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129 · Feb 17
चोर का डर
चोरी करना
नहीं है कोई आसान काम।
यह नहीं कि
कोई चीज़ देखी और चोरी कर ली।
चोरी के लिए जुगत लड़ानी पड़ती है ,
कभी कभी
चोरी और सीनाज़ोरी की नौबत भी
आ जाती है।
इसके लिए
हर ढंग और तरीका अपनाना पड़ता है ,
यही नहीं
घोर अपमान तक सहना पड़ता है।
फिर जाकर
चोरी की वारदात
सफल हो पाती है ,
कभी कभी तो जान भी
सूखती लगती है,
सच में
चोरी करते हुए
कभी कभी तो
उलझन भी होती है।

आज चोरी के क्षेत्र में
बहुत ज़्यादा
प्रतिस्पर्धा हो गई है ,
इसलिए हर पल
चौकस और चौकन्ना
रहना पड़ता है,
तब कहीं जाकर
सफलता होती है मयस्सर।
कभी कभी इसमें रह जाती है कौर कसर ,
मन के भीतर पनपने लगता है डर।
आज चोर को शिकायत है कि
अब बड़े बड़े लोग भी इसमें उतर रहे हैं ,
अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
वे नए नए हथकंडे आजमा रहे हैं।
चोर की भी अपनी एक नैतिकता होती है ,
वे इस पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।
चोरी करने वाले कभी कभी बेवज़ह पकड़े जा रहे हैं,
बस शक की गुंजाइश की वज़ह से !
बेवज़ह की ज़ोर आजमाइश की वज़ह से !
सभी चोर इस बाबत सतर्क हो जाएं !
कभी भी आसानी से पकड़ में न आएं !!
१७/०२/२०२५.
पत्नी
यदि अच्छी है
तो जोरू का गुलाम
बनने और कहलाने में
काहे का हर्ज़ है,
यह तो डरपोक और कुटिल
इंसानों के भीतर पैदा हुआ मर्ज़ है,
इस रोग से
जितना जल्दी बचा जाए,
उतना अच्छा है!
पत्नी सेवा करना
हर बहादुर पति का फ़र्ज़ है।
यह समझ
सुलझे इंसानों के धुर भीतर दर्ज़ है।
सचमुच जोरू का गुलाम
शांति प्रिय होता है,
बेशक
वह दोस्तों की
आँखों में
हरदम खटकता है।
वह आसानी से कहाँ भटकता है ?
उसका मन
पत्नी सेवा में ही
जो
अटकता है।
ख़ुशी ख़ुशी
जोरू का गुलाम बनिए ,
जीवन में खुशियों को वरिए।
22/03/2025.
सब कुछ
मेरे वश में रहे।
यह सब सोच
जीवन में भागता रहा,
बस भागता रहा
और हांफता हुआ
खुद का नुक़सान किया,
भीतर ही भीतर
वेदना झेलता रहा।

मैं भी बस एक मूर्ख निकला।
खुद से ही बस लड़ता रहा ,
मतवातर खुद की
महत्वाकांक्षाओं के बोझ से
दबता रहा , सच कहने से
हरदम बचने की कशमकश में रहकर
भीतर ही भीतर डरता रहा।
जीवन पर्यन्त कायर बना रहा।
लेकिन अब मैं सच कह कर रहूंगा।
अपना तनाव कम करके रहूंगा।
कब तक मैं दबाव सहूंगा ?
ऐसे ही चलता रहा, तो मैं
अपने को खोखला करूंगा।
बस! बहुत हुआ , अब और नहीं ?
मैं खुद को सही इस क्षण करूंगा।
तभी जीवन में आगे बढ़ सकूंगा।
04/01/2025.
अपनी ही मौज में आकर
यदि कोई
अपनी संभावना की खोज में
अग्रसर होना चाहता है
तो इससे अच्छी क्या बात होगी।
वह क्षण कितना महत्वपूर्ण होगा
जब आदमी की खुद से मुलाकात होगी।
आदमी अपनी संभावना का पता लगाएगा ,
वह अपने भीतर निहित
ऊर्जा का रूपांतरण कर पाएगा,
जीवन में
नव संचार कर जाएगा ,
वह अपने जीवन को सार्थक कर पाएगा।
हरेक स्थिति में आदमी जूझता रहे ,
जीवन के उतार चढ़ावों के बावजूद
वह सतत् आगे ही आगे बढ़ता रहे ,
देखना , वह अपनी संभावना को खोज पाएगा।
वह अपनी प्रसन्नता और संतोष के
मूल स्रोतों को ढूंढ ही लेगा।
वह अपनी अस्मिता को जान ही लेगा।
तदनंतर वह अपना कायाकल्प स्वत: कर लेगा।
जीवन संभावना की खोज से बंधा है।
यदि यह बंधन न रहे तो आदमजात भटक जाए !
वह जीवन की विषम परिस्थितियों में विचलित हो जाए !
उसकी घर वापसी की संभावना  संभवतः धूमिल हो जाए !
इसलिए यह जरूरी है कि आदमी शिद्दत से
जीवन में सफलता हासिल करने के प्रयास करे !
वह अपने जीवन की दिशा को निर्धारित करने की खातिर उद्यम करे !!
१८/०३/२०२५.
मन में कोई बात
कहने से रह जाए
तो होती है
कहीं गहरे तक
परेशानी।
कौन करता है
एक आध को छोड़कर
मनमानी ?
असल में है यह
नादानी।
इस दुनिया जहान में
बहुत से हिम्मती
सच का पक्ष
सबके समक्ष
रखने की खातिर
दे दिया करते हैं
अपना बलिदान।
अभी अभी सुनी है
हृदय विदारक
एक ख़बर कि
सच के पुरोधाओं को
पड़ोसी देश में
किया जा रहा है
प्रताड़ित।

यह सुन कर मैं सुन्न रह गया।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का पक्षधर
आज चुप क्यों रह गया ?
शायद ज़िन्दगी सबको प्यारी है।
पर यह भी है एक कड़वा सच कि
बिना अभिव्यक्ति की आज़ादी के
सर्वस्व
बन जाया करता
भिखारी है।
यह सब चहुं ओर फैली
अराजकता
क्या व्यक्ति और क्या देश दुनिया
सब पर पड़ जाया करती भारी है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंदिशें लगाना
आजकल बनती जा रही
देश दुनिया भर में व्याप्त
एक असाध्य बीमारी है।
१५/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
निजता को
यदि बचाना है
तो कीजिए एक काम।
मोबाइल तंत्र से
प्रतिदिन
कुछ घंटों के लिए
ले लीजिए विश्राम।
ताकि तनाव भी
तन से दूर रहे,
निज देह में
नेह और संवेदना बनी रहे।
Joginder Singh Nov 2024
कभी-कभी
झूठ मजबूर होकर
बोला जाता है,
उसे कुफ्र की हद तक तोला जाता है।
और कोई जब
इसे सुनने, मानने से
कर देता इन्कार,
तब उस पर  दबाव बनाया जाता है,
शिकंजा कसा जाता है।

ऐसे में
बचाव का
झट  से   एकमात्र उपाय
झूठ का सहारा  नजर आता है ,
ऐसा होने पर,
झूठ डूबते का सहारा होता है।
आदमी
जान हथेली पर रखकर
बेहिसाब दबाव से जूझते हुए
जान लेता है
जीवन का सच!
विडंबना देखिए!!
यह सच
नख से शिखा तक
झूठ से होता है
पूर्णतः सराबोर,
चाहकर भी आप जिसका
ओर छोर पकड़ नहीं पाते ,
भले ही आप कितने रहे हों विचलित।
कभी-कभी
झूठ,सच से ज़्यादा
रसूख और असर रखता है,
जब वह प्राण रक्षक बनता है।
आदमी झूठ का असर महसूस करता है।
ऐसे दौर में
झूठ,सच पर हावी होकर
विवेक तक को धुंधला देता है।
आदमी गिरावट का हो जाता शिकार।

सोचता हूं ...
आजकल कभी कभी
आखिर क्या है आदमी के भीतर कमी?
अच्छा भला, कमाता खाता ,
आदमी क्यों नज़र से गिर जाता है?

रख रहा हूं ,
अपने आसपास का घटनाक्रम।
जब झूठ
सच को
पूर्णतः ढकता है,
आदमी भीतर तक थकता है
और तब  तब
अन्याय का साम्राज्य फलता-फूलता है।

आजकल
लोग लोभी होकर
बहुत कुछ नज़र अंदाज़ करते हैं,
अपने अन्त की पटकथा को निर्देशित करते हैं।
आज मेरे भीतर अंतर्कलह है
मैं अपने पिता के साथ
सरकारी स्वास्थ्य विभाग द्वारा
संचालित सेवाओं का लाभ उठाने आया हूँ ।
बहुत से लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवा से
असंतुष्ट प्राइवेट अस्पताल से
करवाना चाहते हैं इलाज़।
इसका कारण स्पष्ट है कि
उन्हें नहीं है विश्वास,
सरकारी चिकित्सा से
वे कर पाएंगे स्वास्थ्य लाभ।
वे प्राइवेट अस्पताल में
लूटे जाते हैं।
वहाँ के डॉक्टर भी तो
कभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में
इलाज़ करने की अनुभव प्राप्ति के बाद
प्राइवेट अस्पताल में
चिकित्सा कार्य को निभाते हैं।
अच्छा रहे , यदि आम आदमी समय रहते
सरकारी अस्पताल से
अपने रोग की
चिकित्सा करवाए,
ताकि वह अपनी जिन्दगी में
बेहतर और प्रभावी चिकित्सा विकल्प को तलाश पाए।

मेरे पिता खुद भी एक स्वास्थ्य विभाग से
जुड़े पदाधिकारी रहे हैं,
वे अपने विभाग के कार्यों की गुणवत्ता को
अच्छे से पहचानते हैं।
यदि सभी सरकारी चिकित्सा कार्यों का लाभ उठाएं
तो किसी हद तक आम आदमी
सुरक्षित जीवन की आस रख सकता है ,
सचेत रह कर जीवन में संघर्ष ज़ारी रख सकता है।

इस फरवरी महीने में
मेरे पिता जी नब्बे साल के हो जाएंगे ।
वे बहुत
ज़्यादा बीमार हैं
पर उनके भीतर की जिजीविषा ने
उन्हें जीवन की दुश्वारियों के बावजूद
हौंसले वाला बनाया हुआ है,
मरणासन्न स्थिति में
सकारात्मक विचारों से जोड़ कर
जीवन्त बनाया हुआ है।

उनके जीवन जीने के ढंग ने
मुझे यह सिखाया है कि
बुढ़ापे में कैसे आदमी अपनी कर्मठता से
जीवन को सक्रिय रूप से जी सकता है।
वह जिंदादिली से मौत के ख़ौफ़ को
अपने वजूद से दूर रख
स्वयं को शांत चित्त बनाए रख सकता है,
जबकि आम आदमी जल्दी घबरा जाता है,
वह समय आने से पहले
विचलित, हताश और निराश हो
अपने स्वजनों को दुखी कर देता है,
आप भी कष्ट झेलता है
और परिजनों को भी दुःख,तकलीफ व पीड़ा देता है।

सालों पहले सपरिवार पिता जी के साथ
पहाड़ों की सैर करने गया था।
वहाँ का एक नियम है कि
अगर चलते चलते सांस फूल जाए
तो मतवातर चलने की बजाए
थोड़ा रुक रुक कर आगे बढ़ो।
आज पिता को पहाड़ नहीं ,
मैदान में चलते हुए
उसी नियम का पालन करते देखता हूँ
तो मुझे खरगोश और कछुए की कहानी याद आती है,
लेकिन बदले संदर्भ में
कभी पिता जी खरगोश की तरह
तेज गति से मंज़िल की ओर बढ़ते थे
और आज वे बहुत धीरे धीरे चलते हैं,
सांस फूलने पर रुकते हैं,
दम लेते हैं और आगे बढ़ते हैं।
तकलीफ़ होने पर वे चिल्लाते नहीं,
बल्कि प्रभु का नाम लेते हैं ।
उनके आसपास घर परिवार के सदस्य
समझ जाते हैं कि वे पीड़ा में हैं।
सभी सदस्य चौकन्ने और शांत हो जाते हैं।
वे उनके साथ मन ही मन प्रार्थना करते हैं,
अब जीवन प्रभु तुम्हारे हाथ में है,
आप ही जीवन की डोर को संभालना,
और जीवात्मा को उसकी मंज़िल तक पहुँचा देना।
०३/०२/२०२५.
भोजन भट्ट
खा गया चटपटे खाद्य पदार्थ !
ले ले कर स्वाद
झटपट !
अब ले रहा है
नींद में झूट्टे
और थोड़ी थोड़ी देर के बाद
बदल रहा है करवट,
रेल सफर के दौरान।
चेहरा उसका बता रहा
वह ज़िन्दगी के सफर में भी है
संतुष्ट !
आदमी जिसे
भोजन से मिल जाए
परम संतुष्टि !
हे ईश्वर!
ऐसे देव तुल्य पुरुष पर
बनाए रखना
सर्वदा सर्वदा
अपनी कृपा दृष्टि !
देश दुनिया के बाशिंदों को
दिलाते रहना हमेशा
खाद्य संतुष्टि !
हम जैसे प्राणी भी
श्रद्धापूर्वक करते रहें
ईश्वरीय चेतना की स्तुति
ताकि सभी संतुष्ट जन
जीवन यात्रा के दौरान
अनुभूत कर सकें
दिव्यता से परिपूर्ण
अनुभूति !
वे खोज सकें
मार्ग दर्शक विभूति !!
२७/०२/२०२५.
113 · Nov 2024
Protect The Constitution
Joginder Singh Nov 2024
Here,in my country
constitutional institutions are
in deep trouble.
In my neighborhood countries
such an instability can also be seen.
Someone has guessed
the forces behind such crisis
can be associated with deep state,which is very active through out the world.
What can we do to check on these hurdles?
Think over it to save democracy and other setups of the different states.
Today anarchy is very harmful and dangerous.
So protect the constitution of yours respective statehood.
In critical times,
let us become self critical,
and follow the rules and regulations of the state.
Joginder Singh Nov 2024
"दंभ से भरा मानस
नरक ही तो भोगता है, ... । "
इसका अहसास
दंभी होने पर ही हुआ।
वरना इससे पहले मैं
नासमझी से भरा
जीवन को समझता फिरा
महज़ एक जुआ।
अब मानता हूँ,
"जब जब हार मिली,
तब तब आत्मविश्वास की चूल हिली ।"
  १७/१०/२०२४
111 · Dec 2024
An Interlude
Joginder Singh Dec 2024
We all are
playing our respective
alloted roles
on a stage of the world.

But here ,
an Interlude exists.

I usually think about the performance of us .

Sometimes
I think while blinking in
the light of present
context of the life
that
who include Interlude
in my life with replacing
his philosophy of life during an ever waiting intermission of dramatic changes in the battlefield of life.

I keep myself silent while thinking about Interlude.
अपनी मातृ भाषा में
क्रिकेट कमेन्ट्री सुनकर मज़ा आ गया !
इसका लुत्फ़ हंसी-मज़ाक से भी ज़्यादा आया !!
अब जब भी मन करेगा मैं इस खेल की
कमेन्ट्री हरियाणवी में सुनूंगा।
अपने भीतर खुशियां लबालब भरूंगा।
यदि आप हिंदी और हरियाणवी को समझते हैं
तो खेल की कमेन्ट्री हिंदी में न सुनकर
हरियाणवी में सुन लीजिए,
अपने भीतर भरपूर प्रसन्नता भर लीजिए ।
तनिक  जीवन में उदासी को भूल कर
थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक का तड़का जीवन में लगा कर
अपनी स्वाभाविक खिलखिलाहट से दोस्ती कर लीजिए।
कम से कम थोड़े समय के लिए तनावमुक्त हो लीजिए।
इस जीवन में हंसी मज़ाक,
ठहाकों  और कहकहों का आनन्द अवश्य लीजिए।
यही नहीं अपने जीवन की कमेन्ट्री भी  
कभी कभी खुद किया कीजिए।
ज़िन्दगी को जिन्दादिली से जीने का तोहफा दीजिए।
०४/०५/२०२५.
108 · Mar 13
फीकी चाय
जिन्दगी से मिठास
यकायक चली जाए
तो यह किसे भाए ?
यह फीकी चाय जैसी हो जाए।
कीजिए आप सब
अपने सम्मिलित प्रयासों से
जीवन में मधुरता लाने का उपाय।
जिन्दगी से मिठास
कभी भी यकायक
नहीं जाया करती ,
यह जाने से पहले
दिनचर्या से जुड़े
छोटे छोटे इशारे
अवश्य है किया करती।
यह भी सच है कि
जिन्दगी अपनी रफ़्तार
और अंदाज़ से
है सदैव
आगे बढ़ा करती।
आप से अनुरोध है कि
जीवन में
न किया कीजिए
सकारात्मक सोच का विरोध
बात बात पर
ताकि सहिष्णुता बची रहे ,
जिन्दगी में उमंग तरंग बची रहे।
जीवन की मिठास आसपास बनी रहे।
जीवन यात्रा में सुख समृद्धि की आस बनी रहे।
१३/०३/२०२५.
108 · Dec 2024
Present Yourself Humbly
Joginder Singh Dec 2024
The presentation
without preparation
always brings humiliation in life.
So , one must observe and understand
the sequence of life 's activities minutely.

Remember and consider it seriously in one's life ,
brother !
Humiliation always
Compels us to cry.

So, let us prepare ourselves first.
Then we can present ourselves with ease and naturally.
If we take the life 's matter lightly,
we put ourselves in a state of perplexing and harmful situation.
In such a miserable postion, people always try to humiliate and tease our existence.

So dear friend,
present yourself humbly in life.
If you are capable to implement this suggestion in life.
Then , people around you , will listen your views regarding life and other issues seriously.
आज के दिन  
तीस जनवरी की तारीख को
अचानक
देशवासियों को
झेलना पड़ा था आघात ,
जब किसी ने
राजनीति के चाणक्य को
दिया था
चिर निद्रा में सुला ,
सत्य अहिंसा और सत्ता के
केन्द्रबिन्दु रहे
महात्मा पर
गोलियां चला ।
वज़ह
स्पष्ट थी ,
आदमी के भीतर बसी ,
अकड़ और हठधर्मिता ,
छीन लेती है
आदमी का विवेक।

दोनों पक्ष
स्वयं को
मानते हैं सही।  
वे नहीं चाहते करना
अपने दृष्टिकोण में
समयोचित सुधार करना,
फलत: झेलते हुए पीड़ा,
दोनों ही समाप्त हो जाते हैं,
अपने आगे बढ़ने की संभावना के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर जाते हैं।

राजनीति के चाणक्य की
सलाह
कभी भी राजनीतिज्ञों ने
दिल से मानी नहीं,
फलत:
महात्मा को कुर्बानी देनी पड़ी।

आज देश
अराजकता के मुहाने पर खड़ा है।
देश अपनी टीस को भूलकर
तीस जनवरी को
सायरन की आवाज़ के साथ  
मौन श्रद्धांजलि देने को होता है उद्यत।
सब शीघ्रातिशीघ्र आदर्शों को भूलकर
अपनी जीवनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं ।
वे ‌फिर से नव वर्ष के आगमन
और तीस जनवरी के इंतजार में रहते हैं
ताकि फिर से महात्मा को याद किया जा सके,
उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा सके।
मुझे क्या सभी को
तीस जनवरी का व्यग्रता से
रहता है इंतज़ार
ताकि महात्मा को याद कर सकें ,
बेशक उनके आदर्शों से सब मुंह मोड़े रहें।
३०/०२/२०२५.
,
107 · Nov 2024
Meaning of failure
Joginder Singh Nov 2024
I have just learnt the meaning of failure in life.
Five months ago,
while visiting a school,
I read all of sudden on the wall....
F.A.I.L.
The narration of failure was dancing in my mind.
I further start reading the lines written on the wall.
F....is first
Be competitive and attain success in life.
It will bring moments of pride in your
miserable life.
So don't cry over petty happenings in life.

A....is attempt.
Think a little about your initiatives taken in life.
And follow the message of success in the sentence,as mentioned here....
To gain try again and again,till you attain gains in life.
I means....in.
The world arround you is like an inn.
You have come here only to win over
the difficulties facing in life.
I can also represent the ego of a person which is  root cause of the failure.
L..... represents the desires to learn in life.
And learning, constantly brings prideful moments in life.

At the same time,
I was mingling the past, present and too some extent my futuristic dreams of life.
I know very well about of my dreams.Some are based on the solid grounds of harsh realities, and some are ground less, totally based on imagination and fancy.

Now my consciousness warns me...
"Don't ignore your failures...
Learn something positive from your unsuccessfulness in life.

So that you should be able to feel,...
What is the secret behind the
unbreakable successes of successful persons in a nation's life.
Always remember  that failures work as the motivations ,which are part and parcel of our lives. "
106 · Nov 2024
Impossible
Joginder Singh Nov 2024
My hero often repeats a sentence,
"Nothing is impossible in the world of love and war."
And, his opponent oftenly repeats a sentence ,"I want peace on rent in this cunning world."
And myself while thinking about their destiny , suddenly conclude that both are wrong to follow their ways .
The world of love and war is like a toy made of clay to play in the hands of dictators and lovers.
Peace on rent is absolutely a ridiculous  impossible idea which cannot be executed in the world of love, hate , rivalries, inequality, dissatisfaction,jealousy and war.
The warmth of life is still miles away from us and so is the peace, contentment,love,affection,attraction and also satisfaction in day to day lives of ambitious human beings.
बूढ़ा हो चुका हूँ ।
अभी भी
मन के भीतर
गंगा जमुनी तहज़ीब का
जुनून बरकरार है ।
भीतर की मानसिकता
घुटने टेकने
क्षमा मांगने वाली रही है ,
फलत:अब तक
मार खाता रहा हूँ ।

अभी अभी
पहलगाम का
दुखांत सामने आया है ,
जिसने मुझे
मेरे अंत का मंज़र
दिखाया है।
अगर अब भी इस
गंगा जमुनी तहज़ीब के
जाल में फंसा रहा
तो यकीनन बहेलिए के
जाल में ,
उस द्वारा फेंके गए
दानों के लोभ में
ख़ुद को फंसा हुआ पाऊंगा,
कभी छूट भी नहीं पाऊंगा।
बस उस के जाल में
फड़फड़ाता रह जाऊंगा।
शाम तक
रात के भोजन का
निवाला बनने के निमित्त
हांडी पर पकाया जाऊंगा।
यह ख्याल
अभी अभी
जेहन में आया है।
मुझे शत्रु बोध की
अनुभूति होनी चाहिए।
मुझे मिथ्या सहानुभूति
कतई नहीं चाहिए।
कब तक अबोध बना रहूंगा ?
बूढ़ा होने के बावजूद
बच्चों सा तिलिस्मी माया जाल में
फंसा हुआ तिलमिलाता रहूंगा।
कब मेरे भीतर शत्रु बोध पैदा होगा ?
.... और ‌मैं अस्तित्व रक्षा में सफल रहूंगा।
आप भी अपने भीतर शत्रु बोध  को जागृत कीजिए।
अपने प्रयासों से जिजीविषा को तीव्रता से अनुभूत कीजिए।
सुख समृद्धि और सम्पन्नता से नाता जोड़ लीजिए।
२९/०४/२०२५.
105 · Nov 2024
During These Days
Joginder Singh Nov 2024
Waves of illusions are floating towards us.
During these days all of us are perplexed.
What is our future and fate?
Let us  think and
decide in this regard immediate.
104 · May 4
Belongingness
The feeling of belongingness keeps us
fit and fertile in the race of survival.
Otherwise we all behave
like passionless animals
who moves aimlessly in life.
A sense of security is always required in life.
Belongingness  usually provides us such protection
and keeps us secured.
04/05/2025.
102 · Dec 2024
Be Original in Life.
Joginder Singh Dec 2024
Connecting to original
makes us too some extent original
as our origin speaks itself.
If you are an introvert soul and keen not to express your self to others.
It is quite good signs for the upliftment of peace and happiness of life, which exists inside only.
The worldly activities are eagerly waiting your participation.

And, more or less you are an extrovert
soul as your day to day activities of daily life speaks.

If you are eager to express your curiosity regarding outer world and it's tendencies.
It is useful and fruitful also.  
Your opinions regarding 'eat,drink and be marry,' can be heard from your  actions for worldly pleasures.
We need  your advice as you proved wisely  while spending your time to attain materialistic goals in life.


We are living in a world of uncertainties.
For  a peaceful, successful journey of life, let's modify our life style .
We  should maintain a balance between our desires, dreams and urgently required needs.
So that we should be able to feed our hungry soul,which is utmost important for the elevation as well as the upliftment of body,mind and soul.

So  you must try yourself to become  a good person in present life.
And connect your futuristic dreams to originality of the life.
सब एक दौड़ में
ले रहे हैं हिस्सा।
कौन किस से आगे जा पाए ?
इसका ढूंढें कैसे उपाय ?
इसकी बाबत सोच सोच कर
बहुत से लोग
भुला बैठे अपना सुख चैन।
चिंता और तनाव से
चिता की राह पर
असमय चल पड़े हैं,
क्या वे स्वयं को नहीं छल रहे हैं ?
यही बनती है अक्सर आदमी की हार की वज़ह।
ढूंढे से भी नहीं मिल पाती इस हारने के दंश की दवा।
ऊपर से दिन रात चलने वाली
एक दूसरे से आगे निकलने , हराने , विजेता कहलाने की होड़ ,
आदमी को सतत् बीमार कर रही है।
आधी से ज्यादा लोगों की आर्थिकता पर
यह व्यर्थ की दौड़ धूप और भागम भाग
चोट कर रही है।
इसकी मरहम भी समय पर नहीं मिल रही है।
यह सारी गतिविधि
आदमी को बेदम करती जा रही है।
दम बचा रहा तो ही हैं हम !
बस ! इस छोटी सी बात को समझ लें हम !
तब ही सब अस्तित्व की लड़ाई जीत पाएंगे हम !
वरना निरंतर हारने की मनोदशा में जाकर हम !
कब तक अपने को सुरक्षित रख पाएंगे हम ?
फिर तो जीवन में
बढ़ता ही जाएगा
कहीं न पहुँचने की टीस से उत्पन्न गम।
इस समस्या की बाबत
ठंडे दिल से सोचो ।
पागलपन की दौड़ से
समय रहते  ख़ुद को बाहर निकालो।
ख़ुद को  
अनियंत्रित हो जाने से रोको।
०७/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
शब्द
कुछ कहते हैं सबसे,
हम अनंत काल से
समय सरिता के संग
बह रहे हैं।

कोई
हमें दिल से
पकड़े तो सही,
समझे तो सही।
हम खोल देंगे
उसके सम्मुख
काल चेतना की बही।

कैसे न कर देंगे हम
जीवन में,आमूल चूल कायाकल्प।
भर दें, जीवन घट के भीतर असीम सुख।
२६/१२/२००८.
व्यर्थ का भाषा विवाद
न केवल
संवाद में
बाधक सिद्ध होता है ,
बल्कि
यह एक झूठ बोलने से भी अधिक
ख़तरनाक है ,
जो देश, दुनिया में
आदमी की अस्मिता पर
करता कुठाराघात है।
यही नहीं
यह समाज विशेष की
प्रगति को भी देता है रोक।
यह प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों में
उत्पन्न कर देता है
आदमी को
झकझोर देने में सक्षम
अंतर्चेतना को उद्वेलित करती
शोक की लहरें।

इस समय देश में
भाषा विवाद को
भड़काया जा रहा है ,
हिंदी का भय दिखलाकर
अपनी राजनीतिक रोटियों को
सेका जा रहा है।
कितना अच्छा हो , हिंदीभाषी भी
दक्षिण की भाषाएं सीख लें।
वे हिंदी में डब्ब की
दक्षिण भारत की फिल्में
मूल भाषा में देखकर
संस्कृति का आनंद उठाएं,
अपनी समझ बढ़ाएं।

एक  ऐसे समय में
जब कुछ भाषाएं
मरण शैय्या के नजदीक
विलुप्ति की कगार पर हैं,
तो क्यों न उनको अपनाया जाए।
क्यों व्यर्थ के भाषा प्रकरण पर
विवाद बढ़ाया जाए ?
आओ इस बाबत संवाद रचाया जाए।
राष्ट्रीय एकता के स्वरों से
देश को आगे बढ़ाया जाए।
२०/०३/२०२५.
99 · Mar 1
खलना
उम्र जैसे जैसे बढ़ी
मुझे ऊंचा सुनने लगा है ।
जब कोई कुछ कहता है,
मैं ठीक से सुन पाता नहीं।
कोई मुझे इसका कराता है
चुपके चुपके से अहसास।
मैं पास होकर भी हो जाता हूं दूर।
यह सब मुझे खलता है।
वैसे बहुत कुछ है
जो मुझे अच्छा नहीं लगता।
पर खुद को समझाता हूं
जीवन कमियों के साथ
है आगे मतवातर बढ़ता।
इस में नहीं होना चाहिए
कोई डर और खदशा।
०१/०३/२०२५.
समझो !
मान लो कि
आप के  मोबाइल रीचार्ज के खाते में
इंटरनेट कनेक्टिविटी का पैक
हो जाए समाप्त
अचानक।
आप इस स्थिति में भी
नहीं कि झटपट से
डेटा पैक ले सकें ,
आप डेटा लोन भी लेना नहीं चाहते।
लगता है
ऐसे में
खेला हो गया ,
पैक अप हो गया।
सुख सुकून
कहीं खो गया।
अगर आदमी ठान ले
अब और भुलावे में नहीं रहना है,
इस सब झमेले से पिंड छुड़ाना है,
अचानक चमत्कार हो जाता है,
आदमी इंटरनेट कनेक्टिविटी के
जाल से निकल
क्षण भर के लिए
सुख पा जाता है।
परंतु यह क्या ?
आदमी
फिर से
इंटरनेट पैक लेने की
जुगत लड़ाता है।
वह दोबारा से कैदी बन जाता है,
बगैर हथकड़ियों के,
एक खुली कैद का सताया हुआ।
भीतर तक
नेट कनेक्टिविटी के
नशे का शिकार!
नेट के मायने भी
जाल होते हैं,
इस जाल में फंसे
लोग वीडियो देख देख कर ,
वीडियो बना बना कर,
आजकल बहुत खुश होते हैं ,
देखें, हम लाइक्स देख कर
कितने पगला जाते हैं !
आधुनिक जीवन के
मकड़जाल में फंसे रह जाते हैं!
अब छुटकारा मुश्किल है ,
अक्ल पर पर्दा पड़ चुका है।
आदमी भीतर तक थक चुका है।
०८/०४/२०२५.
दुनिया के भीतर
आदमी का सुरक्षा कवच
होती है मां
और मां को सुरक्षा
देता है उसका पुत्र।
मां ही
पुत्र की दृष्टि में
दुनिया के भीतर
सबसे सुंदर होती है
क्योंकि कि
मां पुत्र की
पहली शिक्षिका होती है
जिसके सान्निध्य में
जीवन का बीज
अंकुरित होता है
और यह पुष्पित पल्लवित भी
मां की अपार कृपा से होता है।
ममत्व की मूर्ति मां की आत्मा
पुत्र में बसती है
और पुत्र की कमज़ोरी
उसकी मां होती है।
पुत्र मां को दुखी नहीं देख सकता।
उसके लिए वह लड़ भी है पड़ता।
एक सच कहूं
पुत्र की नज़र में
मां की सुन्दरता
अनुपम होती है।
मां में कायनात बसती है।
मां में जीवन की खुशबू रहती है।
मां के न रहने पर
सुध बुध सुख की गठरिया
बिखर जाती है।
अकेले होने पर
मां बहुत याद आती है।
उसकी अनुभूति
जीवन की शुचिता की
प्रतीति कराती है।
मां होती है सबसे सुंदर
उसकी यादों में बसता है
भावनाओं  का समन्दर।
११/०५/२०२५.
चारों तरफ
अफरातफरी है।
लोग
प्रलोभन का होकर
शिकार ,
अनाधिकार
स्वयं को
सच्चा साबित
करने का कर
रहें हैं प्रयास।

अनायास
हमारे बीच
अश्लीलता
विवाद का मुद्दा
बन कर
अपनी उपस्थिति का
अहसास कराती है,
यह अप्रत्यक्ष तौर पर
समाज को
आईना दिखाती है।

हमारे आसपास
और मनों में
क्या कुछ अवांछित
घट रहा है ,
हमें विभाजित
कर रहा है।

कोई कुछ नहीं जानता।
यदि जानता भी तो कुछ भी नहीं कहता
क्योंकि
अश्लील कहे जाने का डर
भीतर ही भीतर
सताने लगता ,
जो सृजित हुआ है
उसे मिटाने को
बाध्य करता।

इर्द गिर्द
आसपास फैल
चुका है
मानसिक प्रदूषण
इस हद तक कि
पग पग पर  
साधारण जीवन स्थिति को भी
अश्लीलता के दायरे में
लाए जाने का खतरा
है बढ़ता जा रहा।
सवाल यह है कि
अश्लील क्या है ?
जो मन पर
एक साथ चोट करे ,
मन को गुदगुदाए और लुभाए ,
अंतरात्मा को भड़काए ,
इसके आकर्षण में
आदमी लगातार
फंसता जाए ,
उससे पीछा न छुड़ा पाए ,
अश्लीलता है।
यह टीका टिप्पणी,
गाली गलौज ,
अभद्र इशारे ,
नग्नता और बगैर नग्नता के
अपना स्थान बना लेती है ,
हमारी जागरूकता का
उपहास उड़ा देती है ,
अकल पर पर्दा डाल देती है।
यह अश्लीलता अच्छे भले को
महामूर्ख बन देती है,
आदमी को माफी मांगने ,
दंडित होने के लिए
न्यायालय की पहुँच में
ले जाती है।
कितना अच्छा हो ,
यदि आदमी के पास
मन को पढ़ने की सामर्थ्य होती
तब अश्लीलता इतनी तबाही मचाने में
असफल रहती ,
जितनी आजकल यह
अराजकता फैला रही है,
अच्छी भली जिंदगियां
इसकी जद में आकर
उत्पात मचाने को
आतुर नज़र आ रही हैं।
सच तो यह है कि
अश्लीलता हमारी सोच में
यदि जिन्दा है
तो इसका कारण
हमारे सोचने और जीवनयापन का तरीका है,
यदि हम प्रेमालाप, अपने यौन व्यवहार पर
नियंत्रण करना सीख जाएं
तो अश्लीलता
हमारे मन-मस्तिष्क में
कोई जगह न बना पाए ,
यह सृजन से जुड़
हमारी चेतना का कायाकल्प कर जाए।

अश्लीलता
आदमी के व्यवहार में
जिंदा रहती है,
आदमी
सभ्यता का मुखौटा
यदि शिष्टाचार वश ओढ़ना सीख ले ,
अश्लीलता विवादित न रह
गौण और नगण्य रह जाती है,
यह समाप्त प्रायः हो जाती है।
यह भी सच है कि
कभी कभी
यह हम सब पर हावी हो जाती है,
और हमारी चेतना को
शर्मसार कर जाती है,
हमें खुद की दृष्टि में
विदूषक सरीखा
और नितांत बौना बना देती है,
हमारी बौद्धिकता के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित कर देती है।
अश्लीलता
कभी कभी
हमें दमित और कुंठित सिद्ध करती है ,
यह मानव के चेहरे पर
अप्रत्याशित रूप से
तमाचा जड़ती है।
यह आदमी के जीवन में
तमाशा खड़ा कर देती है ,
उसे मुखौटा विहीन कर देती है,
यह बनी बनाई इज़्ज़त को
तार तार कर दिया करती है।
10/02/2025.
95 · Nov 2024
Love Birds
Joginder Singh Nov 2024
Nowadays walking in a garden is not so easy.
Love Birds often sit on benches, enjoying picnic in the corners of the garden to avoid general public.

Old man like me usually disturbed.
Sometimes we restrict ourselves in the garden so that our young generation can enjoy their lives undisturbed.
अन्याय
तन मन में आग
लगाता रहा है ,
यह भीतर को
फूंकता ही नहीं ,
बल्कि आदमी को
हद से ज़्यादा
बीमार और लाचार
बना देता है ,
यह थका देता है।
अन्याय
ज़ोर ज़बरदस्ती
जबरन झुकने के लिए
बाध्य करने वाला
धक्का है ,
यह वह थपेड़ा है,
जिसने यकायक
आदमी को
भीतर तक तोड़ा है।
इसका विरोध
हर सूरत में
होना ही चाहिए।
अन्याय से मुक्ति के लिए
कोई जन आन्दोलन होना ही चाहिए।
कौन सहेगा अन्याय अब
और अधिक देर तक
इस बाबत सब को
समय रहते विरोध की खातिर
खड़ा होना ही चाहिए।
कोई भी व्यक्ति
इसका शिकार नहीं बनना चाहिए।
बस इस की खातिर
सब को स्वयं को
जागरूक बनाना होगा ,
विरोध करने का बीड़ा उठाना होगा ,
समय बार बार नहीं देता
समाज से अन्याय और शोषण जैसी
गन्दगी साफ़ करने का मौका।
अब भी विरोध का सुर
बुलन्द न किया
तो यह निश्चित है
कि भविष्य
अनिश्चित काल तक
धूमिल बना रहेगा,
इसके साथ ही
मिलता रहेगा
सब को क़दम क़दम पर धोखा।
अन्याय का विरोध करना
सब का फ़र्ज़ है ,
विरोध से पीछे हटना और डरना
बन चुका है अब मर्ज़
समाज में।
आज अन्याय को कौन सहे ?
क्यों अब सब
देर तक मौन रहें ?
क्यों न सब
विरोध और प्रतिरोध के
सुर मुखर करें ?
वे अन्याय और शोषण की
ख़िलाफत करें ।
०६/०४/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
Eyes are watching constantly our human activities.
Too much  workload on them can make us blind.
That' s why we must keep control on our self to spend excessive amount of time to view the 📺,T.V., 🖥️ computer, 📱 mobile phone etc., is harmful.

For such reasons
all of us must keep our eyes
neat and clean.
Preferably we must reduce our screen time for the healthy eyes.

Eyes works as a gateway to the World as well as Universe.
Too much usage of eyes can bring a curse and damage to human lives .

Protect  your eyes first.
They also works as the windows of the life.

Eyes are very sensitive towards light.
They have abilities to adjust the amount of light  present in our surroundings.
But they have limitations, we must try ourselves to know about these limitations.
Light plays a very important role in our lives.
It is essential for our eye sight.

Loss of light makes life miserable. In this regard sound sleep and rest must  be preferable to us.
एक अराजक समय में
जीवन बिताते हुए
पड़ोस अच्छा होने के बावजूद
हरदम मनमुटाव होने का खटका बना रहता है ,
जबकि मेरे पड़ोसी
सहयोग और सद्भाव बनाए रखें हैं।
मैं अपनी मानसिकता की बाबत क्या कहूं ?
यह भी सच है कि यदि कोई
विनम्रता पूर्वक आग्रह करे,
तो मैं सहर्ष अपार कष्ट सहने को तैयार हूं
और कोई बेवजह धौंस पट्टी जमाना चाहे
तो उसे मुंह तोड़ जवाब दूं ,
अन्याय हरगिज़ न सहन करूं।

एक अराजक समय में
जीवन गुजारने के लिए
मेरे देशवासी मजबूर हैं ,
बेशक उनके इरादे बेहद मजबूत हैं।
आंतक और आंतकवाद से
जूझते हुए उन्होंने संताप झेला है।
इस वजह से उनका जीवन बना झमेला है।
मेरे दो पड़ोसी देश
आज बने हुए
चोर चोर मौसेरे भाई हैं।
94 · Nov 2024
Hell
Joginder Singh Nov 2024
Where exists hell on earth or on any other planets?
It exists in our mind only.
It can take it 's existence only in our surroundings ,when nobody is following rules and regulations.
Indiscipline makes a peaceful and prosperous life like a hell,where the death' s bell starts appearing our near soon for a journey of hell.
92 · Nov 2024
Courtesy
Joginder Singh Nov 2024
If you have an inner desire to become a gentleman in real life.
Than, you must visit to a court , where without courtesy no execution is possible.

In court room,
justice is being provided with solid, concrete,authentic arguments.
Dear brother,here courtesy is not a fantasy , it becomes a reality there.
Joginder Singh Dec 2024
मौनी बाबा को याद करते हुए ,
जीवन धारा के साथ बहते हुए ,
जब कभी किसी वृक्ष को कटते देखता हूं,
तब मुझे आता है यह विचार कि
ये मौनी बाबा सरीखे
तपस्वी होते हैं।
सारी उम्र
वे
धैर्य टूटने की हद तक
सदैव खड़े होकर
श्वास परश्वास की क्रिया को
दोहराते हुए
अपनी जीवन यात्रा को पूरा करते हैं !
मौन का संगीत रचते हैं !!


आओ हम उनकी देख रेख करें,
उनकी सेवा सुश्रुषा करते रहें ।

आओ,
हम उनकी आयु बढ़ाने के प्रयास करें ,
न कि उन्हें
अकारण धरा पर
बिछाने का दुस्साहस करें।

यदि वे
सतत चिंतनरत से
धरा पर रहते हैं खड़े
तो वे न केवल
आकाश रखेंगे साफ़,
हवा , बादल , वर्षा को भी
करते रहेंगे
आमंत्रित ।

बल्कि
वे हमारे प्राण रक्षक बनकर
हमारी श्रीवृद्धि में भी बनेंगे
सहायक।

ऐसे दानिश्वर से
कब तक हम छल कपट करते रहेंगे ?
यदि हम ऐसा करेंगे
तो यकीनन जीवन को
और ज्यादा नारकीय करेंगे।
व्यक्तिगत स्तर पर
'डा.फास्टस' की मौत को करेंगे।

पेड़
ऋषिकेश वाले
मौनी बाबा की याद
दिलाते हैं।
वे प्रति दानी होकर
साधारण जीवों से
कहीं आगे बढ़ जाते हैं,
यश की पताका फहरा पाते हैं।

मानव रूप में
मौनी बाबा
अख़बार पढ़ते देखें जाते हैं
पर शांत तपस्वी से पेड़
खड़े खड़े जीवन की ख़बर बन जाते हैं ,
पर कोई विरला ही
उनका मौन पाता है पढ़।
उनसे प्रेरणा प्राप्त करते हुए
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का
जुटा पाता है साहस !
कर पाता है सात्विक प्रयास !!
  ०८/१०/२००७.
मनुष्य का
इस धरा पर आगमन
किस लिए हुआ ?
यह अकारण नहीं ,
क्या इस में कुछ रहस्य छिपा ?
मनुष्य
योनियों के एक मायाजाल से
उभरकर
विशेष प्रयोजनार्थ
लेता है जन्म।
उसमें
अन्य जड़ पदार्थों
और चेतन प्राणियों की
तुलना में
कुछ विशेष चेतना
धीरे धीरे
काल के समंदर से गुज़र कर
है विकसित हुई
ताकि वह चेतन की अनुभूति कर सके !
निरर्थकता से ऊपर उठकर
जीवन की सार्थकता को अनुभूत कर सके !
हमारे यहां सनातन में
कर्म चक्र के प्रति आस्था व्यक्त की गई है ,
कर्म फल यानी कार्य कारण संबंध !
कुछ भी नष्ट नहीं !
महज़ ऊर्जा का रूपांतरण !!
इस आस्था के साथ जनम !
जीवन धारा को
चेतना बनकर
आत्मा में प्रवेश करने का
साक्षात निमंत्रण!
आवागमन का चक्र
इस सृष्टि में चल रहा है।
मनुष्य की चेतना में एक ख्याल कि
वह इस धरा पर क्यों जन्मा ?
क्या मनुष्य को छोड़कर
किसी अन्य जीव में आ सकता है ?
इस बाबत भी
कभी फ़ुर्सत में
विचार कीजिए?
अपनी दृष्टि को आधार दीजिए !
जीव जगत के बाबत
अपना दृष्टिकोण विकसित कीजिए !!
अपनी जगत में उपस्थिति को
दर्शन की पैनी धार दीजिए !
स्वयं को आत्म बोध करने की
दिशा में अग्रसर कीजिए !!
२२/०२/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
जिस्म
सर्द मौसम में
तपती आग को
ढूंढना है चाहता।

जिस्म
गर्म मौसम में
बर्फ़ सरीखी
शीतलता है चाहता।

जिस्म
अपनी मियाद
पूरी होने पर
टूट कर बिखर है जाता।

नष्ट होने पर
उसे जलाओ या दफनाओ,
चील,गिद्ध, कौओं को खिलाओ।
क्या फ़र्क पड़ता है?
क्यों न उसे दान कर पुण्य कमाओ!
क्या फ़र्क पड़ता है?
जगत तो अपने रंग ढंग से
प्रगति पथ पर बढ़ता है ।
Joginder Singh Nov 2024
देह से नेह कर ,
मगर
इस राह में
ख़तरे बहुत हैं !!
यह
कुछ कुछ
मन के परिंदे के
पंख कुतरने जैसा है,
वह उड़ने के दिवास्वप्न ले जरूर,
मगर
परवाज़ पर
पाबंदी लगा दी जाए।

इसलिए
देह से नेह करने पर
नियंत्रण
व्यक्ति के लिए
बेहद ज़रूरी है।
हाँ,यह भी एक सच है
कि देह से नेह रखने पर
उल्लासमय हो जाता है जीवन,
वह
बाहर भीतर से
होता जाता है दृढ़
इस हद तक
कि यदि तमाम सरहदें तोड़ कर
बह निकले
जज़्बात की नदी
तो कर सकता है वह
निर्मित
उस दशा में
अटल रह,
जीवन रण में
जूझने में सक्षम तट बंध
भले ही
देह में नेह रहना चाहे
निर्बंधन !
यानिकि
सर्वथा सर्वथा बन्धन मुक्त!!


देह से नेह
अपनी सोच की सीमा में रह कर,कर।
ताकि झेलना न पड़ें संताप!
करना न पड़े पल प्रति पल प्रलाप!!

वैसे
सच यह है...
यह सब घटित हुआ नहीं, कि तत्काल
मानस अदृश्य बन्धन में बंधता जाता है।
वह
आज़ादी,सुख की सांस लेना तक भूल जाता है।
काल का कपाल उस की चेतना पर हावी होता जाता है।

इसलिए
मनोज और रति का जीवन प्रसंग
हमें अपनी दिनचर्या में
बसाए रखना अपरिहार्य हो जाता है।
नियंत्रित जीवन
देह से नेह में चटक रंग भरता है !
रंगीले चटकीले रंगों से ही यौवन निखरता है!!
   १७/११/२००९.
Joginder Singh Dec 2024
While seeing an image of Umangoat river
I was astonished!
The river seems me
looks like exactly a mirror passing through
the mesmerizing world of underwater.
Very very clean !!
and crystal clear water !!
It can remind you about the purity of Life,dear.
I am very eager to visit there!
90 · Apr 30
Cancellation
Sometimes
Cancellation is far better
in spite to pursue a cause because
nobody likes inconvenience.
30/04/2025.
89 · Dec 2024
Days of Buffer Zone
Joginder Singh Dec 2024
For peace and prosperity establish buffer zones.
But during the period of deep crisis, buffer zones become the areas of trouble.
In such moments, I caught myself in a trap of disturbance.
I need complete silence to recover my losses .
I want for myself to create a buffer zone for self security and privacy.
ਅੱਜ ਲੋਹੜੀ ਹੈ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਦਾ ਦਿਹਾੜਾ,
ਸਾਡੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਰੋਬਿਨ ਹੁੱਡ ।

ਅੱਜ ਲੋੜ ਹੈ
ਇੱਕ ਵਾਰ ਫਿਰ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਦੀ ,
ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਧੀਆਂ
ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ
ਖਾਂਦੀਆਂ ਪਈਆਂ ਨੇ ਧੱਕੇ ,
ਅੱਜ ਕੱਲ ਦੇ ਔਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ
ਉਹ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ
ਕਦੇ ਕਦੇ
ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ
ਉਹ ਭਾਲ ਦੀਆਂ ਨੇ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਵਰਗਾ ਪਿਓ
ਜਿਹੜਾ ਰੱਖ ਸਕੇ ਖ਼ਿਆਲ
ਧੀਆਂ ਦਾ
ਔਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ।
ਅੱਜ ਕੱਲ ਕੁੜੀਆਂ ਦੀਆਂ
ਲੋਹੜੀ ਮਨਾਉਣ ਦਾ
ਵੱਧ ਗਿਆ ਹੈ ਰਿਵਾਜ,
ਪਰ ਜਦੋਂ ਅਗਲੇ ਦਿਨ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਧੱਕਾ ਹੁੰਦਾ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ
ਤਾਂ ਮਨ ਵਿੱਚ ਉਠੱਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ
ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਵਾਲ ।
ਇਹ ਸਵਾਲ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਕੇ
ਦਿਲੋਂ ਦਿਮਾਗ ਵਿੱਚ
ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਬਵਾਲ।
ਅੱਜ ਧੀਆਂ ਨੂੰ ਹੈ ਇੰਤਜ਼ਾਰ
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਦਾ
ਜਿਹੜਾ ਦਿਲਾ ਸਕੇ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ।
ਅੱਜਕੱਲ੍ਹ ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਵਰਗੇ ਦਿਲਾਵਰ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ
ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੇ ਹਨ
ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੇ ਰਸੂਖ਼ ਦੇ ਕਾਰਨ
ਧੀਆਂ ਦੇ ਵੈਰੀਆਂ ਨੂੰ
ਸੌਖੇ ਤੇ ਸਹਿਜੇ ਹੀ ਧੂੜ ਚੱਟਾ ਸੱਕਣ,
ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਨਕੇਲ ਪਾਉਣ ਲਈ ਉਪਰਾਲੇ ਕਰ ਸੱਕਣ।

ਬੇਸ਼ੱਕ ਅੱਜ ਲੋਹੜੀ ਹੈ
ਤੇ ਕੱਲ ਲੋਕ ਮਾਘੀ ਵੀ ਮਨਾਉਣਗੇ,
ਪਰ ਕਦੋਂ ਉਹ ਆਪਣਾ ਸੱਚਾ ਸੁੱਚਾ ਕਿਰਦਾਰ ਨਿਭਾਉਣਗੇ ?

ਅਸੀਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ
ਸਭਨਾਂ ਦੀ ਲੋਹੜੀ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਭਰਪੂਰ ਹੋਵੇ ,
ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਕਦਰਾਂ ਤੇ ਕੀਮਤਾਂ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋਵੇ।
13/01/2025.
आजकल
दुनिया असली से
नकली बनती जा रही है ,
आभासी दुनिया की
चकाचौंध भी
अब सभी को
लुभा रही है ,
यह दिन प्रति दिन
भरमा रही है।

इस दुनिया के
अपने ही ख़तरे हैं,
हम सब आभास करते हैं
कुछ सचमुच का होने का ,
पर यह होता नहीं , कहीं भी।
इसे असल दुनिया में
खोजने लगें
तो हासिल होता कुछ भी नहीं ,
फिर भी लगता सब कुछ ठीक और सही।
मैं आभासी अंतरंगता के
दौर से भी गुजर चुका हूँ,
खुद को खूब थका चुका हूँ।
सब कपोल कल्पित
किस्से कहानियों में वर्णित
रंग बिरंगी दुनिया के
आकर्षक और लुभावने पात्रों की तरह !
इर्द गिर्द मंडराते और घूमते दिखाई देते हैं !!
एक नशीली महिमा मंडित दुनिया की तरह !
जहां असलियत और सच्चाई के लिए
होती नहीं कोई जगह बेवजह।

आभासी दुनिया का सच
कब हो जाए गायब और गुम !
यह कर दे इंसान को गुमसुम !!
कुछ कहा नहीं जा सकता !
बहुत कुछ कभी सहा नहीं जा सकता !!

जैसे ही रीचार्ज खत्म
समझो आभासी दुनिया का तिलिस्म भी हुआ खत्म !
और जैसे ही इंटरनेट कनेक्शन हुआ डिस्कनेक्ट !
वैसे ही समझो अब कुछ खत्म और समाप्त !
समूल सत्यानाश ! सब कुछ तहस नहस !
जीते जी बेड़ा गर्क !
जिन्दगी बन जाती साक्षात नरक !

इस आभासी दुनिया के खिलाड़ी
एक आभासी दुनिया में रहकर संतुष्ट होते हैं !
वे किसी हद तक
स्व निर्मित कैद को भोगने को विवश होते हैं !
क्या कभी कल्पित वास्तविकता
हम सब को हड़प जाएगी ?
हाय!तब हमारी असली दुनिया कहाँ ठौर ठिकाना पाएगी?
१७/०१/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
" काटने दौड़ा घर
अचानक मेरे पीछे,
जब जिन्दगी बितानी पड़ी,
तुम्हारी अम्मा के हरि चरणों में
जा विराजने के बाद,उस भाग्यवान के बगैर।"


"यह सब अक्सर
बाबू जी दोहराया करते थे,
हमें देर तक समझाया करते थे,
वे रह रह कर के कहते थे,
"मिल जुल कर रहा करो।
छोटी छोटी बातों पर
कुत्ते बिल्ली सा न लड़ा करो ।"


एक दिन अचानक
बाबूजी भी अम्मा की राह चले गए।
अनजाने ही एकदम हमें बड़ा कर गए।
पर अफ़सोस...
हम आपस में लड़ते रहे,
घर के अंदर भी गुंडागर्दी करते रहे।
परस्पर एक दूसरे के अंदर
वहशत और हुड़दंग भरते रहे।


आप ही बताइए।
हम सभी कभी बड़े होंगे भी कि नहीं?
या बस जीवन भर मूर्ख बने रहेंगे!
बंदर बाँट के कारण लड़ते रहेंगे।
जीवन भर दुःख देते और दुखी करते रहेंगे।
ताउम्र दुःख, पीड़ा, तकलीफ़ सहेंगे!!
मगर समझौता नहीं करेंगे!
अहंकारी बने रहेंगे।

बस आप हमें समझाते रहें जी।
हमें अम्मा बापू की याद आती रहे।
हम उनके बगैर अधूरे हैं जी।
२०/०३/२००९.
87 · Dec 2024
The Dignity of Life
Joginder Singh Dec 2024
The canvas of the Life is very vast.
Here slow and fast simultaneously exists.
Keep faith in the purity and the
dignity of Life,so that we all can become a part of its comfort zone.

Life itself is a complete package in itself full of uncertainties,ups and downs, complexities, opportunities.

It requires our sincere efforts to make life easy and full of happiness.
We must keep ourselves disciplined for the sake of its improvisation.
Satisfaction and contentment is very essential for the upliftment of body and peace of mind in life.
Joginder Singh Nov 2024
Nothing is free here,dear.
Even dearness allowance is not free in work structure of public as well as private sectors.
In capitalism, socialism, democracy and autocracy, price tags are being fixed on each commodity.
Even in social life, you must prepare yourself to pay price for natural instincts like love and hate etc.
Nothing is free here,dear.
Even freedom is not free to spend time for  the care of helpless persons.

So don't spare yourself to take care of
the thankless persons arround you.
You can keep your self  free for your freedom and personal activities .

Your own time is also a victim of price tag culture,dear.
There is nothing priceless.
You have to pay even for your emotions in an emotionalless, materialistic world.
Is it clear to you,dear.
Joginder Singh Dec 2024
तुम उसे पसंद नहीं करते ?
वह घमंडी है।
तुम भी तो एटीट्यूड वाले हो ,
फिर वह भी
अपने भीतर कुछ आत्मसम्मान रखे तो
वह हो गया घमंडी ?
याद रखो
जीवन की पगडंडी
कभी सीधी नहीं होती।
वह ऊपर नीचे,
दाएं बाएं,
इधर उधर,
कभी सीधी,कभी टेढ़ी,
चलती है और अचानक
उसके आगे कोई पहाड़ सरीखी दीवार
रुकावट बन खड़ी हो जाती है
तो वह क्या समाप्त हो जाती है ?
नहीं ,वह किसी सुरंग में भी बदल सकती है,
बशर्ते आदमी को
विभिन्न हालातों का
सामना करना आ जाए।
आदमी अपनी इच्छाओं को
दर किनार कर
खुद को
एक सुरंग सरीखा
बनाने में जुट जाए।
वह घमंडी है।
उसे जैसा है,वैसा बना रहने दो।
तुम स्वयं में परिवर्तन लाओ।
अपने घमंड को
साइबेरिया के ठंडे रेगिस्तान में छोड़ आओ।
खुद को विनम्र बनाओ।
यूं ही खुद को अकड़े अकड़े , टंगे टंगे से न रखो।
फिलहाल
अपने घमंड को
किसी बंद संदूक में
कर दो दफन।
जीवन में बचा रहे अमन।
तरो ताज़ा रहे तन और मन।
जीवन अपने गंतव्य तक
स्वाभाविक गति से बढ़ता रहे।
घमंड मन के भीतर दबा कुचला बना रहे ,
ताकि वह कभी तंग और परेशान न करे।
उसका घमंड जरूर तोड़ो।
मगर तुम कहीं खुद एक घमंडी न बन जाओ ।
इसलिए तुम
इस जीवन में
घमंड की दलदल में
धंसने से खुद को बचाओ।
घमंड को अपनी कथनी करनी से
एक पाखंड अवश्य सिद्ध करते जाओ।
११/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ।
ਹਰ ਵਰ੍ਹੇ ਇੱਕ ਮਈ ਦਾ ਦਿਹਾੜਾ ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹੇ।
ਅਫ਼ਸੋਸ ਇਸ ਸੱਚਾਈ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਸਾਥੀ ਹੀ ਸੁਣੇ।
ਇੱਕ ਹੋਰ ਵੱਡਾ ਅਫ਼ਸੋਸ ਕੋਈ ਕੋਈ ਇਸ ਤੇ ਅਮਲ ਕਰੇ।


ਵੀਰੋ, ਕੀਰਤੀਆਂ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਕੋਲ ਗਿਰਵੀ ਨਾ ਰੱਖੋ।
ਉਨੀਂਦੇ ਮਿਹਨਤ ਕਸ਼ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਤੁਸੀਂ ਰੱਖੋ।
ਅਜੇ ਸੱਚੇ ਸੁੱਚੇ ਇਨਕਲਾਬ ਨੇ, ਹੋਂਦ ਚ ਆਉਣਾ ਹੈ ਸਮੇਂ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ,
ਤੁਸੀਂ ਕਾਮੇ , ਕੀਰਤੀਆਂ ਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ‌ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਖੁਦ ਨੂੰ ਜਗਾਈ ਰੱਖੋ।


ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰਹੇ, ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਬਤ ਸੁਚੇਤ ਕਰੇ।
ਸਾਥੀਓ ,ਸਮੇਂ ਸਾਨੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ‌ ਦੂਜੇ ਸੱਚ ਵੀ ਕਹਿੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
ਇਸ ਕਾਇਨਾਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਜੀਵ ਵੇਲਾ ਨਾ ਰਹੇ।
ਹਰ ਕੋਈ ਮਿਹਨਤ ਚ ਦਿਨ ਰਾਤ ਰੁਝਿਆ ਰਹੇ।
28/04/2017.
87 · Nov 2024
Adversity
Joginder Singh Nov 2024
Whole world is busy to face
numerous challenges.
One of these is adversity.
Poverty, unemployment, instability,chaos,communal killings,illiteracy and many more adversities are running to win this unhumantic  race .

Friends,keep your eyes and windows of mind open to welcome the changes which will become our fate.

Your mind is like a gateway of universe.
Please educate it from time to time.
So that we all can create beautiful as well as timeless songs.
I am sure
that our forthcoming generation will sing such self written songs
to show and prove that anarchists always failed to execute their concipracies.
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