवातर आत्मावलोकन करना है
तत्पश्चात स्वयं को संतुलित और समायोजित करना है,
हमें हर हाल में स्वयं को सिद्ध करना है
लड़े बग़ैर नहीं हार माननी है
हमें विजेता बन कर सब में उत्साह जगाना है,
हार जीत का अहसास बस एक सिलसिला पुराना है।
हमें हर हाल में स्वयं को आगे बढ़ाना है ,
जीत में हार, हार में जीत सरीखी खेलभावना को
अपने जीवन दर्शन में निरंतर आत्मसात करते हुए
खुद को जिताना ही नहीं,वरन सर्वस्व को
विजेता बनाकर दिखाना है।
हार पर प्रहार करते हुए, ‌
विजय पथ पर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है।
हार के बाद हार,फिर एक हार ,और हार को बेंध जाना है। जीवन धारा को संघर्ष की ओर
मोड़ कर विजयी बनाना है हमें।
अपने भीतर एक विजेता की
जिजीविषा को उभारना है हमें।
हार गया ,पर , गया बीता नहीं हुआ मैं !
अंतर्मन की इस अंतर्ध्वनि को गौर से सब सुनें !!
ताकि सभी की गर्दनें रहें सदैव तनी हुईं।
०३/०१/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
भले ही कोई
उतारना चाहे
दूध का कर्ज़ ,
अदा कर अपने फर्ज़।
यह कभी उतर नहीं सकता ,
कोई इतिहास की धारा को
कतई मोड़ नहीं सकता।
भले ही वह धर्म-कर्म और शक्ति से
सम्पन्न श्री राम चन्द्र जी प्रभृति
मर्यादा पुरुषोत्तम ही क्यों न हों ?
उनके भीतर योगेश्वर श्रीकृष्ण सी
'चाणक्य बुद्धि 'ही क्यों न रही हो !

मां संतान को दुग्धपान कराकर
उसमें अच्छे संस्कार और चेतना जगाकर
देती है अनमोल जीवन, और जीवन में संघर्ष हेतु ऊर्जा।
ऐसी ममता की जीवंत मूर्ति के ऋण से
पुत्र सर्वस्व न्योछावर कर के भी नहीं हो सकता उऋण।
माता चाहे जन्मदात्री हो,या फिर धाय मां अथवा गऊ माता,
दूध प्रदान करने वाली बकरी,ऊंटनी या कोई भी माताश्री।

दूध का कर्ज़ उतारना असंभव है।
इसे मातृभूमि और मातृ सेवा सुश्रुषा से
सदैव स्मरणीय बनाया जाना चाहिए।
मां का अंश सदैव जीवात्मा के भीतर है विद्यमान रहता।
फिर कौन सा ऐसा जीव है,
जो इससे उऋण होने की बालहठ करेगा ?
यदि कोई ऐसा करने की कुचेष्टा करें भी
तो माता श्री का हृदय सदैव दुःख में डूबा रहता!
कोई शूल मतवातर चुभने लगता,
मां की महिमा से
समस्त जीवन धारा
और जीव जगत अनुपम उजास ग्रहण है करता।
ममत्व भरी मां ही है सृष्टि की दृष्टि और कर्ताधर्ता !!
०३/०८/२००८.
Joginder Singh Nov 2024
आज ,अचानक, अभी-अभी,
श्रीमती जी ने मुझे चौंकाया है।
एक विस्मयकारी समाचार सुनाया है।
समाचार कुछ इस प्रकार है कि
शादी बर्बादी के सत्ताईस साल पूरे हो गए ।

शादी के समय मैं ठीक-ठाक लगता था ,
श्रीमती जी किसी विश्व सुंदरी से कम नहीं लगती थीं।
अब बरसों बाद
अपने को आईने में देखा,
तो मुझे जोर का झटका लगा, धीरे से लगा।
शादी के समय
मैं  कितना खुश था
और आजकल वह खुशी काफुर है।
सोचता हूं ,
जो दंपत्ति वैवाहिक जीवन
भरपूर जी ले,
बहादुर है।
  
उस समय की सूरत और सीरत में
काफ़ी बदलाव आ चुका है,
हमारे जीवन से वसंत जा चुका है,
कब हमारे जीवन में
सुख दुख के मौसम आए और चले गए ,
जीवन की भाग दौड़ में कुछ पता ही ना चला।

आज यदि
श्रीमती जी
शादी की सालगिरह की
याद न दिलातीं
तो आज का दिन भी
जीवन की भूल भुलैया में खो जाता।
मैं अखबार पढ़ने, कविता लिखने में ही, सारा दिन गंवाता।
शुक्र है परमात्मा का
कि जीवन में श्रीमती के आने से
तना हुआ है सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का छाता।


श्रीमान जी,
कम से कम आप ना भूलना कभी
इस जीवन में अपनी शादी की सालगिरह
वरना नुकसान उठाना पड़ सकता है ,
बीवी के रूठने पर
उसे प्यार मनुहार से मनाना पड़ सकता है,
वैवाहिक जीवन ख़तरे में पड़ सकता है।


यह सच है कि
बुढ़ापे में पत्नी के बिना पति का दिल नहीं लगता ,
भले ही पति कितना ही भुलक्कड़ और घुमक्कड़ हो जाए ,
उसे चैन पत्नी से सुख-दुख की बातें करके ही आता है।
वैसे आजकल दिन भाग दौड़ में गुजर जाता है,
किचन में ही बर्तन मांजते समय ही पति ,पत्नी से खुलकर बातें कर पाता है।


लगता है
मैं कुछ भटक गया हूं,
जीवन में कहीं अटक गया हूं।
घर में ही मिलता है प्यार,
वरना यह तिलिस्मी है स्वार्थी संसार।

यदि आप विवाहित हैं , श्री मान जी,
तो
सदैव रखें पत्नी का ख्याल जी,
वरना मच सकता है बवाल।
विवाहित जीवन है  एक अद्भुत मकड़ जाल।
ऐसा है कुछ मेरे जीवन का हाल ।
72 · Mar 3
भूलना
हवा में झूलने
जैसा हो गया है
अब उम्र बढ़ने से ,
याददाश्त कमज़ोर होने से ,
बार बार भूलना ,
और किसी नज़दीकी का
याद दिलाना ,
याद दिलवाने की
प्रक्रिया रह रहकर दोहराना ।
आदमी का
फिर भी भूलते जाना ।
स्मृतियों का हवा हवाई हो जाना ,
भीतर तक
कर देता है बेचैन !
बरबस
कभी कभी
बरस जाते हैं नैन !
जिन्दगी की धूप छाँव में
स्मृति की बदलियां
कभी कभी
बरस जाती हैं ,  
याददाश्त की किरणें
अचानक मन के भीतर
प्रवेश कर
आदमी को सुकून दे जाती हैं ,
मन को कमल सा खिला देती हैं।
भूलना लग सकता है
आदमी को शूल
मगर यह जिंदगी का स्वप्निल दौर भी
कभी हो जाता है
समय की धूल जैसा।
जिसे कोई स्मृति अचानक कौंध कर
कर देती है साफ़ !
सब कुछ याद आने लगता है ,
फिर झट से आदमी
अपना आस पास जाता है भूल,
उसकी चेतना पर पड़ जाती अचानक समय की धूल,
आदमी जाता भूल, अपना मूल !
यहीं है जीवन पथ पर बिखरे शूल !!
भूलना हवा में
झूलने जैसा हो गया है,
ऐसा लगता है कभी कभी
जीवन पथ कहीं खो गया है ,
चेतन तक  
कहीं नाराज़ होकर सो गया है।
भूलना हवा में झूलने जैसा होता है जब,
आदमी अपना अता पता खोकर,
लापता हो जाता है।
कभी कभी ही वह लौट पाता है !
वापसी के दौरान वह फिर अपनी सुध बुध भूल
कहीं भटकने लगता है।
ऐसी दशा देख कर
कोई उसका प्यारा
तड़पने लगता है।
०३/०३/२०२५.
बाज़ार में
ऋण उपलब्ध करवाने की
बढ़ रही है होड़ ,
बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान
ऋण आसानी से
देने के  
कर रहे हैं प्रयास।
लोग खुशी खुशी
ऋण लेकर
अनावश्यक पदार्थों का
कर रहे हैं संचय।
ऋण लेना
सरल है ,
पर उसे
समय रहते
चुकाना भी होता है ,
समय पर ऋण चुकाया नहीं,
तो आदमी को
प्रताड़ना और अपमान के लिए
स्वयं को कर लेना चाहिए तैयार।
ऋण को न मोड़ने की
सूरत में  
ब्याज पर ब्याज लगता जाता है ,
यह न केवल
मन पर बोझ की वज़ह बनता है ,
बल्कि यह आदमी को
भीतर तक
कमजोर करता है,
आदमी हर पल आशंकित रहता है।
उसके भीतर
अपमानित होने का डर भी
मतवातर भरता जाता है।
उसका सुकून बेचैनी में बदल जाता है।

यह तो ऋणग्रस्त आदमी की
मनोदशा का सच है ,
परन्तु ऋणग्रस्त देश का
हाल तो और भी अधिक बुरा होता है,
जब आमजन का जीना दुश्वार हो जाता है,
तब देश में असंतोष,कलह और क्लेश, अराजकता का जन्म होता है,
जो धीरे-धीरे देश दुनिया को मरणासन्न अवस्था में ले जाता है,
और एक दिन देश विखंडन के कगार पर पहुंच जाता है ,
देश का काम काज
ऋण प्रदायक देश और संस्थान के इशारों पर होने लगता है।
यह सब एक नई गुलामी की व्यवस्था की वज़ह बनता जा रहा है ,
ऋण का दुष्चक्र विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को
विकास के नाम पर
विनाश की ओर ले जाता है।
इस बाबत बहुत देर बाद
समझ में आता है ,
जब सब कुछ छीन लिया जाता है,
तब ... क्या आदमी और क्या देश...
लूटे पीटे नज़र आते हैं ,
वे केवल नैराश्य फैलाने के लिए
पछतावे के साये में लिपटे नज़र आते हैं।
वे एक दिन आतंकी
और आतंकवाद फैलाने की नर्सरी में बदलते जाते हैं।
बिना उद्देश्य और जरूरत के
ऋण के जाल में फंसने से बचा जाए।
क्यों न
चिंता और तनाव रहित जीवन को जीया जाए !
सुख समृद्धि और शांति की खातिर चिंतन मनन किया जाए !
सार्थक जीवन धारा को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाए !!
ऋण मुक्ति की बाबत समय रहते सोच विचार किया जाए ।
३१/०३/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
As I entered in an archive of memories,
to search my lost peace of mind.

I heard a sound questioning to me ,
"Where has gone your generosity and kindness these days in life ? "

"Only you need to require the generosity in the life.
And only then you can revive your lost path of the life."

"So , be positive and kind
for attaining sound and strength of the mind ."

As I enter in an archive of memories ,
immediately I felt a strange change in my mind.
I thought " This archive has opened
all of sudden my past history of life."
To feel such an amazing experience ,
I thought , 'What a wonderful and amazing present I had received from the archive of memories. '
16/12/2024.
72 · Jan 6
Topsy Turvey World
In an illusionary world
how can a person keep
stablise his mind to revive the peace and calmness in daily life.
When everything here is positioned in a topsy turvey state.
Than how can a person keep his promises to execute in life?
So that the life reflects it' s glory in present  scenario of the human society.
To maintain the rhythm of life in a topsy turvey state of mind is very essential for all to sustain the peace of mind.
Joginder Singh Dec 2024
कभी कभी
आदमी के विवेक का मर जाना ,
बात बात पर उसके द्वारा बहाने बनाना ,
सारी हदें पार करते हुए
अनैतिकता का बिगुल बजाना
क्या आदमी को है शोभता ?
इससे तो अच्छा है वह
शर्म महसूस करे ।
इधर उधर बेशर्मी से कहकहे न लगाता फिरे ।
जीवन धारा में बहते हुए
आदमी का सारी हदें पार कर जाना
रहा है उसका शुगल पुराना।
इसे अच्छे से समझता है यह ज़माना ।


कितना अच्छा हो ,
आदमी नैतिक मूल्यों के साथ खड़ा हो ।

नैतिकता के पथ पर
मतवातर
आदमी चलने का
सदा चाहवान रहे ।
वह जीवन पथ पर
चलते हुए सदैव
नैतिकता का आधार निर्मित करे।

नैतिक जीवन को अपनाकर
नीति चरित्र को श्रृंगार पाती है ।
अनैतिक आचरण करना
यह आज के प्रखर मानुष को
कतई शोभता नहीं है।
फिर भी उसे कोई शुभ चिंतक और सहृदय
रोकता क्यों नहीं है ?
इसके लिए भी साहस चाहिए ।
जो किसी के पास नहीं ,
बेशक धन बल और बाहुबल भले पास हो ,
पर यदि पास स्वाभिमान नहीं ,
तो जीवन में संचित सब कुछ व्यर्थ !
पता नहीं कब बना पाएगा आदमी स्वयं को समर्थ ?

यह सब आदमी के ज़मीर के
सो जाने से होता है घटित ।
इस असहज अवस्था में
सब अट्टहास लगा सकते हैं ।
वे जीवन को विद्रूप बना सकते हैं।
सब  ठहाके लगा सकते हैं,
पर नहीं सकते भूल से भी रो।
सब को यह पढ़ाया गया है ,
गहरे तक यह अहसास कराया गया है ,
...कि रोना बुजदिली है ,
और इस अहसास ने
उन्हें भीगी बिल्ली बना कर रख दिया है।
ऊपर ऊपर से वे शेर नज़र आते हैं,
भीतर तक वे घबराए हुए हैं।
इसके साथ ही भीतर तक
वे स्व निर्मित भ्रम और कुहासे से घिरे हैं ।
उनके जीवन में अस्पष्टता घर कर गई है।

आज ज़माने भर को , है भली भांति विदित
इन्सान और खुद की बुजदिली की बाबत !
इसलिए वे सब मिलकर उड़ाते हैं
अच्छों अच्छों का उपहास।
एक सच के खिलाफ़ बुनी साज़िश के तहत ।
उन्हें अपने बुजदिल होने का है क़दम क़दम पर अहसास।
फिर कैसे न उड़ाएं ?
...अच्छे ही नहीं बुरे और अपनो तक का उपहास।
वे हंसते हंसते, हंसाते हंसाते,समय को काट रहे हैं।
समय उन्हें धीरे धीरे निरर्थकता के अहसास से मार रहा है।
वे इस सच को देखते हैं, महसूस करते हैं,
मगर कहेंगे कुछ नहीं।
यार मार करने के तजुर्बे ने
उन्हें काइयां और चालाक बना दिया है।
बुजदिली के अहसास के साथ जीना सीखा दिया है।
२७/१२/२०२४.
72 · May 12
उपाय
दोस्त,
करो कुछ ऐसा उपाय
उदास और हताश चेहरे
कमल से खिल जाएं।
उनमें जीने की ललक उभरे।
वे छोटी सी बात पर न भड़कें।
वे शांत रहें
और अवसरों की
तलाश के लिए
तत्पर बने रहें।
उनमें जिजीविषा बनी रहे।
उनमें सुख समृद्धि और संपन्नता की
अभिलाषा जगी रहे।
उन्हें यह जीवन किसी जन्नत से
कम  न लगे।
वे इस जन्नत में बने रहनेके लिए
निरन्तर अथक संघर्ष करते रहें ।
१२/०५/२०२५.
बहुत बार उज्ज्वल भविष्य के
बारे में सोचने और बताने से पहले ही
चाय के प्याले में
तूफ़ान आ गया है ,
सारे पूर्वानुमान
संभावनाओं के नव चयनित जादूगर के
कयास लगभग असफल रहने से
बाज़ार नीचे की तरफ़
बैठ गया है ,
निवेशक को
अचानक धक्का लगा है ,
वह सहम गया है !
कहाँ तो अच्छे दिन आने वाले थे !!
लोग स्वप्न नगरी की ओर उड़ान भरने को तैयार थे !!
अब लोग धरना प्रदर्शन पर उतारू हैं।
क्या आर्थिकता को बीमार करने वाले दिन सब पर भारू हैं ?
इससे पहले कि
कुछ बुरा घटे ,
हम अराजकता की
तरफ़ बढ़ने से
स्वयं को रोक लें ,
ताकि सब
सुख समृद्धि और संपन्नता से
खुद को जोड़ सकें।
०७/०४/२०२५.
71 · May 1
खामोशी
युद्ध से
पहले
देर तक  
खामोशी बनी रहे।
यहाँ तक कि
हवा भी न बहे।
बस हर पल
यह लगे कि
कुछ निर्णायक होने वाला है।
अन्याय का साम्राज्य
शीघ्र ध्वस्त होने वाला है।
उसे मुक्ति से पहले
चिंतन मनन करने दो।
शायद युद्ध रुक जाए।
देश दुनिया और समाज संभल पाएं।
वरना महाविनाश सुनिश्चित है।
अनिश्चितता के बादल छाएंगे
और ये दिशा भ्रम की
प्रतीति कराए
बिना नहीं रहेंगे।
ठीक
कुछ इसी क्षण
खामोशी टूटेगी
और युद्ध का आगाज़ होगा ,
भीतर सहम भर चुका होगा ,
आदमी बेरहम बन रहा होगा धीरे धीरे।
वह युद्ध का शंखनाद
सुनने को व्यग्र हो रहा होगा।
अस्त व्यस्तता और अराजकता के माहौल में
सन्नाटा
सब के भीतर  पसर कर
वह भी युद्ध से पहले
जी भर कर सो लेना चाहता है।
फिर पता नहीं !
कब सुकून  मिले ?
मिलेगा भी कि नहीं ?
भयंकर पीड़ा
और विनाश
युद्ध से पूर्व ही
सर्वनाश होने की
प्रतीति कराने को हैं व्यग्र।
हर कोई उग्र दिख पड़ता है ।
पता नहीं यह विनाशकारी युद्ध कब रुकेगा ?
युद्ध से पूर्व की ख़ामोशी
सभी से कहना चाहती है
परन्तु सब युद्ध के उन्माद में डूबे हैं।
कौन उसकी सुने ?
वैसे भी ख़ामोशी से संवाद रचा पाना
कतई आसान नहीं।
युद्ध की आहट
सन्न करने वाला सन्नाटा
या कोई बुद्ध ही समझ पाता है।
किसी हद तक संयम रख पाता है।
०१/०५/२०२५.
आजकल
असुरक्षा के दौर में ,
आगे बढ़ने की होड़ में ,
जीवन में
सुरक्षा से जुड़े
मानकों का
रखा जाना चाहिए  ध्यान ,
ताकि सब सुरक्षित रहें !
कोई भी
असमय मौत का
न बने
कभी शिकार !
सुरक्षित जीवन
सभी का है अधिकार।
पशु  ,पंछी , वनस्पति और मनुष्य ,
सभी के मध्य
समन्वय और तालमेल बने।
इसकी खातिर
मनुष्यों को चाहिए
कि आज से
सब प्रयास करें।
सभी के
इर्द गिर्द ,भीतर और बाहर  
सुरक्षा का बोध जगे ,
इस बाबत सब जागरूक बनें।
सभी सुरक्षित जीवनचर्या को
सतत् अपनाने की ओर बढ़ें ,
ताकि
सुरक्षा की छतरी
सभी पर
तानी जा सके ,
असमय काल कवलित होने से
जीवों को
बचाया जा सके।

आज
सुरक्षित जीवन के हितार्थ
सभी को
न केवल जागरूक होना होगा
बल्कि
साथ साथ
जीवनपथ को
निष्कंटक बनाना होगा ,
तभी यह जीवन और धरा
बची रह पाएगी।
वरना धरा पर
विनाश लीला होती रहेगी ,
प्रकृति भी व्यथित होती रहेगी।
१३/०४/२०२५.
71 · Dec 2024
मन पर भार
Joginder Singh Dec 2024
कुछ ग़लत होने पर
हर कोई
और सब कुछ
शक एवं संदेह के
घेरे में आता है।
यहां तक कि जीवन में
बेशुमार रुकावटें
उत्पन्न होना शुरू हो जाती हैं।
इससे न केवल मन का करार
खत्म होता है
और
जीवन टूटने के कगार पर
पहुंच जाता है
बल्कि
धीरे-धीरे
जीने की उमंग तरंग भी
जीवन में मोहभंग व तनाव से
निस्सृत बीज के तले
दबने और बिखरने लगती है।
आदमी की दिनचर्या में
दरारें साफ़ साफ़ दिख पड़ती हैं।
उसे अपना जीवन
फीका और नीरस
लगने लगता है।

यदि
जीवन में
कुछ ग़लत घटित हो ही जाए ,
तो आदमी को चाहिए
तत्काल
वह अपने को जागृत करें
और अपनी ग़लती को ले समय रहते सुधार।
वरना सतत् पछतावे का अहसास
मन के भीतर बढ़ा देता है अत्याधिक भार ।
आदमी परेशान होकर इधर-उधर भटकता नज़र आता है।
उसे कभी भी सुख समृद्धि ,
संपन्नता और चैन नही मिल पाता है।
२५/१२/२०२४.
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